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अयोध्या मामला: मुस्लिम पक्षकार वक्फ बोर्ड के दावे से हैरान, कहा- समझौते का प्रस्ताव स्वीकार नहीं

राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद को सौहार्दपूर्वक सुलझाने की तमाम कोशिशें विफल होती दिख रही हैं. ताजा घटनाक्रम में मुस्लिम पक्षकारों ने कहा है कि उन्हें मध्यस्थता समिति के प्रस्ताव स्वीकार नहीं है. इन पक्षकारों में सुन्नी वक्फ बोर्ड शामिल नहीं है. जानें पूरा मामला

मुस्लिम पक्षकार के वकील
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Published : Oct 18, 2019, 11:42 PM IST

नई दिल्ली : राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद भूमि विवाद पर मुस्लिम पक्षकारों ने स्पष्ट कहा है कि वे लिए उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त मध्यस्थता समिति के तथाकथित समझौते के प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करेंगे. इन पक्षकारों में सुन्नी वक्फ शामिल नहीं है. जो मुस्लिम पक्षकार मध्यस्थता समिति के प्रस्ताव के खिलाफ हैं उन्होंने वक्फ बोर्ड द्वारा मामला वापस लेने संबंधी खबरों पर उन्होंने हैरानी भी जताई.

दरअसल, उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश एफएमआई कलीफुल्ला की अध्यक्षता वाली मध्यस्थता समिति ने शीर्ष न्यायालय में एक सीलबंद लिफाफे में एक रिपोर्ट दाखिल कर हिंदू और मुस्लिम पक्षों के बीच एक तरह के समझौते का संकेत दिया है, जिसमें वक्फ बोर्ड कुछ खास शर्ते पूरी होने पर 2.2 एकड़ विवादित स्थल पर अपना दावा छोड़ने के लिये राजी हो गया है.

इस तीन सदस्यीय मध्यस्थता समिति के दो अन्य सदस्यों में आध्यात्मिक गुरू श्री श्री रविशंकर और मध्यस्थ्ता विशेषज्ञ वरिष्ठ अधिवक्ता श्रीराम पांचू भी शामिल थे.

शुक्रवार को मुख्य मुस्लिम वादियों एम सिद्दीक और मिसबाहुद्दीन के कानूनी प्रतिनिधियों के वकील ऐजाज मकबूल तथा मुस्लिम पक्षकारों के चार अन्य अधिवक्ताओं ने एक बयान में कहा, 'हम सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील शाहिद रिजवी के हवाले से मीडिया में आ रही इन खबरों से हैरान हैं कि उत्तर प्रदेश सुन्नी केंद्रीय वक्फ बोर्ड बाबरी मस्जिद स्थल पर अपना दावा वापस लेने का इच्छुक है.'

मुस्लिम पक्षकार के वकील का बयान

वकीलों ने कहा कि मध्यस्थता समिति की रिपोर्ट मीडिया में लीक की गई और वे प्रक्रिया में अपनाई गई कार्यप्रणाली को तथा मुकदमा वापस लेने के लिये सुझाये गये समझौता फार्मूला को स्वीकार नहीं करते हैं.

बयान में कहा गया है, 'इस तरह, हम यह पूरी तरह से स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि उच्चतम न्यायालय में हम वादी हैं और हम प्रेस को लीक किये गये प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करते हैं...ना ही मध्यस्थता के लिये अपनाई गई कार्यप्रणाली को स्वीकार करते हैं....'

इसमें कहा गया है, 'लगभग सभी मीडिया संस्थानों और अखबारों ने यह प्रसारित एवं प्रकाशित किया कि उप्र सुन्नी केंद्रीय वक्फ बोर्ड कुछ शर्तों पर अपना दावा छोड़ने के लिए राजी हो गया है. यह खबर या तो मध्यस्थता समिति ने या निर्वाणी अखाड़ा ने लीक की जो मस्जिद या अन्य पर अधिकार का दावा करता है.'

इसमें यह भी कहा गया है कि न्यायालय ने इस तरह की कार्यवाही को गोपनीय रखने का निर्देश दिया था.

बयान में कहा गया है कि यह स्वीकार करना मुश्किल है कि कोई मध्यस्थता हो सकती है. खासतौर पर तब, जब मुख्य हिंदू पक्षकार (राम लला) ने स्पष्ट रूप से कहा था कि वे किसी समझौते के लिए तैयार नहीं हैं और एक न्यायिक निर्णय चाहते हैं.

उल्लेखनीय है कि प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अगुवाई वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने इस मामले पर 40 दिन सुनवाई करने के बाद 16 अक्टूबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. ऐसा बताया जाता है कि इसी दिन मध्यस्थता समिति की रिपोर्ट भी न्यायालय को सौंपी गई थी.

सूत्रों ने बताया कि सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्वाणी अखाड़ा, निर्मोही अखाड़ा, राम जन्मभूमि पुनरुद्धार समिति और कुछ अन्य हिंदू पक्षकार भूमि विवाद को आपसी सहमति से सुलझाने के पक्ष में हैं.

सूत्रों के अनुसार पक्षकारों ने धार्मिक स्थल कानून, 1991 के प्रावधानों के तहत ही समझौते का आग्रह किया था. इस कानून में प्रावधान है कि किसी अन्य मस्जिद या दूसरे धार्मिक स्थलों , जिनका निर्माण मंदिरों को गिराकर किया गया है और जो 1947 से अस्तित्व में है, को लेकर कोई विवाद अदालत में नहीं लाया जायेगा.

हालांकि, राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद विवाद को इस कानून के दायरे से बाहर रखा गया था.

ये भी पढ़ेंः दीपावली पर अयोध्या में होगा भगवान राम का राज्यभिषेक : लल्लू सिंह

सूत्रों ने बताया कि मुस्लिम पक्षकारों ने सुझाव दिया कि विवाद का केन्द्र भूमि सरकार को अधिग्रहण में सौंप दी जायेगी और वक्फ बोर्ड सरकार को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधीन चुनिन्दा मस्जिदों की सूची पेश करेगा जिन्हें नमाज के लिये उपलब्ध कराया जा सकता है.

शीर्ष अदालत में इस प्रकरण में पेश होने वाले एक वरिष्ठ अधिवक्ता का कहना था कि चूंकि अब सुनवाई पूरी हो गयी है , इसलिए मीडिया को लीक की गयी इस रिपोर्ट का कोई महत्व नहीं है.

हिन्दू और मुस्लिम पक्षकारों के कुछ वकीलों ने कहा कि मध्यस्थता समिति द्वारा रिपोर्ट सौंपे जाने के बारे में शीर्ष अदालत ने उन्हें सूचित भी नहीं किया है.
(एक्सट्रा इनपुट- पीटीआई)

नई दिल्ली : राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद भूमि विवाद पर मुस्लिम पक्षकारों ने स्पष्ट कहा है कि वे लिए उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त मध्यस्थता समिति के तथाकथित समझौते के प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करेंगे. इन पक्षकारों में सुन्नी वक्फ शामिल नहीं है. जो मुस्लिम पक्षकार मध्यस्थता समिति के प्रस्ताव के खिलाफ हैं उन्होंने वक्फ बोर्ड द्वारा मामला वापस लेने संबंधी खबरों पर उन्होंने हैरानी भी जताई.

दरअसल, उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश एफएमआई कलीफुल्ला की अध्यक्षता वाली मध्यस्थता समिति ने शीर्ष न्यायालय में एक सीलबंद लिफाफे में एक रिपोर्ट दाखिल कर हिंदू और मुस्लिम पक्षों के बीच एक तरह के समझौते का संकेत दिया है, जिसमें वक्फ बोर्ड कुछ खास शर्ते पूरी होने पर 2.2 एकड़ विवादित स्थल पर अपना दावा छोड़ने के लिये राजी हो गया है.

इस तीन सदस्यीय मध्यस्थता समिति के दो अन्य सदस्यों में आध्यात्मिक गुरू श्री श्री रविशंकर और मध्यस्थ्ता विशेषज्ञ वरिष्ठ अधिवक्ता श्रीराम पांचू भी शामिल थे.

शुक्रवार को मुख्य मुस्लिम वादियों एम सिद्दीक और मिसबाहुद्दीन के कानूनी प्रतिनिधियों के वकील ऐजाज मकबूल तथा मुस्लिम पक्षकारों के चार अन्य अधिवक्ताओं ने एक बयान में कहा, 'हम सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील शाहिद रिजवी के हवाले से मीडिया में आ रही इन खबरों से हैरान हैं कि उत्तर प्रदेश सुन्नी केंद्रीय वक्फ बोर्ड बाबरी मस्जिद स्थल पर अपना दावा वापस लेने का इच्छुक है.'

मुस्लिम पक्षकार के वकील का बयान

वकीलों ने कहा कि मध्यस्थता समिति की रिपोर्ट मीडिया में लीक की गई और वे प्रक्रिया में अपनाई गई कार्यप्रणाली को तथा मुकदमा वापस लेने के लिये सुझाये गये समझौता फार्मूला को स्वीकार नहीं करते हैं.

बयान में कहा गया है, 'इस तरह, हम यह पूरी तरह से स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि उच्चतम न्यायालय में हम वादी हैं और हम प्रेस को लीक किये गये प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करते हैं...ना ही मध्यस्थता के लिये अपनाई गई कार्यप्रणाली को स्वीकार करते हैं....'

इसमें कहा गया है, 'लगभग सभी मीडिया संस्थानों और अखबारों ने यह प्रसारित एवं प्रकाशित किया कि उप्र सुन्नी केंद्रीय वक्फ बोर्ड कुछ शर्तों पर अपना दावा छोड़ने के लिए राजी हो गया है. यह खबर या तो मध्यस्थता समिति ने या निर्वाणी अखाड़ा ने लीक की जो मस्जिद या अन्य पर अधिकार का दावा करता है.'

इसमें यह भी कहा गया है कि न्यायालय ने इस तरह की कार्यवाही को गोपनीय रखने का निर्देश दिया था.

बयान में कहा गया है कि यह स्वीकार करना मुश्किल है कि कोई मध्यस्थता हो सकती है. खासतौर पर तब, जब मुख्य हिंदू पक्षकार (राम लला) ने स्पष्ट रूप से कहा था कि वे किसी समझौते के लिए तैयार नहीं हैं और एक न्यायिक निर्णय चाहते हैं.

उल्लेखनीय है कि प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अगुवाई वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने इस मामले पर 40 दिन सुनवाई करने के बाद 16 अक्टूबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. ऐसा बताया जाता है कि इसी दिन मध्यस्थता समिति की रिपोर्ट भी न्यायालय को सौंपी गई थी.

सूत्रों ने बताया कि सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्वाणी अखाड़ा, निर्मोही अखाड़ा, राम जन्मभूमि पुनरुद्धार समिति और कुछ अन्य हिंदू पक्षकार भूमि विवाद को आपसी सहमति से सुलझाने के पक्ष में हैं.

सूत्रों के अनुसार पक्षकारों ने धार्मिक स्थल कानून, 1991 के प्रावधानों के तहत ही समझौते का आग्रह किया था. इस कानून में प्रावधान है कि किसी अन्य मस्जिद या दूसरे धार्मिक स्थलों , जिनका निर्माण मंदिरों को गिराकर किया गया है और जो 1947 से अस्तित्व में है, को लेकर कोई विवाद अदालत में नहीं लाया जायेगा.

हालांकि, राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद विवाद को इस कानून के दायरे से बाहर रखा गया था.

ये भी पढ़ेंः दीपावली पर अयोध्या में होगा भगवान राम का राज्यभिषेक : लल्लू सिंह

सूत्रों ने बताया कि मुस्लिम पक्षकारों ने सुझाव दिया कि विवाद का केन्द्र भूमि सरकार को अधिग्रहण में सौंप दी जायेगी और वक्फ बोर्ड सरकार को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधीन चुनिन्दा मस्जिदों की सूची पेश करेगा जिन्हें नमाज के लिये उपलब्ध कराया जा सकता है.

शीर्ष अदालत में इस प्रकरण में पेश होने वाले एक वरिष्ठ अधिवक्ता का कहना था कि चूंकि अब सुनवाई पूरी हो गयी है , इसलिए मीडिया को लीक की गयी इस रिपोर्ट का कोई महत्व नहीं है.

हिन्दू और मुस्लिम पक्षकारों के कुछ वकीलों ने कहा कि मध्यस्थता समिति द्वारा रिपोर्ट सौंपे जाने के बारे में शीर्ष अदालत ने उन्हें सूचित भी नहीं किया है.
(एक्सट्रा इनपुट- पीटीआई)

Intro:After the order on Ayodhya dispute case was reserved on 16th October, the Muslim parties gave out two statements today on the controversy and confusion arising out of if the Sunni waqf board will withdraw its case if certain conditions are met. Both the statements said that they do no accept the proposal which has been leaked in the press, the procedure in which the mediation has taken place or the manner in which a withdrawl of the claim has been suggested as a compromise.


Body:Statements issued by Advocates on record ,Ejaz Maqbool , and joint statement by him and Shakeel Ahmed Sayed, MR Shamshad, Irshad Ahmad and Fuzail A Aiyubi, said that the leak to the press may have been inspired by either Mediation committee directly or those who participated in its proceedings. They also stated that the timing of the leak by Advocate Shahid Rizvi seems to be well thought of. "Mr Panchu was also in the premises of the Supreme Court on 16th October and was communicating in the premises to Mr. Zafar Faruqui,"the statement said.

Both the statements claim that only limted persons attended the mediation which included Dharma Das of Nirvani Akhara, Mr Zufar Faruqui of Sunni Central Waqf Board and Mr Chakrapani of Hindu Mahasabha. Adding furthet it said that "it is difficult to to accept that any mediation could have been done under the circumstances especially when the main Hindu parties had openly stated that they were not open to any settlement and all other muslim appellants made it clear, but, they would not do so."


Conclusion:Senior counsel Shakeel Ahmed Sayeed and MR Shamshad talking to the media said that there are 6-7 appeallants in the case and the Sunni waqf board should not be given more importance than the rest. They also said that Zufur Faruqui's statement doesn't stand legally as there is a certain procedure to be followed.

(Bytes of both the lawyers and Vishnu Shanker Jain has been sent in the morning. Kindly attach those with the article).
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