देहरादून: कारगिल युद्ध को 20 बरस हो चुके हैं. इस युद्ध में शहीद हुए जवानों के अदम्य साहस और उनके बलिदान को देश हमेशा याद रखेगा. हालांकि, शहादत की इन वीरगाथाओं में कुछ ऐसे किस्से कहानियां भी है, जो आज भी शरीर में सिहरन पैदा कर देती हैं. ऐसी एक कहानी है उत्तराखंड के शहीद विजय भंडारी की मां रामचंद्री की, जिसके जिगर के टुकड़े ने देश से लिए अपना सर्वोच्च न्यौछावर तो कर दिया लेकिन बेटे के इस बलिदान के बदले नियति से उन्हें कुछ और ही मिला.
कारगिल में शहीद हुए विजय भंडारी के साहस, शौर्य और बलिदान की कहानी भी बिलकुल वैसी ही है जैसे देश पर मर मिटने वाले हर जवान की होती है. लेकिन जो बात इस कहानी को सबसे अलहदा करती है, वो ये है कि जवान बेटे को खोने के बाद आज भी शहीद की बूढ़ी मां दर-ब-दर की ठोकरें खाने को मजबूर है.
साल 1999 में 17वीं गढ़वाल राइफल के जवान विजय भंडारी जब कारगिल युद्ध के दौरान सीमा पर जाने का बुलावा आया था तो विजय अपनी शादी के लिए छुट्टी पर आए थे.
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शादी के दस दिन बाद ही वो पत्नी और बूढ़ी मां को जल्द लौटने का वादा कर जंग के लिए रवाना हो गए. देश कारगिल युद्ध तो जीत गया लेकिन इस जंग में हजारों मांओं की कोख सूनी हो गई. इनमें से एक रामचंद्री भी थी.
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शहीद विजय की मां रामचंद्री बताती हैं कि बेटे के जाने के बाद वो बेसहारा हो गईं. ये सब याद करते हुए शहीद की बूढ़ी मां फफक उठती है.
पति की शहादत के बाद बहू को सरकारी नौकरी, पैसा और पेंशन मिली लेकिन कुछ समय बाद ही बहू की दूसरी शादी हो गई और उनके हिस्से कुछ नहीं आया.
उन्होंने अपने हक के लिए सालों तक लंबी लड़ाई लड़ी, जिसके बाद उन्हें शहीद बेटे की पेंशन का कुछ हिस्सा मिलने लगा.
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कारगिल युद्ध को 20 साल हो चुके हैं. शहीद विजय की मां रामचंद्री को आज घर में अकेली रहकर अपना गुजर बसर करती है.
ईटीवी भारत की टीम जब शहीद की मां की खोज खबर करने पहुंची तो बूढ़ी रामचंद्री की बात सुनकर हर कोई भावुक हो गया. वो बोलीं- उन्हें ऐसा लग रहा है कि जैसे उनका बेटा आज घर आया हो.