नई दिल्ली : कांग्रेस के विक्षुब्ध 23 वरिष्ठ नेताओं के पत्र लिखने को लेकर पार्टी में मची घबराहट के कुछ ही दिनों बाद से पार्टी हलकों में राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद के भविष्य की भूमिका को लेकर अटकलें लगनी शुरू हो गई हैं. आजाद का राज्यसभा का पांचवां कार्यकाल 15 फरवरी 2021 को समाप्त हो रहा है और पार्टी प्रबंधकों के लिए उन्हें फिर से संसद के ऊपरी सदन में पहुंचाना लगभग असंभव हो गया है.
पुद्दुचेरी में थोड़ी उम्मीद हो सकती है, जहां से अन्नाद्रमुक (एआईडीएमके) का प्रतिनिधित्व कर रहे एन. गोकुलकृष्णन का कार्यकाल 2021 के अक्टूबर में समाप्त होने से एक सीट खाली होगी, लेकिन यह विकल्प केवल सभी संभव हो पाएगा जब कांग्रेस अगले साल मई में वहां सत्ता में वापस लौटे.
करना पड़ सकता है 2022 तक का इंतजार
इसका असल अर्थ यह है कि आजाद को 2022 के मार्च में राज्यसभा का चुनाव होने तक इंतजार करना पड़ेगा. तब यदि जगह खाली रही तो उन्हें उच्च सदन में फिर से प्रवेश करने का मौका मिल सकता है. सूत्रों का कहना है कि उसकी भी उम्मीद कम लग रही है. राज्यसभा में आजाद पहले राज्य रहे जम्मू-कश्मीर से प्रतिनिधित्व करते थे जो वर्ष 2019 से लद्दाख के साथ मिलकर केंद्र शासित प्रदेश हो गया है. हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह स्पष्ट किया है कि भविष्य में केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में चुनाव होंगे, लेकिन यह मार्च 2021 में निर्वाचन क्षेत्रों का सीमांकन पूरा हो जाने के बाद ही संभव होगा.
मजे की बात यह है कि वर्ष 2015 में भी गुलाम नबी आजाद के राज्यसभा के लिए फिर से चुने जाने को लेकर बहुत अधिक संशय था, तभी उन्होंने नेशनल कॉफ्रेंस के सांसदों और विधायकों का समर्थन हासिल कर लिया.
केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर की बात खत्म हो जाने के बाद कांग्रेस के प्रबंधकों के लिए यह लगभग असंभव हो गया है कि वे उन्हें किसी अन्य राज्य से फिर चुनाव जितवा सकें.
महाराष्ट्र से नहीं कोई उम्मीद
मौजूदा समय में पंजाब, राजस्थान और छत्तीसगढ़ ऐसे राज्य हैं जहां कांग्रेस का शासन है और जहां से प्रतिनिधि राज्यसभा के लिए चुने गए हैं. अन्य राज्य जहां कांग्रेस विपक्ष में है, लेकिन निर्वाचित सदस्यों की पर्याप्त संख्या है वे राज्य कर्नाटक, मध्य प्रदेश और गुजरात हैं. लेकिन वहां भी ऊपरी सदन के लिए प्रतिनिधियों का चुनाव हो चुका है. महाराष्ट्र जहां कांग्रेस सत्तारूढ़ शिवसेना-राकांपा-कांग्रेस गठबंधन में शामिल है, वहां से भी कोई उम्मीद नहीं है. क्योंकि उस पश्चिमी राज्य में राज्यसभा का चुनाव समाप्त हो चुका है.
हालांकि, आजाद के राज्यसभा में फिर से पहुंचने की अटकलों और उनके नाम का असंतुष्टों की सूची में प्रमुखता से आने के बीच कोई प्रत्यक्ष संबंध नहीं दिखता, लेकिन पार्टी के अंदरूनी सूत्रों ने कहा कि अगले साल फरवरी में जब एक बार राज्यसभा की सदस्यता और नेता प्रतिपक्ष का दर्जा चला जाएगा तो इस चालाक राजनेता के लिए फिर से राज्यसभा में जाना आसान नहीं रहेगा.
उसके बाद आजाद केवल कांग्रेस के महासचिव और हरियाणा के प्रभारी रह जाएंगे जो उन्हें वर्ष 2019 में बनाया गया था. उसके पहले आजाद को वर्ष 2017 में होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए राजनीतिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण उत्तर प्रदेश में पार्टी को फिर से जीवित करने के लिए वर्ष 2016 में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीकी) का प्रभारी बनाया गया था. जब वे प्रभारी बने तो उनके कार्यकाल में कांग्रेस ने चुनाव में समाजवादी पार्टी के साथ हाथ मिलाने का निर्णय लिया. रणनीतिकारों ने याद दिलाई कि यह रणनीति पार्टी के लिए तबाही साबित हुई.
यूपी चुनाव में खराब प्रदर्शन पर आलोचना
हाल में उत्तर प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष निर्मल खत्री ने विक्षुब्धों के पत्र को लेकर वर्ष 2017 के विधानसभा चुनावों में खराब प्रदर्शन का उल्लेख करते हुए आजाद की आलोचना की है. उत्तर प्रदेश कांग्रेस इकाई के एक अन्य नेता नसीब पठान ने पत्र मुद्दे पर आजाद को पार्टी के निकालने की मांग की है. पार्टी के अंदरूनी लोगों ने कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष पद से लेकर जिला स्तर तक आंतरिक चुनाव कराने की मांग करने वाले समूह को पीछे से अपना पूरा जोर लगाते रहना आजाद के लिए आसान नहीं रह सकता है.
अभी के लिए कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी और पूर्व अध्यक्ष राजीव गांधी दोनों ने आजाद को भरोसा दिया है कि उनके स्तर से उठाए गए मुद्दे का समाधान किया जाएगा. हो सकता है कि वे वैसा करें भी जो बहुत दिनों से नहीं हुआ.
कौन लेगा आजाद की जगह?
निकट भविष्य में लेकिन एआईसीसी में किसी भी छोटे बदलाव में देखा जा सकता है कि हरियाणा सोनिया-राहुल के किसी वफादार को दे दिया गया, जैसा कि राजस्थान में अवधेश पांडेय को हटाकर राहुल गांधी के निकट सहयोगी अजय माकन को एआईसीसी का प्रभारी बना दिया गया. पांडे के नेतृत्व में पार्टी ने जुलाई में एक दूसरे तरह के विरोध का सामना किया था. पार्टी में एक अन्य मुद्दे पर बहस यह चल रही है कि राज्यसभा में विरोधी दल के नेता के रूप मे आजाद की जगह कौन लेगा. तकनीकी रूप से यह पद आनंद शर्मा को मिलना चाहिए जो सदन में लंबे समय से आजाद के सहायक की भूमिका निभा रहे हैं और वह प्राकृतिक रूप से संसद के इस प्रमुख पद के दावेदार हैं, लेकिन सचाई है यह है कि विक्षुब्धों के पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों में शर्मा भी शामिल हैं. पार्टी के अंदरूनी लोगों का कहना है कि इस वजह से प्रोन्नति पाने का उनका अवसर कम हो सकता है. शर्मा का राज्यसभा का कार्यकाल वर्ष 2022 के अप्रैल में समाप्त होगा.
पार्टी के प्रबंधक इस मुद्दे को लेकर अपनी गर्दन नहीं फंसाना चाहते हैं, कर्नाटक के वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे के नाम पर अनौपचारिक तौर पर पार्टी के अंदर चर्चा हुई है. वे इसी साल ऊपरी सदन के लिए निर्वाचित हुए हैं और सदस्य के रूप में 2026 तक बने रहेंगे. वास्तव में खड़गे सोनिया गांधी के वफादार हैं. उनका नाम विक्षुब्धों की सूची में नहीं है. यह भी हो सकता है कि दलित नेता होने से उनकी उम्मीदवारी को थोड़ा और बल मिले. वह संप्रग की सरकार में मंत्री रहने के अलावा 9 बार विधायक और दो बार लोकसभा के सदस्य रह चुके हैं.