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'जीवन को शत-शत आहुति में, जलना होगा, गलना होगा कदम मिलाकर चलना होगा...'

अटल बिहारी वाजपेयी लंबे समय तक राजनीति में सक्रिय रहे और अमिट छाप छोड़ी. इस क्रम में उन्होंने कई उतार-चढ़ाव देखे और हर परिस्थति के अनुसार खुद को ढालते रहे. आलोचनाओं और प्रशंसा को समान भाव से लेते हुए आगे बढ़ते रहे. शुरू से अंत तक के चरण में उनकी कई टिप्पणियों और समस्याओं पर उनके विचार आज भी उल्लेखनीय हैं. आइए डालते हैं उनपर एक नजर...

atal bihari vajpayee
अटल बिहारी वाजपेयी
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Published : Aug 16, 2020, 8:00 AM IST

Updated : Aug 16, 2020, 9:06 AM IST

हैदराबाद : अटल बिहारी वाजपेयी को एक ऐसी शख्सियत के तौर पर हम जानते हैं, जिनकी हर वर्ग के लोग प्रशंसा करते हैं. जब वे सदन में भाषण देते थे तब विपक्ष भी उनकी बातें ध्यान से सुनता था. यहां वाजपेयी जी की यह पंक्तियां उनके जीवन के सारांश को चरितार्थ करती हैं. न केवल उनके बल्कि हम सबके जीवन के लिए भी यह पंक्तियां प्रेरणा की स्रोत्र हैं.

बाधाएं आती हैं आएं, घिरें प्रलय की घोर घटाएं,

पांवों के नीचे अंगारे, सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं,

निज हाथों से हंसते-हंसते, आग लगाकर जलना होगा

कदम मिलाकर चलना होगा...

पूरा जीवन अटल जी की निष्काम भावना की कहानी कहता है और इसे ही आधार बनाकर उन्होंने अपने कार्यकाल में अपनी भूमिका निभाई और हर मुद्दे पर मुखर रहे. किसी भी समस्या पर निर्भीक होकर की गई उनकी टिप्पणी आज भी याद की जाती है. आइए उनके कार्यकाल के दौरान आए कुछ पल कैसे यादगार बन गए उनपर एक नजर डालते हैं.

अटल बिहारी वाजपेयी की नेहरू ने की प्रशंसा

नौजवान अटल बिहारी वाजपेयी यूपी के बलरामपुर से पहली बार चुनाव जीतकर संसद पहुंचे थे, नए थे लेकिन जल्द लोकसभा में उन्होंने अपनी गहरी छाप छोड़ी. इतना ही कि प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने भी सदन में उठाए गए उनके मुद्दों पर ध्यान दिया और उनकी हिंदी वक्तव्य कला से प्रभावित हुए. प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू ने ही भविष्यवाणी की थी किसी दिन वाजपेयी देश के पीएम बनेंगे.

श्वेत पत्र- 1962 में चीनी संघर्ष मुद्दे पर श्वेत पत्र जारी करने के लिए सरकार को मजबूर करने में वाजपेयी को सफलता मिली.

वाजपेयी और आपातकाल - उन्होंने इंदिरा गांधी को माफी पत्र लिखा था और बाद में उन्हें सरकार के खिलाफ किसी भी कार्यक्रम में भाग नहीं लेने का आश्वासन देने के बाद पेरोल पर रिहा कर दिया गया था.

कांग्रेस को खतरे का एहसास - कांग्रेस ने सत्तारूढ़ दल के लिए खतरे के प्रयास के रूप में अटल बिहारी वाजपेयी की भारत के विभिन्न हिस्सों में यात्रा को रोक दिया था. उनके आंदोलनों पर कड़े प्रतिबंध लगा दिए गए थे.

राम मंदिर- वाजपेयी ने राम मंदिर के मुद्दे पर दिल्ली में तूफान खड़ा कर दिया था और कहा था कि पृथ्वी पर कोई भी शक्ति श्री राम मंदिर का निर्माण नहीं रोक सकती.

स्टारडम बढ़ा - इंदिरा गांधी ने वाजपेयी और आडवाणी की गिरफ्तारी के आदेश दिए. इस गिरफ्तारी ने उन्हें और लोकप्रिय बनाया.

1998 के लोकसभा चुनाव - अन्नाद्रमुक ने वाजपेयी सरकार से समर्थन वापस ले लिया क्योंकि प्रधानमंत्री ने उनके खिलाफ सभी लंबित भ्रष्टाचार के मामलों को वापस लेने से इनकार कर दिया और तमिलनाडु में द्रमुक शासन को खारिज कर दिया.

बाबरी मस्जिद विध्वंस- बाबरी मस्जिद विध्वंस में उन्हें एक आरोपी के रूप में नामित किया गया था.

2002 के गुजरात दंगों पर - उन्होंने 2002 में नरेंद्र मोदी को एक पत्र भेजा था. दंगों के बाद उन्होंने कहा था कि उन्हें (मोदी) राज धर्म का पालन करना चाहिए और जाति, पंथ या धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं करना चाहिए.

आरएसएस से दूरी - ऐसी धारणाएं थी कि वाजपेयी ने स्वयं को आरएसएस से दूर कर लिया था और केवल पार्टी के लिए एक संचालक के रूप में कार्य कर रहे थे.

धर्म पर उनके विचार
सर्व धर्म समभाव किसी भी धर्म के खिलाफ नहीं है. यह सभी धर्मों को समान सम्मान के साथ मानता है और इसलिए यह कहा जा सकता है कि धर्मनिरपेक्षता की भारतीय अवधारणा अधिक सकारात्मक है. यह विशेष रूप से भारत के लिए अनुकूल है क्योंकि विभिन्न धर्मों के अनुयायी भारत में प्राचीन काल से रह रहे हैं.

धर्मनिरपेक्ष राज्य की सही व्याख्या यह होगी कि सभी धर्मों या धार्मिक विश्वासों को समान सम्मान के साथ माना जाए.

हमें धार्मिक प्रथाओं और अनुष्ठानों के बीच अंतर करना होगा जो कि त्योहारों और उनके सामाजिक पहलुओं से जुड़े हुए हैं ताकि उनके अंतर्राष्ट्रीय पहलुओं में परिवर्तन हो सके.

हैदराबाद : अटल बिहारी वाजपेयी को एक ऐसी शख्सियत के तौर पर हम जानते हैं, जिनकी हर वर्ग के लोग प्रशंसा करते हैं. जब वे सदन में भाषण देते थे तब विपक्ष भी उनकी बातें ध्यान से सुनता था. यहां वाजपेयी जी की यह पंक्तियां उनके जीवन के सारांश को चरितार्थ करती हैं. न केवल उनके बल्कि हम सबके जीवन के लिए भी यह पंक्तियां प्रेरणा की स्रोत्र हैं.

बाधाएं आती हैं आएं, घिरें प्रलय की घोर घटाएं,

पांवों के नीचे अंगारे, सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं,

निज हाथों से हंसते-हंसते, आग लगाकर जलना होगा

कदम मिलाकर चलना होगा...

पूरा जीवन अटल जी की निष्काम भावना की कहानी कहता है और इसे ही आधार बनाकर उन्होंने अपने कार्यकाल में अपनी भूमिका निभाई और हर मुद्दे पर मुखर रहे. किसी भी समस्या पर निर्भीक होकर की गई उनकी टिप्पणी आज भी याद की जाती है. आइए उनके कार्यकाल के दौरान आए कुछ पल कैसे यादगार बन गए उनपर एक नजर डालते हैं.

अटल बिहारी वाजपेयी की नेहरू ने की प्रशंसा

नौजवान अटल बिहारी वाजपेयी यूपी के बलरामपुर से पहली बार चुनाव जीतकर संसद पहुंचे थे, नए थे लेकिन जल्द लोकसभा में उन्होंने अपनी गहरी छाप छोड़ी. इतना ही कि प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने भी सदन में उठाए गए उनके मुद्दों पर ध्यान दिया और उनकी हिंदी वक्तव्य कला से प्रभावित हुए. प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू ने ही भविष्यवाणी की थी किसी दिन वाजपेयी देश के पीएम बनेंगे.

श्वेत पत्र- 1962 में चीनी संघर्ष मुद्दे पर श्वेत पत्र जारी करने के लिए सरकार को मजबूर करने में वाजपेयी को सफलता मिली.

वाजपेयी और आपातकाल - उन्होंने इंदिरा गांधी को माफी पत्र लिखा था और बाद में उन्हें सरकार के खिलाफ किसी भी कार्यक्रम में भाग नहीं लेने का आश्वासन देने के बाद पेरोल पर रिहा कर दिया गया था.

कांग्रेस को खतरे का एहसास - कांग्रेस ने सत्तारूढ़ दल के लिए खतरे के प्रयास के रूप में अटल बिहारी वाजपेयी की भारत के विभिन्न हिस्सों में यात्रा को रोक दिया था. उनके आंदोलनों पर कड़े प्रतिबंध लगा दिए गए थे.

राम मंदिर- वाजपेयी ने राम मंदिर के मुद्दे पर दिल्ली में तूफान खड़ा कर दिया था और कहा था कि पृथ्वी पर कोई भी शक्ति श्री राम मंदिर का निर्माण नहीं रोक सकती.

स्टारडम बढ़ा - इंदिरा गांधी ने वाजपेयी और आडवाणी की गिरफ्तारी के आदेश दिए. इस गिरफ्तारी ने उन्हें और लोकप्रिय बनाया.

1998 के लोकसभा चुनाव - अन्नाद्रमुक ने वाजपेयी सरकार से समर्थन वापस ले लिया क्योंकि प्रधानमंत्री ने उनके खिलाफ सभी लंबित भ्रष्टाचार के मामलों को वापस लेने से इनकार कर दिया और तमिलनाडु में द्रमुक शासन को खारिज कर दिया.

बाबरी मस्जिद विध्वंस- बाबरी मस्जिद विध्वंस में उन्हें एक आरोपी के रूप में नामित किया गया था.

2002 के गुजरात दंगों पर - उन्होंने 2002 में नरेंद्र मोदी को एक पत्र भेजा था. दंगों के बाद उन्होंने कहा था कि उन्हें (मोदी) राज धर्म का पालन करना चाहिए और जाति, पंथ या धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं करना चाहिए.

आरएसएस से दूरी - ऐसी धारणाएं थी कि वाजपेयी ने स्वयं को आरएसएस से दूर कर लिया था और केवल पार्टी के लिए एक संचालक के रूप में कार्य कर रहे थे.

धर्म पर उनके विचार
सर्व धर्म समभाव किसी भी धर्म के खिलाफ नहीं है. यह सभी धर्मों को समान सम्मान के साथ मानता है और इसलिए यह कहा जा सकता है कि धर्मनिरपेक्षता की भारतीय अवधारणा अधिक सकारात्मक है. यह विशेष रूप से भारत के लिए अनुकूल है क्योंकि विभिन्न धर्मों के अनुयायी भारत में प्राचीन काल से रह रहे हैं.

धर्मनिरपेक्ष राज्य की सही व्याख्या यह होगी कि सभी धर्मों या धार्मिक विश्वासों को समान सम्मान के साथ माना जाए.

हमें धार्मिक प्रथाओं और अनुष्ठानों के बीच अंतर करना होगा जो कि त्योहारों और उनके सामाजिक पहलुओं से जुड़े हुए हैं ताकि उनके अंतर्राष्ट्रीय पहलुओं में परिवर्तन हो सके.

Last Updated : Aug 16, 2020, 9:06 AM IST
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