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भारत-अमेरिका संबंधों में आड़े आ सकते हैं 'अधिकार'

इस बात के पुख्ता संकेत हैं कि भारत-अमेरिका के बीच मानवाधिकार के मुद्दे बिगड़ रहें हैं. ऐसे में दुनिया के दो सबसे बड़े लोकतंत्रों के बीच संबंधों में गिरावट आ सकती है. वरिष्ठ संवाददाता संजीब कुमार बरुआ की रिपोर्ट.

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Published : Jul 6, 2021, 8:55 PM IST

भारत-अमेरिका संबंधों में आड़े आ सकते हैं 'अधिकार'
भारत-अमेरिका संबंधों में आड़े आ सकते हैं 'अधिकार'

नई दिल्ली : भारत-अमेरिका संबंधों के लिए इससे बुरा समय नहीं हो सकता जब मुंबई के एक निजी अस्पताल में 84 वर्षीय जेसुइट पुजारी स्टेन स्वामी की मौत हो गई. स्टेन स्वामी, जिनका असली नाम स्टैनिस्लॉस लौर्डुस्वामी (Stanislaus Lourduswamy) था, जेसुइट पुजारी थे. जिन्होंने मध्य भारत में आदिवासियों की लड़ाई लड़ी. झारखंड में आदिवासियों की आवाज बने.

एल्गार परिषद मामले में माओवादी कार्यकर्ता होने के आरोप में उन्हें गिरफ्तार किया गया. अक्टूबर 2020 में उन्हें गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत मुंबई के तलोजा सेंट्रल जेल में बंद कर दिया गया. स्टेन स्वामी पार्किंसंस और अन्य शारीरिक बीमारियों के अलावा कोविड संक्रमित थे. उनके अंतिम समय पर वेंटिलेटर पर जाने तक जमानत के प्रयास किए गए लेकिन सफलता नहीं मिली.

एल्गार परिषद का मामला 1 जनवरी, 2018 को पुणे के पास कोरेगांव-भीमा में दलितों की एक सभा के बाद हुई हिंसा से संबंधित है, जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई थी.

ब्लिंकन ने कहा था 'हम गौर करेंगे

गौरतलब है कि 10 मार्च, 2021 को अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव के एक सदस्य के अनुरोध का जवाब देते हुए स्टेन स्वामी के मामले पर अधिक जानकारी मांगी थी. ब्लिंकन ने कहा था: 'हम इस पर गौर करेंगे.'

हाउस इंटरनेशनल इकोनॉमिक पॉलिसी एंड माइग्रेशन उपसमिति (House International Economic Policy and Migration Subcommittee) के उपाध्यक्ष जुआन वर्गास (Juan Vargas) ने ब्लिंकन को बताया कि यह 'अविश्वसनीय अन्याय' है कि स्वामी, जिन्हें राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने गिरफ्तार किया गया था और वह लंबे समय के लिए जेल में हैं.

सीएए को लेकर भी करता रहा है आलोचना

एल्गार परिषद मामले में गिरफ्तार किए गए अन्य लोगों के साथ, स्टेन स्वामी का नाम भी अमेरिकी विदेश विभाग की 2020 की मानवाधिकार रिपोर्ट में सामने आया था. अमेरिका भारत के नागरिक संशोधन अधिनियम (सीएए) की भी आलोचना करता रहा है, जो 31 दिसंबर, 2014 को या उससे पहले बांग्लादेश, अफगानिस्तान और पाकिस्तान से भारत आने वाले गैर-मुसलमानों के लिए भारतीय नागरिकता को तेजी से ट्रैक करता है.

ऐसे समय में मानवाधिकारों पर अमेरिका का ध्यान आकर्षित करना जब राष्ट्रपति जो बाइडेन ने ट्रंप शासन की भारत को प्राथमिकता देने की नीति को उलट दिया हो, भारत-अमेरिका संबंधों के लिए हानिकारक साबित हो सकता है.

अंतरराष्ट्रीय मंच पर हो रही आलोचना

स्वामी के निधन की खबर के बाद सोमवार को संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार शाखा OHCHR ने भारत सरकार से यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि 'किसी को भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, शांतिपूर्ण सभा और संघ के अपने मौलिक अधिकारों का प्रयोग करने के लिए हिरासत में नहीं लिया जाता है.' जिनको हिरासत में लिया गया है और उनके पास अपनी रिहाई के लिए कानूनी लड़ाई लड़ने की पहुंच न हो, उन्हें भी रिहाई का अधिकार है. इसमें वह लोग भी शामिल हैं जिन्हें आलोचना करने या असहमतिपूर्ण विचार व्यक्त करने के लिए हिरासत में लिया गया है.

मानवाधिकारों को लेकर संयुक्त राष्ट्र की विशेष दूत मैरी लॉलर ने कहा: 'आज भारत की खबर विनाशकारी है. मानवाधिकार रक्षक और जेसुइट पुजारी फादर स्टेन स्वामी की आतंकवाद के झूठे आरोपों में गिरफ्तारी के नौ महीने बाद हिरासत में मौत हो गई है. मानवाधिकार रक्षकों को जेल भेजना अक्षम्य है.'

मानवाधिकारों के लिए यूरोपीय संघ के विशेष प्रतिनिधि इमोन गिलमोर ने कहा, 'मुझे यह सुनकर बहुत दुख हुआ कि स्टेन स्वामी का निधन हो गया है. लोगों के अधिकारों की रक्षा करने वाले को पिछले 9 महीनों से हिरासत में रखा गया था. यूरोपीय संघ बार-बार अधिकारियों के सामने इसका मामला उठाता रहा है.' स्वामी की मृत्यु की इस तरह की अंतरराष्ट्रीय आलोचना से अमेरिका के साथ भारत के हित प्रभावित हो सकते हैं.

पढ़ें- फादर स्टेन स्वामी की 'हिरासत में मौत' पर क्यों और किस-किसने उठाए हैं सवाल ?

नई दिल्ली : भारत-अमेरिका संबंधों के लिए इससे बुरा समय नहीं हो सकता जब मुंबई के एक निजी अस्पताल में 84 वर्षीय जेसुइट पुजारी स्टेन स्वामी की मौत हो गई. स्टेन स्वामी, जिनका असली नाम स्टैनिस्लॉस लौर्डुस्वामी (Stanislaus Lourduswamy) था, जेसुइट पुजारी थे. जिन्होंने मध्य भारत में आदिवासियों की लड़ाई लड़ी. झारखंड में आदिवासियों की आवाज बने.

एल्गार परिषद मामले में माओवादी कार्यकर्ता होने के आरोप में उन्हें गिरफ्तार किया गया. अक्टूबर 2020 में उन्हें गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत मुंबई के तलोजा सेंट्रल जेल में बंद कर दिया गया. स्टेन स्वामी पार्किंसंस और अन्य शारीरिक बीमारियों के अलावा कोविड संक्रमित थे. उनके अंतिम समय पर वेंटिलेटर पर जाने तक जमानत के प्रयास किए गए लेकिन सफलता नहीं मिली.

एल्गार परिषद का मामला 1 जनवरी, 2018 को पुणे के पास कोरेगांव-भीमा में दलितों की एक सभा के बाद हुई हिंसा से संबंधित है, जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई थी.

ब्लिंकन ने कहा था 'हम गौर करेंगे

गौरतलब है कि 10 मार्च, 2021 को अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव के एक सदस्य के अनुरोध का जवाब देते हुए स्टेन स्वामी के मामले पर अधिक जानकारी मांगी थी. ब्लिंकन ने कहा था: 'हम इस पर गौर करेंगे.'

हाउस इंटरनेशनल इकोनॉमिक पॉलिसी एंड माइग्रेशन उपसमिति (House International Economic Policy and Migration Subcommittee) के उपाध्यक्ष जुआन वर्गास (Juan Vargas) ने ब्लिंकन को बताया कि यह 'अविश्वसनीय अन्याय' है कि स्वामी, जिन्हें राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने गिरफ्तार किया गया था और वह लंबे समय के लिए जेल में हैं.

सीएए को लेकर भी करता रहा है आलोचना

एल्गार परिषद मामले में गिरफ्तार किए गए अन्य लोगों के साथ, स्टेन स्वामी का नाम भी अमेरिकी विदेश विभाग की 2020 की मानवाधिकार रिपोर्ट में सामने आया था. अमेरिका भारत के नागरिक संशोधन अधिनियम (सीएए) की भी आलोचना करता रहा है, जो 31 दिसंबर, 2014 को या उससे पहले बांग्लादेश, अफगानिस्तान और पाकिस्तान से भारत आने वाले गैर-मुसलमानों के लिए भारतीय नागरिकता को तेजी से ट्रैक करता है.

ऐसे समय में मानवाधिकारों पर अमेरिका का ध्यान आकर्षित करना जब राष्ट्रपति जो बाइडेन ने ट्रंप शासन की भारत को प्राथमिकता देने की नीति को उलट दिया हो, भारत-अमेरिका संबंधों के लिए हानिकारक साबित हो सकता है.

अंतरराष्ट्रीय मंच पर हो रही आलोचना

स्वामी के निधन की खबर के बाद सोमवार को संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार शाखा OHCHR ने भारत सरकार से यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि 'किसी को भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, शांतिपूर्ण सभा और संघ के अपने मौलिक अधिकारों का प्रयोग करने के लिए हिरासत में नहीं लिया जाता है.' जिनको हिरासत में लिया गया है और उनके पास अपनी रिहाई के लिए कानूनी लड़ाई लड़ने की पहुंच न हो, उन्हें भी रिहाई का अधिकार है. इसमें वह लोग भी शामिल हैं जिन्हें आलोचना करने या असहमतिपूर्ण विचार व्यक्त करने के लिए हिरासत में लिया गया है.

मानवाधिकारों को लेकर संयुक्त राष्ट्र की विशेष दूत मैरी लॉलर ने कहा: 'आज भारत की खबर विनाशकारी है. मानवाधिकार रक्षक और जेसुइट पुजारी फादर स्टेन स्वामी की आतंकवाद के झूठे आरोपों में गिरफ्तारी के नौ महीने बाद हिरासत में मौत हो गई है. मानवाधिकार रक्षकों को जेल भेजना अक्षम्य है.'

मानवाधिकारों के लिए यूरोपीय संघ के विशेष प्रतिनिधि इमोन गिलमोर ने कहा, 'मुझे यह सुनकर बहुत दुख हुआ कि स्टेन स्वामी का निधन हो गया है. लोगों के अधिकारों की रक्षा करने वाले को पिछले 9 महीनों से हिरासत में रखा गया था. यूरोपीय संघ बार-बार अधिकारियों के सामने इसका मामला उठाता रहा है.' स्वामी की मृत्यु की इस तरह की अंतरराष्ट्रीय आलोचना से अमेरिका के साथ भारत के हित प्रभावित हो सकते हैं.

पढ़ें- फादर स्टेन स्वामी की 'हिरासत में मौत' पर क्यों और किस-किसने उठाए हैं सवाल ?

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