नयी दिल्लीः ग्रामीण भारत की बड़ी आबादी देश में कोविड-19 महामारी से लड़ने के लिए केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार और राज्य सरकारों द्वारा उठाये गये कदमों से संतुष्ट है. हालांकि लोगों ने बहुत कठिनाइयों का भी सामना किया और कुछ तो अपनी जमीन, फोन और घड़ियां बेचने तथा पड़ोसियों से कर्ज लेने को भी मजबूर हुए. एक राष्ट्रीय स्तर के सर्वेक्षण में यह खुलासा किया गया है.
मीडिया संस्था 'गांव कनेक्शन' द्वारा ग्रामीण भारत में किये गये राष्ट्रीय स्तर के सर्वेक्षण के अनुसार लॉकडाउन के दौरान मोदी सरकार द्वारा लिए गए निर्णयों का समर्थन करने वालों में से 37 प्रतिशत ने कहा कि वे सरकार के काम से बहुत संतुष्ट हैं, जबकि 37 प्रतिशत ने कहा कि वे केंद्र सरकार के कामकाज से कुछ हद तक संतुष्ट हैं. कुल मिलाकर 74 प्रतिशत लोगों ने केंद्र सरकार के कामकाज से संतोष जताया.
सर्वे के अनुसार 78 प्रतिशत ग्रामीणों ने कहा कि वे अपनी-अपनी राज्य सरकारों के कामकाज से भी संतुष्ट हैं.
'गांव कनेक्शन' ने सोमवार को सर्वे रिपोर्ट जारी की और बताया कि 30 मई से 16 जुलाई, 2020 के बीच हुए इस सर्वे में कुल 25,371 प्रतिभागियों का साक्षात्कार किया गया.
उसके अनुसार सभी प्रतिभागी अपने अपने घरों के प्रमुख कमाने वाले थे, इस तरह यह सर्वे पुरुष प्रधान रहा और लगभग 80 प्रतिशत उत्तरदाता पुरूष ही रहे. हालांकि इसमें 20 फीसदी महिलाओं ने भी हिस्सा लिया.
नयी दिल्ली स्थित सेंटर फॉर स्टडी ऑफ डवलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस) में लोकनीति-सीएसडीएस की टीम ने सर्वेक्षण की रूपरेखा तैयार की और इसका विश्लेषण किया.
सीएसडीएस के प्रोफेसर संजय कुमार ने कहा, 'सर्वे की विविधता, व्यापकता और इसके सैंपल साइज के आधार पर मैं निश्चित रूप से कह सकता हूं कि यह अपनी तरह का पहला व्यापक सर्वे है, जो ग्रामीण भारत पर लॉकडाउन से पड़े प्रभाव पर फोकस करता है.'
सर्वे में शामिल 14 प्रतिशत से अधिक लोगों ने कहा कि वे मोदी सरकार से कुछ हद तक असंतुष्ट हैं, जबकि सिर्फ 7% ने कहा कि वे सरकार के उपायों से बहुत ही अधिक असंतुष्ट हैं.
सर्वे के अनुसार दस में से सात लोगों (73 प्रतिशत) ने कहा कि लॉकडाउन के दौरान मोदी सरकार का प्रवासी मजदूरों के प्रति रवैया अच्छा रहा. इनमें से 29 प्रतिशत प्रतिभागियों ने कहा कि सरकार का रवैया बहुत अच्छा रहा, वहीं 44 प्रतिशत ने कहा रवैया अच्छा रहा.
सर्वे के अनुसार सिर्फ 23 फीसदी या हर चार में से एक प्रतिभागी ने कहा कि लॉकडाउन के दौरान सरकार की व्यवस्था खराब थी, जिसमें से 9 फीसदी ने बहुत खराब और 14 फीसदी ने इसे खराब कहा.
इसमें 40 फीसद लोगों ने कहा कि लॉकडाउन बहुत कठोर था, जबकि 38 प्रतिशत ने कहा कि यह जरूरत के हिसाब से कठोर था. वहीं 11 प्रतिशत ग्रामीणों ने कहा कि लॉकडाउन को और कठोर होना चाहिए था. जबकि केवल 4 प्रतिशत लोग ऐसे थे जिन्होंने कहा कि लॉकडाउन बिल्कुल नहीं होना चाहिए था.
सर्वे में राज्य सरकारों के बारे में भी लोगों की धारणा काफी सकारात्मक रही. 76 प्रतिशत लोगों ने कहा कि राज्य सरकार का प्रवासियों के प्रति रवैया काफी अच्छा रहा, जबकि केवल 20 प्रतिशत ने इसे बुरा बताया.
गांव कनेक्शन ने कहा, 'दिलचस्प बात यह है कि भाजपा शासित राज्यों में लोग मोदी सरकार और राज्य सरकारों द्वारा किए गए कार्यों से कम प्रभावित दिखे. साथ ही, भाजपा शासित राज्यों में लोग, कांग्रेस शासित राज्यों की तुलना में प्रवासियों के प्रति मोदी और राज्य सरकार के रवैये से थोड़ा कम खुश दिखे. हालांकि यह अंतर भी बहुत कम था.'
'गांव कनेक्शन' के संस्थापक नीलेश मिश्रा ने इस सर्वे को जारी करते हुए कहा, 'कोरोना वायरस संकट की इस घड़ी में ग्रामीण भारत, मुख्यधारा के राष्ट्रीय मीडिया के एजेंडे का हिस्सा नहीं रहा. यह सर्वे एक सशक्त दस्तावेज है जो बताता है कि ग्रामीण भारत अब तक इस संकट से कैसे निपटा और आगे उसकी क्या योजनाएं है? जैसे- क्या वे शहरों की ओर फिर लौटेंगे? क्या वे अपने खर्च करने के तरीकों में बदलाव करेंगे.'
सर्वे के परिणाम बताते हैं कि लॉकडाउन के दौरान लगभग 23 फीसदी ग्रामीणों को उधार लेना पड़ा, जबकि 8 फीसदी लोगों को अपने कीमती सामान जैसे- घड़ी, मोबाइल आदि बेचने पड़े, जबकि 7 फीसदी लोगों को अपने गहने गिरवी रखने पड़े. 5 फीसदी लोग ऐसे भी थे, जिन्हें लॉकडाउन की दिक्कतों के कारण अपनी जमीन गिरवी रखनी पड़ी या उसे बेचना पड़ा.
इसमें कहा गया कि जिन लोगों के पास राशन कार्ड थे, उनमें से 71 फीसदी लोगों को लॉकडाउन के दौरान सरकार द्वारा निर्धारित राशन (गेंहू या चावल) मिला. सर्वे के दौरान 17 फीसदी लोग ऐसे मिले जिनके पास राशन कार्ड नहीं था और ऐसे राशन कार्ड विहीन लोगों में से सिर्फ 27 फीसदी लोगों को ही राशन मिल सका.
सर्वे के मुताबिक लॉकडाउन के दौरान 23 फीसदी प्रवासी मजदूर ऐसे रहे, जिन्होंने पैदल ही शहर से अपने घर-गांव की यात्रा की. वहीं 33 फीसदी प्रवासी मजदूरों ने कहा कि वे रोजगार के लिए फिर से शहरों की तरफ वापस जाना चाहते हैं.
इसमें निष्कर्ष सामने आया कि लॉकडाउन से सबसे अधिक प्रभावित कुशल कामगार और अकुशल मजदूर रहे. 60 फीसदी कुशल कारीगरों का काम पूरी तरह ठप रहा, जबकि 64 फीसदी अकुशल मजदूर भी इससे बुरी तरह प्रभावित हुए और उनका काम पूरी तरह से ठप हो गया.
सर्वे के दौरान हर आठ में से एक ग्रामीण परिवार ने कहा कि लॉकडाउन में आर्थिक तंगी के कारण उन्हें कई बार पूरे दिन भूखा रहना पड़ा.
'गांव कनेक्शन' के मुताबिक, 'सिर्फ 20 प्रतिशत ग्रामीणों ने कहा कि उन्हें लॉकडाउन के दौरान मनरेगा के तहत काम मिला. छत्तीसगढ़ में सबसे अधिक 70 फीसदी लोगों को मनरेगा के तहत काम मिला, जबकि 65 प्रतिशत और 59 प्रतिशत के साथ उत्तराखंड और राजस्थान तीसरे स्थान पर रहे. वहीं गुजरात और केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर-लद्दाख का प्रदर्शन इस मामले में सबसे खराब रहा और वहां क्रमशः सिर्फ 2 और 4 प्रतिशत मजदूरों को ही मनरेगा के तहत काम मिल सका.'
इसमें कहा गया, '68 फीसदी से अधिक ग्रामीणों ने कहा कि उन्हें लॉकडाउन के दौरान गंभीर आर्थिक दिक्कतों का सामना करना पड़ा.'
सर्वे के मुताबिक, ऐसे घर जिनमें गर्भवती महिलाएं थी, उनमें से 42 फीसदी लोगों ने कहा कि लॉकडाउन के कारण महिलाएं गर्भावस्था के दौरान होने वाली नियमित जांचों (चेकअप) को नहीं करा सकीं. पश्चिम बंगाल (29%) और ओडिशा (35%) इस सूची में सबसे निचले पायदान वाले राज्यों में रहे.
इसमें कहा गया कि 78 प्रतिशत लोगों ने कहा कि लॉकडाउन के कारण उनका काम (रोजगार) पूरी तरह से रुक गया या काफी हद तक प्रभावित हुआ. 44 प्रतिशत लोगों ने कहा कि उनका काम लॉकडाउन के दौरान पूरी तरह ठप हो गया.
इसके मुताबिक 71 फीसदी ग्रामीण परिवारों ने कहा कि लॉकडाउन के दौरान उनके परिवार की मासिक आय में गिरावट आई.
सर्वे कहता है कि सबसे अधिक गरीब प्रभावित हुए. 75 फीसदी गरीब परिवारों और 74 फीसदी निम्न मध्यमवर्गीय परिवारों की मासिक आय में गिरावट दर्ज होने की बात सामने आई.
सर्वे में पाया गया कि केवल नौ प्रतिशत अमीर ग्रामीण परिवार, जिनके पास कार नहीं है, आगे आने वाले महीनों में कार खरीदने की सोच रहे हैं. इसी तरह केवल 14 प्रतिशत परिवार, जिनके पास बाइक नहीं है, अगले पांच से छह महीने में बाइक खरीदने की योजना बना रहे हैं.
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जिन राज्यों में सर्वे किया गया उनमें राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, सिक्किम, असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, त्रिपुरा, ओडिशा, केरल, महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ हैं. वहीं केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर, लद्दाख तथा अंडमान और निकोबार द्वीप समूह भी इसमें शामिल रहे.