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2030 तक AIDS से निपटने के लिए अधिक प्रयासों की जरूरत : विशेषज्ञ

आज विश्व एड्स दिवस है. एड्स पर संयुक्त राष्ट्र (यूएन) की एक स्टेटस रिपोर्ट बताती है कि एचआईवी या एड्स वाले लोगों तक पहुंचने के मामले में अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना बाकी है. इस संबंध में जागरुकता सबसे अहम है. जानें एड्स से बचाव के बारे में, क्या है विशेषज्ञ डॉक्टर की राय

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Published : Dec 1, 2019, 11:04 AM IST

नई दिल्ली : एचआईवी या एड्स वाले लोगों तक पहुंचने के मामले में अभी काफी काम किया जाना है. इस बीमारी के बारे में हार्ट केयर फाउंडेशन (एचसीएफआई) के अध्यक्ष डॉ. केके अग्रवाल का कहना है कि एचआईवी प्रतिरक्षा कोशिकाओं के कार्य को नष्ट कर देता है और कमजोर कर देता है. धीरे-धीरे संक्रमित व्यक्ति इम्यूनोडेफिशिएंट बन जाता है.

पिछले कुछ वर्षों में नए संक्रमण में 20 प्रतिशत की वार्षिक गिरावट दर्ज की गई है, लेकिन 2030 तक बीमारी से पूरी तरह से निपटने के लिए और अधिक प्रयासों की आवश्यकता है. डॉ. केके अग्रवाल ने आगे बताया कि विश्व एड्स दिवस पर, इस तथ्य के बारे में जागरूकता पैदा करने की आवश्यकता है कि एड्स पीड़ित हर व्यक्ति का समय पर इलाज हो, ताकि वे भी अच्छे स्वास्थ्य के साथ जी सके.

विभिन्न जन जागरूकता अभियानों, विभिन्न अत्याधुनिक चिकित्सा हस्तक्षेपों और प्रौद्योगिकी विकसित करने के बावजूद एचआईवी व एड्स भारतीय आबादी को प्रभावित कर रहा है.एचआईवी और एड्स अलग-अलग शब्द हैं.

एचआईवी या 'ह्यूमन इम्यूनो डेफिशिएंसी वायरस' प्रतिरक्षा प्रणाली में सफेद रक्त कोशिकाओं या टी लिम्फोसाइट्स पर हमला करता है और शरीर को सभी प्रकार की बीमारियों से ग्रस्त कर देता है.

दूसरी ओर, एड्स एक ऐसी स्थिति है, जो एक कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली के कारण एचआईवी संक्रमण के उन्नत चरणों में विकसित होती है.

विश्व में लगभग साढ़े तीन करोड़ से ज्यादा लोग HIV से प्रभावित

डॉ. अग्रवाल ने बताया कि गर्भावस्था और प्रसव के दौरान एक संक्रमित महिला अपने बच्चे तक एचआईवी को फैला सकती है. यह स्तनपान के माध्यम से भी, मां से बच्चे तक पहुंच सकता है. सभी गर्भवती माताओं को एचआईवी परीक्षण कराना चाहिए.

एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी (एआरटी) गर्भावस्था या स्तनपान के दौरान मां से शिशु तक और यौन संबंधों के माध्यम से एचआईवी संचरण को रोकने के लिए जल्द से जल्द शुरू की जानी चाहिए.

डॉ. अग्रवाल ने एड्स से बचाव के लिए कुछ सुझाव देते हुए कहा कि सुरक्षित यौन संबंध के लिए एबीसी : दूर रहें, अपने साथी के प्रति वफादार रहें और यदि ऐसा नहीं कर सकते, तो कंडोम का उपयोग करें. उन्होंने बताया कि अल्कोहल के सेवन या नशा करने से एड्स की जांच में बाधा पड़ती है.

बकौल डॉ अग्रवाल, जो लोग एड्स के जोखिम को समझते हैं और सुरक्षित यौन संबंधों का महत्व जानते हैं, वे भी नशे की हालत में लापरवाही बरत सकते हैं. उन्होंने कहा कि एसटीआई वाले लोगों को तुरंत इलाज कराना चाहिए और यौन क्रिया से बचना चाहिए या फिर सुरक्षित यौन संबंध रखने चाहिए.

उन्होंने बताया कि संक्रमित रेजर, ब्लेड, चाकू या त्वचा को काटने या छीलने वाले अन्य उपकरणों से एचआईवी फैलने का जोखिम रहता है. एचआईवी पॉजिटिव लोग अपनी इस स्थिति से अनभिज्ञ रह सकते हैं और वायरस को दूसरों तक फैला सकते हैं.

नई दिल्ली : एचआईवी या एड्स वाले लोगों तक पहुंचने के मामले में अभी काफी काम किया जाना है. इस बीमारी के बारे में हार्ट केयर फाउंडेशन (एचसीएफआई) के अध्यक्ष डॉ. केके अग्रवाल का कहना है कि एचआईवी प्रतिरक्षा कोशिकाओं के कार्य को नष्ट कर देता है और कमजोर कर देता है. धीरे-धीरे संक्रमित व्यक्ति इम्यूनोडेफिशिएंट बन जाता है.

पिछले कुछ वर्षों में नए संक्रमण में 20 प्रतिशत की वार्षिक गिरावट दर्ज की गई है, लेकिन 2030 तक बीमारी से पूरी तरह से निपटने के लिए और अधिक प्रयासों की आवश्यकता है. डॉ. केके अग्रवाल ने आगे बताया कि विश्व एड्स दिवस पर, इस तथ्य के बारे में जागरूकता पैदा करने की आवश्यकता है कि एड्स पीड़ित हर व्यक्ति का समय पर इलाज हो, ताकि वे भी अच्छे स्वास्थ्य के साथ जी सके.

विभिन्न जन जागरूकता अभियानों, विभिन्न अत्याधुनिक चिकित्सा हस्तक्षेपों और प्रौद्योगिकी विकसित करने के बावजूद एचआईवी व एड्स भारतीय आबादी को प्रभावित कर रहा है.एचआईवी और एड्स अलग-अलग शब्द हैं.

एचआईवी या 'ह्यूमन इम्यूनो डेफिशिएंसी वायरस' प्रतिरक्षा प्रणाली में सफेद रक्त कोशिकाओं या टी लिम्फोसाइट्स पर हमला करता है और शरीर को सभी प्रकार की बीमारियों से ग्रस्त कर देता है.

दूसरी ओर, एड्स एक ऐसी स्थिति है, जो एक कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली के कारण एचआईवी संक्रमण के उन्नत चरणों में विकसित होती है.

विश्व में लगभग साढ़े तीन करोड़ से ज्यादा लोग HIV से प्रभावित

डॉ. अग्रवाल ने बताया कि गर्भावस्था और प्रसव के दौरान एक संक्रमित महिला अपने बच्चे तक एचआईवी को फैला सकती है. यह स्तनपान के माध्यम से भी, मां से बच्चे तक पहुंच सकता है. सभी गर्भवती माताओं को एचआईवी परीक्षण कराना चाहिए.

एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी (एआरटी) गर्भावस्था या स्तनपान के दौरान मां से शिशु तक और यौन संबंधों के माध्यम से एचआईवी संचरण को रोकने के लिए जल्द से जल्द शुरू की जानी चाहिए.

डॉ. अग्रवाल ने एड्स से बचाव के लिए कुछ सुझाव देते हुए कहा कि सुरक्षित यौन संबंध के लिए एबीसी : दूर रहें, अपने साथी के प्रति वफादार रहें और यदि ऐसा नहीं कर सकते, तो कंडोम का उपयोग करें. उन्होंने बताया कि अल्कोहल के सेवन या नशा करने से एड्स की जांच में बाधा पड़ती है.

बकौल डॉ अग्रवाल, जो लोग एड्स के जोखिम को समझते हैं और सुरक्षित यौन संबंधों का महत्व जानते हैं, वे भी नशे की हालत में लापरवाही बरत सकते हैं. उन्होंने कहा कि एसटीआई वाले लोगों को तुरंत इलाज कराना चाहिए और यौन क्रिया से बचना चाहिए या फिर सुरक्षित यौन संबंध रखने चाहिए.

उन्होंने बताया कि संक्रमित रेजर, ब्लेड, चाकू या त्वचा को काटने या छीलने वाले अन्य उपकरणों से एचआईवी फैलने का जोखिम रहता है. एचआईवी पॉजिटिव लोग अपनी इस स्थिति से अनभिज्ञ रह सकते हैं और वायरस को दूसरों तक फैला सकते हैं.

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एड्स पर संयुक्त राष्ट्र (यूएन) की एक स्टेटस रिपोर्ट बताती है कि एचआईवी या एड्स वाले लोगों तक पहुंचने के मामले में अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना बाकी है. 



नई दिल्ली : हार्ट केयर फाउंडेशन (एचसीएफआई) के अध्यक्ष डॉ. केके अग्रवाल का कहना है कि एचआईवी प्रतिरक्षा कोशिकाओं के कार्य को नष्ट कर देता है और कमजोर कर देता है. धीरे-धीरे संक्रमित व्यक्ति इम्यूनोडेफिशिएंट बन जाता है. 

पिछले कुछ वर्षों में नए संक्रमण में 20 प्रतिशत की वार्षिक गिरावट दर्ज की गई है, लेकिन 2030 तक बीमारी से पूरी तरह से निपटने के लिए और अधिक प्रयासों की आवश्यकता है. 

डॉ. केके अग्रवाल ने आगे बताया कि विश्व एड्स दिवस पर, इस तथ्य के बारे में जागरूकता पैदा करने की आवश्यकता है कि एड्स पीड़ित हर व्यक्ति का समय पर इलाज हो, ताकि वे भी अच्छे स्वास्थ्य के साथ जी सके.

विभिन्न जन जागरूकता अभियानों, विभिन्न अत्याधुनिक चिकित्सा हस्तक्षेपों और प्रौद्योगिकी विकसित करने के बावजूद एचआईवी व एड्स भारतीय आबादी को प्रभावित कर रहा है.एचआईवी और एड्स अलग-अलग शब्द हैं. 

एचआईवी या 'ह्यूमन इम्यूनो डेफिशिएंसी वायरस' प्रतिरक्षा प्रणाली में सफेद रक्त कोशिकाओं या टी लिम्फोसाइट्स पर हमला करता है और शरीर को सभी प्रकार की बीमारियों से ग्रस्त कर देता है. 

दूसरी ओर, एड्स एक ऐसी स्थिति है, जो एक कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली के कारण एचआईवी संक्रमण के उन्नत चरणों में विकसित होती है.

डॉ. अग्रवाल ने बताया कि गर्भावस्था और प्रसव के दौरान एक संक्रमित महिला अपने बच्चे तक एचआईवी को फैला सकती है. यह स्तनपान के माध्यम से भी, मां से बच्चे तक पहुंच सकता है. सभी गर्भवती माताओं को एचआईवी परीक्षण कराना चाहिए. 

एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी (एआरटी) गर्भावस्था या स्तनपान के दौरान मां से शिशु तक और यौन संबंधों के माध्यम से एचआईवी संचरण को रोकने के लिए जल्द से जल्द शुरू की जानी चाहिए.

डॉ. अग्रवाल ने एड्स से बचाव के लिए कुछ सुझाव देते हुए कहा कि सुरक्षित यौन संबंध के लिए एबीसी : दूर रहें, अपने साथी के प्रति वफादार रहें और यदि ऐसा नहीं कर सकते, तो कंडोम का उपयोग करें. उन्होंने बताया कि अल्कोहल के सेवन या नशा करने से एड्स की जांच में बाधा पड़ती है. 

बकौल डॉ अग्रवाल, जो लोग एड्स के जोखिम को समझते हैं और सुरक्षित यौन संबंधों का महत्व जानते हैं, वे भी नशे की हालत में लापरवाही बरत सकते हैं. उन्होंने कहा कि एसटीआई वाले लोगों को तुरंत इलाज कराना चाहिए और यौन क्रिया से बचना चाहिए या फिर सुरक्षित यौन संबंध रखने चाहिए. 

उन्होंने बतायि कि संक्रमित रेजर, ब्लेड, चाकू या त्वचा को काटने या छीलने वाले अन्य उपकरणों से एचआईवी फैलने का जोखिम रहता है. एचआईवी पॉजिटिव लोग अपनी इस स्थिति से अनभिज्ञ रह सकते हैं और वायरस को दूसरों तक फैला सकते हैं.


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