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गोवध निवारण अध्यादेश को योगी कैबिनेट की मंजूरी, गौ हत्या पर होगी दस साल की सजा

लखनऊ में सीएम योगी के आवास पर हुई कैबिनेट की बैठक में उत्तर प्रदेश गोवध निवारण (संशोधन) अध्यादेश-2020 के स्वरूप को पारित कर दिया गया. इस अध्यादेश के मुताबिक अब गोवंश को नुकसान पहुंचाने या उनका परिवहन करने के मामले में 10 साल तक की सजा और पांच लाख तक जुर्माने का प्रावधान कर दिया गया है.

सीएम योगी
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Published : Jun 10, 2020, 4:19 AM IST

लखनऊ: मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में मंगलवार को उनके सरकारी आवास पर कैबिनेट की बैठक हुई, जिसमें उत्तर प्रदेश गोवध निवारण (संशोधन) अध्यादेश-2020 के प्रारूप को स्वीकृति दी गई. इस अध्यादेश को प्रख्यापित कराए जाने तथा उसके प्रतिस्थानी विधेयक के आलेख पर विभागीय मंत्री का अनुमोदन प्राप्त करके उसे राज्य विधानमंडल में पारित कराए जाने का निर्णय भी मंत्रिपरिषद ने लिया है.

संशोधन के उपरांत उत्तर प्रदेश में गोवंश को क्षति पहुंचाने या गोवध करने पर तीन से 10 साल तक की सजा का प्रावधान किया गया है. वहीं इस अध्यादेश में गोकशी करने पर आर्थिक जुर्माने के रूप में तीन लाख से पांच लाख रुपये तक वसूले का भी प्रावधान है.

उत्तर प्रदेश गोवध निवारण अधिनियम-1955 को और अधिक प्रभावी बनाना है उद्देश्य
यह निर्णय राज्य विधानमंडल का सत्र न होने तथा शीघ्र कार्रवाई किए जाने के दृष्टिगत संशोधन के लिए अध्यादेश प्रख्यापित कराए जाने की आवश्यकता को देखते हुए लिया गया है. उत्तर प्रदेश गो-वध निवारण संशोधन अध्यादेश-2020 का उद्देश्य उत्तर प्रदेश गो-वध निवारण अधिनियम-1955 को और अधिक प्रभावी बनाना है. यह गोवंशीय पशुओं की रक्षा तथा गोकशी की घटनाओं से संबंधित अपराधों को प्रतिबंधित करने के लिए है.

कब-कब हुआ संशोधन
उत्तर प्रदेश गोवध निवारण अधिनियम-1955 छह जनवरी 1956 को प्रदेश में लागू हुआ था. वर्ष 1956 में इसकी नियमावली बनी. वर्ष 1958, 1961, 1979 एवं 2002 में अधिनियम में संशोधन किया गया. वहीं नियमावली में वर्ष 1964 और 1979 में संशोधन हुए. इसके बावजूद भी अधिनियम में कुछ ऐसी शिथिलताएं बनी रहीं, जिसके कारण प्रदेश के भिन्न-भिन्न भागों में अवैध गोवध और गोवंशीय पशुओं के अनियमित परिवहन की शिकायतें प्राप्त होती रही हैं.

सरकार का कहना है कि गोवंश उत्तर प्रदेश जैसे कृषि प्रधान राज्य के लिए बहुत आवश्यक है. प्रदेश से अच्छी गाय एवं गोवंशीय पशुओं का अन्य प्रदेशों में पलायन रोकने, श्वेत क्रांति का स्वप्न साकार करने एवं कृषि कार्यों को बढ़ावा देने के लिए उत्तर प्रदेश गोवध निवारण (संशोधन) अध्यादेश-2020 आवश्यक हो गया है.

पढ़ें - शाह बोले- ममता दीदी, हम हिसाब लाए हैं, आप कब देंगी अपनी सरकार का हिसाब

उत्तर प्रदेश गोवध निवारण अधिनियम-1955 यथा संशोधित की धारा-8 में गोकशी की घटनाओं में सात वर्ष की अधिकतम सजा का प्रावधान था. सरकार का कहना है कि गोकशी की घटनाओं में सम्मिलित लोगों की जमानत हो जाने के मामले बढ़ रहे हैं. गोकशी की घटनाओं से संबंधित अभियुक्तों द्वारा न्यायालय से जमानत प्राप्त होने के उपरांत उनकी ऐसी घटनाओं में संलिप्तता के प्रकरण दिखाई दे रहे हैं.

गोवंश के परिवहन में वाहन स्वामी भी अपराध में शामिल माना जाएगा
संशोधन के उपरांत अब जिस वाहन से गोवंश को ले जाया जाएगा उस परिस्थिति में यह माना जाएगा कि वाहन स्वामी भी अपराध में शामिल है. इस अध्यादेश के अनुसार अधिग्रहित गायों तथा गोवंश के भरण-पोषण पर व्यय की वसूली अभियुक्त से एक वर्ष की अवधि तक अथवा गाय या गोवंश को निरमुक्त किए जाने तक जो भी पहले हो स्वामी के पक्ष में की जाएगी.
संशोधन के बाद बढ़ाई गई सजा और अर्थदंड
इस अध्यादेश में गोवंश को शारीरिक क्षति पहुंचाने पर, उसके जीवन को संकट में डालने, गोवंश का अंग-भंग करने, किसी परिस्थिति में उनका परिवहन करना, उनके जीवन को संकट में डालने के आशय से खाना-पानी न देने पर कठोर कारावास और अर्थ दंड का प्रावधान किया गया है. इस तरह के अपराध करने पर पहले एक से सात वर्ष तक सजा हो सकती थी और एक लाख रुपये से तीन लाख रुपये तक अर्थदंड का प्रावधान था, लेकिन अब सजा बढ़ाकर न्यूनतम तीन साल और अधिकतम 10 वर्ष कर दी गई है. वहीं अर्थदंड कम से कम तीन लाख रुपये और अधिकतम पांच लाख रुपये तक कर दिया गया है.

लखनऊ: मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में मंगलवार को उनके सरकारी आवास पर कैबिनेट की बैठक हुई, जिसमें उत्तर प्रदेश गोवध निवारण (संशोधन) अध्यादेश-2020 के प्रारूप को स्वीकृति दी गई. इस अध्यादेश को प्रख्यापित कराए जाने तथा उसके प्रतिस्थानी विधेयक के आलेख पर विभागीय मंत्री का अनुमोदन प्राप्त करके उसे राज्य विधानमंडल में पारित कराए जाने का निर्णय भी मंत्रिपरिषद ने लिया है.

संशोधन के उपरांत उत्तर प्रदेश में गोवंश को क्षति पहुंचाने या गोवध करने पर तीन से 10 साल तक की सजा का प्रावधान किया गया है. वहीं इस अध्यादेश में गोकशी करने पर आर्थिक जुर्माने के रूप में तीन लाख से पांच लाख रुपये तक वसूले का भी प्रावधान है.

उत्तर प्रदेश गोवध निवारण अधिनियम-1955 को और अधिक प्रभावी बनाना है उद्देश्य
यह निर्णय राज्य विधानमंडल का सत्र न होने तथा शीघ्र कार्रवाई किए जाने के दृष्टिगत संशोधन के लिए अध्यादेश प्रख्यापित कराए जाने की आवश्यकता को देखते हुए लिया गया है. उत्तर प्रदेश गो-वध निवारण संशोधन अध्यादेश-2020 का उद्देश्य उत्तर प्रदेश गो-वध निवारण अधिनियम-1955 को और अधिक प्रभावी बनाना है. यह गोवंशीय पशुओं की रक्षा तथा गोकशी की घटनाओं से संबंधित अपराधों को प्रतिबंधित करने के लिए है.

कब-कब हुआ संशोधन
उत्तर प्रदेश गोवध निवारण अधिनियम-1955 छह जनवरी 1956 को प्रदेश में लागू हुआ था. वर्ष 1956 में इसकी नियमावली बनी. वर्ष 1958, 1961, 1979 एवं 2002 में अधिनियम में संशोधन किया गया. वहीं नियमावली में वर्ष 1964 और 1979 में संशोधन हुए. इसके बावजूद भी अधिनियम में कुछ ऐसी शिथिलताएं बनी रहीं, जिसके कारण प्रदेश के भिन्न-भिन्न भागों में अवैध गोवध और गोवंशीय पशुओं के अनियमित परिवहन की शिकायतें प्राप्त होती रही हैं.

सरकार का कहना है कि गोवंश उत्तर प्रदेश जैसे कृषि प्रधान राज्य के लिए बहुत आवश्यक है. प्रदेश से अच्छी गाय एवं गोवंशीय पशुओं का अन्य प्रदेशों में पलायन रोकने, श्वेत क्रांति का स्वप्न साकार करने एवं कृषि कार्यों को बढ़ावा देने के लिए उत्तर प्रदेश गोवध निवारण (संशोधन) अध्यादेश-2020 आवश्यक हो गया है.

पढ़ें - शाह बोले- ममता दीदी, हम हिसाब लाए हैं, आप कब देंगी अपनी सरकार का हिसाब

उत्तर प्रदेश गोवध निवारण अधिनियम-1955 यथा संशोधित की धारा-8 में गोकशी की घटनाओं में सात वर्ष की अधिकतम सजा का प्रावधान था. सरकार का कहना है कि गोकशी की घटनाओं में सम्मिलित लोगों की जमानत हो जाने के मामले बढ़ रहे हैं. गोकशी की घटनाओं से संबंधित अभियुक्तों द्वारा न्यायालय से जमानत प्राप्त होने के उपरांत उनकी ऐसी घटनाओं में संलिप्तता के प्रकरण दिखाई दे रहे हैं.

गोवंश के परिवहन में वाहन स्वामी भी अपराध में शामिल माना जाएगा
संशोधन के उपरांत अब जिस वाहन से गोवंश को ले जाया जाएगा उस परिस्थिति में यह माना जाएगा कि वाहन स्वामी भी अपराध में शामिल है. इस अध्यादेश के अनुसार अधिग्रहित गायों तथा गोवंश के भरण-पोषण पर व्यय की वसूली अभियुक्त से एक वर्ष की अवधि तक अथवा गाय या गोवंश को निरमुक्त किए जाने तक जो भी पहले हो स्वामी के पक्ष में की जाएगी.
संशोधन के बाद बढ़ाई गई सजा और अर्थदंड
इस अध्यादेश में गोवंश को शारीरिक क्षति पहुंचाने पर, उसके जीवन को संकट में डालने, गोवंश का अंग-भंग करने, किसी परिस्थिति में उनका परिवहन करना, उनके जीवन को संकट में डालने के आशय से खाना-पानी न देने पर कठोर कारावास और अर्थ दंड का प्रावधान किया गया है. इस तरह के अपराध करने पर पहले एक से सात वर्ष तक सजा हो सकती थी और एक लाख रुपये से तीन लाख रुपये तक अर्थदंड का प्रावधान था, लेकिन अब सजा बढ़ाकर न्यूनतम तीन साल और अधिकतम 10 वर्ष कर दी गई है. वहीं अर्थदंड कम से कम तीन लाख रुपये और अधिकतम पांच लाख रुपये तक कर दिया गया है.

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