ETV Bharat / bharat

नगालैंड संकट : एनएससीएन-आईएम ने अपनाया कड़ा रुख - नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालिम

नगालैंड के दीमापुर के पास हेबरोन स्थित नगा काउंसिल के मुख्यालय में शुक्रवार को मुइवा का जो भाषण पढ़ा गया, उसमें मुइवा ने कहा कि नगा करार की जिस रूपरेखा पर सहमति बनी है और पूरी तरह से परिभाषित है, उसके तहत स्वायत्त शक्तियों के साथ भारत से मिलकर रहेंगे, लेकिन वे भारत के साथ विलय नहीं करेंगे. पढ़िए संजीब कुमार बरुआ की यह रिपोर्ट...

नगा काउंसिल
नगा काउंसिल
author img

By

Published : Aug 14, 2020, 10:36 PM IST

नई दिल्ली : नगा समस्या पर केंद्र से बातचीत में नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालिम (एनएससीएन-आईएम) ने अपना रुख कड़ा कर लिया है. उसकी बातों में वास्तविकता की अजीब स्वीकृति तो है लेकिन अपनी पहले की बात पर पूरी तरह से अड़ा है. इस संगठन के महासचिव थुइंगालेंग मुइवा ने कहा है कि नगा राष्ट्र भारत के साथ मिलकर तो रह सकता है लेकिन विलय नहीं होगा.

नगालैंड के दीमापुर के पास हेबरोन स्थित नगा काउंसिल के मुख्यालय में शुक्रवार को मुइवा का जो भाषण पढ़ा गया, उसमें मुइवा ने कहा कि नगा करार की जिस रूपरेखा पर सहमति बनी है और पूरी तरह से परिभाषित है, उसके तहत स्वायत्त शक्तियों के साथ भारत से मिलकर रहेंगे लेकिन वे भारत के साथ विलय नहीं करेंगे. करार की इस रूपरेखा पर नरेंद्र मोदी सरकार के साथ वर्ष 2015 में तीन अगस्त को हस्ताक्षर हुआ था.

86 वर्षीय बुजुर्ग नगा छापेमार दस्ता के नेता मुइवा अभी देश की राजधानी नई दिल्ली में हैं और करीब सात दशक से जारी नगा मुद्दे के समाधान के लिए बातचीत की लगभग रुकी प्रक्रिया को तनाव (ट्रैक्शन) देने का प्रयास कर रहे हैं. मुइवा का लिखित भाषण शुक्रवार को एनएससीएन-आईएम के कथित 74वें स्वतंत्रता दिवस समारोह को मनाने के अवसर पर पढ़ा गया. नगा संगठनों ने भारत की अंग्रेजों से आजादी के एक दिन पहले 14 अगस्त 1947 को ही खुद को आजाद घोषित कर दिया था.

इस बात का संकेत देते हुए कि नगा संगठन अपने अलग संविधान और नगा राष्ट्रीय झंडे की अपनी विवादास्पद मांगों का त्याग नहीं करेंगे, मुइवा ने कहा कि मान्यता दें या नहीं, हमारा अपना झंडा और संविधान है. झंडा और संविधान हमारी मान्यता प्राप्त सार्वभौमिक इकाई के तत्व और नगा राष्ट्रवाद के प्रतीक हैं. नगा हर हाल में अपने झंडे और संविधान को बनाए रखेंगे.

मणिपुर के उखरुल जिले के मूल रूप से थांगखुल जनजाति के एनएससीएन नेता ने सरकार के जारी युद्ध विराम के मुद्दे संकेत दिया कि जहां भी नगा लड़ रहे थे, वहां युद्ध विराम लागू है जिसका अर्थ है कि एनएससीएन-आईएम और सरकार के बीच युद्ध विराम 'क्षेत्रीय सीमाओं के बिना' था और इसके विस्तार में मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश और असम के भी वे सारे क्षेत्र आ जाएंगे, जहां नगा रहते हैं.

बगैर क्षेत्रीय सीमा के युद्ध विराम ने इसका क्षेत्र बढ़ाने का काम किया है. अब एनएससीएन-आईएम पड़ोसी राज्यों में भी अपना क्षेत्र होने के दावे को रेखांकित करेगा. इस समस्या से निश्चित रूप से मणिपुर में बहुत अधिक अशांति फैलेगी, जहां यह एक भावनात्मक मुद्दा है. देर से ही राष्ट्रीय राजनीतिक नेताओं से और जो मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश और असम के हैं उनके बीच वार्ता के गतिरोध समाप्त करने के लिए एक रास्ता खोजने के लिए गतिविधियों की सुगबुगाहट शुरू हुई है.

अभी हाल में एनएससीएन-आईएम और सरकार के बीच मतभेद तब अधिक गहरा गए जब विद्रोही संगठन ने वार्ताकार आरएन रवि को हटाने की मांग कर दी. रवि पहले खुफिया ब्यूरो में थे और अभी नगालैंड के राज्यपाल हैं. गत छह जून को राज्यपाल ने मुख्यमंत्री नेफियू रियो को एक पत्र लिखा, जिसमें एनएससीएन-आईएम और अन्य विद्रोही संगठनों को हथियारबंद गैंग करार देते हुए इन्हें बड़े पैमाने पर फिरौती वसूलने और गैर कानूनी गतिविधियों में शामिल बताया.

पढ़ें - एके-203 राइफलों के लिए अगस्त अंत तक हो सकता है रूस के साथ समझौता

इसके बाद सात जुलाई को नगालैंड सरकार ने आदेश निकाला कि सभी कर्मचारी एक माह में यह घोषणा पत्र दाखिल करें कि उनके परिवार का कोई भी सदस्य या रिश्तेदार भूमिगत संगठनों से तो नहीं जुड़ा है. यह समस्या पैदा करने वाला एक और पहलू जुड़ गया क्योंकि चीन के साथ भारतीय सेना का रिश्ता अभी तनावपूर्ण है, जिसके परिणामस्वरूप सीमा पर दोनों देशों की सेनाएं कई बार आमने-सामने आ चुकी हैं, इसके अलावा बड़े पैमाने पर सेनाओं की सीमाई इलाके में लामबंदी भी हो रही है. अतीत में चीन भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र के विद्रोही संगठनों को आश्रय और मदद दे चुका है, इसमें नगा भूमिगत समूह भी शामिल हैं.

नई दिल्ली : नगा समस्या पर केंद्र से बातचीत में नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालिम (एनएससीएन-आईएम) ने अपना रुख कड़ा कर लिया है. उसकी बातों में वास्तविकता की अजीब स्वीकृति तो है लेकिन अपनी पहले की बात पर पूरी तरह से अड़ा है. इस संगठन के महासचिव थुइंगालेंग मुइवा ने कहा है कि नगा राष्ट्र भारत के साथ मिलकर तो रह सकता है लेकिन विलय नहीं होगा.

नगालैंड के दीमापुर के पास हेबरोन स्थित नगा काउंसिल के मुख्यालय में शुक्रवार को मुइवा का जो भाषण पढ़ा गया, उसमें मुइवा ने कहा कि नगा करार की जिस रूपरेखा पर सहमति बनी है और पूरी तरह से परिभाषित है, उसके तहत स्वायत्त शक्तियों के साथ भारत से मिलकर रहेंगे लेकिन वे भारत के साथ विलय नहीं करेंगे. करार की इस रूपरेखा पर नरेंद्र मोदी सरकार के साथ वर्ष 2015 में तीन अगस्त को हस्ताक्षर हुआ था.

86 वर्षीय बुजुर्ग नगा छापेमार दस्ता के नेता मुइवा अभी देश की राजधानी नई दिल्ली में हैं और करीब सात दशक से जारी नगा मुद्दे के समाधान के लिए बातचीत की लगभग रुकी प्रक्रिया को तनाव (ट्रैक्शन) देने का प्रयास कर रहे हैं. मुइवा का लिखित भाषण शुक्रवार को एनएससीएन-आईएम के कथित 74वें स्वतंत्रता दिवस समारोह को मनाने के अवसर पर पढ़ा गया. नगा संगठनों ने भारत की अंग्रेजों से आजादी के एक दिन पहले 14 अगस्त 1947 को ही खुद को आजाद घोषित कर दिया था.

इस बात का संकेत देते हुए कि नगा संगठन अपने अलग संविधान और नगा राष्ट्रीय झंडे की अपनी विवादास्पद मांगों का त्याग नहीं करेंगे, मुइवा ने कहा कि मान्यता दें या नहीं, हमारा अपना झंडा और संविधान है. झंडा और संविधान हमारी मान्यता प्राप्त सार्वभौमिक इकाई के तत्व और नगा राष्ट्रवाद के प्रतीक हैं. नगा हर हाल में अपने झंडे और संविधान को बनाए रखेंगे.

मणिपुर के उखरुल जिले के मूल रूप से थांगखुल जनजाति के एनएससीएन नेता ने सरकार के जारी युद्ध विराम के मुद्दे संकेत दिया कि जहां भी नगा लड़ रहे थे, वहां युद्ध विराम लागू है जिसका अर्थ है कि एनएससीएन-आईएम और सरकार के बीच युद्ध विराम 'क्षेत्रीय सीमाओं के बिना' था और इसके विस्तार में मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश और असम के भी वे सारे क्षेत्र आ जाएंगे, जहां नगा रहते हैं.

बगैर क्षेत्रीय सीमा के युद्ध विराम ने इसका क्षेत्र बढ़ाने का काम किया है. अब एनएससीएन-आईएम पड़ोसी राज्यों में भी अपना क्षेत्र होने के दावे को रेखांकित करेगा. इस समस्या से निश्चित रूप से मणिपुर में बहुत अधिक अशांति फैलेगी, जहां यह एक भावनात्मक मुद्दा है. देर से ही राष्ट्रीय राजनीतिक नेताओं से और जो मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश और असम के हैं उनके बीच वार्ता के गतिरोध समाप्त करने के लिए एक रास्ता खोजने के लिए गतिविधियों की सुगबुगाहट शुरू हुई है.

अभी हाल में एनएससीएन-आईएम और सरकार के बीच मतभेद तब अधिक गहरा गए जब विद्रोही संगठन ने वार्ताकार आरएन रवि को हटाने की मांग कर दी. रवि पहले खुफिया ब्यूरो में थे और अभी नगालैंड के राज्यपाल हैं. गत छह जून को राज्यपाल ने मुख्यमंत्री नेफियू रियो को एक पत्र लिखा, जिसमें एनएससीएन-आईएम और अन्य विद्रोही संगठनों को हथियारबंद गैंग करार देते हुए इन्हें बड़े पैमाने पर फिरौती वसूलने और गैर कानूनी गतिविधियों में शामिल बताया.

पढ़ें - एके-203 राइफलों के लिए अगस्त अंत तक हो सकता है रूस के साथ समझौता

इसके बाद सात जुलाई को नगालैंड सरकार ने आदेश निकाला कि सभी कर्मचारी एक माह में यह घोषणा पत्र दाखिल करें कि उनके परिवार का कोई भी सदस्य या रिश्तेदार भूमिगत संगठनों से तो नहीं जुड़ा है. यह समस्या पैदा करने वाला एक और पहलू जुड़ गया क्योंकि चीन के साथ भारतीय सेना का रिश्ता अभी तनावपूर्ण है, जिसके परिणामस्वरूप सीमा पर दोनों देशों की सेनाएं कई बार आमने-सामने आ चुकी हैं, इसके अलावा बड़े पैमाने पर सेनाओं की सीमाई इलाके में लामबंदी भी हो रही है. अतीत में चीन भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र के विद्रोही संगठनों को आश्रय और मदद दे चुका है, इसमें नगा भूमिगत समूह भी शामिल हैं.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.