वाशिंगटन: 1967 में जॉक्लिन बेल ने पहली बार पल्सर के उत्सर्जन का अवलोकन किया था. उस समय के खगोलविदों को लगता था की यह लयबद्ध रेडियो तरंगें किसी एलियन सभ्यता द्वारा भेजे गए संकेत हैं.
तारे अपने चुंबकीय ध्रुवों से रेडियो तरंगें छोड़ते हैं. कारीब पांच दशकों तक वैज्ञानिकों को उन तरंगों का स्रोत भ्रमित करता रहा था. शोधकर्ताओं की एक टीम ने दावा किया है कि उन्होंने इन तरंगों के स्रोत और उसके पीछे के तंत्र का पता लगा लिया है.
इस खोज से उन परियोजनाओं को सहायता मिलेगी जो पल्सर उत्सर्जन के समय पर निर्भर करती हैं, जैसे कि गुरुत्वाकर्षण तरंगों का अध्ययन.
शोधकर्ताओं ने बताया कि पोल्सर मजबूत विद्युत क्षेत्र तारे की सतह से इलेक्ट्रॉनों को खींचकर उनके उर्जा के स्तर को बढ़ा देते हैं. इसके बाद यह इलेक्ट्रॉन उच्च ऊर्जा की गामा किरणों का उत्सर्जन करते हैं. जब यह गामा किरणें पल्सर के अत्यंत मजबूत चुंबकीय क्षेत्र में प्रवेश करती हैं तो बड़ी संख्या में अतिरिक्त इलेक्ट्रॉन और उसके एंटीमैटर समकक्ष पॉजिट्रॉन निकलते हैं.
यह कण विद्युत क्षेत्र को कमजोर कर देते हैं, जिससे उनमें कंपन होने लगता है.
कांपते हुए विद्युत क्षेत्र और पल्सर के अत्यंत मजबूत चुंबकीय क्षेत्र की मौजूदगी में विद्युत चुंबकीय तरंगें निकली हैं. प्लाज्मा सिमुलेशन का उपयोग करके शोधकर्ताओं ने पाया कि यह विद्युत चुम्बकीय तरंगें पल्सर की रेडियो तरंगों से मिलती हैं.
न्यूयॉर्क शहर में फ्लैटिरोन इंस्टीट्यूट के सेंटर फॉर कम्प्यूटेशनल एस्ट्रोफिजिक्स के एक सहयोगी शोध वैज्ञानिक और अध्ययन के लेखक अलेक्जेंडर फिलिपोव कहते हैं कि यह प्रक्रिया बिजली कड़कने की तरह ही है. अचानक से इलेक्ट्रॉनों और पॉजिट्रॉनों का शक्तिशाली डिस्चार्ज होता है और उसके बाद विद्युत चुम्बकीय तरंगें निकलती हैं.
पोलैंड में जिलोना गोरा विश्वविद्यालय के फिलिपोव व सहयोगी एंड्रे टिमोखिन और प्रिंसटन विश्वविद्यालय के अनातोली स्पितकोवस्की ने भौतिक समीक्षा पत्रों में अपने निष्कर्ष प्रस्तुत किए हैं.
पल्सर न्यूट्रॉन तारे होते हैं. यह मर चुके तारों के घने और अत्यधिक चुम्बकीय अवशेष होते हैं. अन्य न्यूट्रॉन तारों के विपरीत, पल्सर तेज गति से घूमते हैं, कुछ प्रत्येक सेकंड में 700 से अधिक बार घूमते हैं. इससे शक्तिशाली विद्युत क्षेत्र उत्पन्न होता है और चुंबकीय ध्रुवों रेडियो तरंगें निकलती हैं.
यह रेडियो उत्सर्जन इस मायने में विशेष हैं कि यह इतने सटीक होते हैं कि इनकी तुलना परमाणु घड़ियों से की जा सकती है.
दशकों से खगोलविदों ने इन तरगों के बारे में पता लगाने की कोशिश की है. फिलिपोव, टिमोखिन और स्पिटकोवस्की ने पल्सर के चुंबकीय ध्रुवों के आसपास प्लाज्मा का 2डी सिमुलेशन बनाया. शोधकर्ताओं का उद्देश्य इस परीक्षण को और बड़े स्तर पर करना है. यह शोध पल्सर से जुड़े सवालों के जवाब देने में मदद करेगा. उदाहरण के लिए, गुरुत्वाकर्षण-तरंग खगोलविद पल्सर की तरंगों के समय में छोटे उतार-चढ़ाव को मापते हैं. इससे गुरुत्वाकर्षण-तरंगों में होने वाले बदलावों को मापा जा सकता है.
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