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'सभी राज्य साथ मिलकर काम नहीं करेंगे तो देश की प्रगति मुश्किल'

'स्वराज ही मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर ही रहूंगा' का नारा देने वाले, महान स्वतंत्रता सेनानी लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक की आज 100 वीं पुण्यतिथि है. आजादी के आंदोलनों में भागीदारी के अलावा तिलक ने सामाजिक सुधार के लिए भी आवाज बुलंद की. पढ़ें सामाजिक विकास और प्रगति पर तिलक के विचार...

लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक
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Published : Aug 1, 2020, 8:58 AM IST

हैदराबाद : लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक एक समाज सुधारक, राष्ट्रवादी और स्वतंत्रता सेनानी थे. आज उनकी 100वीं पुण्यतिथि है. एक अगस्त 1920 को मुंबई में तिलक का निधन हो गया था. तिलक का प्रसिद्ध नारा 'स्वराज ही मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर ही रहूंगा'. बाल गंगाधर तिलक को वास्तुकार, दूरदर्शी और राष्ट्रीयता के प्रवक्ता के रूप में जाना जाता है. संस्कृति और धर्म, तिलक के राष्ट्रवाद का मुख्य आधार थे. विकास को लेकर तिलक की राय थी कि यदि सभी राज्य मिलकर काम नहीं करेंगे तो देश की प्रगति नहीं हो पाएगी.

तिलक ने यह भी कहा कि राष्ट्रवाद को भौतिक रूप से नहीं देखा जाना चाहिए और न ही राष्ट्रवाद भौतिक या आध्यात्मिक चीज है. राष्ट्रवाद एक सोच, निर्णय, इच्छा और भावना है, जिसे केवल महसूस किया जा सकता है, लेकिन देखा नहीं जाता.

प्रत्येक राष्ट्र को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि लोगों को राष्ट्रवाद की भावना के बारे में बताया जाए. इतना ही नहीं राष्ट्रवाद को बनाए रखने का प्रयास लगातार किया जाना चाहिए.

भारतीय राष्ट्रवाद में तिलक का दर्शन और विचारधारा दो अर्थों में अद्वितीय है. तिलक का उद्देश्य भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और अन्य राजनीतिक संगठनों की भूमिका पर जोर देने के साथ-साथ लोगों में राष्ट्रीयता की भावना को जागृत करना है. भारतीय राष्ट्रवाद पर तिलक की अवधारणा क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तरों पर संचालित थी. 1890 के दशक में तिलक ने अपना ध्यान क्षेत्रीय मुद्दों की जड़ तक पहुंचने और राजनीतिक आंदोलन को मजबूत करने में लगाया.

होम रूल लीग
अप्रैल 1916 में बालगंगाधर तिलक ने होम रूल लीग की स्थापना की. तिलक ने इसका विस्तार पूरे देशभर में किया. तिलक ने दादाभाई नौरोजी के धन-निष्कासन सिद्धान्त को स्वीकार कर लिया था और देश के संसाधनों का दोहन करने के लिए ब्रिटिश सरकार की आलोचना की. तिलक ने लिखा कि विदेशी उद्यमों और निवेश ने भारत में उचितता का भ्रम पैदा किया है, जबकि सच्चाई अलग है.

तिलक ने महसूस किया कि एक विदेशी सरकार से भारत के उद्योगों के संरक्षण की उम्मीद नहीं की जा सकती है. तिलक द्वारा सुझाए गए बॉयकॉट और स्वदेशी के दोहरे राजनीतिक कार्यक्रमों का उद्देश्य स्वदेशी और स्वतंत्र आर्थिक विकास करना था.

1900 के दशक की शुरुआत में तिलक और रतनजी जमशेदजी टाटा ने भारत में बनने वाले उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए बॉम्बे स्वदेशी सहकारी भंडार कंपनी खोली. आज के समय में इस कंपनी का नाम द बॉम्बे स्टोर है.

संघीय राष्ट्र
तिलक के अनुसार भारत में विभिन्न धर्मों और भाषाओं की विविधता है, जिसके चलते भारत, अमेरिका के समान हो सकता है. भारत के सभी राज्यों को एकीकरण के लिए साथ आना चाहिए. राज्य भी एक मानव शरीर के हिस्से की तरह हैं. देश का कोई भाग अगर अल्पविकसित रहता है तो पूरे देश पर इसका प्रभाव पड़ता है. यदि शरीर के सभी अंग एक साथ काम नहीं करते हैं, तो शरीर मर जाएगा. इस मतलब यह है कि देश के सभी राज्य एक साथ मिलकर कार्य नहीं करते है तो देश की प्रगति नहीं हो पाएगी.

धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र
लोकमान्य तिलक ने हमेशा संसदीय लोकतंत्र की बात की. राष्ट्र की अवधारणा को विकसित करते हुए, उन्होंने इसे वैदिक दर्शन बताया. उनका मानना ​​था कि वैदिक धर्म एक दूसरे की मदद करने या दूसरों के लिए काम करने के लिए कहता है. वैदिक धर्म दूसरे के विचारों को स्वीकार करता है. हजारों सालों से इन सभी नागरिकों ने एक-दूसरे के दृष्टिकोण को स्वीकार किया है. भारत में विभिन्न धर्मों, विचारों और अनेक संस्कृतियों के लोग रहते हैं, जो विविधता में एकता को दिखाता है.

सामाजिक सुधार
तिलक सामाजिक सुधार के खिलाफ नहीं थे. उन्होंने सहमति व्यक्त की कि समय बीतने के साथ सामाजिक संस्थाओं और प्रथाओं को परिवर्तन करना चाहिए. उन्होंने अपने तरीके से रूढ़िवाद के खिलाफ लड़ाई छेड़ दी. हालांकि सामाजिक सुधारों का उनका सिद्धांत उदार सुधारकों से अलग था, जिनका उन्होंने विरोध किया था. वह ऑर्गेनिक (organic), विकासवादी और सहज सुधारों में विश्वास रखते थे. उन्होंने धीरे-धीरे प्रेरित और निहित सुधारों पर जोर दिया.

हैदराबाद : लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक एक समाज सुधारक, राष्ट्रवादी और स्वतंत्रता सेनानी थे. आज उनकी 100वीं पुण्यतिथि है. एक अगस्त 1920 को मुंबई में तिलक का निधन हो गया था. तिलक का प्रसिद्ध नारा 'स्वराज ही मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर ही रहूंगा'. बाल गंगाधर तिलक को वास्तुकार, दूरदर्शी और राष्ट्रीयता के प्रवक्ता के रूप में जाना जाता है. संस्कृति और धर्म, तिलक के राष्ट्रवाद का मुख्य आधार थे. विकास को लेकर तिलक की राय थी कि यदि सभी राज्य मिलकर काम नहीं करेंगे तो देश की प्रगति नहीं हो पाएगी.

तिलक ने यह भी कहा कि राष्ट्रवाद को भौतिक रूप से नहीं देखा जाना चाहिए और न ही राष्ट्रवाद भौतिक या आध्यात्मिक चीज है. राष्ट्रवाद एक सोच, निर्णय, इच्छा और भावना है, जिसे केवल महसूस किया जा सकता है, लेकिन देखा नहीं जाता.

प्रत्येक राष्ट्र को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि लोगों को राष्ट्रवाद की भावना के बारे में बताया जाए. इतना ही नहीं राष्ट्रवाद को बनाए रखने का प्रयास लगातार किया जाना चाहिए.

भारतीय राष्ट्रवाद में तिलक का दर्शन और विचारधारा दो अर्थों में अद्वितीय है. तिलक का उद्देश्य भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और अन्य राजनीतिक संगठनों की भूमिका पर जोर देने के साथ-साथ लोगों में राष्ट्रीयता की भावना को जागृत करना है. भारतीय राष्ट्रवाद पर तिलक की अवधारणा क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तरों पर संचालित थी. 1890 के दशक में तिलक ने अपना ध्यान क्षेत्रीय मुद्दों की जड़ तक पहुंचने और राजनीतिक आंदोलन को मजबूत करने में लगाया.

होम रूल लीग
अप्रैल 1916 में बालगंगाधर तिलक ने होम रूल लीग की स्थापना की. तिलक ने इसका विस्तार पूरे देशभर में किया. तिलक ने दादाभाई नौरोजी के धन-निष्कासन सिद्धान्त को स्वीकार कर लिया था और देश के संसाधनों का दोहन करने के लिए ब्रिटिश सरकार की आलोचना की. तिलक ने लिखा कि विदेशी उद्यमों और निवेश ने भारत में उचितता का भ्रम पैदा किया है, जबकि सच्चाई अलग है.

तिलक ने महसूस किया कि एक विदेशी सरकार से भारत के उद्योगों के संरक्षण की उम्मीद नहीं की जा सकती है. तिलक द्वारा सुझाए गए बॉयकॉट और स्वदेशी के दोहरे राजनीतिक कार्यक्रमों का उद्देश्य स्वदेशी और स्वतंत्र आर्थिक विकास करना था.

1900 के दशक की शुरुआत में तिलक और रतनजी जमशेदजी टाटा ने भारत में बनने वाले उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए बॉम्बे स्वदेशी सहकारी भंडार कंपनी खोली. आज के समय में इस कंपनी का नाम द बॉम्बे स्टोर है.

संघीय राष्ट्र
तिलक के अनुसार भारत में विभिन्न धर्मों और भाषाओं की विविधता है, जिसके चलते भारत, अमेरिका के समान हो सकता है. भारत के सभी राज्यों को एकीकरण के लिए साथ आना चाहिए. राज्य भी एक मानव शरीर के हिस्से की तरह हैं. देश का कोई भाग अगर अल्पविकसित रहता है तो पूरे देश पर इसका प्रभाव पड़ता है. यदि शरीर के सभी अंग एक साथ काम नहीं करते हैं, तो शरीर मर जाएगा. इस मतलब यह है कि देश के सभी राज्य एक साथ मिलकर कार्य नहीं करते है तो देश की प्रगति नहीं हो पाएगी.

धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र
लोकमान्य तिलक ने हमेशा संसदीय लोकतंत्र की बात की. राष्ट्र की अवधारणा को विकसित करते हुए, उन्होंने इसे वैदिक दर्शन बताया. उनका मानना ​​था कि वैदिक धर्म एक दूसरे की मदद करने या दूसरों के लिए काम करने के लिए कहता है. वैदिक धर्म दूसरे के विचारों को स्वीकार करता है. हजारों सालों से इन सभी नागरिकों ने एक-दूसरे के दृष्टिकोण को स्वीकार किया है. भारत में विभिन्न धर्मों, विचारों और अनेक संस्कृतियों के लोग रहते हैं, जो विविधता में एकता को दिखाता है.

सामाजिक सुधार
तिलक सामाजिक सुधार के खिलाफ नहीं थे. उन्होंने सहमति व्यक्त की कि समय बीतने के साथ सामाजिक संस्थाओं और प्रथाओं को परिवर्तन करना चाहिए. उन्होंने अपने तरीके से रूढ़िवाद के खिलाफ लड़ाई छेड़ दी. हालांकि सामाजिक सुधारों का उनका सिद्धांत उदार सुधारकों से अलग था, जिनका उन्होंने विरोध किया था. वह ऑर्गेनिक (organic), विकासवादी और सहज सुधारों में विश्वास रखते थे. उन्होंने धीरे-धीरे प्रेरित और निहित सुधारों पर जोर दिया.

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