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स्किन टू स्किन टच मामले में सुप्रीम कोर्ट की बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले पर रोक - bombay hc verdict on sexual assault under pocso act

देश की सर्वोच्च अदालत ने बॉम्बे हाई कोर्ट के उस फैसले पर रोक लगा दी है जिसमें उसने नाबालिग लड़की के वक्षस्थल को बिना स्किन टू स्किन टच के छूने के अपराध को पॉक्सो एक्ट के दायरे से बाहर बताया था.

sexual assault under pocso act
सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक
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Published : Jan 27, 2021, 1:51 PM IST

Updated : Jan 27, 2021, 3:31 PM IST

नई दिल्ली : देश की सर्वोच्च अदालत ने बॉम्बे हाई कोर्ट के उस फैसले पर रोक लगा दी है जिसमें उसने नाबालिग लड़की के वक्षस्थल को बिना स्किन टू स्किन टच के छूने के अपराध को पॉक्सो एक्ट के दायरे से बाहर बताया था.

बता दें, यूथ बार असोसिएशन में बॉम्बे हाई कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी. हाई कोर्ट के इस फैसले पर विवाद छिड़ गया था. नागरिक संगठनों एवं कई जानी-मानी हस्तियों ने इसे हास्यास्पद बताकर फैसले की आलोचना की थी.

बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ की न्यायमूर्ति पुष्पा गनेडीवाला ने 19 जनवरी को पारित एक आदेश में कहा था कि यौन हमले का कृत्य माने जाने के लिए 'यौन मंशा से त्वचा से त्वचा का संपर्क होना जरूरी है.

उन्होंने अपने फैसले में कहा था कि महज छूना भर यौन हमले की परिभाषा में नहीं आता है.

न्यायमूर्ति गनेडीवाला ने एक सत्र अदालत के फैसले में संशोधन किया, जिसने 12 वर्षीय लड़की का यौन उत्पीड़न करने के लिए 39 वर्षीय व्यक्ति को तीन वर्ष कारावास की सजा सुनाई थी.

अभियोजन पक्ष और नाबालिग पीड़िता की अदालत में गवाही के मुताबिक, दिसंबर 2016 में आरोपी सतीश, नागपुर में लड़की को खाने का कोई सामान देने के बहाने अपने घर ले गया.

उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में यह दर्ज किया कि अपने घर ले जाने पर सतीश ने उसके वक्ष को पकड़ा और उसे निर्वस्त्र करने की कोशिश की.

यह भी पढ़ें- जिससे भी मांगी मदद, उसी ने किया दुष्कर्म, सात गिरफ्तार

उच्च न्यायालय ने कहा था कि चूंकि आरोपी ने लड़की को निर्वस्त्र किए बिना उसके सीने को छूने की कोशिश की, इसलिए इस अपराध को यौन हमला नहीं कहा जा सकता है और यह आईपीसी की धारा 354 के तहत महिला के शील को भंग करने का अपराध है.

धारा 354 के तहत जहां न्यूनतम सजा एक वर्ष की कैद है, वहीं पॉक्सो कानून के तहत यौन हमले की न्यूनतम सजा तीन वर्ष कारावास है.

नई दिल्ली : देश की सर्वोच्च अदालत ने बॉम्बे हाई कोर्ट के उस फैसले पर रोक लगा दी है जिसमें उसने नाबालिग लड़की के वक्षस्थल को बिना स्किन टू स्किन टच के छूने के अपराध को पॉक्सो एक्ट के दायरे से बाहर बताया था.

बता दें, यूथ बार असोसिएशन में बॉम्बे हाई कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी. हाई कोर्ट के इस फैसले पर विवाद छिड़ गया था. नागरिक संगठनों एवं कई जानी-मानी हस्तियों ने इसे हास्यास्पद बताकर फैसले की आलोचना की थी.

बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ की न्यायमूर्ति पुष्पा गनेडीवाला ने 19 जनवरी को पारित एक आदेश में कहा था कि यौन हमले का कृत्य माने जाने के लिए 'यौन मंशा से त्वचा से त्वचा का संपर्क होना जरूरी है.

उन्होंने अपने फैसले में कहा था कि महज छूना भर यौन हमले की परिभाषा में नहीं आता है.

न्यायमूर्ति गनेडीवाला ने एक सत्र अदालत के फैसले में संशोधन किया, जिसने 12 वर्षीय लड़की का यौन उत्पीड़न करने के लिए 39 वर्षीय व्यक्ति को तीन वर्ष कारावास की सजा सुनाई थी.

अभियोजन पक्ष और नाबालिग पीड़िता की अदालत में गवाही के मुताबिक, दिसंबर 2016 में आरोपी सतीश, नागपुर में लड़की को खाने का कोई सामान देने के बहाने अपने घर ले गया.

उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में यह दर्ज किया कि अपने घर ले जाने पर सतीश ने उसके वक्ष को पकड़ा और उसे निर्वस्त्र करने की कोशिश की.

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उच्च न्यायालय ने कहा था कि चूंकि आरोपी ने लड़की को निर्वस्त्र किए बिना उसके सीने को छूने की कोशिश की, इसलिए इस अपराध को यौन हमला नहीं कहा जा सकता है और यह आईपीसी की धारा 354 के तहत महिला के शील को भंग करने का अपराध है.

धारा 354 के तहत जहां न्यूनतम सजा एक वर्ष की कैद है, वहीं पॉक्सो कानून के तहत यौन हमले की न्यूनतम सजा तीन वर्ष कारावास है.

Last Updated : Jan 27, 2021, 3:31 PM IST
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