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कोरोना के दौरान बच्चों की रूटीन बदलने से पैरेंट्स और टीचर चिंतित - कोरोना टीकाकरण

कोरोना महामारी के समय बंद किए गए स्कूल लंबे इंतजार के बाद अब छोटे बच्चों के लिए खोलने की तैयारी की जा रही है. हालांकि बच्चों को स्कूल भेजना उनके माता-पिता के साथ स्कूल टीचर के लिए किसी चुनौती से कम नहीं होगा. कई महीनों से घर में रहने से बच्चों के रहन-सहन और उनकी दिनचर्या में बदलाव आया है.

रूटीन बदलने से पैरेंट्स और टीचर चिंतित
रूटीन बदलने से पैरेंट्स और टीचर चिंतित
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Published : Feb 8, 2021, 9:42 AM IST

बिलासपुर : कोरोना टीकाकरण की प्रक्रिया तेज होने के बाद अब लोगों की जिंदगी फिर से पटरी पर लौटने लगी है. कई महीनों से बच्चे स्कूल नहीं गए और चारदीवारी के भीतर ही उनका समय बीता. ऐसे में उनके स्वभाव में भी बदलाव देखने को मिले और उनकी दिनचर्या भी पूरी तरह बदल चुकी है.

अब जब स्कूल खुलने की प्रक्रिया फिर से शुरू होने वाली है, ऐसे माहौल में बच्चों के गार्जियन और स्कूल प्रबंधन के लिए दोबारा यह चुनौती सामने आ गई है कि किस तरह बच्चों को फिर से स्कूली जीवन के लिए प्रेरित करें.

रूटीन बदलने से पैरेंट्स और टीचर चिंतित

बच्चों की बदली जीवन शैली

शिक्षकों का मानना है कि लंबे समय तक जब बच्चे स्कूली गतिविधियों से दूर रहे हैं. ऐसे में उनकी जीवनशैली पूरी तरह बदल गई है. उनके ऊपर स्कूल जाने का दवाब नहीं रहा. सुबह जल्दी उठने और अपनी डेली लाइफ को जीने के प्रबंधन में बदलाव देखा गया है. बच्चे कुछ हद तक मोबाइल एडिक्ट हुए हैं और पढ़ाई के अलावा अन्य गतिविधियों से भी जुड़े हैं इसलिए अब जब नए सिरे से दोबारा बच्चों को स्कूल की ओर रुख करना होगा. ऐसे में बच्चों के पैरेंट्स और शिक्षकों की भूमिका अहम हो जाएगी.

अभिभावकों का भी मानना है कि उनके बच्चों के रहन-सहन में बड़ा बदलाव आया है. यह उनके लिए भी किसी चैलेंज से कम नहीं है कि बच्चों को स्कूल खुलते ही नए माहौल में जल्द से जल्द ढाले सके. बच्चों को पुराने ढांचे में ढलने में टाइम लगाएंगे.

बाहरी दुनिया से दूर हुए बच्चे

कोरोना काल में बच्चों का बाल मन किस तरह प्रभावित हुआ है. इस बीच वे किन चीजों को मिस किए और उनके आचरण में क्या कुछ परिवर्तन आया. यह जानने के लिए हमने कुछ बच्चों से भी बातचीत की. उनका कहना है कि इस बीच वे घर में बैठे-बैठे पूरी तरह से बोर हो गए थे और वो बाहर निकलने के लिए तरस रहे थे. जब वे स्कूल जाते थे तो उनका मन दोस्तों के बीच ज्यादा लगता था. वे एक दूसरे से मिलते-जुलते थे, तो उनका मन लगता था.

पढ़ें- धावक विश्वनाथ ने तोड़ा श्रीनिवास गौड़ा का रिकॉर्ड, बना नया भारतीय उसैन बोल्ट

बच्चों में चिड़चिड़ेपन की शिकायत

मनोचिकित्सक डॉ. आशुतोष तिवारी ने बताया कि इस बीच बच्चों में होने वाले चिड़चिड़ेपन की शिकायत भी खूब आई. मनोचिकित्सक डॉ. आशुतोष तिवारी बतातें हैं कि दोस्तों से कम मिलने की वजह से और घर में अधिक पढ़ाई की उम्मीदों ने बच्चों के स्वभाव में परिवर्तन ला दिया है. मनोचिकित्सक की मानें तो हर उम्र में आदमी अपने हम उम्र की तलाश करता है.

ऐसा करके वो अपने इमोशन को भी शेयर करता है. इस वजह से भी बच्चों के स्वभाव में परिवर्तन दिखा है. उन्होंने बताया कि अब जब स्कूल जाने का सिलसिला फिर से शुरू होगा तो, बच्चों का विकास चक्र फिर से चलने लगेगा.

बिलासपुर : कोरोना टीकाकरण की प्रक्रिया तेज होने के बाद अब लोगों की जिंदगी फिर से पटरी पर लौटने लगी है. कई महीनों से बच्चे स्कूल नहीं गए और चारदीवारी के भीतर ही उनका समय बीता. ऐसे में उनके स्वभाव में भी बदलाव देखने को मिले और उनकी दिनचर्या भी पूरी तरह बदल चुकी है.

अब जब स्कूल खुलने की प्रक्रिया फिर से शुरू होने वाली है, ऐसे माहौल में बच्चों के गार्जियन और स्कूल प्रबंधन के लिए दोबारा यह चुनौती सामने आ गई है कि किस तरह बच्चों को फिर से स्कूली जीवन के लिए प्रेरित करें.

रूटीन बदलने से पैरेंट्स और टीचर चिंतित

बच्चों की बदली जीवन शैली

शिक्षकों का मानना है कि लंबे समय तक जब बच्चे स्कूली गतिविधियों से दूर रहे हैं. ऐसे में उनकी जीवनशैली पूरी तरह बदल गई है. उनके ऊपर स्कूल जाने का दवाब नहीं रहा. सुबह जल्दी उठने और अपनी डेली लाइफ को जीने के प्रबंधन में बदलाव देखा गया है. बच्चे कुछ हद तक मोबाइल एडिक्ट हुए हैं और पढ़ाई के अलावा अन्य गतिविधियों से भी जुड़े हैं इसलिए अब जब नए सिरे से दोबारा बच्चों को स्कूल की ओर रुख करना होगा. ऐसे में बच्चों के पैरेंट्स और शिक्षकों की भूमिका अहम हो जाएगी.

अभिभावकों का भी मानना है कि उनके बच्चों के रहन-सहन में बड़ा बदलाव आया है. यह उनके लिए भी किसी चैलेंज से कम नहीं है कि बच्चों को स्कूल खुलते ही नए माहौल में जल्द से जल्द ढाले सके. बच्चों को पुराने ढांचे में ढलने में टाइम लगाएंगे.

बाहरी दुनिया से दूर हुए बच्चे

कोरोना काल में बच्चों का बाल मन किस तरह प्रभावित हुआ है. इस बीच वे किन चीजों को मिस किए और उनके आचरण में क्या कुछ परिवर्तन आया. यह जानने के लिए हमने कुछ बच्चों से भी बातचीत की. उनका कहना है कि इस बीच वे घर में बैठे-बैठे पूरी तरह से बोर हो गए थे और वो बाहर निकलने के लिए तरस रहे थे. जब वे स्कूल जाते थे तो उनका मन दोस्तों के बीच ज्यादा लगता था. वे एक दूसरे से मिलते-जुलते थे, तो उनका मन लगता था.

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बच्चों में चिड़चिड़ेपन की शिकायत

मनोचिकित्सक डॉ. आशुतोष तिवारी ने बताया कि इस बीच बच्चों में होने वाले चिड़चिड़ेपन की शिकायत भी खूब आई. मनोचिकित्सक डॉ. आशुतोष तिवारी बतातें हैं कि दोस्तों से कम मिलने की वजह से और घर में अधिक पढ़ाई की उम्मीदों ने बच्चों के स्वभाव में परिवर्तन ला दिया है. मनोचिकित्सक की मानें तो हर उम्र में आदमी अपने हम उम्र की तलाश करता है.

ऐसा करके वो अपने इमोशन को भी शेयर करता है. इस वजह से भी बच्चों के स्वभाव में परिवर्तन दिखा है. उन्होंने बताया कि अब जब स्कूल जाने का सिलसिला फिर से शुरू होगा तो, बच्चों का विकास चक्र फिर से चलने लगेगा.

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