नई दिल्ली: पूर्वी दिल्ली में आयोजित तीन दिवसीय अमेरिकन एकेडमी ऑफ़ इंप्लांट डेंटिस्ट्री (एएआईडी) एवं वर्ल्ड कांग्रेस ऑफ ओरल इम्प्लांटोलॉजिस्ट्स (डबल्यूसीओआई) में अमेरिका, जापान, अबू धाबी और अन्य कई देशों से आए हुए करीब 1200 डेंटल सर्जन और डॉक्टरों ने दंत चिकित्सा के क्षेत्र में आई नई-नई तकनीक को लेकर चर्चा की. साथ ही उन तकनीकों के इस्तेमाल से मरीज को होने वाली सहूलियत के बारे में भी बताया.
इस कांफ्रेंस में भारतीय अमेरिकी डेंटल सर्जन डॉक्टर मृणाल वर्मा ने बताया कि उन्होंने इस कांफ्रेंस में हिस्सा लिया और फोटोकेमेट्री नामक दांतों में इंप्लांट लगाने की एक नई तकनीक पर लेक्चर दिया. साथ ही इस तकनीक के उपयोग और लाभ के बारे में बताया. डॉक्टर मृणाल वर्मा ने बताया कि आधुनिक समय में दांतों में इंप्लांट्स लगाने की इस तरह की तकनीक भी आ गई है कि अगर किसी के मुंह में दांत के नीचे की हड्डी भी खत्म हो जाती है तो भी उस हड्डी को भी दोबारा से तैयार करके इंप्लांट लगाए जा सकते हैं.
फोटोकेमेट्री तकनीक से दांतों को दे सकते हैं नैचुरल फील :
डॉक्टर में मृणाल ने बताया कि इंप्लांट्स लगाने के बाद उनके ऊपर हम फोटोकेमेट्री तकनीक से दांतों को अपने हिसाब से प्रेसाइज करा सकते हैं. साथ ही दांतों को नेचुरल दांतों जैसा बना सकते हैं. उन्होंने बताया कि अब भारत में भी धीरे-धीरे दांतों के इंप्लांट्स लगवाने का चलन बढ़ रहा है. अब इंप्लांट्स की कीमतें भी कम हो रही हैं और लोगों के पास सरकारी अस्पतालों में भी इंप्लांट्स लगाने के विकल्प उपलब्ध हो रहे हैं, जिससे कि खर्चा कम आता है. वहीं प्राइवेट में भी अब कम खर्च वाले इंप्लांट्स उपलब्ध होने लगे हैं.
इंप्लांट के सहारे दांत लगवाकर पा सकते हैं नैचुरल फील
डॉक्टर मृणाल वर्मा ने बताया कि दांतों में इंप्लांट लगवाने की मार्केट में कई ऐसी तकनीक उपलब्ध हैं, जिनके इस्तेमाल से इंप्लांट लगवा कर दांतों में नेचुरल फील पा सकते हैं. इन दातों की लाइफ भी काफी लंबी होती है. इंप्लांट के जरिए दांतों को लगवाने के बाद कोई भी आसानी से खाना खा सकता है और उससे चेहरे का लुक भी नहीं बदलता है. मुंह में दांतो के न होने से लोगों कई तरह परेशानियां सामना करना पड़ता है. लेकिन, अब इस तरह की तकनीक उपलब्ध है कि नए दांत लगवाने के बाद उन्हें किसी भी तरह की कोई परेशानी नहीं होती है.
कब पड़ती है इंप्लांट की जरूरत
वहीं, कॉन्फ्रेंस में शामिल होने आए अमेरिका में रह रहे भारतीय मूल के डॉक्टर प्रशांत के हरीबाबू ने बताया कि एक्सीडेंट के माध्यम से या दांतों में कीड़ा लगने के बाद जब हमारे दांत पूरी तरह से खत्म हो जाते हैं तब इंप्लांट लगाने की जरूरत पड़ती है. मुंह में पहले इंप्लांट लगाए जाते हैं. उसके कुछ समय बाद जब इंप्लांट्स पूरी तरह मुंह में सेट हो जाते हैं उसके बाद उनके ऊपर दांतों को बनाया जाता है.
डॉक्टर प्रशांत ने बताया कि अब मुंह में दांत लगाने के लिए किए जाने वाले ऑपरेशन में भी नोन इनवेसिव (छोटा चीरा) तकनीक का इस्तेमाल हो रहा है, जिससे बहुत कम समय और कम चीर फाड़ दांतों को लगाया जाता है. साथ ही प्रक्रिया नॉन इनवेसिव होने से जख्म भी जल्दी ठीक होते हैं.
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