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RTI संशोधन विधेयक लोकसभा में पारित, विपक्ष का भारी विरोध

सूचना का अधिकार (संशोधन) विधेयक 2019 लोकसभा में पारित हो गया. इसके समर्थन में 218 सदस्य, जबकि विरोध में 79 सदस्यों ने मतदान किया. विपक्ष ने आरोप लगाया है की सूचना के अधिकार से कानून को कमजोर किया जा रहा है. विपक्ष ने संशोधन वापस लेने की मांग की है. पढ़ें पूरी खबर...

प्रतीकात्मक चित्र
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Published : Jul 24, 2019, 8:17 AM IST

नई दिल्ली: सूचना का अधिकार (संशोधन) विधेयक 2019 लोकसभा में मत विभाजन के बाद पारित हो गया. इस संशोधन से केन्द्र सरकार के पास मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों की नियुक्ति, कार्यकाल और वेतन संबंधी मामलों का अधिकार होगा.

केन्द्रीय राज्यमंत्री (कार्मिक और पेंशन अधिकार) डॉक्टर जितेन्द्र सिंह ने सूचना का अधिकार (संशोधन) विधेयक 2019 लोकसभा में पेश किया. इसके समर्थन में 218 सदस्य, जबकि विरोध में 79 सदस्य ने मतदान किया.

विपक्ष का आरोप है कि सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 को संशोधन से सरकार कमजोर कर रही है. राज्य सरकार की शक्तियों पर अतिक्रमण किया जा रहा है. विपक्ष ने संशोधन वापस लेने की मांग की है. बता दें, सूचना का अधिकार कानून 2005 में कांग्रेस नीत यूपीए सरकार ने लागू किया था.

विपक्ष के तीखे सवालों का उत्तर देते हुए जितेन्द्र सिंह ने कहा, 'मोदी सरकार पारदर्शिता, जन भागीदारी, सरलीकरण, न्यूनतम सरकार..अधिकतम सुशासन को लेकर प्रतिबद्ध है. केन्द्र सरकार ने सभी के सामने स्पष्टतापूर्वक नियम और कानून रखा है. किसी पर थोपा नहीं जाएगा.'

पढ़ें- पीएम मोदी ने ट्रंप से मध्यस्थता की अपील नहीं की, राज्यसभा में विदेश मंत्री ने दिया बयान

उन्होंने कहा ,'मोदी सरकार की नीति स्पष्ट है. पार्टी दायित्व के साथ कार्य के लिए प्रतिबद्ध है. कुछ पदों पर साक्षात्कार के माध्यम से नियुक्तियां की जाएगी. इससे पारदर्शिता और जवाबदेही तय होगी. विभाग अपनी जानकारी इकट्ठा कर वेबसाइट पर नियुक्तियों की सूचना और आदेश देगें.

सिंह ने बताया पिछले राजग सरकार के कार्यकाल की तुलना में यूपीए सरकार में सूचना आयोग के पद अधिक खाली रहे थे. 2014 के पहले सूचना के अधिकार के तहत केस भी ज्यादा लंबित थे.

उन्होंने कहा, 'मैं आपकी सरकार पर आरोप नहीं लगा रहा हूं. इसके बहुत सारे कारण हो सकते है. इस संशोधन का मसौदा सूचना परिषद को बिना किसी अवरोध के संस्थागत रुप से कार्यशील करने का है.'

जितेन्द्र सिंह के अनुसार, 'मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्त की सेवा की शर्तें चुनाव आयुक्तों के समान होती थी. अब शर्तें बदली जाएंगी. चुनाव आयोग एक संवैधानिक संस्था है, जबकि सूचना आयोग एक कानूनी संस्था है. दोनों में अंतर होता है.'

इसके लिए न्यायिक सुझाव और प्रस्तावना का जिक्र किया जो सूचना आयोग के प्रशासनिक बदलाव की मांग करता है. जिससे की विसंगतियों को दूर कर संस्थागत तरीके में सुचारु रूप से चलाया जा सके.

नई दिल्ली: सूचना का अधिकार (संशोधन) विधेयक 2019 लोकसभा में मत विभाजन के बाद पारित हो गया. इस संशोधन से केन्द्र सरकार के पास मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों की नियुक्ति, कार्यकाल और वेतन संबंधी मामलों का अधिकार होगा.

केन्द्रीय राज्यमंत्री (कार्मिक और पेंशन अधिकार) डॉक्टर जितेन्द्र सिंह ने सूचना का अधिकार (संशोधन) विधेयक 2019 लोकसभा में पेश किया. इसके समर्थन में 218 सदस्य, जबकि विरोध में 79 सदस्य ने मतदान किया.

विपक्ष का आरोप है कि सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 को संशोधन से सरकार कमजोर कर रही है. राज्य सरकार की शक्तियों पर अतिक्रमण किया जा रहा है. विपक्ष ने संशोधन वापस लेने की मांग की है. बता दें, सूचना का अधिकार कानून 2005 में कांग्रेस नीत यूपीए सरकार ने लागू किया था.

विपक्ष के तीखे सवालों का उत्तर देते हुए जितेन्द्र सिंह ने कहा, 'मोदी सरकार पारदर्शिता, जन भागीदारी, सरलीकरण, न्यूनतम सरकार..अधिकतम सुशासन को लेकर प्रतिबद्ध है. केन्द्र सरकार ने सभी के सामने स्पष्टतापूर्वक नियम और कानून रखा है. किसी पर थोपा नहीं जाएगा.'

पढ़ें- पीएम मोदी ने ट्रंप से मध्यस्थता की अपील नहीं की, राज्यसभा में विदेश मंत्री ने दिया बयान

उन्होंने कहा ,'मोदी सरकार की नीति स्पष्ट है. पार्टी दायित्व के साथ कार्य के लिए प्रतिबद्ध है. कुछ पदों पर साक्षात्कार के माध्यम से नियुक्तियां की जाएगी. इससे पारदर्शिता और जवाबदेही तय होगी. विभाग अपनी जानकारी इकट्ठा कर वेबसाइट पर नियुक्तियों की सूचना और आदेश देगें.

सिंह ने बताया पिछले राजग सरकार के कार्यकाल की तुलना में यूपीए सरकार में सूचना आयोग के पद अधिक खाली रहे थे. 2014 के पहले सूचना के अधिकार के तहत केस भी ज्यादा लंबित थे.

उन्होंने कहा, 'मैं आपकी सरकार पर आरोप नहीं लगा रहा हूं. इसके बहुत सारे कारण हो सकते है. इस संशोधन का मसौदा सूचना परिषद को बिना किसी अवरोध के संस्थागत रुप से कार्यशील करने का है.'

जितेन्द्र सिंह के अनुसार, 'मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्त की सेवा की शर्तें चुनाव आयुक्तों के समान होती थी. अब शर्तें बदली जाएंगी. चुनाव आयोग एक संवैधानिक संस्था है, जबकि सूचना आयोग एक कानूनी संस्था है. दोनों में अंतर होता है.'

इसके लिए न्यायिक सुझाव और प्रस्तावना का जिक्र किया जो सूचना आयोग के प्रशासनिक बदलाव की मांग करता है. जिससे की विसंगतियों को दूर कर संस्थागत तरीके में सुचारु रूप से चलाया जा सके.

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