हैदराबाद : देश में शहरी शासन व्यवस्था पटरी से उतर गई है. लगता है कि लोगों की जरूरतों और नगर पालिकाओं के प्रदर्शन के बीच जमीनी स्तर पर एक खालीपन है. शहरी मुद्दों पर काम करने वाली मुंबई की 'प्रजा फाउंडेशन' नाम की एक स्वयंसेवी संस्था ने देश भर के 40 नगरपालिकाओं और कस्बों में का एक अध्ययन किया है और बेहतर प्रशासन पर आधारित सूचकांक प्रकाशित किया हैं. इस सूची में ओडिशा सबसे ऊपर है, इसके बाद महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, केरल और मध्यप्रदेश हैं. तेलुगु राज्यों में आंध्र प्रदेश 15वें और तेलंगाना 19वें स्थान पर है. सूचकांक में राज्यों की स्थिति का निर्धारण कारकों के आधार पर किया गया है जैसे कि नगरपालिकाओं में प्रतिनिधियों का प्रदर्शन, विधायी तंत्र की ओर से नीतियों का पालन, नागरिकों की भागीदारी, समस्या समाधान के लिए स्थापित तंत्र और आर्थिक विकेंद्रीकरण.
विकेंद्रीकरण के साथ ‘तीसरे स्तर’ का एकीकरण
यह उल्लेखनीय है कि उस क्रम में कोई भी राज्य एक सौ अंकों के पैमाने पर 60 अंक भी हासिल नहीं कर सका. यह देश में नगरपालिका प्रशासन की कमियों और नगर सेवा प्रणालियों की विफलताओं को नजर से सामने लाता है. यह एक बार फिर स्पष्ट हो गया है कि कोई भी नगरपालिका 74वें संविधान संशोधन की 12वीं अनुसूची से निर्धारित 18 कार्यों को पूरी तरह से लागू नहीं कर रही है.
समस्याओं के भंडार के रूप में नगर पालिकाएं
संविधान में जिस तरीके से पहले से बता दिया गया है कि नगरपालिकाओं को स्वायत्तता नहीं है. राज्य सरकारों ने 74वें संविधान संशोधन की भावना को बार-बार नुकसान पहुंचाया है. राज्यों ने नगरपालिका के काम से जुड़ी कई शक्तियां अपने पास रखी हैं. संविधान यह निर्धारित करता है कि राज्य सरकारों और नगरपालिकाओं के बीच धन का वितरण वैज्ञानिक आधार पर किया जाना चाहिए. यह स्पष्ट किया गया है कि यह प्रक्रिया पूरी तरह से राज्य वित्त आयोग की देखरेख में पूरी की जानी चाहिए. राज्य सरकारें संपत्ति कर माफ करने और राजनीतिक जरूरतों के मद्देनजर कुछ श्रेणियों को छोड़कर नगरपालिका के राजस्व को गंभीर रूप से प्रभावित कर रही हैं.
नगरपालिकाएं पानी की आपूर्ति, सड़कों पर रोशनी, स्वच्छता, सड़क, परिवहन और ठोस अपशिष्ट प्रबंधन जैसी बुनियादी नागरिक सेवाए भी संतोषजनक तरीके से दे पाने में असमर्थ हैं. धीरे-धीरे विस्तार करने वाली झुग्गियां एक और बड़ी समस्या बन गई हैं. संविधान की ओर से निर्धारित काम नगरपालिकाओं के हाथ से एक-एक करके फिसल रहे हैं. राज्य सरकारों की ओर से स्थापित विभिन्न एजेंसियां जैसे अपशिष्ट जल उपचार बोर्ड, जल बोर्ड और शहरी विकास एजेंसियां, नगरपालिकाओं के कामों को कर रही हैं. आंध्र प्रदेश नगरपालिका सात काम कर रही है, जबकि तेलंगाना नगरपालिका केवल चार काम. लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था के तीसरे स्तर के रूप में वर्णित ये निकाय अपनी स्वतंत्रता खो रहे हैं.
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नगरपालिकाओं के लिए चुने गए कॉर्पोरेटर और मेयर के पास सीमित शक्तियां होती हैं. शासन की पूर्ण शक्तियां आयुक्त के पास निहित होती हैं. शहरी शासन में नागरिकों की सक्रिय भागीदारी महत्वपूर्ण है. दूसरी ओर यह भी उल्लेखनीय है कि नगरपालिका के शासन में लोगों की रुचि लगातार कम हो रही है. नगर निकाय चुनाव में मतदान बहुत कम हुआ है. वार्ड समितियों की स्थापना से शासन में नागरिक भागीदारी को बढ़ावा मिलता है. कई नगर पालिकाओं में वार्ड समितियां नहीं हैं. शहरी शासन में एक अन्य प्रमुख तत्व शिकायत निवारण तंत्र है. वह व्यवस्था भी ठीक से काम नहीं कर रही है.
धन मुहैया होना और महत्वपूर्ण
कुशल मानव संसाधनों की कमी होना बेहतर शहरी शासन के लिए नुकसानदेह है. कई नगर पालिकाओं में स्वीकृत पद नहीं भरे जा रहे हैं. कर्मचारियों की भर्ती में नगरपालिकाओं को कोई स्वतंत्रता नहीं है. यदि बेहतर शहरी शासन को पाना है तो लोकतांत्रिक शासन के तीसरे स्तर नगरपालिकाओं के पास पूर्ण स्वायत्तता होनी चाहिए, उन्हें निर्णय लेने की स्वतंत्रता दी जानी चाहिए. नगरपालिका प्रशासन को संविधान की बारहवीं अनुसूची में निर्धारित 18 कार्यों पर पूर्ण अधिकार होना चाहिए. निर्वाचित जन प्रतिनिधियों को नगरपालिका प्रशासन का अच्छा प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए. नौकरी की रिक्तियों पर नगरपालिकाओं का पूर्ण अधिकार होना चाहिए. नागरिकों को मेयर और पार्षद को वापस बुलाने का अधिकार होना चाहिए. केंद्र सरकार जिस तरह करों का हिस्सा राज्यों को देती है, उसी तर्ज पर राज्यों को करों का एक हिस्सा नगरपालिकाओं को देना चाहिए, तभी नगरपालिकाओं का वित्तीय रूप से मजबूत हो पांना संभव हो पाएगा. नगरपालिकाओं को संपत्ति कर और उपयोगकर्ता शुल्क और संशोधनों में वृद्धि पर पूर्ण अधिकार होना चाहिए. ई-गवर्नेंस शहरी प्रशासन के सभी क्षेत्रों में दक्षता में सुधार लाने में योगदान देता है, नागरिकों को कुशल नागरिक सेवाएं, पारदर्शिता और तेजी से सूचना प्रदान करता है. यह बेहतर शहरी प्रशासन और विकास से जटिलता से जुड़ा हुआ है. जब उस दिशा में सबसे अच्छे निर्णय लिए जाएंगे तभी नगरपालिकाएं और कस्बे प्रगति करेंगे.
पुल्लुर सुधाकर (शहरी विकास मामलों के विशेषज्ञ)