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बिहार : सीताकुंड में फल्गु के बालू से किया जाता है पिंडदान, जानें क्या है खासियत

मोक्ष की नगरी गया में छठवें दिन भी लाखों की संख्या में लोग पहुंच रहे हैं. वहीं, सीताकुंड वेदी पर फल्गु नदी की बालू से बने पिंड का तर्पण करने का प्रवधान है. पढें पूरी खबर...

सीताकुंड वेदी पर पिंडदान करते तीर्थयात्री
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Published : Sep 18, 2019, 12:20 PM IST

Updated : Oct 1, 2019, 1:12 AM IST

पटना: मोक्ष की नगरी गया में सीताकुंड वेदी पर पिंडदान करने का महत्व वर्णित हैं. ऐसी मान्यता है कि यहां फल्गु नदी की बालू से बने पिंड को अर्पित करने मात्र से पूर्वजों को मोक्ष मिलता है. हर वेदी की तरह सीताकुंड वेदी की भी अपनी पौराणिक कथा है.

जाने क्यों खास है सीता कुंड में पिंडदान

पितृपक्ष मेले के दौरान तीर्थयात्री शहर की कई पिंड वेदियों पर अपने पितरों की मोक्ष की प्राप्ति के लिए पिंडदान करते हैं. अभी भी लाखों की संख्या में लोग गया पहुंच रहे हैं.

तीर्थयात्री विभिन्न पिंड वेदियों पर पिंडदान और तर्पण कर्मकांड कर रहे हैं. वहीं, लाखों की संख्या में तीर्थयात्री पैदल ही नदी पार कर सीताकुंड वेदी पर पहुंचते हैं और अपने पितरों को पिंडदान करते हैं.

क्या कहते हैं पुजारी...
सीताकुंड पिंडवेदी के मुख्य पुजारी दिनेश कुमार पांडेय ने बताया कि यहां स्वयं भगवान श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण ने राजा दशरथ का पिंडदान किया था. इसके बाद उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई. उन्होंने बताया कि भगवान श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण यहां पिंडदान करने के लिए आए थे.

sitakund etvbharat
सीताकुंड वेदी

पढ़ेंः पितृ पक्ष : बिहार की फल्गु नदी में पहले पिंडदान का महत्व, पितृ तर्पण की प्रथम वेदी है पुनपुन नदी

क्यों होता है बालू का पिंडदान
भगवान श्रीराम और लक्ष्मण पिंड की सामग्री लेने के लिए चले गए. इसी बीच राजा दशरथ की आकाशवाणी हुई. इसमें राजा दशरथ ने कहा पुत्री सीता जल्दी से हमें पिंड दे दो. पिंड देने का मुहूर्त बीता जा रहा है.

इसके बाद माता सीता ने भगवान श्रीराम और लक्ष्मण के आने में देरी होते देख फल्गु नदी के बालू का पिंड बनाया और राजा दशरथ को अर्पित कर दिया. इसके बाद राजा दशरथ को मोक्ष की प्राप्ति हुई. तब से सीताकुंड पिंडवेदी पर बालू का पिंड बनाकर पितरों को देने का प्रावधान है.

पटना: मोक्ष की नगरी गया में सीताकुंड वेदी पर पिंडदान करने का महत्व वर्णित हैं. ऐसी मान्यता है कि यहां फल्गु नदी की बालू से बने पिंड को अर्पित करने मात्र से पूर्वजों को मोक्ष मिलता है. हर वेदी की तरह सीताकुंड वेदी की भी अपनी पौराणिक कथा है.

जाने क्यों खास है सीता कुंड में पिंडदान

पितृपक्ष मेले के दौरान तीर्थयात्री शहर की कई पिंड वेदियों पर अपने पितरों की मोक्ष की प्राप्ति के लिए पिंडदान करते हैं. अभी भी लाखों की संख्या में लोग गया पहुंच रहे हैं.

तीर्थयात्री विभिन्न पिंड वेदियों पर पिंडदान और तर्पण कर्मकांड कर रहे हैं. वहीं, लाखों की संख्या में तीर्थयात्री पैदल ही नदी पार कर सीताकुंड वेदी पर पहुंचते हैं और अपने पितरों को पिंडदान करते हैं.

क्या कहते हैं पुजारी...
सीताकुंड पिंडवेदी के मुख्य पुजारी दिनेश कुमार पांडेय ने बताया कि यहां स्वयं भगवान श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण ने राजा दशरथ का पिंडदान किया था. इसके बाद उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई. उन्होंने बताया कि भगवान श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण यहां पिंडदान करने के लिए आए थे.

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सीताकुंड वेदी

पढ़ेंः पितृ पक्ष : बिहार की फल्गु नदी में पहले पिंडदान का महत्व, पितृ तर्पण की प्रथम वेदी है पुनपुन नदी

क्यों होता है बालू का पिंडदान
भगवान श्रीराम और लक्ष्मण पिंड की सामग्री लेने के लिए चले गए. इसी बीच राजा दशरथ की आकाशवाणी हुई. इसमें राजा दशरथ ने कहा पुत्री सीता जल्दी से हमें पिंड दे दो. पिंड देने का मुहूर्त बीता जा रहा है.

इसके बाद माता सीता ने भगवान श्रीराम और लक्ष्मण के आने में देरी होते देख फल्गु नदी के बालू का पिंड बनाया और राजा दशरथ को अर्पित कर दिया. इसके बाद राजा दशरथ को मोक्ष की प्राप्ति हुई. तब से सीताकुंड पिंडवेदी पर बालू का पिंड बनाकर पितरों को देने का प्रावधान है.

Intro:सीताकुंड पिंड वेदी पर फल्गु के बालू से बने पिंड को अर्पित करने का है प्रावधान,
बालू से बने पिंड को अर्पित करने से पितरों को होती है मोक्ष की प्राप्ति,
भगवान श्रीराम, माता सीता व लक्ष्मण ने इसी पिंडवेदी पर राजा दशरथ का किया था पिंडदान।


Body:गया: पितृपक्ष मेला के दौरान तीर्थयात्री शहर के कई पिंड वेदियों पर अपने पितरों की मोक्ष की प्राप्ति के लिए पिंडदान करते हैं। अभी भी लाखों की संख्या में गयाजी पहुंचे तीर्थयात्री विभिन्न पिंड वेदियों पर पिंडदान व तर्पण कर्मकांड कर रहे हैं। गया शहर के फल्गु नदी के पूर्वी तट पर स्थित सीताकुंड पिंडवेदी पर फल्गु नदी के रेत से बने पिंड को अर्पित करने का प्रावधान है। यहां रेत से बने पिंड को अर्पित करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। लाखों की संख्या में तीर्थयात्री पैदल ही नदी पार कर सीताकुंड वेदी पर पहुंचते हैं और अपने पितरों को पिंडदान करते हैं।
सीताकुंड पिंडवेदी के मुख्य पुजारी दिनेश कुमार पांडे ने बताया कि यहां स्वयं भगवान श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण ने राजा दशरथ का पिंडदान किया था। जिसके बाद उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई। उन्होंने बताया कि भगवान श्रीराम, सीता माता और लक्ष्मण यहां पिंड करने के लिए आए थे। भगवान श्रीराम और लक्ष्मण पिंड की सामग्री लेने के लिए चले गए। इसी बीच राजा दशरथ की आकाशवाणी हुई। जिसमें राजा दशरथ ने कहा पुत्री सीता जल्दी से हमें पिंड दे दो। पिंड देने का मुहूर्त बीता जा रहा है। माता सीता ने भगवान श्रीराम और लक्ष्मण के आने में देरी होते देख फल्गु नदी के बालू का पिंड बनाया और राजा दशरथ को अर्पित कर दिया। जिसके बाद राजा दशरथ को मोक्ष की प्राप्ति हुई। तब से सीताकुंड पिंडवेदी पर बालू का पिंड बनाकर पितरो को देने का प्रावधान है। ऐसा कहा जाता है कि बालू से बने पिंड को अर्पित करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

बाइट- दिनेश कुमार पांडे, मुख्य पुजारी, सीताकुंड ।
बाइट- चंदन कुमार पांडे, पंडा।

रिपोर्ट- प्रदीप कुमार सिंह
गया।



Conclusion:
Last Updated : Oct 1, 2019, 1:12 AM IST
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