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आज भी गूंजती है क्रांतिकारी केसरी सिंह बारहठ परिवार की शौर्य गाथा

देश को स्वतंत्रता दिलाने के लिए भीलवाड़ा जिले के शाहपुरा के बारठ परिवार की अग्रणी भूमिका रही है. बारठ परिवार की एक सदस्या ने ईटीवी भारत से खास में बताया कि जो हमारे पुरखों ने काम किया है उस पर हमें को गर्व है आज भी देश में कोई दिक्कत हो तो भले ही मैं महिला हूं लेकिन बंदूक उठाने के लिए तैयार हूं, जहां राष्ट्रीय कवि ने बारहठ परिवार को कोहिनूर तक बताया है.

शाहपुरा
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Published : Oct 23, 2021, 5:05 AM IST

भीलवाड़ा : शक्ति, भक्ति और कुर्बानी की अमर भूमि शाहपुरा के कण-कण में महान क्रांतिकारी केसरी सिंह बारहठ और उनके परिवार की शौर्य गाथा गूंजती है. यहां स्थित इस राजकीय संग्रहालय में केसरी सिंह, उनके भाई जोरावर सिंह और बेटे प्रताप सिंह बारहठ की गौरव गाथा का संग्रह है. खास बात यह है कि उनकी पगड़ी भी सुरक्षित है.

क्रांतिकारी केसरी सिंह बारहठ परिवार की शौर्य गाथा
क्रांतिकारी केसरी सिंह बारहठ परिवार की शौर्य गाथा

केसरी सिंह बारहठ का जन्म 21 नवंबर 1872 को हुआ था. वे शाहपुरा क्षेत्र के देव खेड़ा के जागीरदार थे. उन्होंने युवाओं में क्रांति की अलख जगाई. पूरे परिवार को आज़ादी के आंदोलन में झोंक दिया. केसरी सिंह बारहठ की इसी हवेली में स्वतंत्रता आंदोलन की रणनीति तय करने के लिए गुप्त मंत्रणा होती थी. उन्होंने महात्मा गांधी को भी पूरा सहयोग दिया. केसरी सिंह ने राजस्थानी में लिखे 13 सोरठे के जरिए भी लोगों में क्रांति का बिगुल फूंका.

बारहठ परिवार की शौर्य गाथा

केसरी सिंह बारहठ के छोटे भाई जोरावर सिंह बारहठ ने 23 दिसंबर 1912 को दिल्ली की चांदनी चौक में निकले भव्य जुलूस में लॉर्ड हार्डिंग पर बम फेंक दिया था. उस समय प्रताप सिंह बारहठ भी उनके साथ थे. जोरावर सिंह ने 27 साल तक मध्यप्रदेश के मालवा और राजस्थान में फरारी काटी. 17 अक्टूबर 1939 को उनका निधन हो गया.केसरी सिंह बारहठ के बेटे प्रताप सिंह बारहठ ने भी स्वाधीनता के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी. प्रताप सिंह बारहठ का जन्म 24 मई 1893 को हुआ. 24 मई 1918 को 25 वर्ष की आयु में ही वे शहीद हो गए.

बारहठ परिवार की शौर्य गाथा
बारहठ परिवार की शौर्य गाथा

केसरी सिंह बारहठ की बेटी की पौत्री को भी अपने पुरखों पर गर्व है. वे खुद भी शहीद प्रताप सिंह बारहठ संस्थान से जुड़ी हैं. स्वतंत्रता संग्राम में शाहपुरा के बारहठ परिवार की अग्रणी भूमिका रही है. बारहठ परिवार की त्याग, तपस्या और बलिदान

बारहठ परिवार की शौर्य गाथा
बारहठ परिवार की शौर्य गाथा

केसरसिंह बारहठ- केसर सिंह बारहठ का जन्म 21 नवंबर 1872 को शाहपुरा के पास देवपुरा गांव में हुआ था और इनका निधन 14 अगस्त 1941 को हुआ था उन्होंने प्रथम गिरफ्तारी शाहपुरा से 21 मार्च 1914 से दी तब उन्हें आजीवन कारावास हुआ और हजारीबाग जेल में समय बिताया, लेकिन वो 1919 में हजारीबाग जेल से रिहा हुए उसके बाद भी लगातार स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेते रहे, जहां रासबिहारी बोस ने तो क्रांतिकारी केसर सिंह बारहठ के लिए कहा था कि केसर सिंह के सारे परिवार ने त्याग का जो उदाहरण पेश किया वह आधुनिक राजस्थान में तो आदित्य है, देशभर में भी उसकी मिसाल शायद ही मिले वे राजस्थान के योगी अरविंद थे.

वीरवर जोरावर सिंह बारहठ - केसरी सिंह बारहठ के छोटे भाई जोरावर सिंह बारहठ भी स्वतंत्रता आंदोलन में अपने भाई के साथ कूद पड़े, उनका जन्म भी शाहपुरा के पास देव खेड़ा गांव में 12 सितंबर 1893 को हुआ था. 23 दिसंबर 1912 को जब ब्रिटिश साम्राज्यवाद की शक्ति के प्रतीक वायसराय लॉर्ड हार्डिंग का भव्य जुलूस दिल्ली की चांदनी चौक में पहुंचा तो जोरावर सिंह बारहठ ने बुर्के से चुपके से बम फेंक दिया. उस समय केसरी सिंह बारहठ के बेटे प्रताप सिंह बारहठ भी उनके साथ थे.

प्रताप सिंह बारहठ- केसरी सिंह बारहठ के बेटे थे उन्होंने भी देश की स्वाधीनता के लिए अपने प्राणों की आहुति दी. उनका जन्म 24 मई 1893 को हुआ और देश की आजादी की लड़ाई लड़ते हुए 24 मई 1918 को 25 वर्ष की आयु में ही शहीद हो गए.

भीलवाड़ा : शक्ति, भक्ति और कुर्बानी की अमर भूमि शाहपुरा के कण-कण में महान क्रांतिकारी केसरी सिंह बारहठ और उनके परिवार की शौर्य गाथा गूंजती है. यहां स्थित इस राजकीय संग्रहालय में केसरी सिंह, उनके भाई जोरावर सिंह और बेटे प्रताप सिंह बारहठ की गौरव गाथा का संग्रह है. खास बात यह है कि उनकी पगड़ी भी सुरक्षित है.

क्रांतिकारी केसरी सिंह बारहठ परिवार की शौर्य गाथा
क्रांतिकारी केसरी सिंह बारहठ परिवार की शौर्य गाथा

केसरी सिंह बारहठ का जन्म 21 नवंबर 1872 को हुआ था. वे शाहपुरा क्षेत्र के देव खेड़ा के जागीरदार थे. उन्होंने युवाओं में क्रांति की अलख जगाई. पूरे परिवार को आज़ादी के आंदोलन में झोंक दिया. केसरी सिंह बारहठ की इसी हवेली में स्वतंत्रता आंदोलन की रणनीति तय करने के लिए गुप्त मंत्रणा होती थी. उन्होंने महात्मा गांधी को भी पूरा सहयोग दिया. केसरी सिंह ने राजस्थानी में लिखे 13 सोरठे के जरिए भी लोगों में क्रांति का बिगुल फूंका.

बारहठ परिवार की शौर्य गाथा

केसरी सिंह बारहठ के छोटे भाई जोरावर सिंह बारहठ ने 23 दिसंबर 1912 को दिल्ली की चांदनी चौक में निकले भव्य जुलूस में लॉर्ड हार्डिंग पर बम फेंक दिया था. उस समय प्रताप सिंह बारहठ भी उनके साथ थे. जोरावर सिंह ने 27 साल तक मध्यप्रदेश के मालवा और राजस्थान में फरारी काटी. 17 अक्टूबर 1939 को उनका निधन हो गया.केसरी सिंह बारहठ के बेटे प्रताप सिंह बारहठ ने भी स्वाधीनता के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी. प्रताप सिंह बारहठ का जन्म 24 मई 1893 को हुआ. 24 मई 1918 को 25 वर्ष की आयु में ही वे शहीद हो गए.

बारहठ परिवार की शौर्य गाथा
बारहठ परिवार की शौर्य गाथा

केसरी सिंह बारहठ की बेटी की पौत्री को भी अपने पुरखों पर गर्व है. वे खुद भी शहीद प्रताप सिंह बारहठ संस्थान से जुड़ी हैं. स्वतंत्रता संग्राम में शाहपुरा के बारहठ परिवार की अग्रणी भूमिका रही है. बारहठ परिवार की त्याग, तपस्या और बलिदान

बारहठ परिवार की शौर्य गाथा
बारहठ परिवार की शौर्य गाथा

केसरसिंह बारहठ- केसर सिंह बारहठ का जन्म 21 नवंबर 1872 को शाहपुरा के पास देवपुरा गांव में हुआ था और इनका निधन 14 अगस्त 1941 को हुआ था उन्होंने प्रथम गिरफ्तारी शाहपुरा से 21 मार्च 1914 से दी तब उन्हें आजीवन कारावास हुआ और हजारीबाग जेल में समय बिताया, लेकिन वो 1919 में हजारीबाग जेल से रिहा हुए उसके बाद भी लगातार स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेते रहे, जहां रासबिहारी बोस ने तो क्रांतिकारी केसर सिंह बारहठ के लिए कहा था कि केसर सिंह के सारे परिवार ने त्याग का जो उदाहरण पेश किया वह आधुनिक राजस्थान में तो आदित्य है, देशभर में भी उसकी मिसाल शायद ही मिले वे राजस्थान के योगी अरविंद थे.

वीरवर जोरावर सिंह बारहठ - केसरी सिंह बारहठ के छोटे भाई जोरावर सिंह बारहठ भी स्वतंत्रता आंदोलन में अपने भाई के साथ कूद पड़े, उनका जन्म भी शाहपुरा के पास देव खेड़ा गांव में 12 सितंबर 1893 को हुआ था. 23 दिसंबर 1912 को जब ब्रिटिश साम्राज्यवाद की शक्ति के प्रतीक वायसराय लॉर्ड हार्डिंग का भव्य जुलूस दिल्ली की चांदनी चौक में पहुंचा तो जोरावर सिंह बारहठ ने बुर्के से चुपके से बम फेंक दिया. उस समय केसरी सिंह बारहठ के बेटे प्रताप सिंह बारहठ भी उनके साथ थे.

प्रताप सिंह बारहठ- केसरी सिंह बारहठ के बेटे थे उन्होंने भी देश की स्वाधीनता के लिए अपने प्राणों की आहुति दी. उनका जन्म 24 मई 1893 को हुआ और देश की आजादी की लड़ाई लड़ते हुए 24 मई 1918 को 25 वर्ष की आयु में ही शहीद हो गए.

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