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केन्द्र के निजीकरण अभियान के खिलाफ बीएमएस ने विरोध प्रदर्शन आयोजित किया

राष्ट्रीय स्वयं सेवाक संघ (आरएसएस) से संबद्ध ट्रेड यूनियन बीएमएस ने केन्द्र सरकार के उपक्रमों (पीएसयू) की निजीकरण की योजना के खिलाफ बुधवार को देशव्यापी विरोध प्रदर्शन किया.

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सांकेतिक चित्र
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Published : Jun 13, 2020, 2:11 AM IST

नई दिल्ली : राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े संगठन आम तौर पर केंद्र की मोदी सरकार के नीतियों का समर्थन और निर्णयों का स्वागत करते देखे जाते रहे थे. लेकिन बीते कुछ समय से संघ की मजदूर इकाई और देश से सबसे बड़े मजदूर संगठनों में शुमार भारतीय मजदूर संघ लगातार सरकार के नीतियों के विरोध कर रही है.

भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) ने श्रम कानून में राज्य सरकारों द्वारा किये जा रहे बदलावों का मुखर हो कर विरोध किया है. साथ ही वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा घोषित आर्थिक सुधार के कई कदमों के विरोध में भी खड़ा हो गया है.

बीएमएस सार्वजनिक क्षेत्र में मुनाफे में चल रहे उपक्रमों के निजीकरण का भी विरोध कर रही है. साथ ही मजदूर संघ रेलवे और डिफेंस ऑर्डिनेन्स फैक्ट्रीज बोर्ड के कॉरपोरेटाईजेशन के भी खिलाफ है.

मजदूर संघ ने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा आत्मनिर्भर पैकेज के चौथे चरण की घोषणाओं के बाद व्यक्तव्य जारी किया था. जिसमें उन्होंने सरकार द्वारा संकट के समय का फायदा उठा कर 8 सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के निजीकरण और कॉरपोरेटीकरण के विरोध की बात कही थी.

संघ ने सरकार को नसीहत देते हुए कहा था कि वो अर्थव्यवस्था को उबारने के लिये ऐसे उपाय न अपनाएं जो पहले असफल हो चुके हैं.

हालांकि बीएमएस ने पैकेज में मनरेगा, स्वास्थ्य और शिक्षा क्षेत्र को अधिक महत्व दिये जाने का स्वागत भी किया था लेकिन विनिवेश नीति पर लगातार गतिरोध जारी रखा.

20 मई को देश के 14 राज्यों द्वारा श्रम कानून में किये जा रहे बदलाव के विरोध में भारतीय मजदूर संघ ने देशव्यापी प्रदर्शन का आवाहन किया.जिसके बाद कई भाजपा शाषित राज्यों पर श्रम कानून से संबंधित बदलाव के निर्णय वापस लेने का दबाव बना.

पढ़ें- विशेष : जानें, क्या हैं देश में बेरोजगारी के हालात

इन राज्यों में भाजपा शाषित उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और गुजरात प्रमुख हैं. आगे केंद्र सरकार को भी यह स्पष्टीकरण देना पड़ा कि वो श्रम कानून में सुधार के लिये अध्यादेश का रास्ता नहीं अपनाएंगे.

मई माह के अंत में भारतीय मजदूर संघ ने प्रवासी मजदूर, बेरोजगारी, श्रम कानून और निजीकरण जैसे पांच अहम मुद्दों के साथ देशव्यापी आंदोलन छेड़ने की रणनीति बनाई और एक महीने के एक्शन प्लान की घोषणा करते हुए सरकार के खिलाफ बड़ा मोर्चा खोल दिया.

10 जून को हुआ देशव्यापी विरोध प्रदर्शन बीएमएस के इसी एक्शन प्लान का हिस्सा था जिसमें सभी राज्यों की इकाइयों ने बड़ी सहभागिता दिखाई, लेकिन भारतीय मजदूर संघ का अभियान अभी रुका नहीं है.

13 और 14 जून को भारतीय मजदूर संघ अलग अलग उद्योग और सेक्टर के मुद्दों पर चर्चा कर उनसे जुड़े प्रवासी मजदूरों के साथ सेमिनार आयोजित करेगा. बीएमएस ने स्पष्ट किया है कि ये सेमिनार ऐसे जगहों पर आयोजित किये जाएंगे जहां उचित दूरी का ध्यान रखा जाएगा.

पढ़ें-उत्तर प्रदेश : न्याय न मिलने पर सीएम योगी की पूजा करने बैठा मुस्लिम किसान

16 जून से 30 जून तक बीएमएस द्वारा विशेष अभियान चलाया जाएगा जिसके तहत 15 से 30 कार्यकर्ता सभी लोकसभा और राज्यसभा सांसदों से संपर्क कर उनके सामने मजदूरों से जुड़े पांच अहम मुद्दे रखेंगे जो कोरोना संकट के कारण पैदा हुए हैं.

सांसद संपर्क अभियान के जरिये भारतीय मजदूर संघ केंद्र सरकार पर दबाव बना कर नीतिगत बदलाव लाने का प्रयास करेगा.

नई दिल्ली : राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े संगठन आम तौर पर केंद्र की मोदी सरकार के नीतियों का समर्थन और निर्णयों का स्वागत करते देखे जाते रहे थे. लेकिन बीते कुछ समय से संघ की मजदूर इकाई और देश से सबसे बड़े मजदूर संगठनों में शुमार भारतीय मजदूर संघ लगातार सरकार के नीतियों के विरोध कर रही है.

भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) ने श्रम कानून में राज्य सरकारों द्वारा किये जा रहे बदलावों का मुखर हो कर विरोध किया है. साथ ही वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा घोषित आर्थिक सुधार के कई कदमों के विरोध में भी खड़ा हो गया है.

बीएमएस सार्वजनिक क्षेत्र में मुनाफे में चल रहे उपक्रमों के निजीकरण का भी विरोध कर रही है. साथ ही मजदूर संघ रेलवे और डिफेंस ऑर्डिनेन्स फैक्ट्रीज बोर्ड के कॉरपोरेटाईजेशन के भी खिलाफ है.

मजदूर संघ ने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा आत्मनिर्भर पैकेज के चौथे चरण की घोषणाओं के बाद व्यक्तव्य जारी किया था. जिसमें उन्होंने सरकार द्वारा संकट के समय का फायदा उठा कर 8 सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के निजीकरण और कॉरपोरेटीकरण के विरोध की बात कही थी.

संघ ने सरकार को नसीहत देते हुए कहा था कि वो अर्थव्यवस्था को उबारने के लिये ऐसे उपाय न अपनाएं जो पहले असफल हो चुके हैं.

हालांकि बीएमएस ने पैकेज में मनरेगा, स्वास्थ्य और शिक्षा क्षेत्र को अधिक महत्व दिये जाने का स्वागत भी किया था लेकिन विनिवेश नीति पर लगातार गतिरोध जारी रखा.

20 मई को देश के 14 राज्यों द्वारा श्रम कानून में किये जा रहे बदलाव के विरोध में भारतीय मजदूर संघ ने देशव्यापी प्रदर्शन का आवाहन किया.जिसके बाद कई भाजपा शाषित राज्यों पर श्रम कानून से संबंधित बदलाव के निर्णय वापस लेने का दबाव बना.

पढ़ें- विशेष : जानें, क्या हैं देश में बेरोजगारी के हालात

इन राज्यों में भाजपा शाषित उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और गुजरात प्रमुख हैं. आगे केंद्र सरकार को भी यह स्पष्टीकरण देना पड़ा कि वो श्रम कानून में सुधार के लिये अध्यादेश का रास्ता नहीं अपनाएंगे.

मई माह के अंत में भारतीय मजदूर संघ ने प्रवासी मजदूर, बेरोजगारी, श्रम कानून और निजीकरण जैसे पांच अहम मुद्दों के साथ देशव्यापी आंदोलन छेड़ने की रणनीति बनाई और एक महीने के एक्शन प्लान की घोषणा करते हुए सरकार के खिलाफ बड़ा मोर्चा खोल दिया.

10 जून को हुआ देशव्यापी विरोध प्रदर्शन बीएमएस के इसी एक्शन प्लान का हिस्सा था जिसमें सभी राज्यों की इकाइयों ने बड़ी सहभागिता दिखाई, लेकिन भारतीय मजदूर संघ का अभियान अभी रुका नहीं है.

13 और 14 जून को भारतीय मजदूर संघ अलग अलग उद्योग और सेक्टर के मुद्दों पर चर्चा कर उनसे जुड़े प्रवासी मजदूरों के साथ सेमिनार आयोजित करेगा. बीएमएस ने स्पष्ट किया है कि ये सेमिनार ऐसे जगहों पर आयोजित किये जाएंगे जहां उचित दूरी का ध्यान रखा जाएगा.

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16 जून से 30 जून तक बीएमएस द्वारा विशेष अभियान चलाया जाएगा जिसके तहत 15 से 30 कार्यकर्ता सभी लोकसभा और राज्यसभा सांसदों से संपर्क कर उनके सामने मजदूरों से जुड़े पांच अहम मुद्दे रखेंगे जो कोरोना संकट के कारण पैदा हुए हैं.

सांसद संपर्क अभियान के जरिये भारतीय मजदूर संघ केंद्र सरकार पर दबाव बना कर नीतिगत बदलाव लाने का प्रयास करेगा.

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