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पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने से बढ़ सकता है महामारी का खतरा : रिपोर्ट

कोरोना वायरस महामारी सहित अन्य महामारियों और जैव विविधता को लेकर आईपीबीईएस ने एक रिपोर्ट जारी की है. रिपोर्ट के अनुसार पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने से महामारी का जोखिम और बढ़ सकता है.

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Published : Oct 31, 2020, 5:21 PM IST

हैदराबाद : जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के लिए अंतर-सरकारी विज्ञान नीति मंच (Intergovernmental Science-Policy Platform On Biodiversity and Ecosystem Services- IPBES) द्वारा जैव विविधता और महामारी के संदर्भ में रिपोर्ट जारी की गई है.

महामारी की रोकथाम पर अंतर सरकारी परिषद ने वनों की कटाई और वन्यजीव व्यापार को देखते हुए कहा कि यह महामारी-जोखिम गतिविधियां हैं. चेतावनी दी गई कि 540,000 से लेकर 850,000 तक ऐसे वायरस हैं, जो नोवल कोरोना वायरस की तरह वातावरण में मौजूद हैं और लोगों को संक्रमित कर सकते हैं. यह महामारियां मानवता के अस्तित्व के लिए बड़ा खतरा बन सकती है.

दुनिया भर के 22 प्रमुख विशेषज्ञों द्वारा महामारी और जैव विविधता पर दी गई रिपोर्ट में कहा गया है कि भविष्य में महामारियां और अधिक बार आएंगी. इन महामारियों से और अधिक लोगों को जान से हाथ धोना पड़ेगा. ये दुनिया की अर्थव्यवस्था को कोरोनावायरस के मुकाबले और अधिक नुकसान पहुंचाएंगे.

प्रकृति में आ रही गिरावट (डीग्रेड) और महामारी के खतरों के बीच के संबंधों को समझने के लिए जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के लिए अंतर-सरकारी विज्ञान नीति मंच (IPBES) ने 22 प्रमुख विशेषज्ञों के साथ एक वर्चुअल कार्यशाला आयोजित की. इसमें विशेषज्ञों ने मना की महामारी से बचना तभी संभव है जब इस पर प्रतिक्रिया देने की बजाय इससे बचने के उपाए तलाशे जाएं.

रिपोर्ट में कहा गया कि 1918 में हुए इन्फ्लूएंजा के प्रकोप के बाद कोविड-19 छठी महामारी है, जिसके लिए पूरी तरह से मानवीय गतिविधियां जिम्मेदार हैं. यह अनुमान है कि वर्तमान में 1.7 मिलियन वायरस स्तनधारियों और पक्षियों में मौजूद हैं, जिनमें से 8,50,000 वायरस लोगों को संक्रमित कर सकते हैं.

जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं पर अंतरसरकारी विज्ञान-नीति मंच (आईपीबीईएस) कार्यशाला के अध्यक्ष पीटर दासजक ने कहा कि कोविड-19 महामारी या कोई भी आधुनिक महामारी के पीछे कोई बड़ा रहस्य नहीं है. वही मानव गतिविधियां जिनकी वजह से जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता की हानि होती है, हमारे पर्यावरण पर भी इनके प्रभावों से महामारी के खतरे बढ़ जाते हैं. भूमि का उपयोग करने में आ रहे बदलाव, सतत व्यापार, उत्पादन और खपत, वनों की कटाई, कृषि विस्तार, जंगली जानवरों का व्यापार, जानवरों के साथ संपर्क में रहते हैं और पर्यावरण को निरंतर नुकसान पहुंचाते हैं इन सबसे महामारी का जोखिम बढ़ता है.

रिपोर्ट में कहा गया कि ऐसी गतिविधियां जिनसे पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा हो, को कम करने से महामारी के जोखिम को कम किया जा सकता है. इसके अलावा संरक्षित क्षेत्रों के अधिक संरक्षण और उच्च जैव विविधता वाले क्षेत्रों के निरंतर दोहन को कम करने से महामारी के जोखिम कम हो सकते हैं. इससे वन्यजीव-पशुधन-मानव संपर्क कम होगा और नई बीमारियों के फैलाव को रोकने में मदद मिलेगी. डॉ. दासजक ने कहा कि इसके वैज्ञानिक प्रमाण बहुत सकारात्मक निष्कर्ष की ओर इशारा करते हैं.

पढ़ें :- कोरोना वायरस कर रहा मस्तिष्क को प्रभावित: अध्ययन

कोरोना महामारी के लिए अब तक लगभग 8 ट्रिलियन डॉलर से 16 ट्रिलियन डॉलर तक की कीमत चुकानी पड़ी, जिसमें 5.8 ट्रिलियन से 8.8 ट्रिलियन डॉलर 3 से 6 महीने की सामाजिक दूरी और यात्रा प्रतिबंध की वजह से नुकसान हुआ (जो कि वैश्विक जीडीपी का 6.4 से 9.7 फीसदी है). इसको लेकर रिपोर्ट में कहा गया कि सार्वजनिक स्वास्थ्य उपाय और तकनीकी समाधान, विशेष रूप से नए टीकों और उपचारों का वितरण धीमा और अनिश्चित पथ है.

विशेषज्ञों का अनुमान है कि महामारी को रोकने के लिए जोखिम को कम करने की लागत इस तरह की महामारियों से लड़ने में आने वाली लागत से 100 गुना कम होगी.

हैदराबाद : जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के लिए अंतर-सरकारी विज्ञान नीति मंच (Intergovernmental Science-Policy Platform On Biodiversity and Ecosystem Services- IPBES) द्वारा जैव विविधता और महामारी के संदर्भ में रिपोर्ट जारी की गई है.

महामारी की रोकथाम पर अंतर सरकारी परिषद ने वनों की कटाई और वन्यजीव व्यापार को देखते हुए कहा कि यह महामारी-जोखिम गतिविधियां हैं. चेतावनी दी गई कि 540,000 से लेकर 850,000 तक ऐसे वायरस हैं, जो नोवल कोरोना वायरस की तरह वातावरण में मौजूद हैं और लोगों को संक्रमित कर सकते हैं. यह महामारियां मानवता के अस्तित्व के लिए बड़ा खतरा बन सकती है.

दुनिया भर के 22 प्रमुख विशेषज्ञों द्वारा महामारी और जैव विविधता पर दी गई रिपोर्ट में कहा गया है कि भविष्य में महामारियां और अधिक बार आएंगी. इन महामारियों से और अधिक लोगों को जान से हाथ धोना पड़ेगा. ये दुनिया की अर्थव्यवस्था को कोरोनावायरस के मुकाबले और अधिक नुकसान पहुंचाएंगे.

प्रकृति में आ रही गिरावट (डीग्रेड) और महामारी के खतरों के बीच के संबंधों को समझने के लिए जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के लिए अंतर-सरकारी विज्ञान नीति मंच (IPBES) ने 22 प्रमुख विशेषज्ञों के साथ एक वर्चुअल कार्यशाला आयोजित की. इसमें विशेषज्ञों ने मना की महामारी से बचना तभी संभव है जब इस पर प्रतिक्रिया देने की बजाय इससे बचने के उपाए तलाशे जाएं.

रिपोर्ट में कहा गया कि 1918 में हुए इन्फ्लूएंजा के प्रकोप के बाद कोविड-19 छठी महामारी है, जिसके लिए पूरी तरह से मानवीय गतिविधियां जिम्मेदार हैं. यह अनुमान है कि वर्तमान में 1.7 मिलियन वायरस स्तनधारियों और पक्षियों में मौजूद हैं, जिनमें से 8,50,000 वायरस लोगों को संक्रमित कर सकते हैं.

जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं पर अंतरसरकारी विज्ञान-नीति मंच (आईपीबीईएस) कार्यशाला के अध्यक्ष पीटर दासजक ने कहा कि कोविड-19 महामारी या कोई भी आधुनिक महामारी के पीछे कोई बड़ा रहस्य नहीं है. वही मानव गतिविधियां जिनकी वजह से जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता की हानि होती है, हमारे पर्यावरण पर भी इनके प्रभावों से महामारी के खतरे बढ़ जाते हैं. भूमि का उपयोग करने में आ रहे बदलाव, सतत व्यापार, उत्पादन और खपत, वनों की कटाई, कृषि विस्तार, जंगली जानवरों का व्यापार, जानवरों के साथ संपर्क में रहते हैं और पर्यावरण को निरंतर नुकसान पहुंचाते हैं इन सबसे महामारी का जोखिम बढ़ता है.

रिपोर्ट में कहा गया कि ऐसी गतिविधियां जिनसे पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा हो, को कम करने से महामारी के जोखिम को कम किया जा सकता है. इसके अलावा संरक्षित क्षेत्रों के अधिक संरक्षण और उच्च जैव विविधता वाले क्षेत्रों के निरंतर दोहन को कम करने से महामारी के जोखिम कम हो सकते हैं. इससे वन्यजीव-पशुधन-मानव संपर्क कम होगा और नई बीमारियों के फैलाव को रोकने में मदद मिलेगी. डॉ. दासजक ने कहा कि इसके वैज्ञानिक प्रमाण बहुत सकारात्मक निष्कर्ष की ओर इशारा करते हैं.

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कोरोना महामारी के लिए अब तक लगभग 8 ट्रिलियन डॉलर से 16 ट्रिलियन डॉलर तक की कीमत चुकानी पड़ी, जिसमें 5.8 ट्रिलियन से 8.8 ट्रिलियन डॉलर 3 से 6 महीने की सामाजिक दूरी और यात्रा प्रतिबंध की वजह से नुकसान हुआ (जो कि वैश्विक जीडीपी का 6.4 से 9.7 फीसदी है). इसको लेकर रिपोर्ट में कहा गया कि सार्वजनिक स्वास्थ्य उपाय और तकनीकी समाधान, विशेष रूप से नए टीकों और उपचारों का वितरण धीमा और अनिश्चित पथ है.

विशेषज्ञों का अनुमान है कि महामारी को रोकने के लिए जोखिम को कम करने की लागत इस तरह की महामारियों से लड़ने में आने वाली लागत से 100 गुना कम होगी.

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