नई दिल्ली : बिहार की जनता के सामने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने फर्स्ट शो में जमकर दहाड़े. यही नहीं बिहार की जनता को पुराने दिन भी याद दिलाए. पहली रैली से ही प्रधानमंत्री आक्रामक रहे. शायद विपक्षी पार्टियों ने भी प्रधानमंत्री की इतनी आक्रामक रैली की कल्पना नहीं की होगी.
बिहार में प्रधानमंत्री की 12 रैलियां शेड्यूल की गईं हैं. पहली ही रैली में प्रधानमंत्री ने विपक्ष की जमकर खिंचाई करते हुए सीधे तौर पर महागठबंधन में शामिल पार्टियों को देश का साथ न देने वाली पार्टियों के नाम से पुकार कर बिहार चुनाव के प्रचार को नई दिशा दे दी और एनडीए के प्रचार में कई गुना आक्रमकता बढ़ा दी है.
प्रधानमंत्री की 12 रैलियां होंगी
भारतीय जनता पार्टी के लिए बिहार का चुनाव इस बार प्रधानमंत्री के दारोमदार पर टिका है. भारतीय जनता पार्टी बैनर, पोस्टर के जरिए भी केंद्र की उपलब्धियों और प्रधानमंत्री का ही बखान कर रही है. यही कारण है कि प्रधानमंत्री के नाम का पोस्टर मात्र इस्तेमाल करने पर एलजेपी को कड़ी फटकार लगाई गई थी.
जनता को भाजपा के वोटर में कन्वर्ट करने के लिए प्रधानमंत्री की 12 रैलियां तय की गई हैं. पहले दिन ही प्रधानमंत्री ने 5 घंटे में ताबड़तोड़ तीन रैलियां कीं और तीनों में ही जनता को यह बताया कि यदि वह भूल से भी एनडीए का साथ न देंगे तो फिर से बिहार को महागठबंधन जंगल राज में ले जा सकता है.
पहले फेज में असर डाल सकती हैं तीनों रैलियां
मिशन बिहार में प्रधानमंत्री के 5 घंटे विपक्षी पार्टियों के लिए कितना भारी पड़ेंगे, यह तो चुनाव परिणाम के बाद पता चल पाएगा लेकिन प्रधानमंत्री की रैलियों में कोरोना के बावजूद जनता ने रुचि दिखाई. प्रधानमंत्री ने जिस तरह से विरोधियों को ललकारा और हर मुद्दे पर गरजते हुए विरोधियों पर प्रहार किया, उसे देखकर लगता है कि मिशन बिहार में नरेंद्र मोदी के यह 5 घंटे पहले फेज में अच्छा खासा असर डाल सकते हैं. बिहार में भारतीय जनता पार्टी के लिए इस बार केंद्र की उपलब्धियां और प्रधानमंत्री के नाम को भुनाने के अलावा बहुत ज्यादा विकल्प नहीं है. सुशासन बाबू यानी नीतीश कुमार के नाम पर पार्टी का कोई भी उम्मीदवार वोट मांगने को तैयार नहीं है.
सुशासन बाबू के नाम से परहेज
सूत्रों की मानें तो चुनाव प्रचार शुरू होने से पहले ही सांसदों की बैठक में सांसदों ने यह बात केंद्रीय नेतृत्व के सामने रखी थी कि सुशासन बाबू के नाम पर वह अपने इलाकों में वोट नहीं मांगेंगे क्योंकि उन्हें डर है कि नीतीश कुमार के नाम पर इस बार जनता उन्हें वोट देने को तैयार नहीं होगी. यही बात ग्राउंड जीरो पर भी देखने को भी मिल रही है. नीतीश की कई चुनावी सभा में लोगों ने दल-बदलू और पलटू राम जैसे विरोधी नारे लगाकर सुशासन बाबू का विरोध किया है. इसी बात की आशंका भारतीय जनता पार्टी के सांसदों ने शुरुआती दौर में ही केंद्रीय कार्यालय में हुई बैठक में जता दी थी. इसके बाद ही यह तय किया गया था कि इस बार बिहार के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्र की उपलब्धियों के नाम पर ही चुनावी मैदान में उतरेगी.
याद दिलाए पुराने दिन
पहले दिन की रैलियों में प्रधानमंत्री ने विरोधियों को सीधे आरोप लगाया कि लोग बिहार में पहले गाड़ियां नहीं खरीदते थे क्योंकि उन्हें लगता था कि इससे किडनैपिंग हो जाएगी. लूट के डर से लोग रात में रेलवे स्टेशन पर ही रुक जाते थे कि सुबह घर जाएंगे. रंगदारी वसूली जाती थी. घर की बेटियां घर से निकलती थीं तो जब तक वापस न आ जाएं, मां-बाप की सांसें अटकीं रहतीं थीं.
विपक्ष को शायद ये उम्मीद नहीं होगी कि पीएम शब्दों के इतने तीखे बाण का इस्तेमाल चुनाव में करेंगे. जैसे ही पीएम ने युवाओं को सरकारी नौकरी देने की कही, रैली में मौजूद युवाओं ने खूब तालियां बजाईं. मगर लगे हाथ पीएम ने पुरानी बातें याद दिलाते हुए यह भी कह दिया कि एक-एक सरकारी नौकरी देने के लिए आरजेडी राज में मोटी रिश्वत खाई जाती थी. युवा वोटरों ने काफी तालियां बजाकर इस बात पर भी मुहर लगाई.
भोजपुरी में प्रधानमंत्री का तड़का
प्रधानमंत्री के 'लालटेन के जमाना गईल, अब बिहार में लालटेन के जरूरत नइखे' बोलते ही रैली में मौजूद जनता ने खूब तालियां बजाईं. आर्टिकल 370, ट्रिपल तलाक और माओवादियों पर प्रधानमंत्री ने विपक्षियों को कटघरे में खड़ा कर दिया. उन्होंने कहा की विपक्षी पार्टी ने हर एक अच्छे कार्यों में विरोध किया. देश का साथ नहीं दिया और इसे बिहार वासियों को समझना चाहिए. प्रधानमंत्री ने आरोप लगाया कि बिहार को लालटेन युग में लटकाए रखने वाले लोगों ने बिहार को 15 साल तक आगे बढ़ने नहीं दिया.
विपक्षी दलों को ऐसी उम्मीद नहीं थी
विपक्षियों को भी यह उम्मीद नहीं थी कि प्रधानमंत्री की रैली बिहार में इतनी ज्यादा आक्रामक होगी. इसका कारण यह है कि एक दिन पहले पश्चिम बंगाल में प्रधानमंत्री ने वर्चुअल माध्यम से पश्चिम बंगाल के लोगों को संबोधित किया था. उसमें वह इतने आक्रामक नहीं दिखे थे. उल्टे उन्होंने हिंसा के विरुद्ध अहिंसा से लड़ाई जीतने की बात कही थी लेकिन बिहार में प्रधानमंत्री बिल्कुल ही नए अंदाज में नजर आए. यह आक्रामक अंदाज बाकी बचे 9 रैलियों में भी अगर इसी तरह दिखा तो यह विपक्षी पार्टियों के लिए सही में मुश्किलें पैदा कर सकता है और इस बात को लेकर विपक्षी कहीं ना कहीं अंदरखाने डरे हुए भी हैं.