नई दिल्ली : नई राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली (एनईपी) का ड्राफ्ट तैयार हुए एक साल से ज्यादा हो चुका है और लगभग सालभर पहले ही इसे सार्वजनिक भी किया गया था.
हालांकि मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने इस पर सुझाव आमंत्रित किया था. इसके बाद लाखों की संख्या में सुझाव आने की पुष्टि स्वयं मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक भी कर चुके हैं.
इसी कड़ी में 'राइट टू एजुकेशन फोरम' ने दिल्ली में एक चर्चा का आयोजन किया. इसमें लोकसभा और राज्यसभा के कई सांसद, शिक्षाविद्, टीचर्स एसोसिएशन के सदस्य और सिविल सोसाइटी के प्रतिनिधि भी मौजूद रहे.
लंबी चर्चा के बाद कई ऐसे सुझाव सामने आए और सांसदों से मांग की गई कि बिल पर सदन में चर्चा के दौरान वे इन सुझावों को रखें.
गौरतलब है कि मोदी सरकार के पहले कार्यकाल से ही नई शिक्षा प्रणाली तैयार करने और उसको लागू करने को लेकर लगातार चर्चा करती रही है. लेकिन अब मोदी 2.0 के सौ दिन से ज्यादा पूरे हो जाने तक भी यह बिल सदन में प्रस्तावित नहीं हो पाया है.
विशेषज्ञों का कहना है कि बिल में कई ऐसी चीजें हैं, जिनका समय-समय पर विरोध हुआ है और लगातार उसमें बदलाव भी होते रहे हैं. इसलिए मौजूदा शीतकालीन सत्र में भी ये बिल शायद ही आ पाए.
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मौजूदा सरकार ने शिक्षा बजट को लगातार घटाया ही है : अम्बरीश राय
ईटीवी भारत से बातचीत में 'राइट टू एजुकेशन फोरम' के राष्ट्रीय संयोजक अम्बरीश राय ने नई राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली पर कई आवश्यक बिंदुओं को सामने रखा.
उन्होंने कहा कि सबसे पहला मुद्दा शिक्षा के अधिकार से संबंधित है, जिसमें आयु सीमा 6 वर्ष से 14 वर्ष तक निर्धारित है. जबकि संस्था का सुझाव इसको प्री-प्राइमरी से हायर सेकेंडरी तक करने की है. दूसरी मांग जो लंबे अरसे से चलती आ रही है, वो शिक्षा में निवेश को लेकर है.
अम्बरीश का दावा है कि मौजूदा सरकार ने शिक्षा बजट को बढ़ाने की बजाय लगाया घटाया ही है. पहले जहां कुल जीडीपी का 3.5 प्रतिशत के आस-पास शिक्षा के लिए दिया जा रहा था वहीं मौजूदा प्रतिशत तीन से भी घट कर देश की कुल आमदनी (जीडीपी) का 2.7% रह गया है.
उन्होंने कहा, 'नई शिक्षा प्रणाली में सरकार खर्च को दुगुना करने की बात तो जरूर करती है, लेकिन हमारी मांग है कि 1966 के कोठारी कमीशन की सिफारिश के अनुसार देश की जीडीपी का 6% शिक्षा पर खर्च किया जाना चाहिए.'
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'नई शिक्षा प्रणाली मोदी सरकार के एजेंडे में था'
अम्बरीश ने साथ ही कहा कि एक महत्वपूर्ण मुद्दा शिक्षकों की कमी का भी है. सरकार को शिक्षकों की नियुक्ति और प्रशिक्षण में भी बड़ा निवेश करने की जरूरत है. एक और महत्वपूर्ण बिंदु पर कई विशेषज्ञों की राय सामने आई और वो है 'कॉमन स्कूलिंग सिस्टम', जिसके तहत सभी वर्गों और समुदायों के छात्र एक ही विद्यालय में बिना किसी भेद भाव के पढ़ें. समाज में सौहार्द बनाये रखने के लिए स्कूल स्तर से ही इस तरह की शिक्षा जरूरी है.
उन्होंने जानकारी दी कि नई शिक्षा प्रणाली को पहले मोदी सरकार ने अपने 100 दिन के एजेंडे में शामिल किया था, लेकिन कई मुद्दों पर अब तक चर्चा नहीं हो पाई है. इसकी वजह से अब ये साल 2020 के शुरुआत में संसद में पेश करने की संभावना है.
'राइट तो एजुकेशन फोरम' ने अपने सुझाव सरकार को पहले भी भेजे थे और उनमें से कई सुझावों को नई शिक्षा प्रणाली के ड्राफ्ट में शामिल भी किया गया है.
बहरहाल सांसदों के साथ इस तरह की चर्चा का उद्देश्य ये है कि जब सदन में इस बिल को रखा जाए तो वहां भी इन सभी मुद्दों पर चर्चा हो और सभी सांसद मजबूती से इन बातों को रखें.