नई दिल्ली: जामिया मिल्लिया यूनिवर्सिटी में हुई हिंसा मामले में जांच की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान दिल्ली पुलिस ने कहा कि अनियंत्रित भीड़ पर पुलिस का हस्तक्षेप जरूरी था. सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं ने दिल्ली पुलिस की ओर से सीलबंद लिफाफे में दी गई सीसीटीवी फुटेज देखने की मांग की. मामले पर अगली सुनवाई 18 सितंबर को होगी.
'चेतावनी के बावजूद भीड़ ने आगजनी और तोड़फोड़ की'
अमन लेखी ने कहा कि भीड़ को चेतावनी दी गई और उसे इसलिए गैरकानूनी घोषित किया गया क्योंकि भीड़ ने आगजनी की. कई बार की चेतावनी देने के बावजूद भीड़ आगे बढ़ती रही. भीड़ पीछे हटने की बजाय एक समानांतर रोड से मथुरा रोड पर पहुंच गई. बड़ी भीड़ को नियंत्रित करने के लिए ज्यादा पुलिस बलों बुलवाए. लेखी ने कहा कि भीड़ में सभी छात्र नहीं थे बल्कि उनमें कई आसपास के घरों से आए थे. उन्होंने कहा कि दिल्ली पुलिस के पास ऐसे फोटो हैं जिसमें भीड़ को दोपहिया वाहनों में तोड़फोड़ करते और उसमें से आग लगाने के लिए पेट्रोल निकालते देखा गया. भीड़ ने बसों , निजी वाहनों और मोटरसाइकिलों को आग के हवाले कर दिया. डीटीसी की बसों में बैठे लोग किसी तरह अपनी जान बचाकर भागे. कोई विकल्प नहीं देखकर दिल्ली पुलिस ने आंसू गैस के गोले छोड़े.
पुलिस पर तीनों ओर से पत्थरबाजी हो रही थी'
लेखी ने कहा कि भीड़ सीवी रमन मार्ग पर एकत्र होकर और हिंसक हो गई. यह अपने आप नहीं हुआ बल्कि भीड़ कई रास्तों से वहां आ रही थी. उन्होंने कहा कि भीड़ जामिया के कैंपस में घुस गई वहां पत्थरबाजी होने लगी. भीड़ ने यूनिवर्सिटी रोड पर वाहनों को नुकसान पहुंचाना शुरू कर दिया. पुलिस की चेतावनी का कोई असर नहीं हुआ. इस घटना में कई पुलिसकर्मी घायल हो गए. पुलिस पर तीन ओर से पत्थरबाजी की जा रही थी.
पुलिस ने अपना कर्तव्य निभाया
लेखी ने कहा कि जामिया कैंपस में भीड़ अनियंत्रित हो गई. उसके बाद शाम साढ़े पांच बजे पुलिस कैंपस में घुसी और आंसू गैस और लाठीचार्ज किया. करीब डेढ़ घंटे के बाद दिल्ली पुलिस जामिया कैंपस से बाहर आ गई. उन्होंने कहा कि यूनिवर्सिटी सीखने की जगह है न कि आग लगाने की. यूनिवर्सिटी कैंपस के अंदर हथियार कहां से आ गए. उन्होंने कहा कि पुलिस ने अपना कर्तव्य निभाया है और अगर किसी ने कानून तोड़ा तो भीड़ थी. पिछले 21 अगस्त को दिल्ली पुलिस ने कहा था कि उसने कानून-व्यवस्था कायम रखने के लिए कार्रवाई की. दिल्ली पुलिस ने जामिया यूनिवर्सिटी में की गई कार्रवाई को सही बताते हुए याचिका खारिज करने की मांग की थी.
पुलिस पर लगाए थे गंभीर आरोप
पिछले 4 अगस्त को सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से दिल्ली पुलिस पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा गया था कि पुलिस छात्रों पर इसलिए बर्बरता से पेश आई ताकि वे नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ प्रदर्शनों में हिस्सा न ले सकें. याचिकाकर्ताओं के वकील कॉलिन गोंजाल्वेस ने कोर्ट के सामने दो सीडी भी प्ले कर दिखाया था. सुनवाई के दौरान गोंजाल्वेस ने पुलिस बर्बरता की स्वतंत्र जांच की मांग की थी. उन्होंने कहा था कि छात्रों ने संसद मार्च की योजना बनाई थी जिससे पुलिस भयभीत हो गई थी. छात्रों पर आंसू गैस के गोलों का इस्तेमाल किया गया. एक छात्र का हाथ टूट गया, एक छात्र की आंखों की रोशनी चली गई. इस मामले में चार छात्रों पर पूरी घटना की साजिश रचने का आरोप लगाया गया है. गोंजाल्वेस ने कहा था कि छात्र विवाद करने के मूड में नहीं थे.
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छात्र आंदोलन की आड़ में हिंसा को अंजाम दिया गया
इस मामले में दिल्ली पुलिस ने अपने हलफनामे में कहा है कि जामिया हिंसा सोची समझी योजना के तहत की गई थी. जामिया हिंसा के इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्यों से साफ पता चलता है कि छात्र आंदोलन की आड़ में स्थानीय लोगों की मदद से हिंसा को अंजाम दिया गया. दिल्ली पुलिस ने कहा है कि 13 और 15 दिसंबर 2019 को हुई हिंसा के मामले में तीन एफआईआर दर्ज किए गए हैं. इस हिंसा में पत्थरों, लाठियों , पेट्रोल बम और ट्यूबलाइट्स का इस्तेमाल किया गया. इस घटना में कई पुलिसकर्मी घायल हुए थे. दिल्ली पुलिस ने कहा कि दिल्ली पुलिस पर क्रूरता का इंतजाम गलत है. विरोध करना सबका अधिकार है लेकिन विरोध करने की आड़ में कानून का उल्लंघन करना और हिंसा और दंगे में शामिल होना सही नहीं है. दिल्ली पुलिस ने कहा है कि ये आरोप सही नहीं है कि युनिवर्सिटी प्रशासन की बिना अनुमति के पुलिस परिसर में घुसी और छात्रों के खिलाफ कार्रवाई की. दिल्ली पुलिस ने अपने हलफनामे में सार्वजनिक संपत्ति को हुए नुकसान और आरोपियों की पूरी लिस्ट हाईकोर्ट को सौंपी है.