ETV Bharat / bharat

कोरोना के बढ़ते प्रकोप के बीच स्कूलों को खोलना उचित नहीं : विशेषज्ञ

पूरी दुनिया कोरोना वायरस से प्रभावित है. इस महामारी ने शैक्षणिक कार्यों को भी प्रभावित किया है. शिक्षा मंत्रालय 15 अगस्त के बाद स्कूलों को खोलने पर विचार कर रहा है. इसको लेकर राइट टू एजुकेशन फोरम नाम की एक संस्था ने चर्चा का आयोजन किया था. चर्चा में विशेषज्ञों ने राय दी कि कोरोना के बढ़ते प्रकोप के बीच स्कूलों को नहीं खोलना चाहिए.

author img

By

Published : Jun 11, 2020, 3:19 AM IST

RTE Forum on reopening schools
प्रतीकात्मक फोटो

नई दिल्ली: देशभर में शिक्षा संबंधित विषयों पर काम करने वाली संस्था राइट टू एजुकेशन फोरम ने एक चर्चा का आयोजन किया था. चर्चा में विशेषज्ञों ने राय दी है कि कोरोना के बढ़ते प्रकोप के बीच स्कूलों को नहीं खोलना चाहिए.

केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने मंगलवार को विशेषज्ञों और शिक्षाविदों से इस विषय पर राय मांगी थी. कई लोगों ने सुझाया था कि इस वर्ष के पाठ्यक्रम को कम कर दिया जाए और सामान्य रूप से स्कूलों में कक्षाओं की अवधी को भी कम कर दिया जाए.

सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार शिक्षा मंत्रालय 15 अगस्त के बाद स्कूलों को खोलने पर विचार कर रहा है. इसके लिए CBSE के द्वारा एक टास्क फोर्स का भी गठन किया गया है, जिसके द्वारा जारी दिशानिर्देशों के अनुसार स्कूलों को वापस खोला जा सकेगा.

आरटीई फोरम द्वारा बुधवार को आयोजित वेबिनार में विद्यालयों को फिर से खोलने, डिजिटल शिक्षा और शिक्षा शुल्क जैसे विषयों पर चर्चा की गई. इसमें विशेषज्ञों की राय के मुताबिक कोरोना के बढ़ते प्रकोप के बीच स्कूलों को फिर से खोलने पर लोग असहमत दिखे.

वेबिनार को संबोधित करते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक अग्रवाल ने कहा कि विद्यालयों को इस वर्ष नहीं खोला जाना चाहिए और सभी छात्रों को आगे की कक्षा में स्वतः प्रोन्नति दे देनी चाहिए. सभी अभिभावकों की यही राय है कि पहले बच्चों की सुरक्षा हो और शिक्षा की बात उसके बाद हो.

निजी विद्यालयों के संचालक विद्यालय खोलने का दबाव बना रहे हैं लेकिन 80 फीसदी अभिभावक वर्तमान में विद्यालयों के खोले जाने पर सहमत नहीं हैं. बतौर अशोक अग्रवाल पाठ्यक्रम में बदलाव करके डिजिटल शिक्षा देने के लिए कुछ लोगों द्वारा सुझाव दिया जा रहा है जो कि शिक्षा के व्यवसायीकरण का परिष्कृत रूप है.

शिक्षा को एक नया बाजार बनाने की दिशा में प्रयास हो रहे हैं, जिसके परिणाम बहुसंख्यक आबादी को भुगतने होंगे. ऑनलाइन शिक्षा सिर्फ लोगों को एक छलावे में रखने और मूल समस्या से ध्यान हटाने का प्रयास है और यह नियमित स्कूली शिक्षा का विकल्प नहीं हो सकता.

आरटीई फोरम के राष्ट्रीय संयोजक ने कहा कि डिजिटल शिक्षा की वजह से 70% से अधिक बच्चे शिक्षा से वंचित रह जाएंगे. क्योंकि न तो उनके पास डिजिटल व्यवस्था है और न उनके अभिभावकों के पास इसके लिए पर्याप्त संसाधन हैं. सरकार को वंचित समाज के बारे में सोचना चाहिए.

आरटीई फोरम पश्चिम बंगाल इकाई के संयोजक प्रवीण बसु ने कहा कि अभी तक सात लाख प्रवासी मजदूर राज्य में वापस आ चुके हैं और लगभग पांच लाख और लोगों की वापसी की संभावना है. कोरोना के साथ-साथ राज्य तूफान का कहर भी झेल रहा है.

14000 विद्यालयों को क्वॉरंटाइन सेंटर में तब्दील किया गया है. 30 जून तक सभी शिक्षण संस्थानों को बंद रखा गया है. ऐसे में बच्चों एवं उनके अभिभावकों के जेहन में भविष्य को लेकर भी असमंजस है. उन्होंने कहा कि डिजिटल लर्निंग न केवल संसाधन रहित एक बड़ी आबादी को शिक्षा की मुख्य धारा से दूर हाशीये पर डाल देगा, बल्कि स्क्रीन पर अधिक वक्त गुजारना बच्चों के शारीरिक व मानसिक विकास और सामान्य सामाजिक गतिविधियों के साथ उनके जुड़ाव को भी प्रभावित करेगा.

आरटीई फोरम ओडिशा के संयोजक अनिल प्रधान ने कहा कि ओडिशा में मुख्यमंत्री को निजी विद्यालयों द्वारा फीस वसूली पर रोक लगाने की अपील करनी पड़ी. अभिभावक संघ ने इस संदर्भ में वहां पीआईएल दाखिल कर सरकार पर इसके लिए दबाव बनाया, जिससे यह मुमकिन हो सका. उन्होंने कहा कि ऑनलाइन शिक्षा तो तमाम आदिवासी इलाकों के बच्चों को शिक्षा से वंचित कर देगी.

वहां पर शिक्षकों ने बच्चों को नए सृजनशील तरीकों से ऑनलाइन पढ़ाने और शैक्षिक गतिविधियों से जुड़े रहने के प्रयोग किए हैं जो सराहनीय है. सभी विशेषज्ञों ने एकमत से कहा कि सार्वजनिक शिक्षा और स्वास्थ्य को मजबूत करने के लिए सरकार को उन क्षेत्रों में बजट बढ़ाने की जरूरत है.

पढ़ें-ऑनलाइन प्लेटफॉर्म नियमित स्कूली शिक्षा का विकल्प कभी नहीं बन सकते

नई दिल्ली: देशभर में शिक्षा संबंधित विषयों पर काम करने वाली संस्था राइट टू एजुकेशन फोरम ने एक चर्चा का आयोजन किया था. चर्चा में विशेषज्ञों ने राय दी है कि कोरोना के बढ़ते प्रकोप के बीच स्कूलों को नहीं खोलना चाहिए.

केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने मंगलवार को विशेषज्ञों और शिक्षाविदों से इस विषय पर राय मांगी थी. कई लोगों ने सुझाया था कि इस वर्ष के पाठ्यक्रम को कम कर दिया जाए और सामान्य रूप से स्कूलों में कक्षाओं की अवधी को भी कम कर दिया जाए.

सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार शिक्षा मंत्रालय 15 अगस्त के बाद स्कूलों को खोलने पर विचार कर रहा है. इसके लिए CBSE के द्वारा एक टास्क फोर्स का भी गठन किया गया है, जिसके द्वारा जारी दिशानिर्देशों के अनुसार स्कूलों को वापस खोला जा सकेगा.

आरटीई फोरम द्वारा बुधवार को आयोजित वेबिनार में विद्यालयों को फिर से खोलने, डिजिटल शिक्षा और शिक्षा शुल्क जैसे विषयों पर चर्चा की गई. इसमें विशेषज्ञों की राय के मुताबिक कोरोना के बढ़ते प्रकोप के बीच स्कूलों को फिर से खोलने पर लोग असहमत दिखे.

वेबिनार को संबोधित करते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक अग्रवाल ने कहा कि विद्यालयों को इस वर्ष नहीं खोला जाना चाहिए और सभी छात्रों को आगे की कक्षा में स्वतः प्रोन्नति दे देनी चाहिए. सभी अभिभावकों की यही राय है कि पहले बच्चों की सुरक्षा हो और शिक्षा की बात उसके बाद हो.

निजी विद्यालयों के संचालक विद्यालय खोलने का दबाव बना रहे हैं लेकिन 80 फीसदी अभिभावक वर्तमान में विद्यालयों के खोले जाने पर सहमत नहीं हैं. बतौर अशोक अग्रवाल पाठ्यक्रम में बदलाव करके डिजिटल शिक्षा देने के लिए कुछ लोगों द्वारा सुझाव दिया जा रहा है जो कि शिक्षा के व्यवसायीकरण का परिष्कृत रूप है.

शिक्षा को एक नया बाजार बनाने की दिशा में प्रयास हो रहे हैं, जिसके परिणाम बहुसंख्यक आबादी को भुगतने होंगे. ऑनलाइन शिक्षा सिर्फ लोगों को एक छलावे में रखने और मूल समस्या से ध्यान हटाने का प्रयास है और यह नियमित स्कूली शिक्षा का विकल्प नहीं हो सकता.

आरटीई फोरम के राष्ट्रीय संयोजक ने कहा कि डिजिटल शिक्षा की वजह से 70% से अधिक बच्चे शिक्षा से वंचित रह जाएंगे. क्योंकि न तो उनके पास डिजिटल व्यवस्था है और न उनके अभिभावकों के पास इसके लिए पर्याप्त संसाधन हैं. सरकार को वंचित समाज के बारे में सोचना चाहिए.

आरटीई फोरम पश्चिम बंगाल इकाई के संयोजक प्रवीण बसु ने कहा कि अभी तक सात लाख प्रवासी मजदूर राज्य में वापस आ चुके हैं और लगभग पांच लाख और लोगों की वापसी की संभावना है. कोरोना के साथ-साथ राज्य तूफान का कहर भी झेल रहा है.

14000 विद्यालयों को क्वॉरंटाइन सेंटर में तब्दील किया गया है. 30 जून तक सभी शिक्षण संस्थानों को बंद रखा गया है. ऐसे में बच्चों एवं उनके अभिभावकों के जेहन में भविष्य को लेकर भी असमंजस है. उन्होंने कहा कि डिजिटल लर्निंग न केवल संसाधन रहित एक बड़ी आबादी को शिक्षा की मुख्य धारा से दूर हाशीये पर डाल देगा, बल्कि स्क्रीन पर अधिक वक्त गुजारना बच्चों के शारीरिक व मानसिक विकास और सामान्य सामाजिक गतिविधियों के साथ उनके जुड़ाव को भी प्रभावित करेगा.

आरटीई फोरम ओडिशा के संयोजक अनिल प्रधान ने कहा कि ओडिशा में मुख्यमंत्री को निजी विद्यालयों द्वारा फीस वसूली पर रोक लगाने की अपील करनी पड़ी. अभिभावक संघ ने इस संदर्भ में वहां पीआईएल दाखिल कर सरकार पर इसके लिए दबाव बनाया, जिससे यह मुमकिन हो सका. उन्होंने कहा कि ऑनलाइन शिक्षा तो तमाम आदिवासी इलाकों के बच्चों को शिक्षा से वंचित कर देगी.

वहां पर शिक्षकों ने बच्चों को नए सृजनशील तरीकों से ऑनलाइन पढ़ाने और शैक्षिक गतिविधियों से जुड़े रहने के प्रयोग किए हैं जो सराहनीय है. सभी विशेषज्ञों ने एकमत से कहा कि सार्वजनिक शिक्षा और स्वास्थ्य को मजबूत करने के लिए सरकार को उन क्षेत्रों में बजट बढ़ाने की जरूरत है.

पढ़ें-ऑनलाइन प्लेटफॉर्म नियमित स्कूली शिक्षा का विकल्प कभी नहीं बन सकते

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.