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महामारियों को रोकने के लिए नए अंतःविषय दृष्टिकोण की जरूरत

मानव सभ्यता की शुरुआत से ही जूनोटिक बीमारियों के कारण कई महामारियां फैली हैं. इनमें बुबोनिक प्लेग और 20वीं सदी की इन्फ्लूएंजा महामारी शामिल है. ऐसी महामारियों को रोकने के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य, पशु चिकित्सा और पर्यावरण विशेषज्ञता के मिले-जुले दृष्टिकोण की जरूरत है.

prevention of future pandemics
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Published : Jul 8, 2020, 3:22 PM IST

हैदराबाद : पूरी दुनिया में फैले कोरोना वायरस से लगभग साढ़े पांच लाख लोगों की मौत हो चुकी है. वायरस से एक करोड़ से भी ज्यादा लोग संक्रमित हैं. वायरस का पहला मामला चीन के वुहान शहर में स्थित बाजार से दिसंबर में आया था. वायरस के तेजी से फैलने और इस तरह की 'जूनोटिक बीमारी' के बार-बार फैलने के कारणों के तार जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण के क्षरण और वन्यजीवों के शोषण से जुड़े हैं. 'जूनोटिक बीमारी' या 'जूनोसिस' वह बीमारी होती है जो जानवरों से इंसानों में फैली हो.

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम और अंतरराष्ट्रीय पशुधन अनुसंधान संस्थान की एक रिपोर्ट के अनुसार महामारी ऊपर दिए गए कारणों से फैली है. उनको समझने से वायरस के प्रसार को रोकने में मदद मिलेगी.

रिपोर्ट में कहा गया है कि 1996 में फैला एवियन इन्फ्लुएंजा (एचपीएआई) या बर्ड फ्लू, 1998 में निप्पा वायरस का संक्रमण, 2003 में सार्स और 2016 में स्वाइन एक्यूट डायरिया सिंड्रोम (एसएडीएस) सभी चीन के गुआंग्डोंग से फैले थे. अफ्रीका में इबोला, मर्स, वेस्ट नाइल बुखार और रिफ्ट वैली बुखार, यह सभी जानवरों से इंसानों में फैले थे.

यूएनईपी की कार्यकारी निदेशक इंगर एंडरसन ने कहा कि कोविड-19 के बाद एक बेहतर विश्व के निर्माण के लिए हमें जानवरों से फैलने वाली बीमारियों, उनके प्रसार, उनसे इंसान को होने वाले खतरे को समझना होगा और उसको कम करने के तरीके खोजने होंगे, जिससे कोविड-19 जैसी महामारी को फिर से फैलने से रोका जा सके.

कोविड-19 सबसे खतरनाक जूनोटिक बीमारियों में से एक है, लेकिन यह पहली नहीं है. इबोला, सार्स, मर्स, एचआईवी, लाइम बीमारी, रिफ्ट वैली बुखार, लास्सा बुखार जैसी जूनोटिक बीमारियां पहले फैल चुकी हैं. पिछली सदी में कोरोना वायरस के कारण कम से कम छह महामारियां फैली थीं.

इसलिए यह जरूरी है कि इंसानों के स्वास्थ्य के साथ-साथ वन्यजीवों और पर्यावरण के स्वास्थ्य का भी ध्यान रखा जाए. हमें सार्वजनिक स्वास्थ्य, पशु चिकित्सा और पर्यावरण विशेषज्ञता को एक साथ मिलाकर काम करने की जरूरत है.

यूएनईपी और आईएलआरआई सरकारों से अंतर-क्षेत्रीय और अंतःविषय दृष्टिकोण को अपनाने का आग्रह कर रही हैं. देशों से जानवरों और मनाव स्वास्थ्य प्रणालियों में सुधार करने और पर्यावरणीय क्षरण व मांस की बढ़ती मांग जैसे कारकों पर भी ध्यान केंद्रित करने की अपील की गई है. इससे इन बीमारियों को जानवरों से इंसानों में फैलने से रोकने में मदद मिलेगी.

आईएलआरआई के महानिदेशक जिमी स्मिथ ने कहा कि मौजूदा परिस्थितियां पहले से मौजूद जूनोटिक रोगों को और तीव्र करने के लिए और नए रोगों के पैदा होने व उनके प्रसार के लिए अनुकूल हैं.

पढ़ें-दुनिया देख चुकी है अनेक महामारियां, क्वारंटाइन का भी है इतिहास

रिपोर्ट में कहा गया है कि इस तरह की महामारी को रोकने के लिए उनकी बेहतर निगरानी और खाद्य सुरक्षा को बेहतर बनाना होगा.

हैदराबाद : पूरी दुनिया में फैले कोरोना वायरस से लगभग साढ़े पांच लाख लोगों की मौत हो चुकी है. वायरस से एक करोड़ से भी ज्यादा लोग संक्रमित हैं. वायरस का पहला मामला चीन के वुहान शहर में स्थित बाजार से दिसंबर में आया था. वायरस के तेजी से फैलने और इस तरह की 'जूनोटिक बीमारी' के बार-बार फैलने के कारणों के तार जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण के क्षरण और वन्यजीवों के शोषण से जुड़े हैं. 'जूनोटिक बीमारी' या 'जूनोसिस' वह बीमारी होती है जो जानवरों से इंसानों में फैली हो.

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम और अंतरराष्ट्रीय पशुधन अनुसंधान संस्थान की एक रिपोर्ट के अनुसार महामारी ऊपर दिए गए कारणों से फैली है. उनको समझने से वायरस के प्रसार को रोकने में मदद मिलेगी.

रिपोर्ट में कहा गया है कि 1996 में फैला एवियन इन्फ्लुएंजा (एचपीएआई) या बर्ड फ्लू, 1998 में निप्पा वायरस का संक्रमण, 2003 में सार्स और 2016 में स्वाइन एक्यूट डायरिया सिंड्रोम (एसएडीएस) सभी चीन के गुआंग्डोंग से फैले थे. अफ्रीका में इबोला, मर्स, वेस्ट नाइल बुखार और रिफ्ट वैली बुखार, यह सभी जानवरों से इंसानों में फैले थे.

यूएनईपी की कार्यकारी निदेशक इंगर एंडरसन ने कहा कि कोविड-19 के बाद एक बेहतर विश्व के निर्माण के लिए हमें जानवरों से फैलने वाली बीमारियों, उनके प्रसार, उनसे इंसान को होने वाले खतरे को समझना होगा और उसको कम करने के तरीके खोजने होंगे, जिससे कोविड-19 जैसी महामारी को फिर से फैलने से रोका जा सके.

कोविड-19 सबसे खतरनाक जूनोटिक बीमारियों में से एक है, लेकिन यह पहली नहीं है. इबोला, सार्स, मर्स, एचआईवी, लाइम बीमारी, रिफ्ट वैली बुखार, लास्सा बुखार जैसी जूनोटिक बीमारियां पहले फैल चुकी हैं. पिछली सदी में कोरोना वायरस के कारण कम से कम छह महामारियां फैली थीं.

इसलिए यह जरूरी है कि इंसानों के स्वास्थ्य के साथ-साथ वन्यजीवों और पर्यावरण के स्वास्थ्य का भी ध्यान रखा जाए. हमें सार्वजनिक स्वास्थ्य, पशु चिकित्सा और पर्यावरण विशेषज्ञता को एक साथ मिलाकर काम करने की जरूरत है.

यूएनईपी और आईएलआरआई सरकारों से अंतर-क्षेत्रीय और अंतःविषय दृष्टिकोण को अपनाने का आग्रह कर रही हैं. देशों से जानवरों और मनाव स्वास्थ्य प्रणालियों में सुधार करने और पर्यावरणीय क्षरण व मांस की बढ़ती मांग जैसे कारकों पर भी ध्यान केंद्रित करने की अपील की गई है. इससे इन बीमारियों को जानवरों से इंसानों में फैलने से रोकने में मदद मिलेगी.

आईएलआरआई के महानिदेशक जिमी स्मिथ ने कहा कि मौजूदा परिस्थितियां पहले से मौजूद जूनोटिक रोगों को और तीव्र करने के लिए और नए रोगों के पैदा होने व उनके प्रसार के लिए अनुकूल हैं.

पढ़ें-दुनिया देख चुकी है अनेक महामारियां, क्वारंटाइन का भी है इतिहास

रिपोर्ट में कहा गया है कि इस तरह की महामारी को रोकने के लिए उनकी बेहतर निगरानी और खाद्य सुरक्षा को बेहतर बनाना होगा.

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