नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने आज इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाले एक मामले पर सुनवाई के लिए सहमति व्यक्त की. इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार से लोगों के सार्वजनिक स्थान पर मास्क नहीं पहनने और कोविड 19 पर सख्ती करने को कहा था. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने आज उच्चतम अदालत के समक्ष इस पर सुनवाई की अनुमति मांगी थी, जिसे अदालत ने अनुमति दी. शीर्ष अदालत ने इसी तरह के गुजरात उच्च न्यायालय के आदेश पर पहले ही रोक लगा दी थी और कहा था कि यह संभव नहीं है.
कोविड अस्पतालों की संख्या नहीं बताई
न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति एमआर शाह की पीठ ने कोविड 19 मरीजों के समुचित इलाज और अस्पतालों में शवों को संभालने पर सुनवाई की. न्यायाधीशों ने आज बताया कि डॉक्टर बिना किसी अवकाश के काम कर रहे हैं और उन्हें निरंतर सेवा के बाद अवकाश मिलना ही चाहिए. एसजी ने अदालत को आश्वासन दिया कि सरकार इस पर विचार करेगी.
इसके साथ ही राजकोट में आग की घटना से संबंधित मामले को भी सुना गया, जिसमें अदालत ने सभी राज्यों को कोविड अस्पतालों में अग्नि सुरक्षा उपायों पर एक हलफनामा दायर करने को कहा था. कोर्ट ने आज यह कहते हुए फटकार लगाई कि राज्यों में से किसी ने भी कोविड अस्पतालों की संख्या नहीं बताई है और क्या किसी प्रोटोकॉल का पालन किया जा रहा है? कुछ राज्यों ने 2016 से डेटा दिया था.
चुनावी रैलियों पर भी उठे सवाल
गुजरात में 328 अग्नि सुरक्षा अधिकारियों को नामित अधिकारी के रूप में नियुक्त किया गया है. जस्टिस एमआर शाह ने गुजरात के एफिडेविट से पढ़ा और कहा कि 214 अस्पतालों में से 61 के पास कोई एनओसी नहीं है. उन्होंने कहा कि वे अस्पतालों को बंद करने के लिए नहीं कह रहे हैं लेकिन उपाय किए जाने की जरूरत है. जस्टिस शाह ने यह भी टिप्पणी की कि कोई भी मास्क नहीं पहनता है और बड़े पैमाने पर विवाह आयोजित किए जाते हैं. एसजी मेहता ने अदालत को बताया कि 80-90 करोड़ रुपये गुजरात सरकार द्वारा जुर्माने के रूप में एकत्र किए गए हैं. चुनावी रैलियों में 19 प्रोटोकॉल का हवाला देते हुए एसजी ने कहा कि इसपर चुनाव आयोग ही बता सकता है. इस मामले पर 18 दिसंबर को फिर से सुनवाई होगी, जिसमें अदालत आदेश पारित करेगी.