नई दिल्ली: पीएम मोदी अपने दूसरे कार्यकाल की शुरुआत पड़ोसी देश मालदीव की यात्रा से कर रहे हैं. इब्राहिम मोहम्मद सोलिह की इंडिया फर्स्ट योजना और सकारात्मक रवैये को देखते हुए पीएम मोदी ने मालदीव जाने का नर्णय लिया है.
पीएम मोदी के मालदीव दौरे के बाद भारत पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में जानने के लिए ETV भारत ने मालदीव में भारत के पूर्व राजदूत राजीव शाहरे से बातचीत की. राजीव शाहरे राष्ट्रपति यामीन के कार्यकाल के दौरान मालदीव में भारत का नेतृत्व कर चुके हैं.
शाहरे का कहना है कि मालदीव और भारत के रिश्ते की एक नई शुरुआत हो रही है. उन्होंने कहा कि मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति की वजह से भारत के साथ रिश्तों में खटास पैदा हुई थी. पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन ने भारत का साथ छोड़ चीन के साथ जाना बेहतर समझा था, जिसके बाद से ही भारत से संबंध बिगड़े.
उन्होंने कहा कि यामीन सरकार ने चीन के साथ उन रणनीतिक परियोजनाओं पर विचार किया, जो भारत की सुरक्षा व्यवस्था को हानि पहुंचा रही थी. भारत की सुरक्षा को नुकसान पहुंचाने के लिए वे कहीं न कहीं मालदीव की यामीन सरकार को कसूरवार मानते हैं.
राष्ट्रपति सोलिह के भारत की ओर झुकाव की तारीफ करते हुए राजीव कहते हैं कि जैसे भारत का कहना है कि पड़ोसी पहले, वैसे ही मालदीव का कहना है कि भारत पहले.
यह पूछे जाने पर कि क्या भारत-मालदीव की रणनीतिक साझेदारी के चलते मालदीव के चीन से रिश्ते कम हो जाएंगे? इस सवाल का उन्होंने जवाब दिया, 'चीन को बाहर निकालना आसान नहीं है. वे मालदीव की अर्थव्यवस्था में बड़े साझेदार हैं. चीन के कामों का मलदीव की अर्थव्यवस्था पर प्रभाव पड़ता है.'
हालांकि, उन्होंने ये भी कहा कि वर्तमान मालदीव सरकार की योजना यामीन के कार्यकाल के दौरान चीन के साथ हुए प्रमुख सौदों की जांच करने की है.
इस बार भारत का दृष्टिकोण कितना अलग होना चाहिए? इस सवाल पर उन्होंने कहा, 'भारत यामीन की सरकार के साथ भी लगातार बातचीत की पेशकश करता रहा है, लेकिन उनका रुख चीन की ओर था. मुझे लगता है कि इसबार सरकार को पता है कि मालदीव सरकार के साथ संबंध कैसे स्थापित किया जाए. यही वजह है कि पीएम ने विदेश दौरों में मालदीव दौरा सबसे पहले चुना है.