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बिहार के श्रीचंद मन्दिर से गांधी का है खास रिश्ता, जानें पूरी कहानी - indian independence movement

आजादी के आंदोलन के दौरान गांधीजी ने देश के अलग-अलग हिस्सों का दौरा किया था. जहां-जहां भी बापू जाते थे, वे वहां के लोगों पर अमिट छाप छोड़ जाते थे. वहां के लोगों में राष्ट्रीयता की भावना घर कर जाती थी. ईटीवी भारत ऐसे ही जगहों से गांधी से जुड़ी कई यादें आपको प्रस्तुत कर रहा है. पेश है आज 28वीं कड़ी.

पद यात्रा के दौरान गांधी
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Published : Sep 12, 2019, 9:25 AM IST

Updated : Sep 30, 2019, 7:33 AM IST

बक्सर : लगभग 200 वर्षों तक अंग्रेजों की गुलामी झेलने के बाद 15 अगस्त को भारत आजाद हुआ था, यह दिन देश के लिए बहुत खास है. भारत को आजाद कराने के लिए इस दिन लाखों लोगों ने अपने प्राण गंवाए थे.

आज हम अपनी आजादी की 73वीं वर्षगांठ जश्न मना रहे हैं, तो केवल उन्हीं लोगों की वजह से जो अपने प्राणों की चिंता किए बिना भारत देश के लिए शहीद हो गए.

मोहनदास करमचंद गांधी ने सत्य और अहिंसा को अपना ऐसा मारक और अचूक हथियार बनाया, जिसके आगे दुनिया के सबसे ताकतवर ब्रिटिश साम्राज्य को भी घुटने टेकने पड़े. आइये हम यह जानने की कोशिश करते हैं कि पोरबंदर के मोहनदास को बिहार के बक्सर के उनके पड़ावों और घटनाओं ने महात्मा बना दिया.

बक्सर और गांधी के रिश्ते पर ईटीवी भारत की रिपोर्ट

सत्याग्रह आंदोलन में बक्सर की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता. अहिंसा के लिए विख्यात साबरमती के संत ने पूरे शाहाबाद में स्वतंत्रता आंदोलन की बुनियाद रखी थी. क्योंकि'अहिंसा परमोधर्म' के पुजारी महात्मा गांधी का आगमन बक्सर में पांच बार हुआ था. उनके सादगी भरे विचार आज भी लोगों को प्रेरित करते हैं.

जिनमें असहयोग आंदोलन के सिलसिले में 11 अगस्त 1921 को और सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान 25 अप्रैल 1934 को बापू यहां आए. इससे पूर्व भी वर्ष 1914, 1917 व 1919 को महात्मा गांधी ने बक्सर का दौरा किया था.
1947 से पहले अंग्रेजी हुकूमत से आजादी पाने के लिए देशभर से हुंकार भरी जा रही थी. विश्वामित्र की पावन नगरी यानी बक्सर में इसकी गूंज कुछ ज्यादा ही सुनाई पड़ रही थी.

ये भी पढ़ें: गांधी के विचारों से प्रेरित होकर चंबल के 652 डकैतों ने किया था सरेंडर

राष्ट्रपिता का आगमन सबसे पहले श्रीचंद मन्दिर में हुआ था. जहां रात में स्थानीय आंदोलनकारियों के साथ बैठक करने के बाद महात्मा गांधी ने ऐतिहासिक किला मैदान एवं बनबीघा के मैदान में जनसभा को सम्बोधित किया. वैसे श्रीचंद मन्दिर अब खंडहर में तब्दील हो गया है, जहां कभी डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद, जवाहर लाल नेहरू, अनुग्रह नरायण सिंह ठहरे थे.

1917 में शुरू हुए चंपारण आंदोलन से लेकर 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के बीच गांधी जी जब-जब बक्सर पहुंचे महिलाओं में भी अलग उत्साह दिखा. तभी तो आजादी के लिए लालायित महिलाओं ने अपने-अपने आभूषण उतारकर गांधी जी की झोली में डाल दिये.

ये भी पढ़ें: बिहार के मोतिहारी से 'महात्मा' बने थे मोहनदास करमचंद गांधी, जानें पूरी कहानी

गांधीवादी नेता जंग बहादुर राजपुरिया बताते हैं कि जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर आंदोलनकारी नेता रामा शंकर तिवारी के कार्यों से प्रभावित होकर अपने अंतिम यात्रा के दौरान महात्मा गांधी कोरानसराय पहुंचे. आंदोलनकारी नेताओं के साथ बैठक की.

महात्मा गांधी की उस यात्रा से वहां के आंदोलनकारी इतना प्रभावित हुए की गांधी के वापस लौटते ही दो अंग्रेज अधिकारियों की हत्या कर भारत माता की जयघोष कर दी. तभी तो शहीद हुए स्वतंत्रता सेनानी के पुत्र खुद को गौर्वान्वित महसूस करते हैं.

बक्सर : लगभग 200 वर्षों तक अंग्रेजों की गुलामी झेलने के बाद 15 अगस्त को भारत आजाद हुआ था, यह दिन देश के लिए बहुत खास है. भारत को आजाद कराने के लिए इस दिन लाखों लोगों ने अपने प्राण गंवाए थे.

आज हम अपनी आजादी की 73वीं वर्षगांठ जश्न मना रहे हैं, तो केवल उन्हीं लोगों की वजह से जो अपने प्राणों की चिंता किए बिना भारत देश के लिए शहीद हो गए.

मोहनदास करमचंद गांधी ने सत्य और अहिंसा को अपना ऐसा मारक और अचूक हथियार बनाया, जिसके आगे दुनिया के सबसे ताकतवर ब्रिटिश साम्राज्य को भी घुटने टेकने पड़े. आइये हम यह जानने की कोशिश करते हैं कि पोरबंदर के मोहनदास को बिहार के बक्सर के उनके पड़ावों और घटनाओं ने महात्मा बना दिया.

बक्सर और गांधी के रिश्ते पर ईटीवी भारत की रिपोर्ट

सत्याग्रह आंदोलन में बक्सर की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता. अहिंसा के लिए विख्यात साबरमती के संत ने पूरे शाहाबाद में स्वतंत्रता आंदोलन की बुनियाद रखी थी. क्योंकि'अहिंसा परमोधर्म' के पुजारी महात्मा गांधी का आगमन बक्सर में पांच बार हुआ था. उनके सादगी भरे विचार आज भी लोगों को प्रेरित करते हैं.

जिनमें असहयोग आंदोलन के सिलसिले में 11 अगस्त 1921 को और सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान 25 अप्रैल 1934 को बापू यहां आए. इससे पूर्व भी वर्ष 1914, 1917 व 1919 को महात्मा गांधी ने बक्सर का दौरा किया था.
1947 से पहले अंग्रेजी हुकूमत से आजादी पाने के लिए देशभर से हुंकार भरी जा रही थी. विश्वामित्र की पावन नगरी यानी बक्सर में इसकी गूंज कुछ ज्यादा ही सुनाई पड़ रही थी.

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राष्ट्रपिता का आगमन सबसे पहले श्रीचंद मन्दिर में हुआ था. जहां रात में स्थानीय आंदोलनकारियों के साथ बैठक करने के बाद महात्मा गांधी ने ऐतिहासिक किला मैदान एवं बनबीघा के मैदान में जनसभा को सम्बोधित किया. वैसे श्रीचंद मन्दिर अब खंडहर में तब्दील हो गया है, जहां कभी डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद, जवाहर लाल नेहरू, अनुग्रह नरायण सिंह ठहरे थे.

1917 में शुरू हुए चंपारण आंदोलन से लेकर 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के बीच गांधी जी जब-जब बक्सर पहुंचे महिलाओं में भी अलग उत्साह दिखा. तभी तो आजादी के लिए लालायित महिलाओं ने अपने-अपने आभूषण उतारकर गांधी जी की झोली में डाल दिये.

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गांधीवादी नेता जंग बहादुर राजपुरिया बताते हैं कि जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर आंदोलनकारी नेता रामा शंकर तिवारी के कार्यों से प्रभावित होकर अपने अंतिम यात्रा के दौरान महात्मा गांधी कोरानसराय पहुंचे. आंदोलनकारी नेताओं के साथ बैठक की.

महात्मा गांधी की उस यात्रा से वहां के आंदोलनकारी इतना प्रभावित हुए की गांधी के वापस लौटते ही दो अंग्रेज अधिकारियों की हत्या कर भारत माता की जयघोष कर दी. तभी तो शहीद हुए स्वतंत्रता सेनानी के पुत्र खुद को गौर्वान्वित महसूस करते हैं.

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Last Updated : Sep 30, 2019, 7:33 AM IST
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