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असम में मदरसा बंद करने का मुद्दा संसद में उठाएंगे :आईयूएमएल - असम सरकार

असम में सभी मदरसा स्कूलों को बंद करने के राज्य सरकार के फैसले पर टकराव बढ़ता जा रहा है. इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग ने इस मुद्दे को संसद में उठाने की बात कही है.

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Published : Oct 27, 2020, 7:23 PM IST

नई दिल्ली : असम सरकार के राज्य भर में मदरसों को बंद करने का फैसला किए जाने पर इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) ने मंगलवार को कहा कि वे इस मुद्दे को संसद तक ले जाएंगे. इंडियन यूनियन मुस्लिम यूथ लीग के महासचिव ज़ुबीर ने कहा कि हम इस मुद्दे को संसद में उठाएंगे. असम में सभी मदरसा स्कूलों में आधुनिक शिक्षा दी जा रही है. हम स्कूलों को बंद करने के राज्य सरकार के फैसले की निंदा करते हैं.

पहले अधिक स्कूल स्थापित करे सरकार

असम सरकार द्वारा लिए गए फैसले के खिलाफ लड़ाई में आईयूएमएल सभी दलों से समर्थन की अपील करेगी. लोकसभा में आईयूएमएल के 3 सांसद हैं और राज्य सभा में एक सांसद है. असम सरकार 614 मदरसे चलाती है. 900 निजी तौर पर चलाए जाते हैं. निजी तौर पर ज्यादातर जमीयत उलमा-ए-हिंद द्वारा चलाए जाते हैं. ज़ुबीर ने कहा कि असम में पिछड़े अल्पसंख्यकों के लिए स्कूलों की कमी है. इन मदरसों में समुदाय के लोगों को शिक्षा मिलती है. अगर सरकार को मदरसे बंद करने हैं, तो पहले उन्हें पिछड़े और अल्पसंख्यकों के लिए और अधिक स्कूल स्थापित करने चाहिए.

कुरान सरकारी पैसे से नहीं पढ़ाया जा सकता

राज्य सरकार के फैसले से राज्य में एक बड़ा विवाद खड़ा हो गया है. असम में मदरसा शिक्षा प्रणाली 1780 से है. इससे पहले, इस महीने असम के शिक्षा मंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा था कि सभी राज्य संचालित मदरसों को नियमित स्कूलों में बदल दिया जाएगा या कुछ मामलों में शिक्षकों को राजकीय स्कूलों में स्थानांतरित कर दिया जाएगा और मदरसों को बंद कर दिया जाएगा. कुरान सरकारी पैसे से नहीं पढ़ाया जा सकता है. अगर हमें ऐसा करना है तो हमें बाइबल और भागवत गीता दोनों को भी सिखाना चाहिए.

राज्य सरकार पर उठ रहे सवाल

असम के मुस्लिम छात्रसंघ के अध्यक्ष जलाल उद्दीन ने कहा कि असम सरकार पिछड़े अल्पसंख्यक समुदाय से शिक्षा का अधिकार छीनना चाहती है. उन्होंने कहा कि राज्य सरकार असम में रोहिंग्याओं के रूप में मुस्लिम आबादी को टैग करने का इरादा रखती है, इसलिए वे इस तरह के फैसले ले रहे हैं.

नई दिल्ली : असम सरकार के राज्य भर में मदरसों को बंद करने का फैसला किए जाने पर इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) ने मंगलवार को कहा कि वे इस मुद्दे को संसद तक ले जाएंगे. इंडियन यूनियन मुस्लिम यूथ लीग के महासचिव ज़ुबीर ने कहा कि हम इस मुद्दे को संसद में उठाएंगे. असम में सभी मदरसा स्कूलों में आधुनिक शिक्षा दी जा रही है. हम स्कूलों को बंद करने के राज्य सरकार के फैसले की निंदा करते हैं.

पहले अधिक स्कूल स्थापित करे सरकार

असम सरकार द्वारा लिए गए फैसले के खिलाफ लड़ाई में आईयूएमएल सभी दलों से समर्थन की अपील करेगी. लोकसभा में आईयूएमएल के 3 सांसद हैं और राज्य सभा में एक सांसद है. असम सरकार 614 मदरसे चलाती है. 900 निजी तौर पर चलाए जाते हैं. निजी तौर पर ज्यादातर जमीयत उलमा-ए-हिंद द्वारा चलाए जाते हैं. ज़ुबीर ने कहा कि असम में पिछड़े अल्पसंख्यकों के लिए स्कूलों की कमी है. इन मदरसों में समुदाय के लोगों को शिक्षा मिलती है. अगर सरकार को मदरसे बंद करने हैं, तो पहले उन्हें पिछड़े और अल्पसंख्यकों के लिए और अधिक स्कूल स्थापित करने चाहिए.

कुरान सरकारी पैसे से नहीं पढ़ाया जा सकता

राज्य सरकार के फैसले से राज्य में एक बड़ा विवाद खड़ा हो गया है. असम में मदरसा शिक्षा प्रणाली 1780 से है. इससे पहले, इस महीने असम के शिक्षा मंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा था कि सभी राज्य संचालित मदरसों को नियमित स्कूलों में बदल दिया जाएगा या कुछ मामलों में शिक्षकों को राजकीय स्कूलों में स्थानांतरित कर दिया जाएगा और मदरसों को बंद कर दिया जाएगा. कुरान सरकारी पैसे से नहीं पढ़ाया जा सकता है. अगर हमें ऐसा करना है तो हमें बाइबल और भागवत गीता दोनों को भी सिखाना चाहिए.

राज्य सरकार पर उठ रहे सवाल

असम के मुस्लिम छात्रसंघ के अध्यक्ष जलाल उद्दीन ने कहा कि असम सरकार पिछड़े अल्पसंख्यक समुदाय से शिक्षा का अधिकार छीनना चाहती है. उन्होंने कहा कि राज्य सरकार असम में रोहिंग्याओं के रूप में मुस्लिम आबादी को टैग करने का इरादा रखती है, इसलिए वे इस तरह के फैसले ले रहे हैं.

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