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कारगिल में शहीद हुए थे वीर सपूत विजय भंडारी, जानें बूढ़ी मां की दर्द भरी कहानी

कारगिल में शहीद हुए विजय भंडारी के साहस, शौर्य और बलिदान की कहानी भी बिलकुल वैसी ही है जैसे देश पर मर मिटने वाले हर जवान की होती है. लेकिन जो बात इस कहानी को सबसे अलहदा करती है, वो ये है कि जवान बेटे को खोने के बाद आज भी शहीद की बूढ़ी मां दर-ब-दर की ठोकरें खाने को मजबूर है.

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Published : Jul 19, 2019, 5:45 PM IST

बूढ़ी मां की दर्द भरी कहानी

देहरादून: कारगिल युद्ध को 20 बरस हो चुके हैं. इस युद्ध में शहीद हुए जवानों के अदम्य साहस और उनके बलिदान को देश हमेशा याद रखेगा. हालांकि, शहादत की इन वीरगाथाओं में कुछ ऐसे किस्से कहानियां भी है, जो आज भी शरीर में सिहरन पैदा कर देती हैं. ऐसी एक कहानी है उत्तराखंड के शहीद विजय भंडारी की मां रामचंद्री की, जिसके जिगर के टुकड़े ने देश से लिए अपना सर्वोच्च न्यौछावर तो कर दिया लेकिन बेटे के इस बलिदान के बदले नियति से उन्हें कुछ और ही मिला.

कारगिल में शहीद हुए विजय भंडारी के साहस, शौर्य और बलिदान की कहानी भी बिलकुल वैसी ही है जैसे देश पर मर मिटने वाले हर जवान की होती है. लेकिन जो बात इस कहानी को सबसे अलहदा करती है, वो ये है कि जवान बेटे को खोने के बाद आज भी शहीद की बूढ़ी मां दर-ब-दर की ठोकरें खाने को मजबूर है.

कारगिल में बूढ़ी मां ने खोया था अपना इकलौता बेटा, देखें वीडियो....

साल 1999 में 17वीं गढ़वाल राइफल के जवान विजय भंडारी जब कारगिल युद्ध के दौरान सीमा पर जाने का बुलावा आया था तो विजय अपनी शादी के लिए छुट्टी पर आए थे.

पढ़ें- कारगिल विजय : उत्तराखंड के 75 रणबांकुरों ने दी थी प्राणों की आहुति

शादी के दस दिन बाद ही वो पत्नी और बूढ़ी मां को जल्द लौटने का वादा कर जंग के लिए रवाना हो गए. देश कारगिल युद्ध तो जीत गया लेकिन इस जंग में हजारों मांओं की कोख सूनी हो गई. इनमें से एक रामचंद्री भी थी.

पढ़ें- हिमाचल प्रदेश पहुंची कारगिल विजय की मशाल यात्रा, मुख्यमंत्री जयराम ने किया स्वागत

शहीद विजय की मां रामचंद्री बताती हैं कि बेटे के जाने के बाद वो बेसहारा हो गईं. ये सब याद करते हुए शहीद की बूढ़ी मां फफक उठती है.

पति की शहादत के बाद बहू को सरकारी नौकरी, पैसा और पेंशन मिली लेकिन कुछ समय बाद ही बहू की दूसरी शादी हो गई और उनके हिस्से कुछ नहीं आया.

उन्होंने अपने हक के लिए सालों तक लंबी लड़ाई लड़ी, जिसके बाद उन्हें शहीद बेटे की पेंशन का कुछ हिस्सा मिलने लगा.

पढ़ें- कारगिल विजय के 20 साल : जांबाज सैनिकों से परिचय कराएगी भारतीय रेल, मिलेगा सम्मान

कारगिल युद्ध को 20 साल हो चुके हैं. शहीद विजय की मां रामचंद्री को आज घर में अकेली रहकर अपना गुजर बसर करती है.

ईटीवी भारत की टीम जब शहीद की मां की खोज खबर करने पहुंची तो बूढ़ी रामचंद्री की बात सुनकर हर कोई भावुक हो गया. वो बोलीं- उन्हें ऐसा लग रहा है कि जैसे उनका बेटा आज घर आया हो.

देहरादून: कारगिल युद्ध को 20 बरस हो चुके हैं. इस युद्ध में शहीद हुए जवानों के अदम्य साहस और उनके बलिदान को देश हमेशा याद रखेगा. हालांकि, शहादत की इन वीरगाथाओं में कुछ ऐसे किस्से कहानियां भी है, जो आज भी शरीर में सिहरन पैदा कर देती हैं. ऐसी एक कहानी है उत्तराखंड के शहीद विजय भंडारी की मां रामचंद्री की, जिसके जिगर के टुकड़े ने देश से लिए अपना सर्वोच्च न्यौछावर तो कर दिया लेकिन बेटे के इस बलिदान के बदले नियति से उन्हें कुछ और ही मिला.

कारगिल में शहीद हुए विजय भंडारी के साहस, शौर्य और बलिदान की कहानी भी बिलकुल वैसी ही है जैसे देश पर मर मिटने वाले हर जवान की होती है. लेकिन जो बात इस कहानी को सबसे अलहदा करती है, वो ये है कि जवान बेटे को खोने के बाद आज भी शहीद की बूढ़ी मां दर-ब-दर की ठोकरें खाने को मजबूर है.

कारगिल में बूढ़ी मां ने खोया था अपना इकलौता बेटा, देखें वीडियो....

साल 1999 में 17वीं गढ़वाल राइफल के जवान विजय भंडारी जब कारगिल युद्ध के दौरान सीमा पर जाने का बुलावा आया था तो विजय अपनी शादी के लिए छुट्टी पर आए थे.

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शादी के दस दिन बाद ही वो पत्नी और बूढ़ी मां को जल्द लौटने का वादा कर जंग के लिए रवाना हो गए. देश कारगिल युद्ध तो जीत गया लेकिन इस जंग में हजारों मांओं की कोख सूनी हो गई. इनमें से एक रामचंद्री भी थी.

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शहीद विजय की मां रामचंद्री बताती हैं कि बेटे के जाने के बाद वो बेसहारा हो गईं. ये सब याद करते हुए शहीद की बूढ़ी मां फफक उठती है.

पति की शहादत के बाद बहू को सरकारी नौकरी, पैसा और पेंशन मिली लेकिन कुछ समय बाद ही बहू की दूसरी शादी हो गई और उनके हिस्से कुछ नहीं आया.

उन्होंने अपने हक के लिए सालों तक लंबी लड़ाई लड़ी, जिसके बाद उन्हें शहीद बेटे की पेंशन का कुछ हिस्सा मिलने लगा.

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कारगिल युद्ध को 20 साल हो चुके हैं. शहीद विजय की मां रामचंद्री को आज घर में अकेली रहकर अपना गुजर बसर करती है.

ईटीवी भारत की टीम जब शहीद की मां की खोज खबर करने पहुंची तो बूढ़ी रामचंद्री की बात सुनकर हर कोई भावुक हो गया. वो बोलीं- उन्हें ऐसा लग रहा है कि जैसे उनका बेटा आज घर आया हो.

Intro:summary- शहीद की अकेली मां की दर्द भरी कहानी

Note- ये ख़बर कारगिल श्पेशल स्टोरी है और ख़बर की फीड FTP से (uk_deh_02_Martyrs mother pain_vis_byte_7205800) नाम से भेजी गई है।

एंकर- कारगिल युद्ध को 20 बरस हो चुके हैं और कारगिल में शहीद हुए जवानों के अधम्मय साहस और उनके बलिदान को देश के प्रति सम्मान के रूप में हमेशा याद किया जाता है लेकिन शहादत की इन वीरगाथाओं में कुछ ऐसे किस्से कहानियां भी है जो आज भी दर्द देती है और इन कहानियों को सुन का जहन में सिरहन पैदा हो जाती है। ऐसी एक कहानी है शहीद विजय भंडारी की अकेली और बूढ़ी माँ रामचंद्रि देवी की। जिसने देश की रक्षा के लिए अपने जिगर के टुकड़े को बलिदान तो किया लेकिन बदले में नियति, कुछ अपनो और सरकारी पेचीदगियों ने उसे हमेशा हमेशा के लिए दर दर की ठोकरे खाने के लिए मजबूर कर दिया।


Body:वीओ- कारगिल में शैहिद हुए विजय भंडारी के साहस, शौर्य और बलिदान की कहानी भी बिल्कुल वैसी ही हर जैसी देश मे मर मिटने वाले हर जवान की शहादत की होती है लेकिन अफसोस कि विजय की शहादत के बाद पीछे छुटी की मां की कहानी जैसे कहानी शायद ही आपने पहले सुनी होगी।

सन 1999 में 17 गढ़वाल राइफल के जवान विजय भंडारी कारगिल युद्ध के दौरान जब लड़ाई पर आने का बुलावा आया था तो विजय अपनी शादी के लिए छुट्टी पर आए थे और अपनी नवविवाहित पत्नी आशा भण्डारी को मात्र 10 का साथ छोड़ कर विजय भंडारी जंग पर रवाना हो गए। अपनी बूढ़ी मां और अभी अभी मिली जीवन साथी आशा को विजय जल्द लौट कर आने के वादे के साथ छोड़ कर गए और इसके बाद कारगिल युध्द में तो देश को विजय प्राप्त हुई लेकिन बूढ़ी मा अपने विजय को खो चुकी थी। बहरहाल देश ने इस दौरान बहुत शहादतें दी थी जिनमे से एक विजय की भी थी लेकिन शाहिद विजय की बूढ़ी मा पर एक ओर बड़ा पहाड़ टूटने वाला था क्योंकि विजय की नवविवाहित पत्नी आशा ने विजय की चिता की आग भी नही बुझने दी और अपने रंग दिखाने शुरू कर दिए।

विजय की मां रामचन्द्री देवी बताती है कि शहीद विजय के नाम पर सरकार द्वारा मिलने वाली सारी सुविधाओं को लेकर उसकी मात्र 10 दिन वाली पत्नी हवा हो गयी। शहीद की माँ ने बताया कि विजय के शहिद होते ही सरकार द्वारा जो भी पैसा और मदद दी गयी उसे लेकर उसकी पत्नी ने तुरन्त ही दूसरी शादी कर ली और विजय की मां को अकेला छोड़ कर चली गयी। वो भी तब जब विजय की मां ने ही विजय की पत्नी को इस सबका हकदार बनाया था लेकिन बदले में मा ही दर दर की ठोकरे खाने के लिए मजबूर हो गयी। विजय की मां ने बताया कि विजय की पत्नी आशा आज अपने दूसरे पति के साथ बहुत खुश है। शहीद विजय के नाम पर उसे सरकारी नोकरी भी मिली, पैसा भी पेंशन भी और उसका दूसरा पति भी अच्छा कमाता है लेकिन शहीद की बेबस मा के हिस्से में कई सालों तक कुछ नही आया लेकिन अब शहीद की पेंशन का एक छोटा सा हिस्सा लड़ झगड़ कर लेने में वो कामयाब रही है।

आज कारगिल को 20 साल हो चुके हैं और शहीद विजय की मां को आज भी ये बात अंदर तो छलनी करती है कि एक तो अपना सपूत खो दिया और बेटे की शहादत को भी कोई और लूट कर ले गया। विजय की मां आज भी पूरे घर मे अकेली रहती है, अकेले ही गुजर बसर करती है सारा काम करती है। कोई विजय की मां को पूछने वाला निहि है। शहीद की मां अक्सर अपने शहीद बेटे की मूर्ति को छूकर उसे याद करती है। कोई विजय की मां के पास नही जाता, ईटीवी भारत की टीम जब शहीद विजय के विषय में जनकरी लेने उनके घर पहुंची तो उनकी मा बहुत भावुक हुई और कहा कि मुझे ऐसा लग रहा है जैसे मेरा बेटा ही आज मेरे घर आया हो।

शहीद की माँ से बात चीत


Conclusion:
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