नई दिल्लीः उच्चतम न्यायालय ने कोरोना की वजह से विश्वविद्यालयों/कॉलेजों में अंतिम वर्ष की परीक्षाएं स्थगित करने की मांग करने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रखा है. मामले के पक्षकारों को 3 दिनों के भीतर लिखित प्रस्तुतियां दर्ज करने के लिए कहा गया है.
न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अगुवाई वाली पीठ उन छात्रों द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिन्होंने यूजीसी की अधिसूचना को चुनौती दी थी और कॉलेजों को इस साल सितंबर अंत तक परीक्षा आयोजित करने के लिए कहा था.
यूजीसी के दिशा निर्देशों का विरोध करने का आधार यह था कि वर्तमान स्थिति सेहत के लिए खतरा पैदा करेगी. साथ ही लॉकडाउन के कारण शिक्षक पढ़ा नहीं पा रहे हैं. वहीं बाढ़ प्रभावित राज्यों के छात्रों को परीक्षा देने में दिक्कत होगी और ऑनलाइन सुविधाएं परीक्षा के लिए अनुकूल नहीं हैं.
दिल्ली और महाराष्ट्र ने पहले ही यह कहते हुए परीक्षा रद्द करने की घोषणा कर दी थी कि यूजीसी केवल दिशा निर्देश दे सकता है, परीक्षा आयोजित करने के लिए मजबूर नहीं कर सकता है. यूजीसी ने यह कहते हुए इसका विरोध किया था कि परीक्षा रद करने की शक्ति केवल यूजीसी के पास ही है न कि राज्यों के पास.
आज अदालत ने देखा कि छात्र अपने स्वयं के कल्याण के लिए निर्णय लेने के लिए सक्षम नहीं हैं, केवल संस्थान ही ऐसा कर सकते हैं. अदालन ने सवाल किया कि परीक्षा आयोजित नहीं करने से क्या मानक कमजोर नहीं हो जाएंगे ?
महाराष्ट्र सरकार ने बताया कि कैसे IIT ने बिना अंतिम परीक्षा लिए डिग्री प्रदान की है. इसके अलावा यह कहा गया कि परीक्षा आयोजित नहीं करना घातक साबित होगा, क्योंकि 6 में से 5 सेमेस्टर पहले ही पूरे हो चुके हैं और छठे सेमेस्टर के लिए इंटरनेट सहायता भी समाप्त हो गई है और अब 5 सेमेस्टर का औसत लिया जा सकता है. महाराष्ट्र सरकार ने कहा कि अंतिम सेमेस्टर में ही नौकरी के लिए साक्षात्कार होता है और इस समय तक छात्र अपने कोर्स का 87 प्रतिशत पूरा कर चुके होते हैं.
यूजीसी ने अदालत के समक्ष कहा कि परीक्षा की तिथियों को आगे बढ़ाने पर विचार किया जा सकता है, लेकिन अंतिम परीक्षा के बिना डिग्री प्रदान नहीं की जा सकती.
एक पक्ष ने अदालत के सामने तर्क दिया कि पूरे मामले का राजनीतिकरण किया गया है. महाराष्ट्र के कुलपतियों के साथ बैठक के बाद जिसमें फैसला किया कि एक साल और दो साल के छात्रों को सीधे पदोन्नति दी जानी चाहिए, लेकिन तीन साल के छात्रों को परीक्षा देनी चाहिए, युवा शिवसेना ने इसके खिलाफ याचिका दायर की. युवा शिवसेना की अगुवाई मुख्यमंत्री के बेटे कर रहे हैं. आगे उन्होंने कहा कि शिवसेना की याचिका के बाद एसडीएमए ने परीक्षा रद्द करने का आदेश दिया.
यह भी सवाल किया गया था कि अगर राज्य लोक सेवा आयोग की परीक्षा आयोजित की जा सकती है तो कॉलेज में होने वाली परीक्षा क्यों नहीं हो सकती?
न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली एक अलग पीठ ने कल एनईईटी और जेईई परीक्षा स्थगित करने से इनकार कर दिया था और कहा था कि शिक्षा अब खुलनी चाहिए क्योंकि कोविड के अगले साल भी रहने की संभावना है और इसके स्थगित होने से काफी नुकसान होगा.
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