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प्राकृतिक फाइबर बुनाई उद्योग में आया ठहराव, संकट में बुनकर - standstill Weavers in distress

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन पर अनाकपुथुर नेचुरल फाइबर वीवर्स एसोसिएशन ने बांस के फाइबर से बनी छह फीट लंबी साड़ी भेजी थी. उस साड़ी पर मोदी का चेहरा प्रिंट किया था. इसके साथ ही एक निवेदन पत्र भेजा गया था, जिसमें कहा गया था कि उद्योग में ठरहाव आ गया है और इसे चलाने के लिए पर्याप्त जगह नहीं हैं.

weaving industry
संकट में बुनकर
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Published : Oct 9, 2020, 3:38 PM IST

चेन्नई : हम सभी लोग रेशम और कपास की साड़ियों से परिचित हैं. हम लोगों में से अधिकतर उन साड़ियों के बारे में नहीं जानते जो केले, नारियल, बांस और अनानास जैसे 25 प्राकृतिक स्रोतों से प्राप्त फाइबर्स (तंतुओं) से बुनी जाती हैं. यह साड़ियां उन चीजों से बुनी जाती हैं, जिन्हें बेकार माना जाता है और सब्जियों, फलों और छाल से निकाले गए रंगों का उपयोग करके रंगी जाती हैं. इनका उत्पादन तमिलनाडु के चेंगलपट्टू जिले के अनाकपुथुर में किया जाता है. देश के विभिन्न राज्यों के लोग इन साड़ियों को खरीदने की इच्छा जता रहे हैं.

संकट में अनाकपुथुर के बुनकर

चेन्नई के पास अनाकपुथुर में नेचुरल फाइबर वीवर्स एसोसिएशन पिछले 15 वर्षों से काम कर रहा है. जहां बुनकर केले, बांस, एलोवेरा और अनानास जैसे प्राकृतिक स्रोतों से प्राप्त फाइबर से बहुरंगी साड़ी बनाने में लगे हुए हैं. फाइबर्स को साड़ी बनाने के लिए नीम के पत्तों, हल्दी, चंदन, कोयले, फल, सब्जियों और छाल से निकाले गए रंगों में भिगोया जाता है. यह साड़ी शरीर को ठंडा रखने में मदद करती हैं, क्योंकि इन्हें बनाने में किसी तरह के रसायनों का इस्तेमाल नहीं किया जाता है.

प्राकृतिक रेशों से बुनी गई साड़ियां
यह भी कहा जाता है कि जड़ी-बूटियों से प्राप्त रेशों से बनी साड़ियां त्वचा रोगों को ठीक करने का भी काम करती हैं. अनाकपुथुर के बुनकरों को प्राकृतिक रेशों से बुनी गई साड़ियों के लिए कई प्रमाण-पत्र मिले हैं. राष्ट्रीय केला अनुसंधान केंद्र ने उन्हें भारत में केले के रेशे से बनी पहली साड़ी बुनाई के लिए प्रमाणित किया है. साड़ियों के अलावा, शर्ट और चूड़ीदार जैसे कपड़े भी प्राकृतिक रेशों से बुने जाते हैं.

बुनकरों की आजीविका प्रभावित
अनाकपुथुर के 80 से अधिक स्थानीय लोग प्राकृतिक फाइबर बुनकर संघ से जुड़े हुए हैं. साड़ियों की कीमत 12,00 से 7,500 रुपये के बीच होती है. एक साड़ी बुनने में करीब तीन दिन लगते हैं. इससे बुनकर हर महीने सात से 10 हजार रुपये तक कमाते हैं. यह साड़ी केवल भारत में ही नहीं, बल्कि अन्य देशों में भी लोकप्रिय है. हालांकि, इस उद्योग को और विकसित नहीं किया जा सका, क्योंकि केंद्र के साथ राज्य सरकार से भी अधिक सहायता नहीं मिली.

पढ़ें- मोदी राज में 12 हजार करोड़ का लौह अयस्क निर्यात घोटाला : कांग्रेस

इसके साथ ही इस उद्योग के संचालन के लिए जगह की कमी भी है. इसके अलावा कोविड महामारी से भी बुनकरों की आजीविका प्रभावित हुई है. उनका दावा है कि उन्हें सरकार की ओर से घोषित कोई राहत नहीं मिली है.

'अनुदान व सुविधाएं मुहैया कराने का अनुरोध'
नेचुरल फाइबर वीवर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष शेकर ने केंद्र और राज्य सरकार से अनुदान और सुविधाएं मुहैया कराने का अनुरोध किया है, ताकि उद्योग विकसित हो और इससे जुड़े लोगों की आजीविका बहाल हो सके.

प्राकृतिक रेशों से बुनी गईं हथकरघा साड़ियां
नेचुरल फाइबर वीवर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष शेकर ने स्थिति पर टिप्पणी करते हुए कहा कि करीब 10 साल पहले अनाकपुथुर में लगभग 3000 करघे चलते थे, जो अब घटकर मात्र 100 रह गए हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि कई लोगों ने सरकार से सहायता नहीं मिलने और पर्याप्त आमदनी नहीं हो पाने की वजह से इस उद्योग को छोड़ दिया. मैं 30 साल से इस इंडस्ट्री में हूं. चेंगलपट्टू भारत की एकमात्र ऐसी जगह है, जहां प्राकृतिक रेशों से हथकरघा साड़ियों को बनाया जाता है. प्राकृतिक रेशों से किस तरह बुनाई की जाती है, इसके बारे में हथकरघा बुनकरों को प्रशिक्षिण देने के लिए हम उत्तर के राज्यों में भी जाते हैं.

300 से 400 रुपये हर दिन कमा सकती हैं महिलाएं
उन्होंने आगे बताया कि जगह की कमी की वजह से हम उद्योग को विकसित करने और हैंडलूम क्लस्टर स्टेशन स्थापित करने में असमर्थ हैं. सरकार हमें एमएसएमई ऋण और बुनाई के लिए उपकरण देने के लिए तैयार है, लेकिन जगह की कमी ऐसे उपायों के लिए बाधा बन गई है. इस कार्यक्रम से रोजगार के अवसरों को बढ़ाने में मदद मिलेगी, विशेष रूप से महिलाएं 300 से 400 रुपये हर दिन कमा सकती हैं.

पढ़ें: रिजर्व बैंक ने रेपो दर को चार प्रतिशत पर बरकरार रखा

राहत की घोषणा, लेकिन फायदा नहीं
उन्होंने बताया कि हम लोगों को भारत के विभिन्न क्षेत्रों के साथ-साथ अन्य देशों से भी कई ऑर्डर मिलते हैं. जगह की कमी के कारण ऑर्डर पूरा करना हमें मुश्किल लगता है. यह उद्योग 2015 की बाढ़ से प्रभावित हुआ था और बाद में इससे उबर गया. अब पिछले छह महीनों से महामारी ने उद्योग को प्रभावित किया है, क्योंकि लॉकडाउन के कारण बिक्री बहुत कम हो गई है. हम कच्चा माल भी नहीं खरीद पा रहे हैं. राज्य सरकार ने बुनकरों के लिए दो हजार रुपये की राहत की घोषणा की थी, लेकिन हमें अभी तक किसी भी प्रकार की राहत नहीं मिली है.

जिला कलेक्टर के पास दी अर्जी
उनका कहना है कि हम केंद्र के साथ-साथ राज्य सरकार से अनुरोध करते हैं कि वह हमें पांच लाख रुपये का अनुदान दे. इसके माध्यम से हम अपनी आजीविका सुधारने, उद्योग का विस्तार करने और युवाओं को रोजगार के अवसर प्रदान करने में सक्षम होंगे. उन्होंने कहा कि हम लोग पिछले आठ साल से कांचीपुरम के जिला कलेक्टर के पास आवेदन दे रहे हैं. अब हमने चेंगलपट्टू के जिला कलेक्टर के पास एक अर्जी दी है. हम चेंगलपट्टू के जिला कलेक्टर जॉन लुइस से अनुरोध करते हैं कि वह जरूरी कार्रवाई करें.

बुनकरों की जरूरतें
प्रधानमंत्री के जन्मदिन पर 17 सितंबर को उन्हें एक अर्जी के साथ बांस के रेशे से बनी छह फुट लंबी साड़ी भेजी गई थी. उनका मानना है कि अगर प्रधानमंत्री ध्यान देंगे तो बुनकरों की जरूरतें पूरी हो जाएंगी.

चेन्नई : हम सभी लोग रेशम और कपास की साड़ियों से परिचित हैं. हम लोगों में से अधिकतर उन साड़ियों के बारे में नहीं जानते जो केले, नारियल, बांस और अनानास जैसे 25 प्राकृतिक स्रोतों से प्राप्त फाइबर्स (तंतुओं) से बुनी जाती हैं. यह साड़ियां उन चीजों से बुनी जाती हैं, जिन्हें बेकार माना जाता है और सब्जियों, फलों और छाल से निकाले गए रंगों का उपयोग करके रंगी जाती हैं. इनका उत्पादन तमिलनाडु के चेंगलपट्टू जिले के अनाकपुथुर में किया जाता है. देश के विभिन्न राज्यों के लोग इन साड़ियों को खरीदने की इच्छा जता रहे हैं.

संकट में अनाकपुथुर के बुनकर

चेन्नई के पास अनाकपुथुर में नेचुरल फाइबर वीवर्स एसोसिएशन पिछले 15 वर्षों से काम कर रहा है. जहां बुनकर केले, बांस, एलोवेरा और अनानास जैसे प्राकृतिक स्रोतों से प्राप्त फाइबर से बहुरंगी साड़ी बनाने में लगे हुए हैं. फाइबर्स को साड़ी बनाने के लिए नीम के पत्तों, हल्दी, चंदन, कोयले, फल, सब्जियों और छाल से निकाले गए रंगों में भिगोया जाता है. यह साड़ी शरीर को ठंडा रखने में मदद करती हैं, क्योंकि इन्हें बनाने में किसी तरह के रसायनों का इस्तेमाल नहीं किया जाता है.

प्राकृतिक रेशों से बुनी गई साड़ियां
यह भी कहा जाता है कि जड़ी-बूटियों से प्राप्त रेशों से बनी साड़ियां त्वचा रोगों को ठीक करने का भी काम करती हैं. अनाकपुथुर के बुनकरों को प्राकृतिक रेशों से बुनी गई साड़ियों के लिए कई प्रमाण-पत्र मिले हैं. राष्ट्रीय केला अनुसंधान केंद्र ने उन्हें भारत में केले के रेशे से बनी पहली साड़ी बुनाई के लिए प्रमाणित किया है. साड़ियों के अलावा, शर्ट और चूड़ीदार जैसे कपड़े भी प्राकृतिक रेशों से बुने जाते हैं.

बुनकरों की आजीविका प्रभावित
अनाकपुथुर के 80 से अधिक स्थानीय लोग प्राकृतिक फाइबर बुनकर संघ से जुड़े हुए हैं. साड़ियों की कीमत 12,00 से 7,500 रुपये के बीच होती है. एक साड़ी बुनने में करीब तीन दिन लगते हैं. इससे बुनकर हर महीने सात से 10 हजार रुपये तक कमाते हैं. यह साड़ी केवल भारत में ही नहीं, बल्कि अन्य देशों में भी लोकप्रिय है. हालांकि, इस उद्योग को और विकसित नहीं किया जा सका, क्योंकि केंद्र के साथ राज्य सरकार से भी अधिक सहायता नहीं मिली.

पढ़ें- मोदी राज में 12 हजार करोड़ का लौह अयस्क निर्यात घोटाला : कांग्रेस

इसके साथ ही इस उद्योग के संचालन के लिए जगह की कमी भी है. इसके अलावा कोविड महामारी से भी बुनकरों की आजीविका प्रभावित हुई है. उनका दावा है कि उन्हें सरकार की ओर से घोषित कोई राहत नहीं मिली है.

'अनुदान व सुविधाएं मुहैया कराने का अनुरोध'
नेचुरल फाइबर वीवर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष शेकर ने केंद्र और राज्य सरकार से अनुदान और सुविधाएं मुहैया कराने का अनुरोध किया है, ताकि उद्योग विकसित हो और इससे जुड़े लोगों की आजीविका बहाल हो सके.

प्राकृतिक रेशों से बुनी गईं हथकरघा साड़ियां
नेचुरल फाइबर वीवर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष शेकर ने स्थिति पर टिप्पणी करते हुए कहा कि करीब 10 साल पहले अनाकपुथुर में लगभग 3000 करघे चलते थे, जो अब घटकर मात्र 100 रह गए हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि कई लोगों ने सरकार से सहायता नहीं मिलने और पर्याप्त आमदनी नहीं हो पाने की वजह से इस उद्योग को छोड़ दिया. मैं 30 साल से इस इंडस्ट्री में हूं. चेंगलपट्टू भारत की एकमात्र ऐसी जगह है, जहां प्राकृतिक रेशों से हथकरघा साड़ियों को बनाया जाता है. प्राकृतिक रेशों से किस तरह बुनाई की जाती है, इसके बारे में हथकरघा बुनकरों को प्रशिक्षिण देने के लिए हम उत्तर के राज्यों में भी जाते हैं.

300 से 400 रुपये हर दिन कमा सकती हैं महिलाएं
उन्होंने आगे बताया कि जगह की कमी की वजह से हम उद्योग को विकसित करने और हैंडलूम क्लस्टर स्टेशन स्थापित करने में असमर्थ हैं. सरकार हमें एमएसएमई ऋण और बुनाई के लिए उपकरण देने के लिए तैयार है, लेकिन जगह की कमी ऐसे उपायों के लिए बाधा बन गई है. इस कार्यक्रम से रोजगार के अवसरों को बढ़ाने में मदद मिलेगी, विशेष रूप से महिलाएं 300 से 400 रुपये हर दिन कमा सकती हैं.

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राहत की घोषणा, लेकिन फायदा नहीं
उन्होंने बताया कि हम लोगों को भारत के विभिन्न क्षेत्रों के साथ-साथ अन्य देशों से भी कई ऑर्डर मिलते हैं. जगह की कमी के कारण ऑर्डर पूरा करना हमें मुश्किल लगता है. यह उद्योग 2015 की बाढ़ से प्रभावित हुआ था और बाद में इससे उबर गया. अब पिछले छह महीनों से महामारी ने उद्योग को प्रभावित किया है, क्योंकि लॉकडाउन के कारण बिक्री बहुत कम हो गई है. हम कच्चा माल भी नहीं खरीद पा रहे हैं. राज्य सरकार ने बुनकरों के लिए दो हजार रुपये की राहत की घोषणा की थी, लेकिन हमें अभी तक किसी भी प्रकार की राहत नहीं मिली है.

जिला कलेक्टर के पास दी अर्जी
उनका कहना है कि हम केंद्र के साथ-साथ राज्य सरकार से अनुरोध करते हैं कि वह हमें पांच लाख रुपये का अनुदान दे. इसके माध्यम से हम अपनी आजीविका सुधारने, उद्योग का विस्तार करने और युवाओं को रोजगार के अवसर प्रदान करने में सक्षम होंगे. उन्होंने कहा कि हम लोग पिछले आठ साल से कांचीपुरम के जिला कलेक्टर के पास आवेदन दे रहे हैं. अब हमने चेंगलपट्टू के जिला कलेक्टर के पास एक अर्जी दी है. हम चेंगलपट्टू के जिला कलेक्टर जॉन लुइस से अनुरोध करते हैं कि वह जरूरी कार्रवाई करें.

बुनकरों की जरूरतें
प्रधानमंत्री के जन्मदिन पर 17 सितंबर को उन्हें एक अर्जी के साथ बांस के रेशे से बनी छह फुट लंबी साड़ी भेजी गई थी. उनका मानना है कि अगर प्रधानमंत्री ध्यान देंगे तो बुनकरों की जरूरतें पूरी हो जाएंगी.

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