नई दिल्ली: राजधानी दिल्ली में पेड़ों की गिनती पर सुप्रीम कोर्ट सख्त नजर आ रहा है. शीर्ष अदालत ने शुक्रवार को दिल्ली में पेड़ों की गिनती पर जोर दिया. इसके लिए एक प्राधिकरण बनाने की बात कही गई है जो वृक्ष अधिकारी (TREE OFFICER) के कामकाज की निगरानी करेगा.
पेड़ों की गिनती पर शीर्ष अदालत का जोर
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को राष्ट्रीय राजधानी में वृक्षों की गणना की आवश्यकता पर जोर दिया और कहा कि वह वृक्ष अधिकारी द्वारा किए जाने वाले काम की निगरानी के लिए एक प्राधिकरण बनाना चाहता है. जस्टिस अभय एस ओका और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि दिल्ली वृक्ष संरक्षण अधिनियम, 1994 के प्रावधानों के सख्त क्रियान्वयन के मुद्दे पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है.
पेड़ों की निगरानी के लिए प्राधिकरण बनाने की तैयारी
पीठ ने कहा, "वृक्षों की गणना के अलावा, हम एक प्राधिकरण भी बनाना चाहते हैं. वह प्राधिकरण यह सत्यापित करेगा कि वृक्ष अधिकारी ने उचित काम किया है या नहीं. किसी को दी गई अनुमति की निगरानी करनी होगी." 1994 के अधिनियम के प्रावधान, जो दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में वृक्षों के संरक्षण का प्रावधान करते हैं, वृक्ष प्राधिकरण की स्थापना और कर्तव्यों तथा वृक्ष अधिकारी की नियुक्ति से संबंधित हैं.
पेड़ कटाई से संबंधित याचिका पर शीर्ष अदालत में सुनवाई
पीठ दिल्ली सरकार को सर्वोच्च न्यायालय की अनुमति के बिना पेड़ों की कटाई की अनुमति देने से रोकने की मांग करने वाली एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी. सुनवाई के दौरान पीठ ने मामले में उपस्थित वकीलों से सुझाव देने को कहा कि किस आधार पर प्राधिकरण का गठन किया जाना चाहिए. पीठ ने कहा, "हमारा हमेशा से मानना है कि पर्यावरण के मामलों में कठोर आदेश दिए जाने चाहिए."
शीर्ष अदालत ने वकीलों का जताया आभार
शीर्ष न्यायालय ने टिप्पणी की कि पर्यावरण संरक्षण और पेड़ों की सुरक्षा से संबंधित मामलों में उसके समक्ष उपस्थित होने वाले वकील बहुत सहयोगी रहे हैं और उन्होंने हमेशा न्यायालय के समक्ष निष्पक्ष रुख अपनाया है. अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने कहा, "हम आभारी हैं. आप हमारे बेहतर भविष्य, हमारे बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए ऐसा कर रहे हैं.". शीर्ष न्यायालय ने 1994 अधिनियम के प्रावधानों के सख्त क्रियान्वयन से संबंधित मुद्दे को बहुत महत्वपूर्ण बताया.
पीठ ने कहा, "पक्षों की ओर से उपस्थित होने वाले वकील इस मुद्दे पर हमसे बात कर सकें, इसके लिए हम निर्देश देते हैं कि याचिका 18 दिसंबर को सूचीबद्ध की जाए।" मामले में पेश हुए वकीलों में से एक ने दिल्ली सरकार द्वारा पिछले दिनों जारी की गई अधिसूचनाओं का हवाला दिया, जिसमें किसी भी क्षेत्र या पेड़ों की किसी भी प्रजाति को 1994 के अधिनियम के प्रावधानों से छूट दी गई थी. उन्होंने कहा, "अंतरिम रूप से इस शक्ति को कम किया जाना चाहिए. वे धारा 29 (अधिनियम की) के तहत अधिसूचनाएं जारी नहीं कर सकते।" अधिनियम की धारा 29 छूट के लिए सरकार की शक्ति से संबंधित है.
22 नवंबर को, सर्वोच्च न्यायालय ने विशेषज्ञों की एक समिति गठित करने का प्रस्ताव रखा और कहा कि वह निर्देश देगा कि दिल्ली में पेड़ों की कटाई के लिए दी गई अनुमति पैनल की मंजूरी के बिना लागू नहीं होगी. राष्ट्रीय राजधानी में घटते वृक्ष आवरण का उल्लेख करते हुए, पीठ ने कहा कि विशेषज्ञों की समिति वृक्ष प्राधिकरण और 1994 अधिनियम के तहत नियुक्त वृक्ष अधिकारियों द्वारा दी गई अनुमति की जांच करेगी.
पीठ ने 1994 अधिनियम की धारा 7(बी) का उल्लेख किया, जिसमें कहा गया है कि वृक्ष प्राधिकरण मौजूदा पेड़ों की गणना करने और जब भी आवश्यक समझा जाए, सभी मालिकों या रहने वालों से उनकी भूमि में पेड़ों की संख्या के बारे में घोषणा प्राप्त करने के लिए जिम्मेदार होगा. शीर्ष अदालत में दायर आवेदन में कहा गया है कि राष्ट्रीय राजधानी में हर घंटे पांच पेड़ काटे जाते हैं. इसमें केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को शीर्ष अदालत की मंजूरी के बिना दिल्ली में जंगलों के मोड़ने की अनुमति देने से रोकने की भी मांग की गई.
शुक्रवार को सुनवाई के दौरान, शीर्ष अदालत ने कई अन्य आवेदनों पर विचार किया, जिसमें एक आवेदन में दावा किया गया था कि फुट-ओवर ब्रिज के निर्माण के लिए कई पेड़ों को काटने की मांग की गई थी. एक अधिवक्ता ने बताया कि 22 नवंबर को मामले की सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने इंद्रपुरी और नारायण विहार थाने के एसएचओ को तत्काल मौके पर जाकर यह पता लगाने को कहा था कि कहीं पेड़ तो नहीं काटा गया है या काटने का काम चल रहा है. भाटी ने पीठ को बताया कि वहां कोई पेड़ नहीं काटा गया है.
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