नई दिल्ली/ढाका: बांग्लादेश के चटगांव हिल ट्रैक्टस में स्वदेशी लोगों पर हुए हमलों की जांच आयोग की रिपोर्ट सार्वजनिक करने का यूनुस सरकार से आह्वान किया गया है. 19 और 20 सितंबर 2024 को वहां के लोगों पर हमला हुआ था. वहीं, रिपोर्ट सार्वजनिक करने का आह्वान चटगांव हिल ट्रैक्ट्स के स्वदेशी लोगों के लिए नव स्थापित ग्लोबल एसोसिएशन (जीएआईपीसी) ने बांग्लादेश के यूनुस सरकार से की है.
अवैध रूप से बसे लोगों और बांग्लादेशी सेना द्वारा किए गए इन हमलों में कम से कम चार मूल निवासी मारे गए थे. मरने वालों धना रंजन चकमा, जुनान चकमा, रुबेल त्रिपुरा और अनिक चकमा शामिल हैं. साथ ही इस हमले में कम से कम 75 मूल निवासी जुम्मा लोग गंभीर रूप से घायल हो गए, जबकि कम से कम 142 घरों, दुकानों और अन्य व्यापारिक प्रतिष्ठानों, संपत्तियों, बौद्ध मंदिरों को लूट लिया गया, नष्ट कर दिया गया या आग लगा दी गई.
26 सितंबर 2024 को चटगांव संभागीय आयुक्त ने मोहम्मद नूरुल्लाह नूरी की अध्यक्षता में सात सदस्यीय जांच समिति गठित की. समिति को 10 अक्टूबर 2024 के भीतर जांच कर रिपोर्ट सौंपने की बात कही गई थी. जांच आयोग ने इस साल 30 सितंबर को रंगामाटी और 2 अक्टूबर 2024 को लारमा स्क्वायर बाजार, दिघिनाला में प्रभावित क्षेत्रों का दौरा किया. समिति ने कहा कि वह हाल की हिंसक घटनाओं के मूल कारण का पता लगाने, पीड़ितों की सूची बनाने और सरकार को उनके नुकसान की जानकारी देने तथा ऐसी हिंसक घटनाएं फिर से न हो, उसके लिए सिफारिशें करने के बाद एक रिपोर्ट पेश करेगी.
चटगांव हिल ट्रैक्ट्स में सभी स्वदेशी लोग गैर-मुस्लिम हैं. वे मुख्य रूप से बौद्ध धर्म, हिंदू धर्म और ईसाई धर्म का पालन करते हैं और अपने जातीय मूल के अलावा, उन्हें 19-20 सितंबर 2024 को हमलों के दौरान उनके धार्मिक विश्वासों के लिए निशाना बनाया गया था. हालांकि, आज तक, बांग्लादेश में इस सबसे कमजोर लोगों पर नूरी की जांच आयोग की रिपोर्ट की स्थिति के बारे में कोई सार्वजनिक बयान नहीं दिया गया है.
ईटीवी भारत से बात करते हुए जीएआईपीसी की अमेरिका स्थित सह-संयोजक अरुणाभा चकमा ने कहा कि, यह इन संगठित हमलों में प्रभावित व्यक्तियों की पारदर्शिता, जवाबदेही और पुनर्वास के लिए अच्छा संकेत नहीं है. यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि, अंतरिम सरकार पिछली तानाशाही सरकारों के नक्शेकदम पर चलते हुए सीएचटी के स्वदेशी लोगों के खिलाफ घोर मानवाधिकार उल्लंघन के लिए दंड से मुक्ति प्रदान कर रही है और जांच आयोगों की रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं कर रही है. फ्रांस स्थित जीएआईपीसी की संस्थापक सदस्य समाप्ति चकमा बोर्गने ने कहा कि, तत्कालीन बांग्लादेश सरकार ने 10 अप्रैल 1992 के लोगांग नरसंहार की जांच के लिए जस्टिस सुल्तान हुसैन खान (सेवानिवृत्त) के नेतृत्व में एक जांच आयोग का गठन किया था. लेकिन आज तक उस रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया गया है.
भारत से जीएआईपीसी के संयोजक सुहास चकमा ने आगे कहा, "मानवाधिकारों के ऐसे घोर उल्लंघनों के संबंध में पारदर्शिता और जवाबदेही स्थापित करने की आवश्यकता पर जितना जोर दिया जाए, कम है. नोबेल पुरस्कार विजेता डॉ. मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार को 19-20 सितंबर 2024 को सीएचटी में स्वदेशी लोगों पर हुए हमलों की जांच आयोग की रिपोर्ट सार्वजनिक करके यह दिखाने की जरूरत है कि वह पिछली सरकारों से अलग है. अगर डॉ. मोहम्मद यूनुस सरकार हालिया जांच आयोग की रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं करती है, तो हम डॉ. यूनुस के पाखंड को उजागर करने के लिए संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय अभिनेताओं के साथ इस मुद्दे को उठाएंगे."
19 से 20 सितंबर 2024 को घोर मानवाधिकार उल्लंघनों के बाद जीएआईपीसीएचटी की स्थापना की गई है और इसने संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया, यूनाइटेड किंगडम, स्विट्जरलैंड, दक्षिण कोरिया, जापान, चीन और भारत में शाखाएं स्थापित की हैं.
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