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ETV भारत से बातचीत को दौरान बोले जल पुरुष, नदियों के लिए फेंफड़ो का काम करती है रेत

जल पुरुष राजेंद्र सिंह ने ETV भारत की मुहिम 'नदिया किनारे, किसके सहारे' से जुड़ने की भी बात कही है. उन्होंने कहा कि लगातार हो रहा रेत का खनन नदियों के लिए काफी नुकसानदायक है.

ईटीवी भारत से बात करते राजेंद्र सिंह
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Published : Jul 13, 2019, 2:47 PM IST

हैदराबाद: ETV भारत की मुहिम 'नदिया किनारे, किसके सहारे' की तारीफ 'जल पुरुष' राजेंद्र सिंह ने की है. देशभर में और खासतौर पर राजस्थान में पानी की विकराल समस्या पर काम करने वाले और वहां की बंजर जमीन पर हरियाली बिखरने वाले राजेंद्र सिंह ने ETV भारत की मुहिम 'नदिया किनारे, किसके सहारे' से जुड़ने की भी बात कही है.

'जल पुरुष' राजेंद्र सिंह ने छत्तीसगढ़ की नदियों अरपा, खारून, इंद्रावती और महानदी के लिए रेत खनन को बड़ा संकट बताया है. उन्होंने कहा कि जिस तरह से मनुष्य के शरीर में फेफड़ा शुद्ध करने का काम करता है, वैसे ही रेत नदियों को शुद्ध करने का काम करती है. राजेंद्र सिंह ने कहा जिस तरह से रेत खनन हो रहा है, उससे नदियों की सेहत खराब हो रही है.

ईटीवी भारत से बात करते राजेंद्र सिंह

हाल ही में उन्होंने केंद्र सरकार के नदी बेसिन प्रबंधन विधेयक का विरोध करते हुए कहा था कि इस कानून के माध्यम से केंद्र सरकार विभिन्न कंपनियों को फायदा पहुंचाना चाहती है. इतना ही उन्होंने राज्य सरकारों से मांग जल सुरक्षा कानून बनाने की मांग कर चुके हैं.

उन्होंने मध्य प्रदेश जल संकट को लेकर कहा था कि मध्य प्रदेश को राजस्थान बनने से रोकने के लिए जरूरी है कि पानी का अधिकार कानून बनाया जाए.
बता दें कि राजेंद्र सिंह को पानी के काम के लिए मैगसेसे और स्टाकहोम वाटर प्राइज मिल चुके हैं.

इतना ही नहीं पानी की कमी को देखते हुए उन्होंने कई बार सरकार का भी विरोध किया है. उनका कहना है कि वो तमाम राजनीतिक दलों के घोषणा-पत्र से निराश हैं. उनका कहना है कि सभी दलों के घोषणा-पत्रों में पेयजल, सिंचाई, नदी संरक्षण जैसे मसलों पर आधे-अधूरे तरीके से बातें कही गई है, मगर देश में बढ़ते सुखाड़ और बाढ़ से होने वाली बर्बादी से सभी दलों ने पूरी तरह आंखें मूंद रखी हैं.

पढ़ें- नदिया किनारे, किसके सहारे : ETV भारत की खास मुहिम से जुड़े 'जल पुरुष' राजेंद्र सिंह

वहीं, संयुक्त राष्ट्र द्वारा र्यावरण के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए 1972 में पांच जून को विश्व पर्यावरण दिवस पर प्रतिक्रिया देते हुए उन्होंने कहा था कि क दिन के लिए पर्यावरण दिवस मना लेने का कोई अर्थ नहीं है, और इससे कुछ बदलाव नहीं होने वाला है.उन्होंने कहा कि पर्यावरण की स्थिति विनाश की ओर बढ़ चली है और जन-जन के भीतर आस्था जगाए बगैर इस विनाश को रोक पाना कठिन है.

  • राजेंद्र सिंह ने कहा कि रेत खनन छत्तीसगढ़ समेत अन्य राज्यों में भी हैं.
  • राजेंद्र सिंह ने कहा कि छत्तीसगढ़ के लोग इस आंदोलन में जुड़ेंगे. अगर ये आंदोलन लोगों के साथ मिलकर चलाया गया, तो ETV भारत का ये आंदोलन लोगों का आंदोलन बन जाएगा और ETV भारत की भूमिका नदी साक्षरता की हो जाएगी.
  • राजेंद्र सिंह ने कहा कि अगर ETV भारत ने अगर ये आंदोलन शुरू किया है तो लोगों को जुड़ना चाहिए और मैं भी इस आंदोलन से जुड़ूंगा. ये हमारे साझे भविष्य को सुरक्षित रखने वाला आंदोलन है.

कौन हैं राजेंद्र सिंह-

  • उत्तर प्रदेश के बागपत में जन्मे और इलाहाबाद विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त राजेंद्र सिंह को जल पुरुष के नाम से जाना जाता है.
  • राजेंद्र सिंह ने 1980 के दशक में राजस्थान में पानी की समस्या पर काम करना शुरू किया.
  • राजस्थान में छोटे-छोटे पोखर फिर जोहड़ से सैकड़ों गांवों में पानी उपलब्ध हो गया.
  • 2015 में उन्होंने स्टॉकहोम जल पुरस्कार जीता, ये पुरस्कार 'पानी के लिए नोबेल पुरस्कार' के रूप में जाना जाता है.

हैदराबाद: ETV भारत की मुहिम 'नदिया किनारे, किसके सहारे' की तारीफ 'जल पुरुष' राजेंद्र सिंह ने की है. देशभर में और खासतौर पर राजस्थान में पानी की विकराल समस्या पर काम करने वाले और वहां की बंजर जमीन पर हरियाली बिखरने वाले राजेंद्र सिंह ने ETV भारत की मुहिम 'नदिया किनारे, किसके सहारे' से जुड़ने की भी बात कही है.

'जल पुरुष' राजेंद्र सिंह ने छत्तीसगढ़ की नदियों अरपा, खारून, इंद्रावती और महानदी के लिए रेत खनन को बड़ा संकट बताया है. उन्होंने कहा कि जिस तरह से मनुष्य के शरीर में फेफड़ा शुद्ध करने का काम करता है, वैसे ही रेत नदियों को शुद्ध करने का काम करती है. राजेंद्र सिंह ने कहा जिस तरह से रेत खनन हो रहा है, उससे नदियों की सेहत खराब हो रही है.

ईटीवी भारत से बात करते राजेंद्र सिंह

हाल ही में उन्होंने केंद्र सरकार के नदी बेसिन प्रबंधन विधेयक का विरोध करते हुए कहा था कि इस कानून के माध्यम से केंद्र सरकार विभिन्न कंपनियों को फायदा पहुंचाना चाहती है. इतना ही उन्होंने राज्य सरकारों से मांग जल सुरक्षा कानून बनाने की मांग कर चुके हैं.

उन्होंने मध्य प्रदेश जल संकट को लेकर कहा था कि मध्य प्रदेश को राजस्थान बनने से रोकने के लिए जरूरी है कि पानी का अधिकार कानून बनाया जाए.
बता दें कि राजेंद्र सिंह को पानी के काम के लिए मैगसेसे और स्टाकहोम वाटर प्राइज मिल चुके हैं.

इतना ही नहीं पानी की कमी को देखते हुए उन्होंने कई बार सरकार का भी विरोध किया है. उनका कहना है कि वो तमाम राजनीतिक दलों के घोषणा-पत्र से निराश हैं. उनका कहना है कि सभी दलों के घोषणा-पत्रों में पेयजल, सिंचाई, नदी संरक्षण जैसे मसलों पर आधे-अधूरे तरीके से बातें कही गई है, मगर देश में बढ़ते सुखाड़ और बाढ़ से होने वाली बर्बादी से सभी दलों ने पूरी तरह आंखें मूंद रखी हैं.

पढ़ें- नदिया किनारे, किसके सहारे : ETV भारत की खास मुहिम से जुड़े 'जल पुरुष' राजेंद्र सिंह

वहीं, संयुक्त राष्ट्र द्वारा र्यावरण के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए 1972 में पांच जून को विश्व पर्यावरण दिवस पर प्रतिक्रिया देते हुए उन्होंने कहा था कि क दिन के लिए पर्यावरण दिवस मना लेने का कोई अर्थ नहीं है, और इससे कुछ बदलाव नहीं होने वाला है.उन्होंने कहा कि पर्यावरण की स्थिति विनाश की ओर बढ़ चली है और जन-जन के भीतर आस्था जगाए बगैर इस विनाश को रोक पाना कठिन है.

  • राजेंद्र सिंह ने कहा कि रेत खनन छत्तीसगढ़ समेत अन्य राज्यों में भी हैं.
  • राजेंद्र सिंह ने कहा कि छत्तीसगढ़ के लोग इस आंदोलन में जुड़ेंगे. अगर ये आंदोलन लोगों के साथ मिलकर चलाया गया, तो ETV भारत का ये आंदोलन लोगों का आंदोलन बन जाएगा और ETV भारत की भूमिका नदी साक्षरता की हो जाएगी.
  • राजेंद्र सिंह ने कहा कि अगर ETV भारत ने अगर ये आंदोलन शुरू किया है तो लोगों को जुड़ना चाहिए और मैं भी इस आंदोलन से जुड़ूंगा. ये हमारे साझे भविष्य को सुरक्षित रखने वाला आंदोलन है.

कौन हैं राजेंद्र सिंह-

  • उत्तर प्रदेश के बागपत में जन्मे और इलाहाबाद विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त राजेंद्र सिंह को जल पुरुष के नाम से जाना जाता है.
  • राजेंद्र सिंह ने 1980 के दशक में राजस्थान में पानी की समस्या पर काम करना शुरू किया.
  • राजस्थान में छोटे-छोटे पोखर फिर जोहड़ से सैकड़ों गांवों में पानी उपलब्ध हो गया.
  • 2015 में उन्होंने स्टॉकहोम जल पुरस्कार जीता, ये पुरस्कार 'पानी के लिए नोबेल पुरस्कार' के रूप में जाना जाता है.
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