हैदराबाद : भारत और अमेरिका के बीच मंगलवार को टू-प्लस टू वार्ता हुई. इस दौरान भारत और अमेरिका के बीच तीन समझौतों पर हस्तारक्षर किए गए. हैदराबाद हाउस में विदेश मंत्री एस जयशंकर और रक्षा मंत्री ने अपने अमेरिकी समकक्षों माइक पोम्पियो मार्क एस्पर के बीच औपचारिक वार्ता हुई.
बेसिक एक्सचेंज एंड कोऑपरेशन एग्रीमेंट से देशों के बीच लॉजिस्टिक्स और सैन्य सहयोग को बढ़ावा मिलेगा. यह समझौता भारत को सशस्त्र यूवी और किलर ड्रोन हासिल करने के लिए भारत के लिए पहला कदम होगा. इसके अलावा डिजिटल इमेजरी और नक्शे सहित बहुत उन्नत और सटीक अमेरिकी भू-स्थानिक डेटा तक पहुंच प्रदान करेगा.
लेकिन जो सवाल कई लोगों के मन में उठ रहा है, वह यह है कि भारत ने चीन विरोधी मोर्चे में अमेरिका का एक महत्वपूर्ण सहयोगी है. इसके अलावा अमेरिका के लिए भारत ने क्या किया है.
अफगानिस्तान में भारत
अमेरिका पहले से कहता आ रहा है कि भारत का अफगानिस्तान में मिलिट्री दखलदांजी होनी चाहिए. जिसे भारत नकारता आया है. अमेरिका का मानना है कि भारत और अफगानिस्तान के एक दूसरे के करीब हैं. इसलिए भारत का हस्तक्षेप वहां पर होना चाहिए. भारत अब तक बचने में कामयाब रहा है. अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा और अब डोनाल्ड ट्रंप ने अफगानिस्तान में भारत की मुख्य भूमिका की मांग की है.
राष्ट्रपति ट्रंप ने पहले से ही यह कहते हुए कि अमेरिकी सैनिक क्रिसमस तक अफगानिस्तान से चले जाएंगे. इसे लेकर काबुल सरकार पहले से ही चिंतित है, जबकि तालिबान ने ट्रंप की घोषणा का स्वागत किया है.
तो सवाल यह है कि क्या अमेरिका ने संघर्षरत अफगानिस्तान में सैनिकों को तैनात करने की भारतीय प्रतिबद्धता को अपनाया है?
लगभग तीन महीने पहले, राष्ट्रपति ट्रंप ने अफगानिस्तान में अमेरिकी उपस्थिति पर एक प्रश्न का उत्तर देते हुए ह्वाइट हाउस में संवाददाताओं से कहा था कि भारत का अफगानिस्तान में कोई मिलिट्री दखलदांजी नहीं है. भारत की यहां पर दखलदांजी होनी चाहिए. इसके बजाय हम वहां पर लड़ रहे हैं.
जनवरी में अफगानिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हमदुल्ला मोहिब से कहा गया कि वे भारत से अफगानिस्तान में भारतीय सैनिकों (एक ब्रिगेड या एक डिवीजन) की तैनाती का अनुरोध करें.
अफगानिस्तान में भारत की बढ़ रही भूमिका प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भारत को वैश्विक शक्ति बनाने के सपने के साथ तालमेल बैठा सकती है. यह एक ऐसी भूमिका है, जो खतरों भरा हुआ है. यह तथ्य कि अफगानिस्तान भारत के रणनीतिक पड़ोस के दायरे में है.
इस समय भारत का पाकिस्तान और चीन के सीमा विवाद चल रहा है. ऐसे में भारत और कोई अन्य खतरा नहीं मोड़ लेना चाहता है. वह आईएस को अपना तीसरा दुश्मन नहीं बनाना चाहता है.
लेकिन साथ ही काबुल में भारत में अपनी पकड़ नहीं बनाता है तो उसकी अनुपस्थिति का पाकिस्तान लाभ उठा सकता है. इसलिए यह एक ऐसा मुद्दा है, जिसके लिए नई दिल्ली को विश्लेषण करने की जरूरत है.
सितंबर 2001 से अफगानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों को तैनात किया गया है. 1990 में भारत ने अपने सैनिकों को द्वीप राष्ट्र (श्रीलंका) से वापस बुला लिया है. जिसके बाद से भारत की वहां पर भागीदारी समाप्त हो गई. लगभग 40,000 भारतीय सैनिक भारतीय शांति-रक्षा बल (IPBF) का हिस्सा थे. श्रीलंका में अभियान में 1,200 सैनिकों ने अपनी जान गंवाई.
भारत-अमेरिका पैक्ट
2016 में एलईएमओए और 2018 में सीओएमसीएएसए पर हस्ताक्षर करने के बाद भू-स्थानिक सहयोग के लिए आधारभूत विनिमय और सहयोग समझौते, बीईसीए, पर आज हस्ताक्षर करना, इस दिशा में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है.
LEMOA सैन्य सुविधाओं के पारस्परिक उपयोग की अनुमति देता है जबकि COMCASA अमेरिका को भारत में संचार उपकरणों को सुरक्षित संचार और वास्तविक समय में सैन्य डेटा और सूचनाओं के आदान-प्रदान के अलावा स्टेशन की अनुमति देता है.
BECA, LEMOA और COMCASA मिलकर US के लिए सैन्य तकनीक को स्थानांतरित करना बहुत आसान बना देंगे. भारत अमेरिका के साथ इस तरह के बढ़े हुए रिश्ते को साझा करने वाला एकमात्र गैर-नाटो देश है.