बेंगलुरु : कहते हैं, जब सपने बुलंद हों, तो कोई चीज आड़े नहीं आती. इसी कहावत को सच साबित कर दिखाया है, कर्नाटक के यदागीर तालुक की एक महिला ने. इस महिला ने अपनी बेटी के उज्जवल भविष्य में गरीबी को आड़े नहीं आने दिया और मिसाल पेश की.
होसल्ली टांडा निवासी ललिताम्मा जब गर्भवती थीं, तो उन्होंने अपने पति को खो दिया. इसके बाद उन्होंने भीख मांग कर जैसे-तैसे अपनी बच्ची की परवरिश की. कई तरह की बाधाओं के बावजूद महिला ने अपनी बेटी को यह सब महसूस नहीं होने दिया.
सिल्कीथा जैसे पिछड़े समुदाय से ताल्लुक रखने वाली ललिताम्मा ने अपनी बेटी गंगम्मा को योग्य शिक्षा प्रदान की.
ललितम्मा की बेटी ने एमए, एमएसडब्ल्यू पास किया है और वह केएएस और यूपीएससी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रही है.
भीख मांगकर संवारा बेटी का भविष्य
प्राथमिक विद्यालय के दिनों से ही गंगम्मा को कुछ नया सीखने में रुचि थी. उसने अपनी प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा लिंगी गांव के सरकारी स्कूल में पूरी की और बाद में दूसरी पीयूसी और डिग्री यदगीर और गुरुमठकल में पूरी की. गंगम्मा ने गुलबर्गा विश्वविद्यालय से एमए और एमएसडब्ल्यू की डिग्री प्राप्त की.
गंगम्मा कहती हैं कि वह उन परेशानियों से अच्छी तरह वाकिफ हैं, जो उसकी मां ने उसे इस मुकाम तक पहुंचाने के लिए झेली हैं. वह भी जीवन में कुछ सीखने और हासिल करने के लिए कई बार बिना भोजन के स्कूल और कॉलेज गई है. अब, गंगम्मा प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए पूरे आत्मविश्वास के साथ खड़ी हैं.
उसने बेंगलुरु में इन परीक्षाओं के लिए ट्रेनिंग भी ली है. ललिताम्मा अपनी बेटी को आईएएस, आईपीएस या केएएस अधिकारी के रूप में देखना चाहती हैं.
ललिताम्मा, जो अभी भी एक घास-फूस से बनी झोपड़ी में रहती हैं, उन्होंने अपनी बेटी के उज्ज्वल भविष्य के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया है. इस प्रकार, वह दूसरों के लिए एक मॉडल बन गई हैं. मदर्स डे के अवसर पर, उनके जैसी अदम्य आत्माओं को सलाम है.