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बदल रही भाजपा, 'बनिया-ब्राह्मण' की छवि से बाहर निकलने की 'अकुलाहट'

क्या भारतीय जनता पार्टी बदल रही है ? क्या पार्टी का नजरिया बदल गया है या फिर पार्टी अपनी 'स्थापित छवि' (ब्राह्मण-बनिया की पार्टी) से बाहर निकलने की कोशिश कर रही है. जिस तरीके से पार्टी ने रामनाथ कोविंद और उसके बाद द्रौपदी मुर्मू को आगे किया है, इन्हें सिर्फ 'रबर स्टैंप' राष्ट्रपति कहकर विपक्ष भले ही खुश हो ले, लेकिन इसके जरिए भाजपा एक ऐसी लकीर खींच रही है, जिसके सामने दूसरी पार्टियां बौनी ही साबित हो रहीं हैं. चुनाव परिणामों पर नजर डालेंगे, तो पार्टी की यह 'थ्योरी' साफ तौर पर सफल होती दिख रही है. पढ़िए ईटीवी भारत की वरिष्ठ संवाददाता अनामिका रत्ना की एक रिपोर्ट.

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Published : Jul 22, 2022, 5:58 PM IST

Updated : Jul 22, 2022, 6:12 PM IST

shah, modi, nadda
शाह, मोदी, नड्डा

नई दिल्ली : राष्ट्रपति पद के लिए द्रौपदी मुर्मू की जीत को ये कह कर हाशिए पर डालने की कोशिश कर रहे हैं कि मोदी सरकार को कोई ऐसा ही उम्मीदवार चाहिए था, जो सरकार की हां में हां मिलाने वाला हो, लेकिन इस जीत का एक दूसरा पहलू भी है, जिसे नजरंदाज करना बेमानी होगा. सूत्रों की माने तो बीजेपी की योजना 'बनिया-ब्राह्मण' की पार्टी से अलग हट कर अब पूरे समाज की पार्टी होने की है, जिस पर पार्टी अंदरखाने 2014 से ही काम कर रही है. पार्टी की तरफ से 2017 में रामनाथ कोविंद को और अब 2022 में द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति बनाना इसी योजना का हिस्सा रहा है.

2017 में जब रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बीजेपी ने बनाया था, तब भी लोगों ने यही सोचा कि शायद मोदी सरकार को एक रबर स्टैम्प राष्ट्रपति चाहिए. लेकिन उसके बाद हुए 2019 के आम चुनावों के नतीजे यदि देखें, तो देश में अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए कुल 131 रिज़र्व सीटें हैं. 2019 के चुनावों में बीजेपी को इनमें से 77 सुरक्षित सीटों पर जीत हासिल हुई. यहां ये भी जानना जरूरी है कि 2014 के चुनावों में ये संख्या 67 थी. यानी जाति के बंधन मोदी की नई बीजेपी के लिए 2014 से टूटने लगे थे. ज़ाहिर है ये रातो-रात नहीं हुआ होगा. इसके पीछे संघ का बड़ा योगदान है.

दलितों को संघ और बीजेपी से जोड़ने के लिए सामाजिक समरसता मंच बना कर दलितों में खूब पैठ बनाई गई. बाद में सरकार बीजेपी की बनी तो आवास योजना और टॉयलेट बनने का फायदा गांवों में सबसे ज़्यादा दलितों को ही मिला. इसी तरह केंद्र सरकार की ओर से समग्र शिक्षा अभियान के तहत 10,000 से ज़्यादा ऐसे स्कूल खोले गए, जहां बच्चों के रहने-खाने की भी सुविधा है. ज़ाहिर है संघ की बरसों की मेहनत सरकार की योजनाओं से आगे बढ़ी और लोगों को फायदा मिला तो बीजेपी को चुनावों में भी फायदा दिखने लगा. इसलिए दलितों की सिर्फ राजनीति करने वाले पीछे होते गए और मायावती की पार्टी को 2019 में 131 सुरक्षित सीटों में से सिर्फ 2 सीटें मिलीं.

बीजेपी की सरकार ने सिर्फ आंकड़ों के लिए ही दलितों को पार्टी में जगह नहीं दी. उन्हें मंत्रिमंडल में जगह भी जगह दी गई. फिलहाल केंद्र सरकार में 20 अनुसूचित जाति-जनजाति के मंत्री हैं और 27 पिछड़े वर्ग के मंत्री. इसीलिए बीजेपी ने द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति भवन पहुंचाकर देश भर में फैली हुई 47 उन सीटों तक भी पहुंचने की कोशिश की है, जो जनजातियों के लिए आरक्षित हैं. ज़ाहिर है निशाना उड़ीसा और बंगाल से लेकर झारखंड, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, गुजरात, नॉर्थ ईस्ट और छत्तीसगढ़ पर भी है.

नाम न बताने की शर्त पर बीजेपी के पिछड़े प्रकोष्ठ के एक नेता कहते हैं, 'मुर्मू को राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी हमने सिर्फ तालियां बटोरने के लिए नहीं दी. इससे पूरे देश के आदिवासियों और जनजातियों में संदेश जाएगा कि देश में कोई एक ऐसी पार्टी भी है, जो पिछड़ों और वंचितों को हम में से किसी को देश का सर्वोच्च नागरिक बनाने की सोचती है. ज़ाहिर है ये संदेश झारखंड, बंगाल, छत्तीसगढ़, गुजरात , तेलंगना और आंध्र प्रदेश के राज्यों में तो जाएगा ही, उत्तर-पूर्व के राज्यों में भी इसका असर देखने को मिलेगा. हमारी योजनाएं लोगों के कल्याण के लिए होती हैं. पिछड़ों, आदिवासियों अनुसूचित जातियों के कल्याण के लिए काम करेंगे, तो सरकारें अपने आप बनेंगी.'

2024 का चुनाव अभी दो बरस दूर है, लेकिन बीजेपी उन 144 सीटों को साधने की तैयारी शुरू कर चुकी है, जिस पर उन्हें पहले कभी विजय नहीं मिली. यानी उन्हें पहले से जीती हुई सीटों को फिर से जीत लेने का इतना भरोसा है, कि उन्होंने उन किलों को फतह करने की योजना बनाई है, जहां वो अब तक सेंध नहीं लगा पाए हैं. मुर्मू को उम्मीदवार बना कर बीजेपी ने विपक्ष में कैसे सेंध लगाई, इसे साफ देखा जा सकता है. विपक्ष में बैठे झारखंड मुक्ति मोर्चा को एनडीए के उम्मीदवार को वोट देने का ऐलान करना पड़ा, साथ ही साथ उद्धव ठाकरे को भी एनडीए के उम्मीदवार का समर्थन देना पड़ा, यही नहीं इस बाबत ममता बनर्जी तक को सफाई देनी पड़ गई.

अब हाल ही में यूपी मे हुए लोकसभा के दो उपचुनावों पहला रामपुर जहां पचास फीसदी से ज़्यादा आबादी मुसलमानो की है और हिंदू 45 फीसदी को देखिए. उपचुनाव में लोध और यादव जातियों ने एक होकर मतदान किया और घनश्याम सिंह लोध जीत कर लोकसभा पहुंचे. इसी तरह आज़मगढ़ भी सपा का गढ़ माना जाता था. लेकिन मुस्लिम-यादव बहुल इस इलाके में भी बीजेपी को उपचुनाव में जीत मिली. यानि दलित मतदाता सपा बसपा को छोड़ अब बीजेपी को विकल्प मान रहे हैं. साफ है वाजपेयी युग की बीजेपी और मोदी युग की भाजपा तक आते-आते पार्टी का मूल स्वभाव भी बदल गया है. अब पार्टी सिर्फ अगड़ी ही नहीं पिछड़ी और दलित जातियों को पार्टी और सरकार दोनों में मौके दे रही है, जिसका नतीज़ा भी उसे मिल रहा है.

इस मुद्दे पर ईटीवी भारत से बात करते हुए बीजेपी ओबीसी मोर्चा अध्यक्ष के लक्ष्मण ने कहा कि पिछले लगभग 60 सालों में कांग्रेस ने पिछड़ी जातियों को धोखा ही दिया है, लेकिन जब से पिछले 7 साल से बीजेपी सत्ता में आई है, लगातार नरेंद्र मोदी पिछड़ों और अनुसूचित जाति के विकास के लिए काम कर रही है. उन्होंने कहा कि जिस तरह से आज निर्णय लिए जा रहे हैं, वो सभी वर्ग को ध्यान में रखकर किया जा रहा है. आरक्षण का मुद्दा हो, ओबीसी का या अनुसूचित जनजाति का, आज एक आदिवासी समुदाय की महिला को देश के सर्वोच्च पद पर चुनकर लाना या बीजेपी में ही संभव हुआ है, उससे पहले भी बीजेपी ने एक अनुसूचित के समुदाय से रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति बनाया. सामाजिक न्याय को ध्यान में रखकर फैसले किए जा रहे हैं. यह बाकी दलों के लिए एक सबक है.

इस सवाल पर कि एक पार्टी जो हमेशा से अगड़ी जाति या बनियों की जाति के नाम से पुकारी जाती थी, उसने अपने उद्देश बिलकुल बदल लिए, क्या रिस्क फैक्टर नही था इसमें. इसपर बीजेपी ओबीसी मोर्चा के अध्यक्ष के लक्ष्मण ने कहा कि हमारी पार्टी शुरू से अंत्योदय की योजना पर काम करती रही है, गरीब में भी जो अति गरीब हैं उन्हें पहले सभी योजनाओं में लाभ मिले इस बात का ध्यान चाहे अटल सरकार हो या मोदी की, सभी में ध्यान रखा गया है, और इसलिए सभी वर्ग के लोग जुड़ रहे हैं. राष्ट्रपति ही नहीं, पद्म अवार्ड से लेकर राज्यसभा के उम्मीदवार तक जो जमीन से जुड़े हैं, उन्हें मोदी सरकार आगे बढ़ा रही है, इसलिए लोगों में भरोसा बढ़ा है.

ये भी पढ़ें : द्रौपदी मुर्मू की उम्मीदवारी ने विपक्षी एकता को किया 'तार-तार'

नई दिल्ली : राष्ट्रपति पद के लिए द्रौपदी मुर्मू की जीत को ये कह कर हाशिए पर डालने की कोशिश कर रहे हैं कि मोदी सरकार को कोई ऐसा ही उम्मीदवार चाहिए था, जो सरकार की हां में हां मिलाने वाला हो, लेकिन इस जीत का एक दूसरा पहलू भी है, जिसे नजरंदाज करना बेमानी होगा. सूत्रों की माने तो बीजेपी की योजना 'बनिया-ब्राह्मण' की पार्टी से अलग हट कर अब पूरे समाज की पार्टी होने की है, जिस पर पार्टी अंदरखाने 2014 से ही काम कर रही है. पार्टी की तरफ से 2017 में रामनाथ कोविंद को और अब 2022 में द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति बनाना इसी योजना का हिस्सा रहा है.

2017 में जब रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बीजेपी ने बनाया था, तब भी लोगों ने यही सोचा कि शायद मोदी सरकार को एक रबर स्टैम्प राष्ट्रपति चाहिए. लेकिन उसके बाद हुए 2019 के आम चुनावों के नतीजे यदि देखें, तो देश में अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए कुल 131 रिज़र्व सीटें हैं. 2019 के चुनावों में बीजेपी को इनमें से 77 सुरक्षित सीटों पर जीत हासिल हुई. यहां ये भी जानना जरूरी है कि 2014 के चुनावों में ये संख्या 67 थी. यानी जाति के बंधन मोदी की नई बीजेपी के लिए 2014 से टूटने लगे थे. ज़ाहिर है ये रातो-रात नहीं हुआ होगा. इसके पीछे संघ का बड़ा योगदान है.

दलितों को संघ और बीजेपी से जोड़ने के लिए सामाजिक समरसता मंच बना कर दलितों में खूब पैठ बनाई गई. बाद में सरकार बीजेपी की बनी तो आवास योजना और टॉयलेट बनने का फायदा गांवों में सबसे ज़्यादा दलितों को ही मिला. इसी तरह केंद्र सरकार की ओर से समग्र शिक्षा अभियान के तहत 10,000 से ज़्यादा ऐसे स्कूल खोले गए, जहां बच्चों के रहने-खाने की भी सुविधा है. ज़ाहिर है संघ की बरसों की मेहनत सरकार की योजनाओं से आगे बढ़ी और लोगों को फायदा मिला तो बीजेपी को चुनावों में भी फायदा दिखने लगा. इसलिए दलितों की सिर्फ राजनीति करने वाले पीछे होते गए और मायावती की पार्टी को 2019 में 131 सुरक्षित सीटों में से सिर्फ 2 सीटें मिलीं.

बीजेपी की सरकार ने सिर्फ आंकड़ों के लिए ही दलितों को पार्टी में जगह नहीं दी. उन्हें मंत्रिमंडल में जगह भी जगह दी गई. फिलहाल केंद्र सरकार में 20 अनुसूचित जाति-जनजाति के मंत्री हैं और 27 पिछड़े वर्ग के मंत्री. इसीलिए बीजेपी ने द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति भवन पहुंचाकर देश भर में फैली हुई 47 उन सीटों तक भी पहुंचने की कोशिश की है, जो जनजातियों के लिए आरक्षित हैं. ज़ाहिर है निशाना उड़ीसा और बंगाल से लेकर झारखंड, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, गुजरात, नॉर्थ ईस्ट और छत्तीसगढ़ पर भी है.

नाम न बताने की शर्त पर बीजेपी के पिछड़े प्रकोष्ठ के एक नेता कहते हैं, 'मुर्मू को राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी हमने सिर्फ तालियां बटोरने के लिए नहीं दी. इससे पूरे देश के आदिवासियों और जनजातियों में संदेश जाएगा कि देश में कोई एक ऐसी पार्टी भी है, जो पिछड़ों और वंचितों को हम में से किसी को देश का सर्वोच्च नागरिक बनाने की सोचती है. ज़ाहिर है ये संदेश झारखंड, बंगाल, छत्तीसगढ़, गुजरात , तेलंगना और आंध्र प्रदेश के राज्यों में तो जाएगा ही, उत्तर-पूर्व के राज्यों में भी इसका असर देखने को मिलेगा. हमारी योजनाएं लोगों के कल्याण के लिए होती हैं. पिछड़ों, आदिवासियों अनुसूचित जातियों के कल्याण के लिए काम करेंगे, तो सरकारें अपने आप बनेंगी.'

2024 का चुनाव अभी दो बरस दूर है, लेकिन बीजेपी उन 144 सीटों को साधने की तैयारी शुरू कर चुकी है, जिस पर उन्हें पहले कभी विजय नहीं मिली. यानी उन्हें पहले से जीती हुई सीटों को फिर से जीत लेने का इतना भरोसा है, कि उन्होंने उन किलों को फतह करने की योजना बनाई है, जहां वो अब तक सेंध नहीं लगा पाए हैं. मुर्मू को उम्मीदवार बना कर बीजेपी ने विपक्ष में कैसे सेंध लगाई, इसे साफ देखा जा सकता है. विपक्ष में बैठे झारखंड मुक्ति मोर्चा को एनडीए के उम्मीदवार को वोट देने का ऐलान करना पड़ा, साथ ही साथ उद्धव ठाकरे को भी एनडीए के उम्मीदवार का समर्थन देना पड़ा, यही नहीं इस बाबत ममता बनर्जी तक को सफाई देनी पड़ गई.

अब हाल ही में यूपी मे हुए लोकसभा के दो उपचुनावों पहला रामपुर जहां पचास फीसदी से ज़्यादा आबादी मुसलमानो की है और हिंदू 45 फीसदी को देखिए. उपचुनाव में लोध और यादव जातियों ने एक होकर मतदान किया और घनश्याम सिंह लोध जीत कर लोकसभा पहुंचे. इसी तरह आज़मगढ़ भी सपा का गढ़ माना जाता था. लेकिन मुस्लिम-यादव बहुल इस इलाके में भी बीजेपी को उपचुनाव में जीत मिली. यानि दलित मतदाता सपा बसपा को छोड़ अब बीजेपी को विकल्प मान रहे हैं. साफ है वाजपेयी युग की बीजेपी और मोदी युग की भाजपा तक आते-आते पार्टी का मूल स्वभाव भी बदल गया है. अब पार्टी सिर्फ अगड़ी ही नहीं पिछड़ी और दलित जातियों को पार्टी और सरकार दोनों में मौके दे रही है, जिसका नतीज़ा भी उसे मिल रहा है.

इस मुद्दे पर ईटीवी भारत से बात करते हुए बीजेपी ओबीसी मोर्चा अध्यक्ष के लक्ष्मण ने कहा कि पिछले लगभग 60 सालों में कांग्रेस ने पिछड़ी जातियों को धोखा ही दिया है, लेकिन जब से पिछले 7 साल से बीजेपी सत्ता में आई है, लगातार नरेंद्र मोदी पिछड़ों और अनुसूचित जाति के विकास के लिए काम कर रही है. उन्होंने कहा कि जिस तरह से आज निर्णय लिए जा रहे हैं, वो सभी वर्ग को ध्यान में रखकर किया जा रहा है. आरक्षण का मुद्दा हो, ओबीसी का या अनुसूचित जनजाति का, आज एक आदिवासी समुदाय की महिला को देश के सर्वोच्च पद पर चुनकर लाना या बीजेपी में ही संभव हुआ है, उससे पहले भी बीजेपी ने एक अनुसूचित के समुदाय से रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति बनाया. सामाजिक न्याय को ध्यान में रखकर फैसले किए जा रहे हैं. यह बाकी दलों के लिए एक सबक है.

इस सवाल पर कि एक पार्टी जो हमेशा से अगड़ी जाति या बनियों की जाति के नाम से पुकारी जाती थी, उसने अपने उद्देश बिलकुल बदल लिए, क्या रिस्क फैक्टर नही था इसमें. इसपर बीजेपी ओबीसी मोर्चा के अध्यक्ष के लक्ष्मण ने कहा कि हमारी पार्टी शुरू से अंत्योदय की योजना पर काम करती रही है, गरीब में भी जो अति गरीब हैं उन्हें पहले सभी योजनाओं में लाभ मिले इस बात का ध्यान चाहे अटल सरकार हो या मोदी की, सभी में ध्यान रखा गया है, और इसलिए सभी वर्ग के लोग जुड़ रहे हैं. राष्ट्रपति ही नहीं, पद्म अवार्ड से लेकर राज्यसभा के उम्मीदवार तक जो जमीन से जुड़े हैं, उन्हें मोदी सरकार आगे बढ़ा रही है, इसलिए लोगों में भरोसा बढ़ा है.

ये भी पढ़ें : द्रौपदी मुर्मू की उम्मीदवारी ने विपक्षी एकता को किया 'तार-तार'

Last Updated : Jul 22, 2022, 6:12 PM IST
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