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महाराष्ट्र में सब कुछ ठीक होने का दावा सच्चाई से दूर लगता है - सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार से राज्य में फंसे प्रवासियों की स्थिति स्पष्ट करने के लिए कहा. राज्य का सब कुछ ठीक होने का दावा सच्चाई से काफी दूर लगता है.

महाराष्ट्र में सबकुछ ठीक होने का दावा सच्चाई से दूर
महाराष्ट्र में सबकुछ ठीक होने का दावा सच्चाई से दूर
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Published : Jul 9, 2020, 2:14 PM IST

नई दिल्लीः उच्चतम न्यायालय ने महाराष्ट्र सरकार से राज्य में फंसे प्रवासियों की स्थिति स्पष्ट करते हुए अदालत में एक अतिरिक्त हलफनामा दायर करने को कहा है. अदालत ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा दायर हलफनामे के अनुसार, सभी श्रमिकों को भोजन उपलब्ध कराया जा रहा है, लेकिन ऐसा लगता है कि सच्चाई इससे कोसो दूर है.

महाराष्ट्र सरकार से शीर्ष अदालत ने एक उचित हलफनामा दायर करने को कहा.अदालत ने महाराष्ट्र सरकार से कहा कि आपने एक प्रतिकूल याचिका दायर की है. यह कहते हुए कि राज्य सब कुछ ठीक होने और सभी को भोजन और ट्रांसपोर्टेशन प्रदान करने का दावा नहीं कर सकता.

न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अगुवाई वाली पीठ लॉकडाउन से प्रभावित हुए प्रवासियों की याचिका पर सुनवाई कर रही थी. मामले की पिछली सुनवाई में अदालत ने सरकार से कहा था कि वह कोर्ट के आदेशों का पालन करें ताकि प्रवासियों को मुफ्त परिवहन, भोजन और रोजगार प्रदान किया जा सके. मेधा पाटेकर, सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (सीपीआईएल) और निकिता वाजपेयी द्वारा इसी तरह की मांग करने वाली याचिकाएं भी शामिल थीं. सीपीआईएल द्वारा दायर की गई जनहित याचिका को अगले सप्ताह तक सुनवाई के लिए स्थगित कर दिया गया है.

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता जो कि महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश हुए उन्होंने अदालत को सूचित किया कि जो प्रवासी पहले राज्य छोड़कर जाना चाहते थे उन्होंने अब वापस रहने का फैसला किया है क्योंकि राज्य ने रोजगार के अवसर खोले हैं. मेहता ने कहा कि पहली मई से करीब 3,50,000 मजदूर फिर से काम पर लौट आए हैं क्योंकि जो गए हैं उन्हें अपने कौशल के अनुसार रोजगार नहीं मिल रहा है. एक बढ़ई कृषि क्षेत्रों में मजदूर के रूप में काम नहीं कर सकता है.

बिहार के मामले में अधिवक्ता रजनीत कुमार ने अदालत को सूचित किया कि राज्य में रिवर्स माइग्रेशन हो रहा है और शहरों को जाने वाली ट्रेनें पूरी तरह से भरी हुई हैं. न्यायाधीशों ने उन राज्यों से पूछा जिन्होंने हलफनामा दायर नहीं किया है और अगली सुनवाई के लिए 17 जुलाई की तारीख दी.

नई दिल्लीः उच्चतम न्यायालय ने महाराष्ट्र सरकार से राज्य में फंसे प्रवासियों की स्थिति स्पष्ट करते हुए अदालत में एक अतिरिक्त हलफनामा दायर करने को कहा है. अदालत ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा दायर हलफनामे के अनुसार, सभी श्रमिकों को भोजन उपलब्ध कराया जा रहा है, लेकिन ऐसा लगता है कि सच्चाई इससे कोसो दूर है.

महाराष्ट्र सरकार से शीर्ष अदालत ने एक उचित हलफनामा दायर करने को कहा.अदालत ने महाराष्ट्र सरकार से कहा कि आपने एक प्रतिकूल याचिका दायर की है. यह कहते हुए कि राज्य सब कुछ ठीक होने और सभी को भोजन और ट्रांसपोर्टेशन प्रदान करने का दावा नहीं कर सकता.

न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अगुवाई वाली पीठ लॉकडाउन से प्रभावित हुए प्रवासियों की याचिका पर सुनवाई कर रही थी. मामले की पिछली सुनवाई में अदालत ने सरकार से कहा था कि वह कोर्ट के आदेशों का पालन करें ताकि प्रवासियों को मुफ्त परिवहन, भोजन और रोजगार प्रदान किया जा सके. मेधा पाटेकर, सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (सीपीआईएल) और निकिता वाजपेयी द्वारा इसी तरह की मांग करने वाली याचिकाएं भी शामिल थीं. सीपीआईएल द्वारा दायर की गई जनहित याचिका को अगले सप्ताह तक सुनवाई के लिए स्थगित कर दिया गया है.

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता जो कि महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश हुए उन्होंने अदालत को सूचित किया कि जो प्रवासी पहले राज्य छोड़कर जाना चाहते थे उन्होंने अब वापस रहने का फैसला किया है क्योंकि राज्य ने रोजगार के अवसर खोले हैं. मेहता ने कहा कि पहली मई से करीब 3,50,000 मजदूर फिर से काम पर लौट आए हैं क्योंकि जो गए हैं उन्हें अपने कौशल के अनुसार रोजगार नहीं मिल रहा है. एक बढ़ई कृषि क्षेत्रों में मजदूर के रूप में काम नहीं कर सकता है.

बिहार के मामले में अधिवक्ता रजनीत कुमार ने अदालत को सूचित किया कि राज्य में रिवर्स माइग्रेशन हो रहा है और शहरों को जाने वाली ट्रेनें पूरी तरह से भरी हुई हैं. न्यायाधीशों ने उन राज्यों से पूछा जिन्होंने हलफनामा दायर नहीं किया है और अगली सुनवाई के लिए 17 जुलाई की तारीख दी.

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