नई दिल्ली: पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने नए कानूनों और आरटीआई संशोधन को लेकर बड़ा बयान दिया है. मुखर्जी ने कहा कि कानूनों के सफल होने के लिए सार्वजनिक परामर्श आवश्यक है और कानूनों का मसौदा तैयार करने की जिम्मेदारी सिर्फ निर्वाचित जनप्रतिनिधियों पर नहीं छोड़ी जा सकती.
पूर्व राष्ट्रपति ने कहा, 'यह 1.3 अरब लोगों का देश है...यदि सांसदों के विचार और उनका विवेक पर्याप्त होता तो हमने वैसा आरटीआई कानून नहीं पाया होता, जैसा कि यह संशोधन से पहले था.'
मुखर्जी ने यह टिप्पणी सूचना का अधिकार अभियान में सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता अरूणा रॉय को पॉलोस मार ग्रेहियस पुरस्कार 2019 प्रदान करने के लिए आयोजित कार्यक्रम में की.
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राज्यसभा ने सूचना का अधिकार (संशोधन) विधेयक 2019 पारित किया है जो सरकार को केंद्रीय और राज्य स्तरों पर सूचना आयुक्तों की तनख्वाह और सेवा शर्तों को तय करने की शक्ति प्रदान करता है.
मुखर्जी ने कहा कि संप्रग सरकार के कार्यकाल में विदेश में एक पत्रकार वार्ता के दौरान उनसे एक मौसदा विधेयक पर 'लोगों के एक समूह' के साथ उनकी बातचीत के बारे में सवाल किया गया था.
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उन्होंने कहा कि यह सवाल पूछा गया, 'एक संसदीय लोकतंत्र में कानून बनाना संसद और विधानसभाओं का विशेषाधिकार है. आप कैसे लोगों के समूह से बातचीत कर सकते हैं जो संसद या राज्य विधानसभा के सदस्य भी नहीं हैं? उन्होंने एक मकसद के लिए लड़ने का फैसला किया तथा लोकपाल विधेयक का मसौदा तैयार किया और आपने उनके साथ कई दिनों तक चर्चा की.'
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मुखर्जी ने कहा, 'मेरा जवाब था... मेरा आज भी यही जवाब है कि भारतीय लोकतंत्र को एक नया आयाम मिला है. हमारा मानना है कि यदि कानून को सफल होने की आवश्यकता है, तो कानून को संसद के करीब 780 सदस्यों और 29 विधानसभाओं के करीब 4,200 सदस्यों के विवेक और ज्ञान तक सीमित नहीं रहना चाहिए.'