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कैसे पूरा होगा स्वस्थ भारत का सपना, यह आंकड़े बताते हैं हकीकत

ग्लोबल हंगर इंडेक्स रैंकिंग में भारत को 107 देशों की लिस्ट में 94वें पायदान पर है. भारत भूख के मामले में गंभीर स्थिति में है. रिपोर्ट के अनुसार भारत को अब अपने कुपोषण नीति में परिवर्तन करने की जरूरत है. पढ़ें रिपोर्ट...

स्वस्थ भारत का सपना
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Published : Oct 21, 2020, 8:17 PM IST

हैदराबाद : ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2020 की रिपोर्ट जारी कर दी गई है और 107 देशों की लिस्ट में भारत 94वें पायदान पर है. रिपोर्ट के मुताबिक भारत में अब भी काफी भुखमरी मौजूद है. भारत की रैंकिंग ग्लोबल हंगर इंडेक्स में एशियाई देशों में सबसे खराब है. लिस्ट में भारत कई सारे पड़ोसी देशों से भी पीछे चल है. इन देशों में नेपाल, पाकिस्तान, बांग्लादेश, इंडोनेशिया जैसे देश शामिल हैं.

रिपोर्ट के मुताबिक 27.2 के स्कोर के साथ भारत भूख के मामले में गंभीर स्थिति में है. भारत में आजादी के 70 साल बाद भी लाखों लोगों के लिए स्वस्थ जीवन एक सपने से कम नहीं है. रिपोर्ट के अनुसार नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश, म्यांमार और पाकिस्तान सभी को भारत से बेहतर स्थिति में दिखाया गया है. जिस तरह से भारत को सूडान के साथ दिखाया गया है, वह नीतिगत विफलताओं को उजागर करता है. वर्ष 2000 में भारत 38.9 स्कोर पर था. 2006 में घटकर 37.5 और 2012 में 29.3 पर रह गया.

भारत ने पिछले आठ वर्षों में सिर्फ 2.1 अंकों का सुधार दर्ज किया गया. रिपोर्ट में पाया गया कि देश की 14 प्रतिशत कुल आबादी कुपोषण का शिकार थी, पांच वर्ष से कम उम्र के 37.4 प्रतिशत बच्चे कम विकसित थे. साथ ही इस आयु वर्ग में 17.3 प्रतिशत अंडर वेट थे और मृत्यु दर 3.7 प्रतिशत थी.

मई में प्रकाशित विश्व पोषण रिपोर्ट में कहा गया है कि दो गर्भवती महिलाओं में से एक एनीमिक है और 2025 तक भारत के निर्धारित लक्ष्यों को पूरा करने की संभावना नहीं है. इस तथ्य को स्वीकार करते हुए कि कोविड संकट के कारण मानव जीवन अधिक निराशाजनक हो गया है. बाल कल्याण की नीति को प्रभावी ढंग से बदलने की जरूरत है.

मेडिकल साइंस बार-बार यह कह रहा है कि सभी पोषक तत्व बच्चे को उसके जन्म के पहले दो वर्षों के भीतर पर्याप्त रूप से दिए जाना चाहिए. दो वर्ष के बाद कोई फर्क नहीं पड़ता.

मातृ और बाल कल्याण योजनाओं को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि एनीमिक महिला को गर्भधारण से पहले से समय से देखभाल और बच्चे को दो साल का होने तक संतुलित पोषक तत्व प्रदान किया जाए.

समुचित मातृ और बाल पोषण के लिए देश भर में लाखों आंगनबाड़ियों की स्थापना की गई है, लेकिन इसका परिणाम बहुत सीमित है. जिस कारण 2022 तक पोषण सुनिश्चित करने के लिए 2017 में पोषण अभियान शुरू किया है.

प्रत्येक वर्ष का सितंबर माह पोषण माह के रूप में घोषित है. पहले तीन वर्षों में केंद्र द्वारा राज्यों को आवंटित फंड का केवल 30 प्रतिशत ही उपयोग किया गया था. यह बेहद निराशाजनक है. इसके बावजूद केवल 43 प्रतिशत बच्चों को ही पिछले साल इसका लाभ मिला है. उससे भी ज्यादा हैरान करने वाला खुलासा यह है कि 6-24 महीने के 10 प्रतिशत से कम बच्चों को पर्याप्त पोषण प्रदान किया गया.

भारत के पास दुनिया के 30 प्रतिशत बच्चे हैं, जो विकास में सबसे आगे हैं, तो वहीं एक सत्य भी है कि 50 प्रतिशत बच्चे कुपोषण से पीड़ित हैं. भारत सरकार को एक नई नीति के साथ इस लड़ने की जरूरत है.

हैदराबाद : ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2020 की रिपोर्ट जारी कर दी गई है और 107 देशों की लिस्ट में भारत 94वें पायदान पर है. रिपोर्ट के मुताबिक भारत में अब भी काफी भुखमरी मौजूद है. भारत की रैंकिंग ग्लोबल हंगर इंडेक्स में एशियाई देशों में सबसे खराब है. लिस्ट में भारत कई सारे पड़ोसी देशों से भी पीछे चल है. इन देशों में नेपाल, पाकिस्तान, बांग्लादेश, इंडोनेशिया जैसे देश शामिल हैं.

रिपोर्ट के मुताबिक 27.2 के स्कोर के साथ भारत भूख के मामले में गंभीर स्थिति में है. भारत में आजादी के 70 साल बाद भी लाखों लोगों के लिए स्वस्थ जीवन एक सपने से कम नहीं है. रिपोर्ट के अनुसार नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश, म्यांमार और पाकिस्तान सभी को भारत से बेहतर स्थिति में दिखाया गया है. जिस तरह से भारत को सूडान के साथ दिखाया गया है, वह नीतिगत विफलताओं को उजागर करता है. वर्ष 2000 में भारत 38.9 स्कोर पर था. 2006 में घटकर 37.5 और 2012 में 29.3 पर रह गया.

भारत ने पिछले आठ वर्षों में सिर्फ 2.1 अंकों का सुधार दर्ज किया गया. रिपोर्ट में पाया गया कि देश की 14 प्रतिशत कुल आबादी कुपोषण का शिकार थी, पांच वर्ष से कम उम्र के 37.4 प्रतिशत बच्चे कम विकसित थे. साथ ही इस आयु वर्ग में 17.3 प्रतिशत अंडर वेट थे और मृत्यु दर 3.7 प्रतिशत थी.

मई में प्रकाशित विश्व पोषण रिपोर्ट में कहा गया है कि दो गर्भवती महिलाओं में से एक एनीमिक है और 2025 तक भारत के निर्धारित लक्ष्यों को पूरा करने की संभावना नहीं है. इस तथ्य को स्वीकार करते हुए कि कोविड संकट के कारण मानव जीवन अधिक निराशाजनक हो गया है. बाल कल्याण की नीति को प्रभावी ढंग से बदलने की जरूरत है.

मेडिकल साइंस बार-बार यह कह रहा है कि सभी पोषक तत्व बच्चे को उसके जन्म के पहले दो वर्षों के भीतर पर्याप्त रूप से दिए जाना चाहिए. दो वर्ष के बाद कोई फर्क नहीं पड़ता.

मातृ और बाल कल्याण योजनाओं को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि एनीमिक महिला को गर्भधारण से पहले से समय से देखभाल और बच्चे को दो साल का होने तक संतुलित पोषक तत्व प्रदान किया जाए.

समुचित मातृ और बाल पोषण के लिए देश भर में लाखों आंगनबाड़ियों की स्थापना की गई है, लेकिन इसका परिणाम बहुत सीमित है. जिस कारण 2022 तक पोषण सुनिश्चित करने के लिए 2017 में पोषण अभियान शुरू किया है.

प्रत्येक वर्ष का सितंबर माह पोषण माह के रूप में घोषित है. पहले तीन वर्षों में केंद्र द्वारा राज्यों को आवंटित फंड का केवल 30 प्रतिशत ही उपयोग किया गया था. यह बेहद निराशाजनक है. इसके बावजूद केवल 43 प्रतिशत बच्चों को ही पिछले साल इसका लाभ मिला है. उससे भी ज्यादा हैरान करने वाला खुलासा यह है कि 6-24 महीने के 10 प्रतिशत से कम बच्चों को पर्याप्त पोषण प्रदान किया गया.

भारत के पास दुनिया के 30 प्रतिशत बच्चे हैं, जो विकास में सबसे आगे हैं, तो वहीं एक सत्य भी है कि 50 प्रतिशत बच्चे कुपोषण से पीड़ित हैं. भारत सरकार को एक नई नीति के साथ इस लड़ने की जरूरत है.

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