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श्रम कानूनों में बदलाव के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर

हाल ही में विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा श्रम कानूनों में मूलभूत परिवर्तन किया गया है. इसके खिलाफ आज सर्वोच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की गई है. जानें विस्तार से...

plea on labour reforms in supreme court
plea on labour reforms in supreme court
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Published : May 20, 2020, 9:10 PM IST

नई दिल्ली : कोरोना वायरस के बीच श्रम कानूनों में बदलाव को लेकर सर्वोच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की गई है. दरअसल यह याचिका बेहतर आर्थिक गतिविधियों और बाजार में सुधार को सक्षम करने के लिए राज्यों द्वारा श्रम कानूनों में मूलभूत परिवर्तनों के लिए जारी अधिसूचनाओं और अध्यादेशों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने के लिए दायर की गई है.

एलएलबी की तृतीय वर्षीय छात्रा नंदिनी प्रवीण द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि श्रम कानूनों में बदलाव से श्रमिकों को अतिरिक्त घंटों तक काम करने के लिए मजबूर किया जाएगा, उनके कल्याण और स्वास्थ्य उपायों को निलंबित करते हुए 'मजबूर श्रम' का गठन किया जाएगा. यह संविधान के अनुच्छेद 14,15, 19, 21 और 23 का उल्लंघन है. प्रवीण ने कहा, 'इसे एक सीमित अर्थ में नहीं देखा जाना चाहिए, जहां कर्मचारियों को शारीरिक रूप से काम करने के लिए धमकाया जाता है.'

नंदिनी का कहना है कि बदलाव सिर्फ जीवन के अधिकार का उल्लंघन नहीं है, शांति से रहने का अधिकार है, यूनियनों के गठन का अधिकार, स्वास्थ्य का अधिकार, सुरक्षित कामकाज की स्थिति आदि का है. इसके साथ विभिन्न अंतरराष्ट्रीय श्रम कानूनों का भी उल्लंघन है, जिसका भारत एक हिस्सा है.

पढ़ें : कोरोना संकट मजदूरों की आवाज दबाने का बहाना नहीं हो सकता : राहुल

याचिकाकर्ता ने बताया कि भारत कई अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों का हिस्सा है, जो स्वास्थ्य और कल्याण, काम के घंटे, श्रमिकों के समान पारिश्रमिक आदि को विनियमित करता है.

याचिका में उत्तरदाता श्रम मंत्रालय, कानून और न्याय मंत्रालय, स्वास्थ्य मंत्रालय, यूपी सरकार, मप्र सरकार, गुजरात सरकार, गोवा सरकार, असम सरकार, राजस्थान सरकार, पंजाब सरकार, हरियाणा सरकार, उत्तराखंड सरकार और हिमाचल प्रदेश सरकार को बनाया गया है.

नई दिल्ली : कोरोना वायरस के बीच श्रम कानूनों में बदलाव को लेकर सर्वोच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की गई है. दरअसल यह याचिका बेहतर आर्थिक गतिविधियों और बाजार में सुधार को सक्षम करने के लिए राज्यों द्वारा श्रम कानूनों में मूलभूत परिवर्तनों के लिए जारी अधिसूचनाओं और अध्यादेशों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने के लिए दायर की गई है.

एलएलबी की तृतीय वर्षीय छात्रा नंदिनी प्रवीण द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि श्रम कानूनों में बदलाव से श्रमिकों को अतिरिक्त घंटों तक काम करने के लिए मजबूर किया जाएगा, उनके कल्याण और स्वास्थ्य उपायों को निलंबित करते हुए 'मजबूर श्रम' का गठन किया जाएगा. यह संविधान के अनुच्छेद 14,15, 19, 21 और 23 का उल्लंघन है. प्रवीण ने कहा, 'इसे एक सीमित अर्थ में नहीं देखा जाना चाहिए, जहां कर्मचारियों को शारीरिक रूप से काम करने के लिए धमकाया जाता है.'

नंदिनी का कहना है कि बदलाव सिर्फ जीवन के अधिकार का उल्लंघन नहीं है, शांति से रहने का अधिकार है, यूनियनों के गठन का अधिकार, स्वास्थ्य का अधिकार, सुरक्षित कामकाज की स्थिति आदि का है. इसके साथ विभिन्न अंतरराष्ट्रीय श्रम कानूनों का भी उल्लंघन है, जिसका भारत एक हिस्सा है.

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याचिकाकर्ता ने बताया कि भारत कई अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों का हिस्सा है, जो स्वास्थ्य और कल्याण, काम के घंटे, श्रमिकों के समान पारिश्रमिक आदि को विनियमित करता है.

याचिका में उत्तरदाता श्रम मंत्रालय, कानून और न्याय मंत्रालय, स्वास्थ्य मंत्रालय, यूपी सरकार, मप्र सरकार, गुजरात सरकार, गोवा सरकार, असम सरकार, राजस्थान सरकार, पंजाब सरकार, हरियाणा सरकार, उत्तराखंड सरकार और हिमाचल प्रदेश सरकार को बनाया गया है.

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