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राजस्थान : कांग्रेस में 'राहुल ब्रिगेड' पर नजरें, बीजेपी नेताओं की चुप्पी पर अटकलें

राजस्थान के सियासी घमासान में BJP और कांग्रेस नेता जमकर एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं, लेकिन बीजेपी के कुछ कद्दावर नेता इस पूरे मामले में चुप्पी साधे हुए हैं. ऐसे में सियासी गलियारों में इनकी चुप्पी पर चर्चाएं तेज हो गई हैं. दूसरी ओर कांग्रेस में 'राहुल ब्रिगेड' पर नजरें होने की बात सामने आ रही है. कांग्रेस में सूत्रों ने स्वीकार किया कि पार्टी में इस समूह (राहुल ब्रिगेड) को ज्यादा अहमियत मिलने से नाराजगी बढ़ी है. खासकर, इनमें से ज्यादातर के पद न रहने पर विद्रोही तेवर दिखाने से. इन सूत्रों का आरोप था कि इनमें से अधिकांश नेता उन्हें सौंपी गई जिम्मदारी पर खरे नहीं उतरे और पार्टी में गुटबाजी को प्रोत्साहित करते रहे.

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राजस्थान की राजनीति
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Published : Jul 26, 2020, 2:22 PM IST

जयपुर : राजस्थान में चल रहे सियासी घमासान के बीच अब विपक्षी दल भाजपा का अहम रोल हो गया है. प्रदेश के BJP नेता उसे बखूबी निभा भी रहे हैं लेकिन मौजूदा परिस्थितियों में BJP से जुड़े कई कद्दावर नेताओं की चुप्पी भी इन दिनों चर्चा का विषय बनी हुई है. ये वो नेता हैं, जिनकी किसी समय पार्टी में तूती बोला करती थी लेकिन अब इस पूरे प्रकरण से ये नेता लगभग गायब हैं. पहले मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया और अब राजस्थान में सचिन पायलट की बगावत के बाद कांग्रेस में पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की कार्यशैली और उनके नजदीकी समझे जाने वाले नेताओं पर सबका ध्यान केंद्रित है. राजस्थान के घटनाक्रम के बाद पार्टी में आशंका का माहौल है और लगभग सभी इस सवाल से जूझ रहे हैं कि 'अगला कौन?'

कांग्रेस कार्यसमिति के एक सदस्य ने नाम नहीं दिये जाने का आग्रह करते हुए कहा, 'जाहिर है हम सोचने पर मजबूर हुए हैं कि जब ऐसे नेता, जिन्हें कम समय में काफी जिम्मेदारी दी गई और जिनकी प्रतिभा का उपयोग पार्टी अपनी भविष्य की रणनीति के लिए करने को लेकर आश्वस्त थी, वे भी अगर संतुष्ट नहीं हैं तो कहीं न कहीं गड़बड़ तो है.'

सचिन पायलट व ज्योतिरादित्य सिंधिया बगावत का झंडा उठाने वाले उन नेताओं में नए हैं जिन्हें पार्टी में 'राहुल बिग्रेड' के सदस्य के तौर पर जाना जाता रहा है. इस 'ब्रिगेड' के अन्य नेताओं में पार्टी की हरियाणा इकाई के पूर्व अध्यक्ष अशोक तंवर, मध्य प्रदेश इकाई के पूर्व अध्यक्ष अरुण यादव, मुंबई इकाई के पूर्व प्रमुख मिलिंद देवड़ा एवं संजय निरुपम, पंजाब प्रदेश कांग्रेस कमेटी के पूर्व अध्यक्ष प्रताप सिंह बाजवा, झारखंड इकाई के पूर्व अध्यक्ष अजय कुमार और कर्नाटक इकाई के पूर्व अध्यक्ष दिनेश गुंडुराव जैसे नाम शामिल हैं.

इनके अलावा एक समय उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश के प्रभारी महासचिव रहे क्रमश: मधुसूधन मिस्त्री, मोहन प्रकाश, दीपक बाबरिया, उत्तर प्रदेश इकाई के पूर्व अध्यक्ष राजबब्बर और फिलहाल संगठन महासचिव के सी वेणुगोपाल तथा राजस्थान के प्रभारी महासचिव अविनाश पांडे भी इस श्रेणी में आते हैं.

कांग्रेस के एक अन्य वरिष्ठ नेता ने कहा, 'जो नेता कांग्रेस में बहुत कुछ पाने के बाद आज पार्टी के खिलाफ जा रहे हैं वे अपने साथ धोखा कर रहे हैं. सभी को यह समझना चाहिए कि इस वक्त पार्टी से मांगने का नहीं, बल्कि पार्टी को देने का समय है.'

दूसरी तरफ, पार्टी से अलग हो चुके हरियाणा प्रदेश कांग्रेस कमेटी के पूर्व अध्यक्ष अशोक तंवर का कहना है कि इस बात में कोई दम नहीं है कि राहुल गांधी ने जिन नेताओं को जिम्मेदारी दी वो उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे. उन्होंने कहा, 'एक युवा नेता पायलट की बदौलत ही राजस्थान विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 21 से 100 सीटों के करीब पहुंची. हरियाणा में युवा टीम की मेहनत का नतीजा था कि 30 से ज्यादा सीटें आईं. अगर युवा नेताओं को पूरा मौका मिलता तो पार्टी की स्थिति कुछ और होती.'

वैसे, राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि कांग्रेस में 'पीढ़ी का टकराव' भी एक प्रमुख कारण था कि राहुल की पसंद के नेता पार्टी में अपने पैर जमा नहीं सके और इनमें से कुछ बगावत कर बैठे.

'सीएसडीएस' के निदेशक संजय कुमार ने कहा, 'पिछले कुछ वर्षों में कांग्रेस के भीतर पीढ़ी का टकराव बड़े पैमाने पर रहा है. पुराने नेता अपनी जगह बनाए रखने के प्रयास में हैं तो युवा नेता और खासतौर पर राहुल के करीबी माने जाने वाले नेता बदलाव पर जोर देते हैं और मौजूदा व्यवस्था में खुद को उपेक्षित महसूस करते हैं. यही कुछ जगहों पर बगावत की वजह बन रहा है.'

उधर, कांग्रेस महासचिव और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री 72 वर्षीय हरीश रावत यह मानने से इनकार करते हैं कि पार्टी के भीतर पीढ़ी का कोई टकराव है.

उन्होंने कहा, 'जो स्थिति दिख रही है वो भाजपा द्वारा लोकतंत्र पर हमले के कारण है. दुख की बात है कि महत्वाकांक्षा के कारण हमारे यहां के कुछ लोग उनके जाल में फंस गए. बेहतर होता कि अगर ऐसे नेता कोई न्याय चाहते थे तो वो पार्टी के भीतर ही इसका प्रयास करते.'

यह नेता मौजूदा चहल कदमी से लगभग हैं दूर...

वसुंधरा राजे

पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा की मौजूदा राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वसुंधरा राजे प्रदेश में चल रही सियासी घटनाक्रम से पूरी तरह अब तक दूर ही नजर आई. वो धौलपुर में अपने महल में फिलहाल सावन महीने की पूजा पाठ में व्यस्त हैं. ट्वीट के जरिए भी एक या दो बार उन्होंने मौजूदा परिस्थितियों को लेकर अपना वक्तव्य रखा है. वहीं राजभवन में कांग्रेसी विधायक को के धरने पर इनकी चुप्पी चर्चा में है.

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पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे (फाइल फोटो)

ओम प्रकाश माथुर

भाजपा के पूर्व प्रदेश और मौजूदा राष्ट्रीय उपाध्यक्ष व सांसद ओम प्रकाश माथुर प्रदेश की हर सियासी नब्ज को अच्छी तरह जानते हैं लेकिन राजस्थान में चल रहे सियासी घमासान में वे भी लगभग नदारद रहें. हालांकि, जयपुर में वे इस घटनाक्रम के दौरान 2 दिन रहे और एक दिन BJP मुख्यालय पहुंचकर प्रदेश नेताओं से चर्चा भी की. उन्होंने मीडिया में कुछ बयान भी दिए लेकिन मौजूदा हालातों को लेकर फिलहाल उनकी भूमिका गौण ही है. वहीं प्रदेश संगठन में चल रहे कामकाज या रणनीति में उनकी दखलअंदाजी और पूछ परख भी नहीं के बराबर रह गई है. हालांकि, इस पूरे घटनाक्रम पर उनके एक या दो ट्वीट जरूर आए लेकिन राजभवन वाले घटनाक्रम पर वो ट्वीटर पर पूरी तरह मौन रहे.

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भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ओम प्रकाश माथुर (फाइल फोटो)

यह भी पढ़ें. LIVE : पायलट गुट के नाराज विधायकों के घर जाएंगे NSUI कार्यकर्ता

राज्यवर्धन सिंह राठौड़

जयपुर ग्रामीण से मौजूदा सांसद और मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में मंत्री रहे राज्यवर्धन सिंह राठौड़ प्रदेश के मौजूदा सियासी घटनाक्रम में महज शनिवार को प्रदेश नेताओं के साथ राजभवन में नजर आए. इस युवा और तेज तरार नेता की अपने क्षेत्र में पकड़ किसी से छुपी हुई नहीं है. केंद्र में बतौर मंत्री रहते हुए इनके कामकाज की भी सराहना हुई थी लेकिन प्रदेश में चल रहे इस पूरे एपिसोड में राज्यवर्धन सिंह राठौड़ संगठनात्मक दृष्टि से गायब हैं. हालांकि, ट्विटर के जरिए वे मौजूदा घटनाक्रम को लेकर कुछ ट्वीट कर चुके हैं लेकिन इस सिलसिले में होने वाली संगठनात्मक बैठकों में हुए शामिल होते नहीं दिखे.

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जयपुर से सांसद राज्यवर्धन सिंह राठौड़ (फाइल फोटो)

अशोक परनामी

पिछली वसुंधरा राजे सरकार के कार्यकाल में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष की कमान संभालने वाले अशोक परनामी भी प्रदेश में चल रहे राजनीतिक उठापटक को घटनाक्रम से फिलहाल दूर ही हैं. महेश शनिवार को प्रदेश नेताओं के साथ राजभवन में ज्ञापन देने जरूर गए लेकिन इससे पहले इस मसले पर होने वाली तमाम संगठनात्मक बैठक व अन्य मंत्रणाओं से दूर ही दिखे. मौजूदा घटनाक्रम को लेकर उनकी प्रतिक्रियाएं भी देखने को नहीं मिली. जबकि बतौर प्रदेश अध्यक्ष पार्टी में उनका लंबा कामकाज रहा है और संगठनात्मक दृष्टि से पूरे प्रदेश में निचले स्तर तक उनकी कार्यकर्ताओं में उनकी अच्छी पकड़ रही है.

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भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अशोक परनामी (फाइल फोटो)

घमासान जयपुर में लेकिन BJP के ये विधायक मौन...

प्रदेश की राजधानी जयपुर सियासी घमासान का प्रमुख केंद्र बना हुआ है लेकिन जयपुर से ही आने वाले भाजपा के विधायक इस पूरे घटनाक्रम को लेकर फिलहाल चुप हैं. फिर चाहे वो वसुंधरा राजे के नजदीकी माने जाने वाले विधायक कालीचरण सराफ हो या अशोक लाहोटी. अन्य विधायकों में नरपत सिंह राजवी और निर्मल कुमावत भी इस घमासान में किसी भी तरह का बयान जारी करने से बचते नजर आए.

यह भी पढ़ें. पायलट कैंप में शामिल विधायक वेद सोलंकी का खाचरियावास पर निशाना, कहा- मैं आपके जैसा नहीं हूं जो इधर से उधर हो जाए

इस पूरे सियासी घटनाक्रम में शनिवार को जब भाजपा नेता राजभवन गए, तब इन विधायकों को इस प्रतिनिधिमंडल में शामिल किया गया. वहीं कालीचरण सराफ प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से पूर्व चिकित्सा मंत्री होने के नाते को कोरोना के बीच सरकार की भूमिका पर सवाल उठाते रहे हैं लेकिन प्रदेश भाजपा मुख्यालय में इन विधायकों की चहलकदमी इन दिनों नजर ही नहीं आई.

इन प्रदेश नेताओं के इर्द-गिर्द घूमती रही पूरी सियासत...

प्रदेश में चल रहे मौजूदा सियासी घटनाक्रम में विपक्ष की भूमिका का पूरा दारोमदार प्रमुख रूप से प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया, नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया, उप नेता राजेंद्र राठौड़, केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत और प्रदेश संगठन महामंत्री चंद्रशेखर और आरएलपी संयोजक हनुमान बेनीवाल के इर्द-गिर्द ही घूमता रहा. या फिर कहे मौजूदा घटनाक्रम को लेकर संगठनात्मक स्तर पर जो भी चर्चा व मंत्रणा या बैठक के हुई उनमें ये नेता ही नजर आए और प्रदेश सरकार व कांग्रेस के खिलाफ मीडिया में भी इनका रुख हमलावर रहा.

यह भी पढ़ें. बीजेपी नेताओं ने राज्यपाल से की मुलाकात, कहा- कांग्रेस अलोकतांत्रिक तरीके से बना रही दबाव

यही कारण है कि अब चर्चा इस बात की भी हो रही है की प्रदेश भाजपा से जुड़े अन्य दिग्गज नेताओं की भूमिका एकाएक कम कैसे हो गई. चर्चा इस बात की भी है कि नए प्रदेश नेतृत्व में जिन नेताओं को इस पूरे हालातों में आगे किया जा रहा है. वो ही सक्रिय नजर आ रहे हैं. जबकि अन्य दिग्गज नेता या तो वेट एंड वॉच की स्थिति में हैं या अपने स्तर पर मौजूदा घटनाक्रम ऊपर हल्का-फुल्का प्रहार सोशल मीडिया के जरिए कर देते हैं.

(पीटीआई भाषा इनपुट के साथ)

जयपुर : राजस्थान में चल रहे सियासी घमासान के बीच अब विपक्षी दल भाजपा का अहम रोल हो गया है. प्रदेश के BJP नेता उसे बखूबी निभा भी रहे हैं लेकिन मौजूदा परिस्थितियों में BJP से जुड़े कई कद्दावर नेताओं की चुप्पी भी इन दिनों चर्चा का विषय बनी हुई है. ये वो नेता हैं, जिनकी किसी समय पार्टी में तूती बोला करती थी लेकिन अब इस पूरे प्रकरण से ये नेता लगभग गायब हैं. पहले मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया और अब राजस्थान में सचिन पायलट की बगावत के बाद कांग्रेस में पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की कार्यशैली और उनके नजदीकी समझे जाने वाले नेताओं पर सबका ध्यान केंद्रित है. राजस्थान के घटनाक्रम के बाद पार्टी में आशंका का माहौल है और लगभग सभी इस सवाल से जूझ रहे हैं कि 'अगला कौन?'

कांग्रेस कार्यसमिति के एक सदस्य ने नाम नहीं दिये जाने का आग्रह करते हुए कहा, 'जाहिर है हम सोचने पर मजबूर हुए हैं कि जब ऐसे नेता, जिन्हें कम समय में काफी जिम्मेदारी दी गई और जिनकी प्रतिभा का उपयोग पार्टी अपनी भविष्य की रणनीति के लिए करने को लेकर आश्वस्त थी, वे भी अगर संतुष्ट नहीं हैं तो कहीं न कहीं गड़बड़ तो है.'

सचिन पायलट व ज्योतिरादित्य सिंधिया बगावत का झंडा उठाने वाले उन नेताओं में नए हैं जिन्हें पार्टी में 'राहुल बिग्रेड' के सदस्य के तौर पर जाना जाता रहा है. इस 'ब्रिगेड' के अन्य नेताओं में पार्टी की हरियाणा इकाई के पूर्व अध्यक्ष अशोक तंवर, मध्य प्रदेश इकाई के पूर्व अध्यक्ष अरुण यादव, मुंबई इकाई के पूर्व प्रमुख मिलिंद देवड़ा एवं संजय निरुपम, पंजाब प्रदेश कांग्रेस कमेटी के पूर्व अध्यक्ष प्रताप सिंह बाजवा, झारखंड इकाई के पूर्व अध्यक्ष अजय कुमार और कर्नाटक इकाई के पूर्व अध्यक्ष दिनेश गुंडुराव जैसे नाम शामिल हैं.

इनके अलावा एक समय उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश के प्रभारी महासचिव रहे क्रमश: मधुसूधन मिस्त्री, मोहन प्रकाश, दीपक बाबरिया, उत्तर प्रदेश इकाई के पूर्व अध्यक्ष राजबब्बर और फिलहाल संगठन महासचिव के सी वेणुगोपाल तथा राजस्थान के प्रभारी महासचिव अविनाश पांडे भी इस श्रेणी में आते हैं.

कांग्रेस के एक अन्य वरिष्ठ नेता ने कहा, 'जो नेता कांग्रेस में बहुत कुछ पाने के बाद आज पार्टी के खिलाफ जा रहे हैं वे अपने साथ धोखा कर रहे हैं. सभी को यह समझना चाहिए कि इस वक्त पार्टी से मांगने का नहीं, बल्कि पार्टी को देने का समय है.'

दूसरी तरफ, पार्टी से अलग हो चुके हरियाणा प्रदेश कांग्रेस कमेटी के पूर्व अध्यक्ष अशोक तंवर का कहना है कि इस बात में कोई दम नहीं है कि राहुल गांधी ने जिन नेताओं को जिम्मेदारी दी वो उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे. उन्होंने कहा, 'एक युवा नेता पायलट की बदौलत ही राजस्थान विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 21 से 100 सीटों के करीब पहुंची. हरियाणा में युवा टीम की मेहनत का नतीजा था कि 30 से ज्यादा सीटें आईं. अगर युवा नेताओं को पूरा मौका मिलता तो पार्टी की स्थिति कुछ और होती.'

वैसे, राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि कांग्रेस में 'पीढ़ी का टकराव' भी एक प्रमुख कारण था कि राहुल की पसंद के नेता पार्टी में अपने पैर जमा नहीं सके और इनमें से कुछ बगावत कर बैठे.

'सीएसडीएस' के निदेशक संजय कुमार ने कहा, 'पिछले कुछ वर्षों में कांग्रेस के भीतर पीढ़ी का टकराव बड़े पैमाने पर रहा है. पुराने नेता अपनी जगह बनाए रखने के प्रयास में हैं तो युवा नेता और खासतौर पर राहुल के करीबी माने जाने वाले नेता बदलाव पर जोर देते हैं और मौजूदा व्यवस्था में खुद को उपेक्षित महसूस करते हैं. यही कुछ जगहों पर बगावत की वजह बन रहा है.'

उधर, कांग्रेस महासचिव और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री 72 वर्षीय हरीश रावत यह मानने से इनकार करते हैं कि पार्टी के भीतर पीढ़ी का कोई टकराव है.

उन्होंने कहा, 'जो स्थिति दिख रही है वो भाजपा द्वारा लोकतंत्र पर हमले के कारण है. दुख की बात है कि महत्वाकांक्षा के कारण हमारे यहां के कुछ लोग उनके जाल में फंस गए. बेहतर होता कि अगर ऐसे नेता कोई न्याय चाहते थे तो वो पार्टी के भीतर ही इसका प्रयास करते.'

यह नेता मौजूदा चहल कदमी से लगभग हैं दूर...

वसुंधरा राजे

पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा की मौजूदा राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वसुंधरा राजे प्रदेश में चल रही सियासी घटनाक्रम से पूरी तरह अब तक दूर ही नजर आई. वो धौलपुर में अपने महल में फिलहाल सावन महीने की पूजा पाठ में व्यस्त हैं. ट्वीट के जरिए भी एक या दो बार उन्होंने मौजूदा परिस्थितियों को लेकर अपना वक्तव्य रखा है. वहीं राजभवन में कांग्रेसी विधायक को के धरने पर इनकी चुप्पी चर्चा में है.

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पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे (फाइल फोटो)

ओम प्रकाश माथुर

भाजपा के पूर्व प्रदेश और मौजूदा राष्ट्रीय उपाध्यक्ष व सांसद ओम प्रकाश माथुर प्रदेश की हर सियासी नब्ज को अच्छी तरह जानते हैं लेकिन राजस्थान में चल रहे सियासी घमासान में वे भी लगभग नदारद रहें. हालांकि, जयपुर में वे इस घटनाक्रम के दौरान 2 दिन रहे और एक दिन BJP मुख्यालय पहुंचकर प्रदेश नेताओं से चर्चा भी की. उन्होंने मीडिया में कुछ बयान भी दिए लेकिन मौजूदा हालातों को लेकर फिलहाल उनकी भूमिका गौण ही है. वहीं प्रदेश संगठन में चल रहे कामकाज या रणनीति में उनकी दखलअंदाजी और पूछ परख भी नहीं के बराबर रह गई है. हालांकि, इस पूरे घटनाक्रम पर उनके एक या दो ट्वीट जरूर आए लेकिन राजभवन वाले घटनाक्रम पर वो ट्वीटर पर पूरी तरह मौन रहे.

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भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ओम प्रकाश माथुर (फाइल फोटो)

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राज्यवर्धन सिंह राठौड़

जयपुर ग्रामीण से मौजूदा सांसद और मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में मंत्री रहे राज्यवर्धन सिंह राठौड़ प्रदेश के मौजूदा सियासी घटनाक्रम में महज शनिवार को प्रदेश नेताओं के साथ राजभवन में नजर आए. इस युवा और तेज तरार नेता की अपने क्षेत्र में पकड़ किसी से छुपी हुई नहीं है. केंद्र में बतौर मंत्री रहते हुए इनके कामकाज की भी सराहना हुई थी लेकिन प्रदेश में चल रहे इस पूरे एपिसोड में राज्यवर्धन सिंह राठौड़ संगठनात्मक दृष्टि से गायब हैं. हालांकि, ट्विटर के जरिए वे मौजूदा घटनाक्रम को लेकर कुछ ट्वीट कर चुके हैं लेकिन इस सिलसिले में होने वाली संगठनात्मक बैठकों में हुए शामिल होते नहीं दिखे.

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जयपुर से सांसद राज्यवर्धन सिंह राठौड़ (फाइल फोटो)

अशोक परनामी

पिछली वसुंधरा राजे सरकार के कार्यकाल में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष की कमान संभालने वाले अशोक परनामी भी प्रदेश में चल रहे राजनीतिक उठापटक को घटनाक्रम से फिलहाल दूर ही हैं. महेश शनिवार को प्रदेश नेताओं के साथ राजभवन में ज्ञापन देने जरूर गए लेकिन इससे पहले इस मसले पर होने वाली तमाम संगठनात्मक बैठक व अन्य मंत्रणाओं से दूर ही दिखे. मौजूदा घटनाक्रम को लेकर उनकी प्रतिक्रियाएं भी देखने को नहीं मिली. जबकि बतौर प्रदेश अध्यक्ष पार्टी में उनका लंबा कामकाज रहा है और संगठनात्मक दृष्टि से पूरे प्रदेश में निचले स्तर तक उनकी कार्यकर्ताओं में उनकी अच्छी पकड़ रही है.

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भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अशोक परनामी (फाइल फोटो)

घमासान जयपुर में लेकिन BJP के ये विधायक मौन...

प्रदेश की राजधानी जयपुर सियासी घमासान का प्रमुख केंद्र बना हुआ है लेकिन जयपुर से ही आने वाले भाजपा के विधायक इस पूरे घटनाक्रम को लेकर फिलहाल चुप हैं. फिर चाहे वो वसुंधरा राजे के नजदीकी माने जाने वाले विधायक कालीचरण सराफ हो या अशोक लाहोटी. अन्य विधायकों में नरपत सिंह राजवी और निर्मल कुमावत भी इस घमासान में किसी भी तरह का बयान जारी करने से बचते नजर आए.

यह भी पढ़ें. पायलट कैंप में शामिल विधायक वेद सोलंकी का खाचरियावास पर निशाना, कहा- मैं आपके जैसा नहीं हूं जो इधर से उधर हो जाए

इस पूरे सियासी घटनाक्रम में शनिवार को जब भाजपा नेता राजभवन गए, तब इन विधायकों को इस प्रतिनिधिमंडल में शामिल किया गया. वहीं कालीचरण सराफ प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से पूर्व चिकित्सा मंत्री होने के नाते को कोरोना के बीच सरकार की भूमिका पर सवाल उठाते रहे हैं लेकिन प्रदेश भाजपा मुख्यालय में इन विधायकों की चहलकदमी इन दिनों नजर ही नहीं आई.

इन प्रदेश नेताओं के इर्द-गिर्द घूमती रही पूरी सियासत...

प्रदेश में चल रहे मौजूदा सियासी घटनाक्रम में विपक्ष की भूमिका का पूरा दारोमदार प्रमुख रूप से प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया, नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया, उप नेता राजेंद्र राठौड़, केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत और प्रदेश संगठन महामंत्री चंद्रशेखर और आरएलपी संयोजक हनुमान बेनीवाल के इर्द-गिर्द ही घूमता रहा. या फिर कहे मौजूदा घटनाक्रम को लेकर संगठनात्मक स्तर पर जो भी चर्चा व मंत्रणा या बैठक के हुई उनमें ये नेता ही नजर आए और प्रदेश सरकार व कांग्रेस के खिलाफ मीडिया में भी इनका रुख हमलावर रहा.

यह भी पढ़ें. बीजेपी नेताओं ने राज्यपाल से की मुलाकात, कहा- कांग्रेस अलोकतांत्रिक तरीके से बना रही दबाव

यही कारण है कि अब चर्चा इस बात की भी हो रही है की प्रदेश भाजपा से जुड़े अन्य दिग्गज नेताओं की भूमिका एकाएक कम कैसे हो गई. चर्चा इस बात की भी है कि नए प्रदेश नेतृत्व में जिन नेताओं को इस पूरे हालातों में आगे किया जा रहा है. वो ही सक्रिय नजर आ रहे हैं. जबकि अन्य दिग्गज नेता या तो वेट एंड वॉच की स्थिति में हैं या अपने स्तर पर मौजूदा घटनाक्रम ऊपर हल्का-फुल्का प्रहार सोशल मीडिया के जरिए कर देते हैं.

(पीटीआई भाषा इनपुट के साथ)

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