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संत रैदास की भक्ति परंपरा और गोरा-बादल के पराक्रम से परिचित नहीं हो पा रहे पर्यटक

संत रैदास की भक्ति परम्परा और गोरा-बादल के पराक्रम और बलिदान इतिहास के पन्नों में अमर है. इनके योगदान को लोग जान सकें इसके लिए राजस्थान के चित्तौड़गढ़ में भव्य पैनोरमा तैयार किए गए हैं. लेकिन प्रशासन की उदासीनता के चलते इन पर दो वर्षों से ताले लटक रहे हैं. पर्यटक इनके स्वर्णिम इतिहास से परिचित नहीं हो पा रहे हैं.

गोरा और बादल के पैनोरमा
गोरा और बादल के पैनोरमा
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Published : Jan 31, 2021, 10:55 PM IST

चित्तौड़गढ़. भक्तिमयी मीराबाई के गुरु संत रैदास और चित्तौड़ दुर्ग पर आक्रमण के दौरान युद्ध में अपने प्राणों की आहुति देने वाले गोरा और बादल के पैनोरमा को बने करीब दो वर्ष से ज्यादा समय हो गया है.

भाजपा सरकार में बने इन पैनोरमा को वर्तमान की गहलोत सरकार अब तक शुरू नहीं कर पाई है. ऐसे में करोड़ों रुपए खर्च कर तैयार किए गए इन पैनोरमा का सदुपयोग नहीं हो पा रहा है. वहीं जिले के अलावा बाहर से आने वाले पर्यटक भी इनके इतिहास की जानकारी प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं.

चित्तौड़गढ़ के इतिहास के प्रतीक पैनोरोमा
चित्तौड़गढ़ के इतिहास के प्रतीक पैनोरोमा

मामले में चित्तौड़गढ़ विधायक ने गहलोत सरकार पर पैनोरमा की उपेक्षा का आरोप लगाया.

मीराबाई के गुरु संत रैदास का पैनोरमा का निर्माण शुरू हुआ था. पैनोरमा शहर में ही दुर्ग की तलहटी में स्थित मोहर मंगरी के यहां बनवाया था. वहीं एक पैनोरमा वीर गोरा व बादल पर बनाया था.

संत रैदास व गोरा-बादल के पैनोरमा पर लटक रहे ताले

गोरा-बादल का पैनोरमा नगर परिषद क्षेत्र में ही भोईखेड़ा में बनाया गया है. यहां गोरा व बादल शहीद हुए थे. यहां दोनों की समाधिस्थल भी है. इन दोनों पैनोरमा के निर्माण को करीब दो वर्ष का समय बीत चुका है लेकिन अभी तक सरकार का ध्यान इनके उद्घाटन पर नहीं गया है. ऐसे में इन पर ताले लटके हुए हैं.

पैनरोमा शुरू होने से पहले गार्ड, कर्मचारियों की नियुक्ति

पैनोरमा में लगे हैं ताले
पैनोरमा में लगे हैं ताले

पैनोरमा को लेकर चित्तौड़गढ़ के उपखण्ड अधिकारी श्याम सुंदर विश्नोई ने बताया कि राजस्थान धरोहर संरक्षण प्रोन्नति प्राधिकरण के जयपुर मुख्यालय पर सम्पर्क किया गया था. विभाग की ओर से पैनोरमा की चाबी ही उन्हें अभी दी गई है. विभाग की और से कोई बजट भी जारी नहीं किया गया है. पैनोरमा शुरू करने से पहले यहां आवश्यक कार्य के साथ ही रख रखाव व सुरक्षा के लिए गार्ड, टिकट काटने के लिए कर्मचारी आदि की नियुक्ति करनी होगी.

रैदास का पैनोरमा तो एराल ग्राम पंचायत में आता है. ऐसे में ग्राम पंचायत से भी इसके संचालन का आग्रह किया था लेकिन उन्होंने मना कर दिया. बजट आते ही सरकार निर्देशों के अनुसार इन दोनों पैनोरमा का संचालन शुरू करवाया जाएगा. वहीं विधायक चंद्रभानसिंह आक्या ने बताया कि भाजपा सरकार में पैनोरमा बने हैं, जिनके ताले तक नहीं खुले हैं. इस मुद्दे को विधानसभा में उठाया जाएगा.

रैदास का भक्ति परम्परा में योगदान, इतिहास के तथ्यों को स्थापित करेगा गोरा-बादल का पैनोरमा

इतिहासविद लक्ष्मीनारायण जोशी का कहना है कि संत रैदास का जो पैनोरमा है वह चित्तौड़गढ़ की भक्ति परंपरा को दर्शाता है. इस कारण रैदास पैनोरमा बनने से संपूर्ण मेवाड़ क्षेत्र में समरसता का जो भाव है उसको बलवान करने में इसका महत्वपूर्ण योगदान होगा. क्योंकि इसके अनुयाई व चित्तौड़गढ़ की भक्ति परंपरा में रैदास का बहुत बड़ा योगदान है. वहीं गोरा बादल का जो पैनोरमा है पैनोरमा है वह इतिहास के कई तथ्यों को स्थापित करने में सत्यता के लिए एक बहुत बड़ा आधार स्तंभ होगा.

पढ़ें- छत्तीसगढ़ : डीएनए टेस्ट के लिए कब्र से निकाला गया रेप पीड़िता के मृत बच्चे का शव

कई इतिहासकार जो समाज को भ्रमित करने के लिए महारानी पद्मावती के जौहर को व गोरा-बादल के बलिदान को काल्पनिक बताते हैं, पद्मावत ग्रंथ के काल्पनिकता के आधार पर लेकिन गोरा बादल का बलिदान स्थल मिलने व यहां पैनोरमा बन जाने से यह एक ऐतिहासिक तीर्थस्थल हो गया है. इसने इतिहास में उस घटना को सत्य सिद्ध करने का एक बहुत बड़ा आधार हो गया है, जिसे कई बार काल्पनिक बताया जाता है.

चित्तौड़गढ़. भक्तिमयी मीराबाई के गुरु संत रैदास और चित्तौड़ दुर्ग पर आक्रमण के दौरान युद्ध में अपने प्राणों की आहुति देने वाले गोरा और बादल के पैनोरमा को बने करीब दो वर्ष से ज्यादा समय हो गया है.

भाजपा सरकार में बने इन पैनोरमा को वर्तमान की गहलोत सरकार अब तक शुरू नहीं कर पाई है. ऐसे में करोड़ों रुपए खर्च कर तैयार किए गए इन पैनोरमा का सदुपयोग नहीं हो पा रहा है. वहीं जिले के अलावा बाहर से आने वाले पर्यटक भी इनके इतिहास की जानकारी प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं.

चित्तौड़गढ़ के इतिहास के प्रतीक पैनोरोमा
चित्तौड़गढ़ के इतिहास के प्रतीक पैनोरोमा

मामले में चित्तौड़गढ़ विधायक ने गहलोत सरकार पर पैनोरमा की उपेक्षा का आरोप लगाया.

मीराबाई के गुरु संत रैदास का पैनोरमा का निर्माण शुरू हुआ था. पैनोरमा शहर में ही दुर्ग की तलहटी में स्थित मोहर मंगरी के यहां बनवाया था. वहीं एक पैनोरमा वीर गोरा व बादल पर बनाया था.

संत रैदास व गोरा-बादल के पैनोरमा पर लटक रहे ताले

गोरा-बादल का पैनोरमा नगर परिषद क्षेत्र में ही भोईखेड़ा में बनाया गया है. यहां गोरा व बादल शहीद हुए थे. यहां दोनों की समाधिस्थल भी है. इन दोनों पैनोरमा के निर्माण को करीब दो वर्ष का समय बीत चुका है लेकिन अभी तक सरकार का ध्यान इनके उद्घाटन पर नहीं गया है. ऐसे में इन पर ताले लटके हुए हैं.

पैनरोमा शुरू होने से पहले गार्ड, कर्मचारियों की नियुक्ति

पैनोरमा में लगे हैं ताले
पैनोरमा में लगे हैं ताले

पैनोरमा को लेकर चित्तौड़गढ़ के उपखण्ड अधिकारी श्याम सुंदर विश्नोई ने बताया कि राजस्थान धरोहर संरक्षण प्रोन्नति प्राधिकरण के जयपुर मुख्यालय पर सम्पर्क किया गया था. विभाग की ओर से पैनोरमा की चाबी ही उन्हें अभी दी गई है. विभाग की और से कोई बजट भी जारी नहीं किया गया है. पैनोरमा शुरू करने से पहले यहां आवश्यक कार्य के साथ ही रख रखाव व सुरक्षा के लिए गार्ड, टिकट काटने के लिए कर्मचारी आदि की नियुक्ति करनी होगी.

रैदास का पैनोरमा तो एराल ग्राम पंचायत में आता है. ऐसे में ग्राम पंचायत से भी इसके संचालन का आग्रह किया था लेकिन उन्होंने मना कर दिया. बजट आते ही सरकार निर्देशों के अनुसार इन दोनों पैनोरमा का संचालन शुरू करवाया जाएगा. वहीं विधायक चंद्रभानसिंह आक्या ने बताया कि भाजपा सरकार में पैनोरमा बने हैं, जिनके ताले तक नहीं खुले हैं. इस मुद्दे को विधानसभा में उठाया जाएगा.

रैदास का भक्ति परम्परा में योगदान, इतिहास के तथ्यों को स्थापित करेगा गोरा-बादल का पैनोरमा

इतिहासविद लक्ष्मीनारायण जोशी का कहना है कि संत रैदास का जो पैनोरमा है वह चित्तौड़गढ़ की भक्ति परंपरा को दर्शाता है. इस कारण रैदास पैनोरमा बनने से संपूर्ण मेवाड़ क्षेत्र में समरसता का जो भाव है उसको बलवान करने में इसका महत्वपूर्ण योगदान होगा. क्योंकि इसके अनुयाई व चित्तौड़गढ़ की भक्ति परंपरा में रैदास का बहुत बड़ा योगदान है. वहीं गोरा बादल का जो पैनोरमा है पैनोरमा है वह इतिहास के कई तथ्यों को स्थापित करने में सत्यता के लिए एक बहुत बड़ा आधार स्तंभ होगा.

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कई इतिहासकार जो समाज को भ्रमित करने के लिए महारानी पद्मावती के जौहर को व गोरा-बादल के बलिदान को काल्पनिक बताते हैं, पद्मावत ग्रंथ के काल्पनिकता के आधार पर लेकिन गोरा बादल का बलिदान स्थल मिलने व यहां पैनोरमा बन जाने से यह एक ऐतिहासिक तीर्थस्थल हो गया है. इसने इतिहास में उस घटना को सत्य सिद्ध करने का एक बहुत बड़ा आधार हो गया है, जिसे कई बार काल्पनिक बताया जाता है.

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