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आजादी का एक अहम पड़ाव है पश्चिमी चंपारण, जानें गांधी और भितिहरवा आश्रम की कहानी

आजादी के आंदोलन के दौरान गांधीजी ने देश के अलग-अलग हिस्सों का दौरा किया था. जहां-जहां भी बापू जाते थे, वे वहां के लोगों पर अमिट छाप छोड़ जाते थे. वहां के लोगों में राष्ट्रीयता की भावना घर कर जाती थी. ईटीवी भारत ऐसे ही जगहों से गांधी से जुड़ी कई यादें आपको प्रस्तुत कर रहा है. पेश है आज 28वीं कड़ी.

महात्मा गांधी की फाइल फोटो
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Published : Sep 13, 2019, 7:05 AM IST

Updated : Sep 30, 2019, 10:17 AM IST

प. चंपारण : वैसे तो राष्ट्रपिता के कदम जिन-जिन स्थानों पर पड़े वह धन्य हो गये, लेकिन कुछ जगहें ऐसी है जिसका नाम लेने से ही कई यादें सामने आ जाती हैं. ऐसा ही एक नाम है बिहार का पश्चिम चंपारण.

महात्मा गांधी ने न सिर्फ चंपारण की धरती से स्वतंत्रता संग्राम का बिगुल फूंका था, बल्कि रोजगारपरक शिक्षा के लिए देश में पहले बुनियादी विद्यालय की स्थापना भी चंपारण में ही की थी. जिला मुख्यालय से करीब नौ से 10 किलोमीटर दूर भितिहरवा आश्रम के वृंदावन में आज भी तालिम के साथ बच्चों को हुनर सिखाया जाता है.

बच्चे यहां प्रवेश करते ही अपने अंदर एक अलग प्रकार का अलख देखते हैं, क्योंकि अंदर प्रवेश करते ही यहां गांधी जी का एक बेहद ही प्रभावित करने वाला संदेश लिखा दिखाई पड़ता है. संदेश में अंकित है 'यदि युवक अच्छे तौर-तरीके नहीं सीखते हैं, तो उनकी सारी पढ़ाई बेकार है.' इसी के नीचे एक और संदेश लिखा है 'यदि आप न्याय चाहते हैं तो आप को भी दूसरों के प्रति न्याय बरतना होगा.'

गांधी और चंपारण के रिश्ते पर ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट

1917 में संचालित चंपारण सत्याग्रह के दौरान महात्मा गांधी और कस्तूरबा गांधी ने आश्रम और स्कूल का निर्माण करवाया था. भितिहरवा के वृंदावन में आज भी खपरैल कुटिया है, स्कूल की घंटी...वो टेबल जिसे बापू ने अपने हाथों से बनाया था. कुंआ...जिसके पानी से कभी बापू अपनी प्यास बुझाते थे. कस्तूरबा गांधी की चक्की...कुटिया के अंदर 'बापू' की याद दिलाती है.

ये भी पढ़ें: बिहार के मोतिहारी से 'महात्मा' बने थे मोहनदास करमचंद गांधी, जानें पूरी कहानी

गांधी और चंपारण के रिश्ते समझने के लिए इतिहास के पन्नों में जाना होगा. 27 अप्रैल,1917 का दिन था...जब बापू राज कुमार शुक्ल के आग्रह पर पश्चिम चंपारण के भितिहरवा गांव में पहुंचे. भितिहरवा की दूरी नरकटियागंज से 16 किलोमीटर है. बेतिया से 54 किलोमीटर है. बापू यहां देवनंद सिंह, बीरबली जी के साथ पहुंचे. बताया जाता है कि बापू सबसे पहले पटना पहुंचे थे. पटना में गांधी डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद के बंगले में रुके थे.

डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद के पास से आकर गांधी मोतिहारी में रुके थे. इसके बाद बापू मोतिहारी से बेतिया आए. बेतिया के बाद उनका अगला प्रवास कुमार बाग में हुआ. कुमार बाग से हाथी पर बैठकर बापू श्रीरामपुर भितिहरवा पहुंचे थे. गांव के मठ के बाबा रामनारायण दास द्वारा बापू को आश्रम के लिए जमीन उपलब्ध करायी गई. 16 नवंबर, 1917 को बापू ने भितिहरवा में एक विद्यालय और एक कुटिया बनायी.

ये भी पढ़ें: गांधी के विचारों से प्रेरित होकर चंबल के 652 डकैतों ने किया था सरेंडर

हालांकि, बापू का भितिहरवा में रहना ब्रिटिश अधिकारियों को बिल्कुल गवारा नहीं था. अंग्रेजों ने एक दिन बेलवा कोठी के एसी एमन साहब ने कोठी में आग लगवा दी. उनकी साजिश बापू की सोते हुए हत्या करवा देने की थी. ये संयोग ही था कि बापू उस दिन पास के गांव में थे, इसलिए उनका बाल भी बांका नहीं गये. बाद में सब लोगों ने मिलकर दोबारा पक्का कमरा बनाया. इस मकान की छत खपरैल है. इस कमरे के निर्माण में बापू ने अपने हाथों से श्रमदान किया.

फिलहाल, देश में बापू के दो प्रमुख आश्रम हैं, अहमदाबाद में साबरमती और महाराष्ट्र में वर्धा. इसके बावजूद बिहार का भितिहरवा बापू की जिंदगी से जुड़े भावनात्मक और सामाजिक जीवन का एक महत्वपूर्ण पड़ाव है.

प. चंपारण : वैसे तो राष्ट्रपिता के कदम जिन-जिन स्थानों पर पड़े वह धन्य हो गये, लेकिन कुछ जगहें ऐसी है जिसका नाम लेने से ही कई यादें सामने आ जाती हैं. ऐसा ही एक नाम है बिहार का पश्चिम चंपारण.

महात्मा गांधी ने न सिर्फ चंपारण की धरती से स्वतंत्रता संग्राम का बिगुल फूंका था, बल्कि रोजगारपरक शिक्षा के लिए देश में पहले बुनियादी विद्यालय की स्थापना भी चंपारण में ही की थी. जिला मुख्यालय से करीब नौ से 10 किलोमीटर दूर भितिहरवा आश्रम के वृंदावन में आज भी तालिम के साथ बच्चों को हुनर सिखाया जाता है.

बच्चे यहां प्रवेश करते ही अपने अंदर एक अलग प्रकार का अलख देखते हैं, क्योंकि अंदर प्रवेश करते ही यहां गांधी जी का एक बेहद ही प्रभावित करने वाला संदेश लिखा दिखाई पड़ता है. संदेश में अंकित है 'यदि युवक अच्छे तौर-तरीके नहीं सीखते हैं, तो उनकी सारी पढ़ाई बेकार है.' इसी के नीचे एक और संदेश लिखा है 'यदि आप न्याय चाहते हैं तो आप को भी दूसरों के प्रति न्याय बरतना होगा.'

गांधी और चंपारण के रिश्ते पर ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट

1917 में संचालित चंपारण सत्याग्रह के दौरान महात्मा गांधी और कस्तूरबा गांधी ने आश्रम और स्कूल का निर्माण करवाया था. भितिहरवा के वृंदावन में आज भी खपरैल कुटिया है, स्कूल की घंटी...वो टेबल जिसे बापू ने अपने हाथों से बनाया था. कुंआ...जिसके पानी से कभी बापू अपनी प्यास बुझाते थे. कस्तूरबा गांधी की चक्की...कुटिया के अंदर 'बापू' की याद दिलाती है.

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गांधी और चंपारण के रिश्ते समझने के लिए इतिहास के पन्नों में जाना होगा. 27 अप्रैल,1917 का दिन था...जब बापू राज कुमार शुक्ल के आग्रह पर पश्चिम चंपारण के भितिहरवा गांव में पहुंचे. भितिहरवा की दूरी नरकटियागंज से 16 किलोमीटर है. बेतिया से 54 किलोमीटर है. बापू यहां देवनंद सिंह, बीरबली जी के साथ पहुंचे. बताया जाता है कि बापू सबसे पहले पटना पहुंचे थे. पटना में गांधी डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद के बंगले में रुके थे.

डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद के पास से आकर गांधी मोतिहारी में रुके थे. इसके बाद बापू मोतिहारी से बेतिया आए. बेतिया के बाद उनका अगला प्रवास कुमार बाग में हुआ. कुमार बाग से हाथी पर बैठकर बापू श्रीरामपुर भितिहरवा पहुंचे थे. गांव के मठ के बाबा रामनारायण दास द्वारा बापू को आश्रम के लिए जमीन उपलब्ध करायी गई. 16 नवंबर, 1917 को बापू ने भितिहरवा में एक विद्यालय और एक कुटिया बनायी.

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हालांकि, बापू का भितिहरवा में रहना ब्रिटिश अधिकारियों को बिल्कुल गवारा नहीं था. अंग्रेजों ने एक दिन बेलवा कोठी के एसी एमन साहब ने कोठी में आग लगवा दी. उनकी साजिश बापू की सोते हुए हत्या करवा देने की थी. ये संयोग ही था कि बापू उस दिन पास के गांव में थे, इसलिए उनका बाल भी बांका नहीं गये. बाद में सब लोगों ने मिलकर दोबारा पक्का कमरा बनाया. इस मकान की छत खपरैल है. इस कमरे के निर्माण में बापू ने अपने हाथों से श्रमदान किया.

फिलहाल, देश में बापू के दो प्रमुख आश्रम हैं, अहमदाबाद में साबरमती और महाराष्ट्र में वर्धा. इसके बावजूद बिहार का भितिहरवा बापू की जिंदगी से जुड़े भावनात्मक और सामाजिक जीवन का एक महत्वपूर्ण पड़ाव है.

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Last Updated : Sep 30, 2019, 10:17 AM IST
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