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जाति वाली राजनीति : तेजस्वी की एक 'चिट्ठी' से UP में उलझी NDA, अब नीतीश ने अलापा अलग 'राग'

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Published : Sep 28, 2021, 9:12 PM IST

बिहार में जाति बहुत ही महत्वपूर्ण रही है. यह सच है कि यहां की राजनीति जाति के इर्द-गिर्द ही सीमित रही है. इसके एक नहीं अनेकों उदाहरण हैं. लालू यादव से लेकर नीतीश कुमार तक जाति की राजनीति करने से परहेज नहीं करते हैं. पढ़ें बिहार की जाति वाली राजनीति पर पूरी रिपोर्ट...

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पटना : बिहार में जाति की सियासत को मजबूत मजलिस बनाकर मंच सजाने का काम सभी राजनीतिक दलों ने शुरू कर दिया है. नीतीश (Nitish Kumar) के साथ बिहार के वे सभी राजनीतिक दल भी खड़े हैं, जो नीतीश विरोध की राजनीति (Bihar Politics) करते हैं, लेकिन जाति पर साथ हैं. इनमें वे भी हैं जो सरकार वाली सियासत में भाजपा (BJP) के साथ हैं, लेकिन जाति वाली सियासत में दूसरी गिनती गिना रहे हैं.

वास्तव में बिहार की राजनीति जातिवाली सियासी जकड़बंदी से बाहर ही नहीं निकल पा रही है. बिहार विकास की राजनीति के लिए थोड़ा तैयार होता है, मन छटपटाता है लेकिन सियासतदान उसे खींचकर फिर जाति की राजनीति वाली डगर पर लाकर खड़ा कर देते हैं.

बिहार में जाति की राजनीति से ही कई राजनीतिक दलों का उद्भव हुआ है. सिद्धांत की राजनीति का नारा पार्टी के एजेंडे में तो है लेकिन सियासत 'सिर्फ' जाति वाली ही करनी है. राजनीति में सिद्धांतों पर बोयी गई मुद्दों की फसल कई बार उतनी उत्पादक नहीं हो पाती है, जितना जाति की खेती राजनीति में फायदा दे जाती है. इसे बिहार ने खूब जिया है.

जेपी से राजनीति की जमीन लेकर उतरे सियासी दलों ने सिद्धांत की राजनीति का नारा तो दे दिया. लेकिन जाति की राजनीति पर जो सियासी रंग सत्ता ने दिया वो सिद्धांत वाली राजनीति से नहीं मिला. बात लालू की हो या फिर नीतीश की या रामविलास पासवान की, बिहार ने इस मुद्दे पर इन नेताओं के मन की मुराद को पूरा किया. बस बिहार के सिद्धांत और विकास वाली राजनीति का हर रंग अधूरा रह गया.

बिहार के सभी राजनीतिक दल जाति की गिनती कराने के लिए पार्टी लाइन का एजेंडा और नीति को साफ तौर पर बता रहे हैं. बिहार के सीएम नीतीश ने साफ कर दिया है कि जाति की गिनती अगर हो जाय तो इससे देश का भला होगा. सियासत में आम जनता के भले की बात हो रही है. जातीय जनगणना को ऐसे जरुरी बताया जा रहा है जैसे जाति की गिनती से देश बदल जाएगा.

बिहार से जातीय जनगणना (Cast Census) को लेकर सबसे ज्यादा चर्चा हो रही है, मांग उठ रही है. नीतीश कुमार बिहार के सभी राजनीतिक दलों के साथ पीएम से मिलकर आए. तो वहीं तेजस्वी यादव ने जाति की गिनती पर 33 राजनीतिक दलों के मेलमिलाप के लिए समर्थन देने का पत्र भेज दिया है. देश में विरोध करने वाली सियासत के एकजुट रहने से सत्ता को दिक्कत होती है, लेकिन मुद्दा मायने रखता है.

देश में आयरन लेडी का खिताब लेकर चलने वाली इंदिरा गांधी को जेपी आंदोलन ने हिला दिया था, क्योंकि मुद्दा संपूर्ण क्रांति का था. नारे में विकास के लिए 7 क्रांतियों को जगह दी गई थी जो राजनीतिक क्रांति, आर्थिक क्रांति, सामाजिक क्रांति,सांस्कृतिक क्रांति, बौद्धिक क्रांति, शैक्षणिक क्रांति, और आध्यात्मिक क्रांति जेपी का नारा था.

'जात पात तोड़ दो तिलक दहेज छोड़ दो, समाज के प्रवाह को नई दिशा में मोड़ दो', जीपी के लिए यह सिद्धांत नए बिहार को बनाने का संकल्प वाला मंत्र था. आज जेपी की सिद्धांत वाले मंत्र की राजनीति करने वाले गद्दी पर हैं और विरोध में भी जेपी की सिद्धांत वाले मंत्र की राजनीति करने वाले हैं. लेकिन सवाल यही है कि जेपी ने जिसे तोड़ने को कहा था, उसे जोड़ने की राजनीति को इतनी मजबूत राजनीति का रंग क्यों दिया जा रहा है.

यूपी में 2022 में विधानसभा चुनाव है. भाजपा विकास के मुद्दे पर चुनावों में जा रही है. अखिलेश यादव योगी सरकार को चुनौती दे रहे हैं. विकास के मुद्दे का जवाब विकास से देना है यह सपा ने तय किया है. जाति पर अखिलेश यादव को साथ लाना है इसके लिए तेजस्वी ने अखिलेश यादव को न्योता दिया है.

अब राजनीति इसी को समझने की कोशिश कर रही है कि तेजस्वी वाली सियासत में नीतीश यूपी में कहां खड़े हैं. तेजस्वी की चिट्ठी पर अखिलेश यादव का समर्थन नीतीश के साथ होगा या नहीं. फिलहाल अखिलेश यादव, तेजस्वी की चिट्ठी पर चुप हैं. यूपी में जदयू चुनावी तैयारी में है. ऐसे में यह मुद्दा बन रहा है कि जाति की राजनीति में नीतीश यूपी में कहां खड़े हैं. भाजपा के साथ होने पर जाति की बात को छोड़ना होगा और बिहार में साथ रहकर अगर जाति की बात करते हैं तो बिहार में चल रही सरकार के सैद्धांतिक समझौते पर झुकना होगा. इन दोनों हालतों में तेजस्वी की सियासत मजबूत रंग लिए रहेगी.

यूपी में लगभग 18 फीसदी मुसलमान हैं और 52 प्रतिशत से ज्यादा ओबीसी वोट है. जाति की गिनती वाली राजनीति दोराहे पर खड़ी है. जाति की राजनीति की बात पर बीजेपी जनसंख्या नियंत्रण कानून को उठा लेती है और नीतीश के साथ समर्थन की बात इसलिए कह देती है कि बिहार में उनका सरकारी साथ है.

वहीं यूपी में जाति की गिनती वाली राजनीति को तेजस्वी की चिट्ठी ने उलझा दिया है. अब जब जदयू को कोई राह नहीं दिखी तो विशेष राज्य के दर्जे की बात को नए रंग में लाकर मुद्दे की दिशा बदल दी गई. लेकिन बड़ा सवाल यही है कि क्या जाति की राजनीति में जदयू का हाथ तंग होता जा रहा है, जिसने उसे मुद्दा बदलने पर मजबूर कर दिया है. बहरहाल जाति पर नई राजनीति को रंग देने का काम शुरू किया गया है, सभी राजनीतिक दल अपनी पार्टी का रंग रोगन करने में जुटे हैं. देखना होगा जाति की बिहार वाली राजनीति यूपी के रास्ते कौन सा आयाम लेकर दिल्ली पहुंचती है.

यह भी पढ़ें- UP चुनाव से पहले बिहार की सियासत में जाति की राजनीति गरमायी : मांझी-सहनी

पटना : बिहार में जाति की सियासत को मजबूत मजलिस बनाकर मंच सजाने का काम सभी राजनीतिक दलों ने शुरू कर दिया है. नीतीश (Nitish Kumar) के साथ बिहार के वे सभी राजनीतिक दल भी खड़े हैं, जो नीतीश विरोध की राजनीति (Bihar Politics) करते हैं, लेकिन जाति पर साथ हैं. इनमें वे भी हैं जो सरकार वाली सियासत में भाजपा (BJP) के साथ हैं, लेकिन जाति वाली सियासत में दूसरी गिनती गिना रहे हैं.

वास्तव में बिहार की राजनीति जातिवाली सियासी जकड़बंदी से बाहर ही नहीं निकल पा रही है. बिहार विकास की राजनीति के लिए थोड़ा तैयार होता है, मन छटपटाता है लेकिन सियासतदान उसे खींचकर फिर जाति की राजनीति वाली डगर पर लाकर खड़ा कर देते हैं.

बिहार में जाति की राजनीति से ही कई राजनीतिक दलों का उद्भव हुआ है. सिद्धांत की राजनीति का नारा पार्टी के एजेंडे में तो है लेकिन सियासत 'सिर्फ' जाति वाली ही करनी है. राजनीति में सिद्धांतों पर बोयी गई मुद्दों की फसल कई बार उतनी उत्पादक नहीं हो पाती है, जितना जाति की खेती राजनीति में फायदा दे जाती है. इसे बिहार ने खूब जिया है.

जेपी से राजनीति की जमीन लेकर उतरे सियासी दलों ने सिद्धांत की राजनीति का नारा तो दे दिया. लेकिन जाति की राजनीति पर जो सियासी रंग सत्ता ने दिया वो सिद्धांत वाली राजनीति से नहीं मिला. बात लालू की हो या फिर नीतीश की या रामविलास पासवान की, बिहार ने इस मुद्दे पर इन नेताओं के मन की मुराद को पूरा किया. बस बिहार के सिद्धांत और विकास वाली राजनीति का हर रंग अधूरा रह गया.

बिहार के सभी राजनीतिक दल जाति की गिनती कराने के लिए पार्टी लाइन का एजेंडा और नीति को साफ तौर पर बता रहे हैं. बिहार के सीएम नीतीश ने साफ कर दिया है कि जाति की गिनती अगर हो जाय तो इससे देश का भला होगा. सियासत में आम जनता के भले की बात हो रही है. जातीय जनगणना को ऐसे जरुरी बताया जा रहा है जैसे जाति की गिनती से देश बदल जाएगा.

बिहार से जातीय जनगणना (Cast Census) को लेकर सबसे ज्यादा चर्चा हो रही है, मांग उठ रही है. नीतीश कुमार बिहार के सभी राजनीतिक दलों के साथ पीएम से मिलकर आए. तो वहीं तेजस्वी यादव ने जाति की गिनती पर 33 राजनीतिक दलों के मेलमिलाप के लिए समर्थन देने का पत्र भेज दिया है. देश में विरोध करने वाली सियासत के एकजुट रहने से सत्ता को दिक्कत होती है, लेकिन मुद्दा मायने रखता है.

देश में आयरन लेडी का खिताब लेकर चलने वाली इंदिरा गांधी को जेपी आंदोलन ने हिला दिया था, क्योंकि मुद्दा संपूर्ण क्रांति का था. नारे में विकास के लिए 7 क्रांतियों को जगह दी गई थी जो राजनीतिक क्रांति, आर्थिक क्रांति, सामाजिक क्रांति,सांस्कृतिक क्रांति, बौद्धिक क्रांति, शैक्षणिक क्रांति, और आध्यात्मिक क्रांति जेपी का नारा था.

'जात पात तोड़ दो तिलक दहेज छोड़ दो, समाज के प्रवाह को नई दिशा में मोड़ दो', जीपी के लिए यह सिद्धांत नए बिहार को बनाने का संकल्प वाला मंत्र था. आज जेपी की सिद्धांत वाले मंत्र की राजनीति करने वाले गद्दी पर हैं और विरोध में भी जेपी की सिद्धांत वाले मंत्र की राजनीति करने वाले हैं. लेकिन सवाल यही है कि जेपी ने जिसे तोड़ने को कहा था, उसे जोड़ने की राजनीति को इतनी मजबूत राजनीति का रंग क्यों दिया जा रहा है.

यूपी में 2022 में विधानसभा चुनाव है. भाजपा विकास के मुद्दे पर चुनावों में जा रही है. अखिलेश यादव योगी सरकार को चुनौती दे रहे हैं. विकास के मुद्दे का जवाब विकास से देना है यह सपा ने तय किया है. जाति पर अखिलेश यादव को साथ लाना है इसके लिए तेजस्वी ने अखिलेश यादव को न्योता दिया है.

अब राजनीति इसी को समझने की कोशिश कर रही है कि तेजस्वी वाली सियासत में नीतीश यूपी में कहां खड़े हैं. तेजस्वी की चिट्ठी पर अखिलेश यादव का समर्थन नीतीश के साथ होगा या नहीं. फिलहाल अखिलेश यादव, तेजस्वी की चिट्ठी पर चुप हैं. यूपी में जदयू चुनावी तैयारी में है. ऐसे में यह मुद्दा बन रहा है कि जाति की राजनीति में नीतीश यूपी में कहां खड़े हैं. भाजपा के साथ होने पर जाति की बात को छोड़ना होगा और बिहार में साथ रहकर अगर जाति की बात करते हैं तो बिहार में चल रही सरकार के सैद्धांतिक समझौते पर झुकना होगा. इन दोनों हालतों में तेजस्वी की सियासत मजबूत रंग लिए रहेगी.

यूपी में लगभग 18 फीसदी मुसलमान हैं और 52 प्रतिशत से ज्यादा ओबीसी वोट है. जाति की गिनती वाली राजनीति दोराहे पर खड़ी है. जाति की राजनीति की बात पर बीजेपी जनसंख्या नियंत्रण कानून को उठा लेती है और नीतीश के साथ समर्थन की बात इसलिए कह देती है कि बिहार में उनका सरकारी साथ है.

वहीं यूपी में जाति की गिनती वाली राजनीति को तेजस्वी की चिट्ठी ने उलझा दिया है. अब जब जदयू को कोई राह नहीं दिखी तो विशेष राज्य के दर्जे की बात को नए रंग में लाकर मुद्दे की दिशा बदल दी गई. लेकिन बड़ा सवाल यही है कि क्या जाति की राजनीति में जदयू का हाथ तंग होता जा रहा है, जिसने उसे मुद्दा बदलने पर मजबूर कर दिया है. बहरहाल जाति पर नई राजनीति को रंग देने का काम शुरू किया गया है, सभी राजनीतिक दल अपनी पार्टी का रंग रोगन करने में जुटे हैं. देखना होगा जाति की बिहार वाली राजनीति यूपी के रास्ते कौन सा आयाम लेकर दिल्ली पहुंचती है.

यह भी पढ़ें- UP चुनाव से पहले बिहार की सियासत में जाति की राजनीति गरमायी : मांझी-सहनी

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