नई दिल्ली : कश्मीर की सर्दियों के बारे में कहा जाता है कि जमा देने वाली ठंड पड़ती है, लेकिन घाटी विशेषकर इस सर्दी में बहुत गरम जोन में रहेगी. जनता में अनुच्छेद 370 के रद्द किए जाने, जम्मू-कश्मीर का विभाजन, राज्य का दर्जा हटा देना और विवादास्पद डोमिसाइल (अधिवास) कानूनों को लेकर जनता में बहुत गुस्सा है. वहां आगे का मार्ग परेशानी भरा है. केवल बहुत भोला-भाला ही इस स्पष्ट 'डिस्कनेक्ट' देखने में नाकाम रहेगा. इसलिए सहज उपलब्ध मनोज सिन्हा से बेहतर परेशानी से भरी घाटी की खाई को पाटने और कनेक्ट स्थापित करने के लिए लेफ्टिनेंट गवर्नर के रूप में और कौन हो सकता है.
आईआईटी इंजीनियर रहे सिन्हा बहुत ही मिलनसार हैं और उत्तर प्रदेश के निवासी हैं. सख्त टेक्नोक्रेट के साथ संघी पृष्ठभूमि के हैं. संचार एवं रेल राज्यमंत्री के रूप में विश्वसनीय प्रदर्शन कर चुके हैं. इसलिए उनका प्रशासनिक कौशल पहले से सिद्ध है. योगी आदित्यनाथ ने अंतिम समय में पछाड़ दिया, नहीं तो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के लिए सिन्हा पसंदीदा व्यक्ति थे. सिन्हा मोदी के करीबी माने जाते हैं.
इसके साथ ही यह भी महत्वपूर्ण है कि प्रधानमंत्री मोदी ने यह भी सोचा होगा कि जम्मू-कश्मीर एक महत्वपूर्ण केंद्र शासित प्रदेश है. इसे पूर्व आईएएस अधिकारी जीसी मुर्मू की जगह ग्राउंड जीरो से राजनीतिक दिमाग से संचालित किया जाना चाहिए. कश्मीरी युवाओं की एक पूरी पीढ़ी ऐसी है, जो हाल के दिनों में पहले की तुलना में कहीं अधिक उग्रवाद के रास्ते पर जा रही है, उनको शांत रखने के लिए हमदर्दी रखने वाला राजनीतिक व्यक्तित्व बेहतर ढंग से विचार की रोशनी फैलाएगा. अद्यतन रिपोर्टों से संकेत मिलता है कि संख्या के मामले में कश्मीरी युवा विदेशी उग्रवादियों की संख्या पर भारी हैं. बेकाबू गति से जारी सामाजिक मंथन को देखते हुए समय आ गया है कि अब तक चले आ रहे रुख को बदला जाए और राज्य में लचीले शासन को खड़ा किया जाए.
संविधान के अनुच्छेद 370 को रद्द किए जाने का एक साल हो जाने के बाद जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक प्रक्रिया में अब और देर नहीं की जा सकती. इसके साथ ही नेतृत्वकर्ता के रूप में एक कट्टर भाजपाई की उपस्थिति भी भगवा पार्टी के पक्ष में बढ़ती लामबंदी का लाभ उठाने में सक्षम होगी, जो परिसीमन प्रक्रिया के परिणामस्वरूप एक उत्साह बढ़ाने के रूप में है.
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पिछले साल पहले ही देखा जा चुका है अपनी घटती साख और जनाधार से राज्य का पारंपरिक नेतृत्व अपनी प्रासंगिकता खो चुका है. इसलिए पिछले राजनीतिक नेतृत्व के अवशेष के साथ संरेखण कर यह एक नया राजनीतिक प्रतिष्ठान स्थापित करे, सार्थक संरेखण द्वारा एक करने की आवश्यकता है.
इसके अलावा चीन की बढ़ती सक्रियता के कारण कश्मीर मुद्दा अंतर्राष्ट्रीय ध्यान का केंद्र बनता जा रहा है. इसलिए बहुत अधिक चतुराई से निपटने की आवश्यकता होगी. ऐसा कुछ करना एक राजनीतिक दिमाग के लिए आसान हो सकता है, लेकिन यह तो केवल समय बताएगा कि सिन्हा जम्मू-कश्मीर में अपना एक निशान छोड़ने के लिए किस हद तक प्रबंध कर पाते हैं.