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पराली की समस्या से निजात दिलाएगी पंतनगर कृषि वैज्ञानिकों की यह नई मशीन - पराली की समस्या से निजात

उत्तराखंड के पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने धान की कटाई के बाद पराली जलाए बिना गेंहू की सीधी फसल बुआई का सुझाव दिया है. जिससे किसानों को कम लागत में अधिक उत्पादन हो सकता है.

पंतनगर कृषि विवि
पंतनगर कृषि विवि
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Published : Oct 17, 2020, 5:01 PM IST

रुद्रपुर : देश के कई हिस्सों में पराली जलाने से जहां एक ओर जहां धुआं होता है, वहीं हर साल वायु प्रदूषण से भी लोगों को दो-चार होना पड़ता है. धान की पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण को रोकने के लिए राज्य सरकार ने ऐसा करने वाले किसानों के खिलाफ कार्रवाई के आदेश दिए हैं. इन सब के बीच पंतनगर कृषि विश्विद्यालय के वैज्ञानिकों ने बिना पराली जलाए गेंहू की बुआई सुपरसीड यंत्र से करने का सुझाव दिया है. वहीं इस तकनीक से गेहूं बोने वाले किसानों की लागत में भी कमी देखी गयी है.

अक्सर किसान गेहूं की बुआई करने के लिए धान की पराली को खेत में ही जलाकर जुताई करते हैं. जिस कारण पर्यावरण दूषित होता है. यही नहीं काश्तकारों का अधिक श्रम, समय तथा धन भी खर्च होता है. पराली को बिना जलाए गेंहू की अधिक पैदावार को लेकर पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय के फार्म मशीनरी एवं पावर इंजीनियरिंग विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. टीपी सिंह ने किसानों को इसका विकल्प सुझाते हुए जीरो टिलफर्टी सीड ड्रिल अथवा सुपरसीडर से गेहूं की बुआई करने की सलाह दी है. इस विधि से गेहूं की बुआई से प्रदूषण को रोका जा सकता है.

अब पराली जलाने की समस्या खत्म
अब पराली जलाने की समस्या खत्म

पढ़ें- पंतनगर कृषि विवि में बन रहे 30 स्मार्ट क्लास, विदेशी कॉलेजों से सीधे जुड़ सकेंगे छात्र

उन्होंने बताया कि किसान कंबाईन हारवेस्टर से धान की कटाई करते हैं और उसके बाद पराली को जला देते हैं, जिस कारण धुएं से वातावरण प्रदूषित होता है और इससे निकलने वाली गैस कार्बन डाई ऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड, सल्फर के ऑक्साइड्स के साथ सूक्ष्म कण पैदा होते हैं. धुएं के कारण मनुष्यों और मवेशियों को सांस लेन में परेशानी होती है. इसके साथ ही इसकी गर्मी से खेतों की उर्वरा शक्ति खत्म हो जाती है.

वैज्ञानिकों की टीम ने गेहूं की बुआई शीघ्र और कम लागत में करने के लिए 'पंतनगर जीरो टिलफर्टी सीड ड्रिल' नामक यंत्र का अविष्कार किया है. जिससे गेहूं की बुआई बिना खेत की जुताई किए की जाती है. बाजारों में सुपर सीडर नामक कृषि यंत्र से भी गेंहू की बुआई कर सकते हैं. इस यंत्र के इस्तेमाल से खेत में पड़ी पराली को हटाने की जरूरत नहीं पड़ती है.

कृषि यंत्र गेंहू बुवाई के दौरान कैसे करता है काम

धान काट कर सीधे गेंहू की बुआई करने के लिए यंत्र में धान की फसल के अवशेषों को अच्छी तरह से मिट्टी में मिलाने/दबाने के लिए विशेष प्रकार के ब्लेडो वाला रोटावेटर लगा है. रोटावेटर में लंबे ब्लेड फसल अवशेष (पराली) को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर मिट्टी की सतह के नीचे गहराई में दबा देते हैं. इस रोटावेटर के ठीक पीछे सामान्य सीड ड्रिल की तरह का ही 11 फरों ओपनर वाला सीड ड्रिल लगा होता है, जिससे गेहूं की बुआई होती है. यह मशीन बुआई के साथ ही दानेदार रासायनिक खाद भी पंक्तियों में उचित गहराई पर डालती जाती है. इसमें बीज व खाद की गहराई आवश्यकतानुसार कम-अधिक करने का प्रावधान भी होता है.

पढ़ें- प्रवासियों को स्वरोजगार से जोड़ने की तैयारी, पन्तनगर कृषि विश्वविद्यालय ने तैयार किया प्लान

भारत सरकार यंत्र पर किसानों को अनुदान भी दे रही है. वैज्ञानिकों के अनुसार मशीन एक बार में लगभग 2.2 मी. चौड़ी पट्टी की बुआई करता है. इसको चलाने के लिए 55-65 हार्स पावर वाले ट्रैक्टर की आवश्यकता होती है. गेहूं की बुआई में लगभग 35-40 लीटर डीजल की प्रति हैक्टेयर की खपत होती है, जो पारंपरिक विधि से खेत की तैयारी व बुआई में लगने वाले खर्च की तुलना में लगभग 50 प्रतिशत कम है. यह मशीन 1.5-2 एकड़ खेत की बुआई एक घंटे में कर देती है.

बाजार में इस मशीन की कीमत लगभग 2.0-2.25 लाख रुपये है. फसल अवशेष प्रबंधन वाले कृषि यंत्रों के क्रय पर भारत सरकार द्वारा 50-80 प्रतिशत का अनुदान दिया जा रहा है, जिससे किसान कम लागत में इस मशीन को अपने प्रयोग के लिए क्रय कर सकते हैं.

रुद्रपुर : देश के कई हिस्सों में पराली जलाने से जहां एक ओर जहां धुआं होता है, वहीं हर साल वायु प्रदूषण से भी लोगों को दो-चार होना पड़ता है. धान की पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण को रोकने के लिए राज्य सरकार ने ऐसा करने वाले किसानों के खिलाफ कार्रवाई के आदेश दिए हैं. इन सब के बीच पंतनगर कृषि विश्विद्यालय के वैज्ञानिकों ने बिना पराली जलाए गेंहू की बुआई सुपरसीड यंत्र से करने का सुझाव दिया है. वहीं इस तकनीक से गेहूं बोने वाले किसानों की लागत में भी कमी देखी गयी है.

अक्सर किसान गेहूं की बुआई करने के लिए धान की पराली को खेत में ही जलाकर जुताई करते हैं. जिस कारण पर्यावरण दूषित होता है. यही नहीं काश्तकारों का अधिक श्रम, समय तथा धन भी खर्च होता है. पराली को बिना जलाए गेंहू की अधिक पैदावार को लेकर पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय के फार्म मशीनरी एवं पावर इंजीनियरिंग विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. टीपी सिंह ने किसानों को इसका विकल्प सुझाते हुए जीरो टिलफर्टी सीड ड्रिल अथवा सुपरसीडर से गेहूं की बुआई करने की सलाह दी है. इस विधि से गेहूं की बुआई से प्रदूषण को रोका जा सकता है.

अब पराली जलाने की समस्या खत्म
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उन्होंने बताया कि किसान कंबाईन हारवेस्टर से धान की कटाई करते हैं और उसके बाद पराली को जला देते हैं, जिस कारण धुएं से वातावरण प्रदूषित होता है और इससे निकलने वाली गैस कार्बन डाई ऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड, सल्फर के ऑक्साइड्स के साथ सूक्ष्म कण पैदा होते हैं. धुएं के कारण मनुष्यों और मवेशियों को सांस लेन में परेशानी होती है. इसके साथ ही इसकी गर्मी से खेतों की उर्वरा शक्ति खत्म हो जाती है.

वैज्ञानिकों की टीम ने गेहूं की बुआई शीघ्र और कम लागत में करने के लिए 'पंतनगर जीरो टिलफर्टी सीड ड्रिल' नामक यंत्र का अविष्कार किया है. जिससे गेहूं की बुआई बिना खेत की जुताई किए की जाती है. बाजारों में सुपर सीडर नामक कृषि यंत्र से भी गेंहू की बुआई कर सकते हैं. इस यंत्र के इस्तेमाल से खेत में पड़ी पराली को हटाने की जरूरत नहीं पड़ती है.

कृषि यंत्र गेंहू बुवाई के दौरान कैसे करता है काम

धान काट कर सीधे गेंहू की बुआई करने के लिए यंत्र में धान की फसल के अवशेषों को अच्छी तरह से मिट्टी में मिलाने/दबाने के लिए विशेष प्रकार के ब्लेडो वाला रोटावेटर लगा है. रोटावेटर में लंबे ब्लेड फसल अवशेष (पराली) को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर मिट्टी की सतह के नीचे गहराई में दबा देते हैं. इस रोटावेटर के ठीक पीछे सामान्य सीड ड्रिल की तरह का ही 11 फरों ओपनर वाला सीड ड्रिल लगा होता है, जिससे गेहूं की बुआई होती है. यह मशीन बुआई के साथ ही दानेदार रासायनिक खाद भी पंक्तियों में उचित गहराई पर डालती जाती है. इसमें बीज व खाद की गहराई आवश्यकतानुसार कम-अधिक करने का प्रावधान भी होता है.

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भारत सरकार यंत्र पर किसानों को अनुदान भी दे रही है. वैज्ञानिकों के अनुसार मशीन एक बार में लगभग 2.2 मी. चौड़ी पट्टी की बुआई करता है. इसको चलाने के लिए 55-65 हार्स पावर वाले ट्रैक्टर की आवश्यकता होती है. गेहूं की बुआई में लगभग 35-40 लीटर डीजल की प्रति हैक्टेयर की खपत होती है, जो पारंपरिक विधि से खेत की तैयारी व बुआई में लगने वाले खर्च की तुलना में लगभग 50 प्रतिशत कम है. यह मशीन 1.5-2 एकड़ खेत की बुआई एक घंटे में कर देती है.

बाजार में इस मशीन की कीमत लगभग 2.0-2.25 लाख रुपये है. फसल अवशेष प्रबंधन वाले कृषि यंत्रों के क्रय पर भारत सरकार द्वारा 50-80 प्रतिशत का अनुदान दिया जा रहा है, जिससे किसान कम लागत में इस मशीन को अपने प्रयोग के लिए क्रय कर सकते हैं.

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