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विकास दुबे एनकाउंटर : चीफ जस्टिस ने याचिकाकर्ता को लगाई फटकार - चीफ जस्टिस एस. ए. बोबडे

सुप्रीम कोर्ट ने कानपुर के विकास दुबे एनकाउंटर मामले में मंगलवार को सुनवाई की. इस दौरान याचिकाकर्ता की ओर से एनकाउंटर की जांच के लिए बनाई गई समिति पर सवाल खड़े किए, जिस पर चीफ जस्टिस एस.ए. बोबडे ने याचिकाकर्ता को फटकार लगाई. पढ़ें पूरी खबर...

सुप्रीम कोर्ट
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Published : Aug 11, 2020, 4:42 PM IST

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक याचिका पर अपना आदेश सुरक्षित रखा, जिसमें कानपुर के विकास दुबे एनकाउंटर मामले की जांच के लिए गठित न्यायिक आयोग से न्यायमूर्ति बीएस चौहान को हटाने की मांग की गई है.

भारत के प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे की अगुआई वाली पीठ ने याचिकाकर्ता घनश्याम उपाध्याय से इस मामले पर सुझावों की एक सूची मांगी है, जिस पर अदालत द्वारा विचार किया जा सकता है.

घनश्याम उपाध्याय ने पहले भी जांच समिति के पुनर्गठन के संबंध में दलील दायर की थी. कोर्ट ने समिति के सदस्यों में पक्षपात होने पर आरोपों के निराकरण के लिए प्रार्थना को मंजूर कर लिया था.

समिति के सदस्यों की ओर से दायर ताजा याचिका में कहा गया है कि न्यायमूर्ति चौहान के भाई उत्तर प्रदेश में एक विधायक हैं और उनकी बेटी की शादी एक सांसद से हुई है.

चीफ जस्टिस ने उपाध्याय की खिंचाई करते हुए कहा कि क्या उनका कोई रिश्तेदार हादसे से संबंध रखता है? ऐसे में वह सही क्यों नहीं हो सकते हैं? आज कई ऐसे जज हैं जिनके भाई या पिता सांसद हैं, तो क्या सभी जज पक्षपाती हैं?

पढ़ें- पैतृक संपत्ति पर बेटी का भी होगा समान अधिकार : सुप्रीम कोर्ट

सुनवाई के दौरान वकील ने अखबारों में छपे कई लेख का जिक्र किया, जिस पर चीफ जस्टिस की ओर से कहा गया कि हम अखबारों के आधार पर पूर्व जस्टिस की नियुक्ति पर फैसला नहीं करेंगे.

उपाध्याय ने हाल में हुए राकेश पांडे एनकाउंटर का भी जिक्र किया और कहा कि उत्तर प्रदेश पूरी कानून प्रणाली को परेशान कर रहा है. यह मुठभेड़ों का राज्य बन रहा है.

चीफ जस्टिस ने कहा कि हर राज्य में हजारों अपराधी हैं, लेकिन इस विशेष समिति का इससे कोई लेना-देना नहीं है, ये तर्क अप्रासंगिक हैं.

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक याचिका पर अपना आदेश सुरक्षित रखा, जिसमें कानपुर के विकास दुबे एनकाउंटर मामले की जांच के लिए गठित न्यायिक आयोग से न्यायमूर्ति बीएस चौहान को हटाने की मांग की गई है.

भारत के प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे की अगुआई वाली पीठ ने याचिकाकर्ता घनश्याम उपाध्याय से इस मामले पर सुझावों की एक सूची मांगी है, जिस पर अदालत द्वारा विचार किया जा सकता है.

घनश्याम उपाध्याय ने पहले भी जांच समिति के पुनर्गठन के संबंध में दलील दायर की थी. कोर्ट ने समिति के सदस्यों में पक्षपात होने पर आरोपों के निराकरण के लिए प्रार्थना को मंजूर कर लिया था.

समिति के सदस्यों की ओर से दायर ताजा याचिका में कहा गया है कि न्यायमूर्ति चौहान के भाई उत्तर प्रदेश में एक विधायक हैं और उनकी बेटी की शादी एक सांसद से हुई है.

चीफ जस्टिस ने उपाध्याय की खिंचाई करते हुए कहा कि क्या उनका कोई रिश्तेदार हादसे से संबंध रखता है? ऐसे में वह सही क्यों नहीं हो सकते हैं? आज कई ऐसे जज हैं जिनके भाई या पिता सांसद हैं, तो क्या सभी जज पक्षपाती हैं?

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सुनवाई के दौरान वकील ने अखबारों में छपे कई लेख का जिक्र किया, जिस पर चीफ जस्टिस की ओर से कहा गया कि हम अखबारों के आधार पर पूर्व जस्टिस की नियुक्ति पर फैसला नहीं करेंगे.

उपाध्याय ने हाल में हुए राकेश पांडे एनकाउंटर का भी जिक्र किया और कहा कि उत्तर प्रदेश पूरी कानून प्रणाली को परेशान कर रहा है. यह मुठभेड़ों का राज्य बन रहा है.

चीफ जस्टिस ने कहा कि हर राज्य में हजारों अपराधी हैं, लेकिन इस विशेष समिति का इससे कोई लेना-देना नहीं है, ये तर्क अप्रासंगिक हैं.

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