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साल के अंत तक जारी रहेगी बीजेपी की सीएम बदलने की रणनीति

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Published : Sep 13, 2021, 8:25 PM IST

2014 में सत्ता संभालने के बाद भारतीय जनता पार्टी में नरेंद्र मोदी और अमित शाह के द्वारा बनाए गए 20 मुख्यमंत्रियों में से 40 फीसदी अभी तक हटाए जा चुके हैं और आने वाले दिनों में कुछ और मुख्यमंत्री इस सूची में शामिल हो सकते हैं आखिर क्या है मुख्य मंत्रियों को हटाने के पीछे बीजेपी की रणनीति आइए जानते हैं. वरिष्ठ संवाददाता अनामिका रत्ना की इस रिपोर्ट में

साल के अंत तक जारी रहेगी बीजेपी की सीएम बदलने की रणनीति
साल के अंत तक जारी रहेगी बीजेपी की सीएम बदलने की रणनीति

नई दिल्ली : 2014 के बाद से नरेंद्र मोदी और अमित शाह की तरफ से बनाए गए 20 मुख्यमंत्रियों में से 40 फीसदी यानी आठ मुख्यमंत्री अभी तक बदले जा चुके हैं. पिछले छह माह के भीतर तो पांच मुख्यमंत्रियों को एक के बाद एक अपनी कुर्सी से हाथ धोना पड़ा है.

गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रुपाणी ने शनिवार को अपना इस्तीफा दिया. इससे पहले उत्तराखंड में बहुत ही कम समय के अंतराल में दो मुख्यमंत्री बदले गए. इसी तरह कर्नाटक में भी बीजेपी ने येदुरप्पा को इस्तीफा देने पर मजबूर कर एक बड़ा फैसला किया गया. इसके बाद असम के मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल को केंद्र में बुलाया गया और वहां कमान हिमंता बिस्वा सरमा के हाथ में कमान सौंपी गई और इस बार तो अमित शाह के बेहद करीबी माने जाने वाले विजय रुपाणी को ही अपनी कुर्सी से हाथ धोना पड़ा.

इससे एक बात तो साफ हो गई है कि चाहे कोई भी हो ,लेकिन चुनाव की कसौटी पर और कार्यों की कसौटी पर यदि कोई भी मुख्यमंत्री या नेता खरा नहीं उतरता है तो पार्टी उसको बाहर का रास्ता दिखा देगी. उत्तराखंड में तो बहुत ही कम समय के अंतराल पहले त्रिवेंद्र सिंह रावत को मुख्यमंत्री बनाया गया उसके बाद उनसे इस्तीफा लेकर तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री पद से नवाजा गया.

तीरथ सिंह रावत को बने कुछ ही महीने हुए थे कि उनसे इस्तीफा लेकर पुष्कर सिंह धामी को उत्तराखंड की कमान सौंप दी गई. उत्तराखंड में अगले साल चुनाव होने हैं. इसी तरह गुजरात में भी लगभग 15 माह के बाद चुनाव होने हैं और पार्टी ने समय से निर्णय लेकर नए मुख्यमंत्री को पहले हुई गलतियों को सुधारने के अंदर खाने निर्देश तो दिया ही है साथ ही साथ पाटीदार वोट बैंक को भी संतुष्ट करने की कोशिश की है.

पार्टी के विश्वासतसूत्रों की मानें तो इस साल पिछले छह माह के अंदर पार्टी ने कई बड़े फैसले लिए हैं, जो शायद किसी अन्य पार्टी के लिए लेना काफी मुश्किल था. बात करें यदि यदुरप्पा की, तो कर्नाटक में पार्टी खुद भी जानती है कि लिंगायत नेता येदुरप्पा का जनाधार अच्छा खासा था और मुख्यमंत्री बनने के बाद दे साल के अंदर ही उन्हें हटाना एक बड़ा फैसला था.

सूत्रों का कहना है कि प्रधानमंत्री और वरिष्ठ नेता किसी भी कीमत पर आने वाले चुनाव में खराब प्रदर्शन नहीं चाहते हैं. यही वजह है कि इस साल के अंत तक कुछ राज्य के और भी मुख्यमंत्रियों को बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता है.

पढ़ें - अफगान संसद में PM मोदी ने पढ़े थे 'अटल' के विरोधी राजा महेंद्र प्रताप के कसीदे

पार्टी सूत्रों की माने तो अंदर खाने पार्टी के कुछ राष्ट्रीय महासचिव और राष्ट्रीय सचिवों को मुख्यमंत्रियों के कार्यकाल में हुए कार्यों और उनकी उपलब्धियां उनके राज्यों में चल रहे आंदोलन और असंतुष्ट समूह की तरफ से मुख्यमंत्री के खिलाफ उठाए जा रहे तमाम शिकायतों के आधार पर रिपोर्ट तैयार की जा रही है और कुछ अप्रत्याशित नाम जल्दी ही सामने आ सकते हैं.

इसके अलावा पार्टी सूत्रों का कहना है कि ऐसा नहीं है कि मुख्यमंत्रियों को मात्र उनकी उपलब्धियों और कार्यशैली के आधार पर ही हटाया जा रहा है. कुछ मजबूरियां जातिगत समीकरण की भी है और उन्हें देखते हुए आलाकमान को पार्टी हित में भी फैसले लेने पड़ सकते हैं.

नई दिल्ली : 2014 के बाद से नरेंद्र मोदी और अमित शाह की तरफ से बनाए गए 20 मुख्यमंत्रियों में से 40 फीसदी यानी आठ मुख्यमंत्री अभी तक बदले जा चुके हैं. पिछले छह माह के भीतर तो पांच मुख्यमंत्रियों को एक के बाद एक अपनी कुर्सी से हाथ धोना पड़ा है.

गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रुपाणी ने शनिवार को अपना इस्तीफा दिया. इससे पहले उत्तराखंड में बहुत ही कम समय के अंतराल में दो मुख्यमंत्री बदले गए. इसी तरह कर्नाटक में भी बीजेपी ने येदुरप्पा को इस्तीफा देने पर मजबूर कर एक बड़ा फैसला किया गया. इसके बाद असम के मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल को केंद्र में बुलाया गया और वहां कमान हिमंता बिस्वा सरमा के हाथ में कमान सौंपी गई और इस बार तो अमित शाह के बेहद करीबी माने जाने वाले विजय रुपाणी को ही अपनी कुर्सी से हाथ धोना पड़ा.

इससे एक बात तो साफ हो गई है कि चाहे कोई भी हो ,लेकिन चुनाव की कसौटी पर और कार्यों की कसौटी पर यदि कोई भी मुख्यमंत्री या नेता खरा नहीं उतरता है तो पार्टी उसको बाहर का रास्ता दिखा देगी. उत्तराखंड में तो बहुत ही कम समय के अंतराल पहले त्रिवेंद्र सिंह रावत को मुख्यमंत्री बनाया गया उसके बाद उनसे इस्तीफा लेकर तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री पद से नवाजा गया.

तीरथ सिंह रावत को बने कुछ ही महीने हुए थे कि उनसे इस्तीफा लेकर पुष्कर सिंह धामी को उत्तराखंड की कमान सौंप दी गई. उत्तराखंड में अगले साल चुनाव होने हैं. इसी तरह गुजरात में भी लगभग 15 माह के बाद चुनाव होने हैं और पार्टी ने समय से निर्णय लेकर नए मुख्यमंत्री को पहले हुई गलतियों को सुधारने के अंदर खाने निर्देश तो दिया ही है साथ ही साथ पाटीदार वोट बैंक को भी संतुष्ट करने की कोशिश की है.

पार्टी के विश्वासतसूत्रों की मानें तो इस साल पिछले छह माह के अंदर पार्टी ने कई बड़े फैसले लिए हैं, जो शायद किसी अन्य पार्टी के लिए लेना काफी मुश्किल था. बात करें यदि यदुरप्पा की, तो कर्नाटक में पार्टी खुद भी जानती है कि लिंगायत नेता येदुरप्पा का जनाधार अच्छा खासा था और मुख्यमंत्री बनने के बाद दे साल के अंदर ही उन्हें हटाना एक बड़ा फैसला था.

सूत्रों का कहना है कि प्रधानमंत्री और वरिष्ठ नेता किसी भी कीमत पर आने वाले चुनाव में खराब प्रदर्शन नहीं चाहते हैं. यही वजह है कि इस साल के अंत तक कुछ राज्य के और भी मुख्यमंत्रियों को बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता है.

पढ़ें - अफगान संसद में PM मोदी ने पढ़े थे 'अटल' के विरोधी राजा महेंद्र प्रताप के कसीदे

पार्टी सूत्रों की माने तो अंदर खाने पार्टी के कुछ राष्ट्रीय महासचिव और राष्ट्रीय सचिवों को मुख्यमंत्रियों के कार्यकाल में हुए कार्यों और उनकी उपलब्धियां उनके राज्यों में चल रहे आंदोलन और असंतुष्ट समूह की तरफ से मुख्यमंत्री के खिलाफ उठाए जा रहे तमाम शिकायतों के आधार पर रिपोर्ट तैयार की जा रही है और कुछ अप्रत्याशित नाम जल्दी ही सामने आ सकते हैं.

इसके अलावा पार्टी सूत्रों का कहना है कि ऐसा नहीं है कि मुख्यमंत्रियों को मात्र उनकी उपलब्धियों और कार्यशैली के आधार पर ही हटाया जा रहा है. कुछ मजबूरियां जातिगत समीकरण की भी है और उन्हें देखते हुए आलाकमान को पार्टी हित में भी फैसले लेने पड़ सकते हैं.

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