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महिला दिवस विशेष : कमाल है कुरुक्षेत्र की ये छोरी, कहलाती है हॉकी की 'रानी'

4 दिसंबर 1994 को शाहाबाद मारकंडा में रामपाल और राममूर्ति के घर जन्मी बिटिया का नाम रानी रखा गया. रामपाल घोड़ा गाड़ी चला कर अपने परिवार का गुजर-बसर करते थे. जब रानी चौथी क्लास में पढ़ती थीं, तब ग्राउंड में लड़कियों को खेलते देखकर उनके मन में हॉकी खेलने की इच्छा हुई.

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4 दिसंबर 1994 को शाहाबाद मारकंडा में रामपाल
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Published : Mar 4, 2020, 7:10 AM IST

Updated : Mar 4, 2020, 7:17 AM IST

गर्व से भरे ये उस पिता के शब्द हैं, जिसकी बेटी को न सिर्फ पद्म पुरस्कार के लिए चुना गया है बल्कि 'वर्ल्ड गेम्स ऐथलीट ऑफ द ईयर' पुरस्कार भी झोली में गिरा है. हरियाणा के कुरुक्षेत्र के एक छोटे से कस्बे शाहाबाद की रहने वाली रानी रामपाल ने तिरंगा बहुत ऊंचा फहराया है. चौथी क्लास में हॉकी स्टिक थाम लेने वाली इस खिलाड़ी को पद्म श्री के लिए चुना गया है. माता-पिता के शब्दों में बेटी के लिए गर्व साफ झलकता है.

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रानी रामपाल

4 दिसंबर 1994 को शाहाबाद मारकंडा में रामपाल और राममूर्ति के घर जन्मी बिटिया का नाम रानी रखा गया. रामपाल घोड़ा गाड़ी चला कर अपने परिवार का गुजर-बसर करते थे. जब रानी चौथी क्लास में पढ़ती थीं, तब ग्राउंड में लड़कियों को खेलते देखकर उनके मन में हॉकी खेलने की इच्छा हुई. उनके पिता ने हॉकी स्टिक उनके हाथ में थमा दी थी. वे सिर्फ 13 साल की उम्र में ही भारतीय महिला हॉकी टीम में शामिल हो गईं.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

बन गईं हॉकी टीम की कैप्टन

धीरे-धीरे रानी ने हॉकी में नाम कमाया और भारतीय टीम की कैप्टन बनीं. जैसे-जैसे वे हॉकी में आगे बढ़ीं परिवार की स्थिति भी सुधरने लगी. रानी ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर छोटे से कस्बे शाहबाद हरियाणा और भारत का नाम रोशन किया. रानी घर में सबसे छोटी हैं. उनके दो 2 बड़े भाई हैं. एक भाई रेलवे में कार्यरत है, तो दूसरा मेहनत मजदूरी कर अपने परिवार का गुजर-बसर करता है.

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रानी रामपाल

रानी के पिता रामपाल ने बताया कि पदम श्री अवार्ड मिलने पर उनको बहुत खुशी है और बड़ी ही मुश्किलों में उन्होंने अपनी बेटी को इस मुकाम तक पहुंचाया. मेहनत मजदूरी कर घोड़ा गाड़ी चला कर उसने अपनी बेटी की हर ख्वाहिश को पूरा किया और वह आज इस मुकाम पर है कि आज देश को उस पर गर्व है और वो उनके हर सपने पूरे कर रही है.

बेटी ने अपने नाम के साथ जोड़ दिया पिता का नाम

जब रानी के पिता से पूछा कि वो अपने नाम के साथ पिता का नाम क्यों जोड़ती है, तो वे भावुक हो गए. वे कहते हैं कि शुरू से ही रानी ने अपने नाम के आगे उनका नाम जोड़ दिया रानी रामपाल बन गई.

एक नजर रानी रामपाल के करियर पर -

  • जूनियर हॉकी विश्व कप 2013 में प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट रहीं
  • 2010 में हॉकी विश्व कप में भाग लेने वाली सबसे कम उम्र की खिलाड़ी बनीं. उस वक्त वे महज 15 साल की थीं.
  • उन्होंने 14 साल की उम्र में अपना पहला इंटरनेशनल मैच खेला.
  • उन्होंने 2009 में एशिया कप के दौरान भारत को रजत पदक दिलाने में अहम भूमिका निभाई.
  • वे 2010 के राष्ट्रमंडल खेल और 2010 के एशियाई खेल के दौरान भारतीय टीम में रहीं.
    rawरानी रामपाल

उन्हें मिल चुका है सर्वश्रेष्ठ यंग फॉरवर्ड का अवॉर्ड.

  • 2013 में जूनियर महिला हॉकी टीम ने कांस्य पदक जीता, जो कि विश्व कप हॉकी कॉम्पिटिशन में 38 साल बाद भारत का पहला कोई मेडल है.
  • ईश्वर करे रानी यूं ही हॉकी की रानी बनकर खेलती रहें. उनके चेहरे पर सफलता की मुस्कान बनी रहे और तिरंगा शान से लहराता रहे.

गर्व से भरे ये उस पिता के शब्द हैं, जिसकी बेटी को न सिर्फ पद्म पुरस्कार के लिए चुना गया है बल्कि 'वर्ल्ड गेम्स ऐथलीट ऑफ द ईयर' पुरस्कार भी झोली में गिरा है. हरियाणा के कुरुक्षेत्र के एक छोटे से कस्बे शाहाबाद की रहने वाली रानी रामपाल ने तिरंगा बहुत ऊंचा फहराया है. चौथी क्लास में हॉकी स्टिक थाम लेने वाली इस खिलाड़ी को पद्म श्री के लिए चुना गया है. माता-पिता के शब्दों में बेटी के लिए गर्व साफ झलकता है.

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रानी रामपाल

4 दिसंबर 1994 को शाहाबाद मारकंडा में रामपाल और राममूर्ति के घर जन्मी बिटिया का नाम रानी रखा गया. रामपाल घोड़ा गाड़ी चला कर अपने परिवार का गुजर-बसर करते थे. जब रानी चौथी क्लास में पढ़ती थीं, तब ग्राउंड में लड़कियों को खेलते देखकर उनके मन में हॉकी खेलने की इच्छा हुई. उनके पिता ने हॉकी स्टिक उनके हाथ में थमा दी थी. वे सिर्फ 13 साल की उम्र में ही भारतीय महिला हॉकी टीम में शामिल हो गईं.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

बन गईं हॉकी टीम की कैप्टन

धीरे-धीरे रानी ने हॉकी में नाम कमाया और भारतीय टीम की कैप्टन बनीं. जैसे-जैसे वे हॉकी में आगे बढ़ीं परिवार की स्थिति भी सुधरने लगी. रानी ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर छोटे से कस्बे शाहबाद हरियाणा और भारत का नाम रोशन किया. रानी घर में सबसे छोटी हैं. उनके दो 2 बड़े भाई हैं. एक भाई रेलवे में कार्यरत है, तो दूसरा मेहनत मजदूरी कर अपने परिवार का गुजर-बसर करता है.

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रानी रामपाल

रानी के पिता रामपाल ने बताया कि पदम श्री अवार्ड मिलने पर उनको बहुत खुशी है और बड़ी ही मुश्किलों में उन्होंने अपनी बेटी को इस मुकाम तक पहुंचाया. मेहनत मजदूरी कर घोड़ा गाड़ी चला कर उसने अपनी बेटी की हर ख्वाहिश को पूरा किया और वह आज इस मुकाम पर है कि आज देश को उस पर गर्व है और वो उनके हर सपने पूरे कर रही है.

बेटी ने अपने नाम के साथ जोड़ दिया पिता का नाम

जब रानी के पिता से पूछा कि वो अपने नाम के साथ पिता का नाम क्यों जोड़ती है, तो वे भावुक हो गए. वे कहते हैं कि शुरू से ही रानी ने अपने नाम के आगे उनका नाम जोड़ दिया रानी रामपाल बन गई.

एक नजर रानी रामपाल के करियर पर -

  • जूनियर हॉकी विश्व कप 2013 में प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट रहीं
  • 2010 में हॉकी विश्व कप में भाग लेने वाली सबसे कम उम्र की खिलाड़ी बनीं. उस वक्त वे महज 15 साल की थीं.
  • उन्होंने 14 साल की उम्र में अपना पहला इंटरनेशनल मैच खेला.
  • उन्होंने 2009 में एशिया कप के दौरान भारत को रजत पदक दिलाने में अहम भूमिका निभाई.
  • वे 2010 के राष्ट्रमंडल खेल और 2010 के एशियाई खेल के दौरान भारतीय टीम में रहीं.
    rawरानी रामपाल

उन्हें मिल चुका है सर्वश्रेष्ठ यंग फॉरवर्ड का अवॉर्ड.

  • 2013 में जूनियर महिला हॉकी टीम ने कांस्य पदक जीता, जो कि विश्व कप हॉकी कॉम्पिटिशन में 38 साल बाद भारत का पहला कोई मेडल है.
  • ईश्वर करे रानी यूं ही हॉकी की रानी बनकर खेलती रहें. उनके चेहरे पर सफलता की मुस्कान बनी रहे और तिरंगा शान से लहराता रहे.
Last Updated : Mar 4, 2020, 7:17 AM IST
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