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कानूनों के सफल होने के लिए सार्वजनिक परामर्श जरूरी है: प्रणब मुखर्जी

आरटीआई कानून में संशोधन के बाद विपक्ष और कई सामाजिक कार्यकर्ता इसकी आलोचना कर चुके हैं. पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कानूनों में बदलाव करते समय सार्वजनिक परामर्श लेने की बात कही है. पढ़ें क्या कहा मुखर्जी ने....

प्रणब मुखर्जी (फाइल फोटो)
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Published : Jul 29, 2019, 9:34 AM IST

नई दिल्ली: पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने नए कानूनों और आरटीआई संशोधन को लेकर बड़ा बयान दिया है. मुखर्जी ने कहा कि कानूनों के सफल होने के लिए सार्वजनिक परामर्श आवश्यक है और कानूनों का मसौदा तैयार करने की जिम्मेदारी सिर्फ निर्वाचित जनप्रतिनिधियों पर नहीं छोड़ी जा सकती.

पूर्व राष्ट्रपति ने कहा, 'यह 1.3 अरब लोगों का देश है...यदि सांसदों के विचार और उनका विवेक पर्याप्त होता तो हमने वैसा आरटीआई कानून नहीं पाया होता, जैसा कि यह संशोधन से पहले था.'

मुखर्जी ने यह टिप्पणी सूचना का अधिकार अभियान में सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता अरूणा रॉय को पॉलोस मार ग्रेहियस पुरस्कार 2019 प्रदान करने के लिए आयोजित कार्यक्रम में की.

पढ़ें-RTI (संशोधन) विधेयक : राज्यसभा में बिल पास, विपक्ष का भारी विरोध बेअसर

राज्यसभा ने सूचना का अधिकार (संशोधन) विधेयक 2019 पारित किया है जो सरकार को केंद्रीय और राज्य स्तरों पर सूचना आयुक्तों की तनख्वाह और सेवा शर्तों को तय करने की शक्ति प्रदान करता है.

मुखर्जी ने कहा कि संप्रग सरकार के कार्यकाल में विदेश में एक पत्रकार वार्ता के दौरान उनसे एक मौसदा विधेयक पर 'लोगों के एक समूह' के साथ उनकी बातचीत के बारे में सवाल किया गया था.

पढ़ें-भ्रष्टों की मदद के लिए RTI कानून को कमजोर कर रही सरकार : राहुल

उन्होंने कहा कि यह सवाल पूछा गया, 'एक संसदीय लोकतंत्र में कानून बनाना संसद और विधानसभाओं का विशेषाधिकार है. आप कैसे लोगों के समूह से बातचीत कर सकते हैं जो संसद या राज्य विधानसभा के सदस्य भी नहीं हैं? उन्होंने एक मकसद के लिए लड़ने का फैसला किया तथा लोकपाल विधेयक का मसौदा तैयार किया और आपने उनके साथ कई दिनों तक चर्चा की.'

पढ़ें-मोदी सरकार ने लोगों से धोखा कियाः अन्ना हजारे

मुखर्जी ने कहा, 'मेरा जवाब था... मेरा आज भी यही जवाब है कि भारतीय लोकतंत्र को एक नया आयाम मिला है. हमारा मानना है कि यदि कानून को सफल होने की आवश्यकता है, तो कानून को संसद के करीब 780 सदस्यों और 29 विधानसभाओं के करीब 4,200 सदस्यों के विवेक और ज्ञान तक सीमित नहीं रहना चाहिए.'

नई दिल्ली: पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने नए कानूनों और आरटीआई संशोधन को लेकर बड़ा बयान दिया है. मुखर्जी ने कहा कि कानूनों के सफल होने के लिए सार्वजनिक परामर्श आवश्यक है और कानूनों का मसौदा तैयार करने की जिम्मेदारी सिर्फ निर्वाचित जनप्रतिनिधियों पर नहीं छोड़ी जा सकती.

पूर्व राष्ट्रपति ने कहा, 'यह 1.3 अरब लोगों का देश है...यदि सांसदों के विचार और उनका विवेक पर्याप्त होता तो हमने वैसा आरटीआई कानून नहीं पाया होता, जैसा कि यह संशोधन से पहले था.'

मुखर्जी ने यह टिप्पणी सूचना का अधिकार अभियान में सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता अरूणा रॉय को पॉलोस मार ग्रेहियस पुरस्कार 2019 प्रदान करने के लिए आयोजित कार्यक्रम में की.

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राज्यसभा ने सूचना का अधिकार (संशोधन) विधेयक 2019 पारित किया है जो सरकार को केंद्रीय और राज्य स्तरों पर सूचना आयुक्तों की तनख्वाह और सेवा शर्तों को तय करने की शक्ति प्रदान करता है.

मुखर्जी ने कहा कि संप्रग सरकार के कार्यकाल में विदेश में एक पत्रकार वार्ता के दौरान उनसे एक मौसदा विधेयक पर 'लोगों के एक समूह' के साथ उनकी बातचीत के बारे में सवाल किया गया था.

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उन्होंने कहा कि यह सवाल पूछा गया, 'एक संसदीय लोकतंत्र में कानून बनाना संसद और विधानसभाओं का विशेषाधिकार है. आप कैसे लोगों के समूह से बातचीत कर सकते हैं जो संसद या राज्य विधानसभा के सदस्य भी नहीं हैं? उन्होंने एक मकसद के लिए लड़ने का फैसला किया तथा लोकपाल विधेयक का मसौदा तैयार किया और आपने उनके साथ कई दिनों तक चर्चा की.'

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मुखर्जी ने कहा, 'मेरा जवाब था... मेरा आज भी यही जवाब है कि भारतीय लोकतंत्र को एक नया आयाम मिला है. हमारा मानना है कि यदि कानून को सफल होने की आवश्यकता है, तो कानून को संसद के करीब 780 सदस्यों और 29 विधानसभाओं के करीब 4,200 सदस्यों के विवेक और ज्ञान तक सीमित नहीं रहना चाहिए.'

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PRANAB-RTI
Public consultation necessary for laws to become successful: Pranab Mukherjee
         New Delhi, Jul 28 (PTI) Former President Pranab Mukherjee said on Sunday that public consultation is necessary for laws to become successful and drafting of legislations cannot be left only to elected representatives.
         He made the remarks at an event organized to confer Paulos Mar Greharious Award, 2019 on socio-political activist Aruna Roy, for her contribution to the right to information campaign.
         The Rajya Sabha on Thursday passed the Right to Information (Amendment) Bill, 2019, that proposes to empower the Centre to set the salaries and service conditions of information commissioners at central and state levels.
         The government's move had triggered protests from the opposition and RTI activists, who alleged that the Bill sought to undermine the authority of the information commissions.
         Mukherjee said during the UPA government's tenure, at a press conference in a foreign country, he was asked about his negotiations with a "group of people" on a draft bill.
         The question was, he recalled, "In a parliamentary democracy, legislation is the domain of members of Parliament and assemblies... exclusive jurisdiction. How can you negotiate legislation with a group of people who are not members of Parliament or state legislatures? They decided to fight for a cause and drafted the Lokpal Bill and you discussed with them for days together."
         "My response was... and it's my response even today that Indian democracy has taken a new dimension. We believe that if it needs to be successful, it must not be confined to the wisdom and knowledge of around 780 members of Parliament and around 4,200 members of 29 legislative assemblies.
         "It's a land of 1.3 billion people... if the views of the legislators and their wisdom were enough, we could not have got the RTI Act as it was before the amendment," the former president said.
         Mukherjee said he has not gone through the amendments brought to the Right to Information Act in details but "before that, it was a quality piece of legislation" to have information because it was based on the experiences of Aruna Roy and her colleagues. PTI GVS SNE
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